रविवार, 31 दिसंबर 2023

सवाल आत्म निर्भरता और रोजगार- अशोक सक्सेना (वरिष्ठ कवि और पत्रकार) टोंक


 अशोक सक्सेना

वरिष्ठ कवि और पत्रकार टोंक


सवाल आत्म निर्भरता और रोजगार

आत्म निर्भर होना भी अच्छी बात है और आत्म निर्भर होने की सोच का विकास करना भी वर्तमान परिपेक्ष्य में बहुत प्रांसगिक भी है, जहाँ रोजगार का संकट बेरोजगारों के सामने पहाड़ों की दिशा बदलने जैस हो गया है। वहीं हमारे देश् की शासन व्यवस्था के सामने भी बेरोजगारी से निपटने की काई मानसिक तैयारी भी दिखाई नहीं देती। देश का बेरोजगार सड़क पर इस नारेबाजी के साथ उतरता हैं कि "जो सरकार रोजगार दे न सकें वो सरकार निकम्मी है।" सवाल ये है क्या सरकार ने रोजगार देने का वचन दिया है तथा हमारे बेरोजगार युवक को सरकार पर ही आश्रित रहने की मानसिकता क्यों कर विकसित हो गयी।

मैं किसी शासन व्यवस्था का पक्षधर नहीं हूँ, विश्वास कीजिये विचारणीय बात ये है कि हम इस विश्वास और उम्मीद के साथ ही क्यों बैठे है कि सरकार ही हमारे रोजगार की व्यवस्था करे, सरकारी सेवा में जाने के लिय ही हम क्यों लालीयत हैं क्या सिर्फ इसलिये कि वहां एक निष्चित समय तक सेवा में रहने का विश्वास है और वृद्ध जीवन के लिये सेवानिवृत्ति के बाद भी जीवन यापन के लिए मासिक पेंशन की प्राप्ति होते रहना है या फिर कुछ अन्य कारण भी हैं। उन लोगों के लिये जो कोल्हू के बैल की तरह अपने दिमाग अपनी दृष्टि एवम् जीवन के प्रति नयी सोच का इस्तेमाल ही करना नहीं चाहते, बस समय से तन्ख्वाह मिल जाये और एक ही वृत्त में घूमते हुए उम्र पूरी हो जाये।

युवा बेरोजगारों पर मेरा यह आरोप नहीं है। सभी चाहते है जीवन में रोजगार की सुनिश्चिता हो जबकि निजी क्षेत्रों द्वारा कर्मचारियों के शोषण और उत्पीड़न से सभी परिचित हैं। ऐसे हालातों में आत्म निर्भर होकर जीना बड़ी चुनौती है, इसके रास्ते में कौन-कौन सी बाधाएं हैं। उन पर विचार करें तो सबसे पहले तथ्य उभरता है कि क्या हम किसी भी उद्यम के लिए तैयार हैं? क्या हमने उस उद्यम  विशेष के लिये शिक्षा ओर अनुभव लिया है, उत्तर मिलता है नहीं यही कारण है कि हम बेरोजगारी के दलदल में धंसे हैं। एक अपरिपक्व शिक्षा नीति का यही खमयाजा हैं, जिसके चलते इस पीढ़ी के विद्यार्थी जीवन से बुनियादी शिक्षा गायब हो गयी।

समाज का वह वर्ग जो आर्थिक रूप से सम्पन्न है उसने अपने बच्चों को तकनीकी एवं अन्य क्षेत्रों में शिक्षा  उपलब्ध करा कर निजी क्षेत्रों में सेवाएं प्राप्त करने का मार्ग खोला है पर समाज का सबसे बड़ा वर्ग जो यह सब नहीं कर सकता और तथाकथित रूप से व्हाइट कॉलंड शिक्षित है उसके लिए सबही रास्ते बंद हैं इसके लिए वे सभी सरकारें दोषी हैं, जिन्होंने शिक्षा नीति से बुनियादी शिक्षा को बाहर निकाला हैं।

जिस पीढ़ी ने श्रम युक्त रोजगार सीखा ही नहीं वह  वयस्क युवक जीवन के इस मोड़ पर क्या करेगा। कई दशकों बाद सत्ता व्यवस्था ने सोचा है, की अकादमिक शिक्षा संस्थानों से हट कर अलग से तकनीकी और औद्योगिक  शिक्षा संस्थान खोले जायें। कौशल विकास और स्किल इंडिया जैसी सोच को व्यवाहारिक बनाया जाये। इस पहल से रोजगार के क्षेत्र में कुछ सम्भावनाएं जरूर बनी हैं जो आत्म निर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाती हैं।

मैं सोचता हूँ किसी भी नयी सोच नये परिवर्तन को अपने लक्षितरूप में सामने आने से पहले कई प्रकार की कुर्बानियां देनी होती है ऐसे ही हमें अपने जीवन में अपनी चाहतों के लिए पराश्रित रहने की आदतों का त्याग कर हालात जो हैं जैसे भी हैं उन्हीं के साथ आत्म निर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...