शनिवार, 30 दिसंबर 2023

चलते-चलते बातचीत जारी रखें यह आपके और समाज के सेहत से भी जुड़ा है- डॉ.विवेक कुमार मिश्र

                                       डॉ.विवेक कुमार मिश्र

               आचार्य हिंदी,कवि,लेखक व रेखांकनकार

 

चलते-चलते बातचीत जारी रखें यह आपके और

 समाज के सेहत से भी जुड़ा है

                                          

आजकल तो कोई बात भी नहीं करता न ही खनकते हुए हृदय के तार को सुनने का अवसर मिलता है । सब यूं ही पड़े रहते हैं ।

कैसे हों ? क्या कर रहे हों ? आजकल क्या चल रहा है ? परिचित आवाजें न जाने कहां गायब हो गई हैं । आमने-सामने से न सही पर एक दूसरे का हाल-चाल फोन आदि पर तो ले ही लिया करते थे । पर अब इसके भी दिन लद गए। सब एक दूसरे को मैसेज ही फारवर्ड कर रहे हैं । यह भी क्या कम है कम से कम कुछ तो चिंता होगी जो भाई लोग मैसेज फारवर्ड कर रहे हैं । यह भी न करें तो क्या किया जा सकता । समय बदल रहा है और किसी के पास समय नहीं है । सब बस भाग रहे हैं । सबको जल्दी है । ऐसे में भला कौन आराम से बात करें , बैठे, चाय पीये और चाय पर हजारों हजार बात करें । नहीं नहीं । सब जल्दी में हैं और जो कुछ जल्दी में हो सकता है वहीं सब कर रहे हैं । ऐसे में किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता । आज जितना और जो कुछ कर रहे हैं वहीं तो समय समाज भी देगा । फिर भला चिंता किस बात की और चिंता का कोई खास मतलब भी नहीं होता । यह यूं ही एक तरह की टाइमपास योजना होती है जिसमें सब सबकी चिंता करते हैं । करते धरते कुछ नहीं और चिंता इतनी कि इसी पर आप फिदा हो जाएं यह इस दौर की अपने ढ़ंग की एक अदा है ।

इस दौर में कोई किसी के लिए बैठा नहीं है ।

न ही कोई किसी की सुनता ।

इसके बावजूद सब कह रहे हैं कि क्या करें कोई किसी की सुनता ही नहीं ।

न सुनने की आदी हो गई है दुनिया ।

और सुनाने की इतनी पड़ी है कि कोई भी सुनता नहीं ।

सब भाग रहे हैं।

आवाज़ सुने बहुत दिन हो गए ।

आवाजें हैं कि कहीं से नहीं आती न ही कहीं जाती । आवाजें अपनी जगह पर पड़ी रहती हैं ।

हम सब आवाज़ों के जंगल में बस अपनी अपनी इच्छा की आवाज सुनना चाहते हैं । इससे इतर हम कुछ सुनना भी नहीं चाहते और न ही कोई आवाज हमारे आसपास आती ।

आवाज़ नहीं हैं पर हमारे पास बहुत सारे साधन हैं । साधनों के बीच हमारी दुनिया में जो सबसे ज्यादा खोने वाली चीज है वह हमारी आवाज है । आज हम सब अपने अपने साधनों के बीच इस तरह उलझ कर रह गए हैं कि हर आवाज हमसे दूर होती जा रही है और हम सब अपने अपने साधनों के घर में बैठे हैं ।

अब तो लोग एक दूसरे की आवाज सुनने के लिए म्यूजियम में जाने की बात करते हैं । यह सब कुछ यों हो रहा है कि हर आदमी अपनी स्वाभाविक दुनिया में न रहकर अपनी गैजेट्स की दुनिया में खोए होते हैं । ऐसे भला कैसे काम चलेगा । आपको अपनी वास्तविक दुनिया में आना होगा । केवल यह कहने से काम नहीं चलेगा कि हम सब तकनीक में उलझ गए हैं या तकनीक ने हमें पूरी तरह से लोगो को काट दिया है । यह दौर तकनीक का है और तकनीक के बीच ही रहते हुए ही हमें अपने जीवन और अस्तित्व को भी सामान्य ढ़ंग से लेना होगा । यह सब संभव तब होता है जब हम सब अपनी स्वाभाविक दुनिया में स्वाभाविक ढ़ंग से रहते हैं ।

अक्सर लोग इसी तरह बात करते हुए आगे आते हैं ।

सभी की यह शिकायत है कि कोई किसी से बात नहीं करता ।

सब बस यहीं इंतजार करते हैं कि कोई हमसे बात करेगा । अब एक दूसरे से बातचीत करते लोग कम ही दिखते हैं । जबकि यह सच्चाई है कि बात करते हम अपनी सेहत में भी सुधार करते हैं । जब आप किसी से बात करते हैं तो उसको न केवल समझते हैं वल्कि उससे बातचीत के क्रम में आप उसको जहां अपनी ऊर्जा प्रदान करते हैं वहीं कुछ ऊर्जा आप उसकी भी लेते हैं । इस तरह एक बात तो तय है कि बातचीत के क्रम में हम संसार को अपने आसपास को बेहतर तरीके से समझते हैं । यह हमारी सामाजिकता को भी प्रकट करता है ।

 यह मनुष्य की सामाजिकता का ही सवाल है कि लोग एक दूसरे से मिले। आपस में बातचीत करते रहे केवल अपने गैजेट्स में या अपनी दुनिया में ही न खोए रहे । लोगों को बातचीत के लिए समय निकालना जरूरी है ।

बातें बड़ी मुश्किल से लोग करते हैं । कोई किसी से मिलता जुलता ही नहीं । सब अपनी अपनी दुनिया में खोए रहते हैं । यदि चलते चलते कहीं दो लोग मिल भी गये तो उसी बीच चार फोन आ जायेगा । अब आप तो जानते ही हैं कि फोन आ जाना कितना महत्वपूर्ण होता है फिर कैसे बात करें सब छोड़ कर चलना पड़ता है । यह दुनिया भी आसान नहीं है और दुनिया को जीना तो और भी मुश्किल फिर भी सब भाग रहे हैं इस उम्मीद में चल रहे हैं कि कुछ न कुछ तो हासिल कर ही लेंगे। हर आदमी एक उम्मीद का राग लिए चल रहा है। वैसे तो वास्तविक भेंट मुलाकात ही काम की होती है पर फोन पर भी बातचीत कभी कभार करते रहना चाहिए। केवल मैसेज के भरोसे दुनिया नहीं चलती। पर क्या कहां जाएं आजकल तो लोग दुनिया को ही मैसेज से चलाने में लगे हैं। हर कोई मैसेज चला रहा है।

जो है जहां है वहीं से बस इमोजी से हाथ जोड़ लेता है । यह सब इतनी तेजी से होता है कि किसी को भी फुर्सत ही नहीं होती कि सच में क्या हो रहा है या क्या चल रहा है और सब बस जल्दी जल्दी सब कुछ निपटाना चाहते हैं । बहुत सारे लोग तो इसे भी एक काम की तरह लेते हैं और जैसे किसी कार्य को पूरा कर लेने पर जो खुशी होती है कुछ वैसी ही खुशी उनके चेहरे पर भी होती है कि सबको मैसेज कर दिया । सबके मैसेज का जवाब दे दिया । कुछ लोग इस तरह भी व्यवहार करते हैं कि लोग उन्हें व्यस्त समझें तो समय होने के बावजूद मैसेज का जवाब समय से नहीं देते कम से कम नियम बनाकर दो से तीन घंटे लेट से वे मैसेज देते हैं ताकि यह भ्रम बना रहे कि वे महत्वपूर्ण हैं और उनके पास समय नहीं होता कि सबका जवाब देते चले । फिर जब तब समय मिलते ही जवाब देने की औपचारिकता करते हैं और इस औपचारिकता को ऐसे बताते चलते हैं कि वाकई उन्होंने कोई महत्वपूर्ण कार्य किया है । इस तरह उनकी दुनियादारी की गाड़ी चलती रहती है ।

बस इमोजी गुड मॉर्निंग के मैसेज फारवर्ड करने और स्क्राल करते में ही आंखें खराब किए हैं । किसी को फुर्सत नहीं है कि फुर्सत के साथ चाय पी लें, बातें कर लें आसपास का कभी कभार हाल चाल ले लें । घर परिवार सब ग्रुप पर है और वहीं से सब बस इधर से उधर होता रहता है । ऑफिस ऑफिस भी इसी चमत्कार में खेल रहे हैं कि कौन कहां पावर में है । जो पावर में नहीं है उसकी सेहत यूं ही खराब है और कुछ नहीं साहब सुबह से मोबाइल में धंस कर बैठे हैं । चारों तरफ से चिंता की जा रही है पर मोबाइल से कोई बच नहीं सकता । बचने की जरूरत भी नहीं है उसका बस सही उपयोग करें इतना ही काफी है पर यह हो ही नहीं रहा है और हर आदमी मोबाइल में डूबे डूबे एक दूसरे को कोस रहा है ।


कोई टिप्पणी नहीं:

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...