राजेन्द्र कसवा
साहित्यकार
राजस्थान
साहित्य अकादमी द्वारा
प्रतिष्ठित
साहित्यकार पुरस्कार से सम्मानित
मस्जिद से गीता की आवाज
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कोई चार दशक पहले का वाकया है यह। शाम के समय मैं चूरू की लोहिया काॅलेज से बाहर निकला।उन दिनों यहां इतनी भीड़ नहीं थी। मैं स्टेशन की ओर चल पड़ा। सहसा ही समीप की किसी मस्जिद के लाउडस्पीकर से आवाज सुनाई दी --एक गीता नाम की लड़की, जिसकी उम्र दस-बारह साल है, परिवार से बिछड़ कर भटक रही थी। अब मस्जिद में है। परिवार जन सुन रहे हैं तो मस्जिद से लड़की को ले जाएं। सुनने वाले सभी भाइयों से गुजारिश है कि वे इस सूचना को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं। ये सूचना बार-बार मस्जिद से प्रसारित की जा रही थी। मुझे स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी। कुछ देर पश्चात मस्जिद से पुनः घोषणा हुई --गीता के परिजन पुलिस के साथ आए और बच्ची को ले गए हैं। उन दिनों इस घटना को मैंने विशेष नोटिस में नहीं लिया। आज वो घटना यों ही याद आ गई। काफी देर तक सोचता रहा। क्यों? इसलिए कि उन दिनों राम रहीम और आसाराम का ऐसा जलवा नहीं था। कपड़ों से किसी की पहचान करने वाले विष्णु के अवतार नहीं थे। ईवीएम का बटन दबाकर करंट लगाने वाले शहंशाह नहीं थे। किसी अनुराग का प्रवेश नहीं था। कोई जोगीराज,चिन्मय, सेंगर नहीं था। किसी बृज रूपी राक्षस का दबदबा नहीं था। बस गीता की आवाज मस्जिद से गूंज रही थी।
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ग़ज़ब गुरुदेव
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