सामाजिक चिंतक, लेखक, कवयित्री
सरहद
उसने मूंछो पर ताव
देते हुए बड़ी शान
से
कहा: सरहद पे जंग
लड़ना आसान काम
नही ,जान हथेली पर
रखनी पड़ती। आखिर देश की
आजादी और सुरक्षा का जिम्मा
हम पर ही तो है।
वह खामोश रही।
उसने झुंझला कर कहा :
तुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ?
पड़ेगा भी कैसे तुमने सरहद
देखी ही कहां है।
वह क्रोध में भरकर
बोली
सही कहा तुमने
मैने सरहद
कहां देखी है।
मैने तो केवल 'हद ' देखी है।
वह भी तुम्हारी तय की हुई।
तुम सरहद पर रहो
या समाज में ,तुम आजाद हो।
तुम्हारी न कोई हद है और न
ही कोई सरहद।
पर मेरा न देश है, ना समाज
और तो और मेरे घर में भी
मेरी हदें तय हैं ।
जब भी तुम
वापस सरहद पर जाते हो
ये हदें और गहराती हैं
मेरे वजूद ,मेरे अस्तित्व को
मुंह चिढ़ाती हैं।
घृणा
वह हड़बड़ाई हुई सी
स्टेफरूम में आई और बोली
क्या इंटरव्यू शुरू हो गया
मैने उसे सामान्य करते हुए
कहा अभी नही
बैठ जाओ
अभी obc के चल रहे हैं
उसने मेरी ओर देखा और
पूछा आप ओबीसी हैं ?
मैने कहा नही एस सी हूं।
सुन कर उसने कहा ओह
अच्छा मैं भी एस सी ही हूं
मैने सहज भाव से पूछा
वाल्मीकि हो?
उसने बड़ी घृणा के भाव
से कहा अरे नही नही हम
तो धोबी समाज से हैं।
मैने तुरंत कहा मैं वाल्मीकि
समाज से हूं। उसके चहरे के
भाव फिर से बदल गए।
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