नीरज दइया
बाल कहानी
गुलाब जामुन का पेड़
गर्मी की छुट्टियां होते ही अंशज अपने
ननिहाल बीकानेर आ गया। पिछली बार जब वह आया था तब छोटा था और इस बार कुछ बड़ा और समझदार
हो गया है। छोटा था तब उसे हर काम कहना पड़ता था अब कुछ जरूरी काम वह बिना कहे ही करने
लगा है। ननिहाल में पहुंचते ही उसने नाना-नानी के चरण-स्पर्श किए और अपनी मम्मी से
वोला- देखा, मैंने बिना कहें ही नानाजी और नानीजी को प्रणाम किया है। मम्मी हंसकर
बोली- अब तुम बड़े हो गए हो ना।
अंशज को बहुत अच्छा लगता है जब उसे बड़ा
माना जाता है। सफर बहुत लंबा नहीं था फिर भी उसे भूख लग गई थी। वह सोचने लगा कि उसे
क्या कहना चाहिए और किसे कहना चाहिए। बड़े जो होते हैं वे सीधे-सीधे कभी किसी से भूख
लगी है कहते नहीं हैं। उसने सोचा कि वह बड़ा तो जरूर हो गया है पर इतना बड़ा भी नहीं
हुआ है जितने बड़े उसके पापा और मम्मी है। नानाजी और नानीजी तो पापा और मम्मी से भी
बड़े है। पापा ने ही उसे सीखाया था कि बड़ों के नाम के आगे हमेशा जी लगाना चाहिए। उसने
उसी दिन बोल दिया था कि पापा और मम्मी के आगे जी लगाना उसे ठीक नहीं लगता। हां जब वह
नाना के घर जाएगा तब नाना और नानी को नानाजी और नानीजी ही कहेगा। पिछली बार वह छोटा
था और छोटे कुछ गलतियां कर सकते हैं, पर बड़ों को गलतियां नहीं करनी चाहिए।
अंशज ने अपनी मम्मी से पूछा- ‘मम्मी मैं
बड़ा हूं या छोटा?’
मम्मी ने कहा- ‘क्यों? ऐसा क्यों पूछ रहा है।’
अंशज ने अपने मम्मी के गले में बाहें
डाल दी और उनके कान के करीब जाकर धीरे से बोला- ‘मुझे भूख लगी है और मैं छोटा हूं।
बड़े तो ऐसा बोलते नहीं ना कि भूख लगी है।’
मम्मी हंसने लगी और बोली- ‘अंशी कमाल
करते हो, तुम इतने भी बड़े नहीं हुए हो कि..... बस। माई स्वीट बेबी। चल मैं तेरे
खाने को कुछ लाती हूं।’ अंशज को उसकी मम्मी प्यार से अंशी कहती थी।
नाना और नानी को अंशी की बात जब उसकी
मम्मी ने बताई तो वे भी हंसने लगे।
नानाजी हाथ में मिठाई का डिब्बा लाए और
बोले- ‘ले अंशी, तेरे लिए।’
अंशज ने जैसे ही नानाजी के हाथ में रसगुल्लों
का डिब्बा देखा उछल पड़ा।
‘अरे नानाजी, रसगुल्ले। मैं सारे खा जाऊंगा। वैसे
तो मुझे गुलाब जामुन बहुत पसंद है। आज रसगुल्ले ही ठीक है।’
अंशज डिब्बा नानाजी के हाथ से लेने लगा
तो मम्मी ने उसे टोका- ‘नहीं अंशी ऐसे तुम कपड़े गंदे कर लोगो। मैं तुम्हें खिलाती हूं।’
अंशज तो यही चाहता था। उसकी तो नानाजी
के घर आते ही मौज लग गई। अंशज ने बड़े बड़े तीन स्पंजी रसगुल्ले खाए। वह तो चार भी खा
सकता था, पर मम्मी ने बीच में ही कह दिया- ‘अभी बस इतने ही, बाकी बाद में। ये कहीं भागे नहीं
जा रहे हैं।’
नानीजी बोलीं- ‘बीकानेर के तो रसगुल्ले
और भुजिया नमकीन बहुत प्रसिद्ध है।’
अंशज तुरंत बोला- ‘देखो नानीजी मैं छोटा
हूं और कह सकता हूं, रसगुल्ले तो खा लिए पर भुजिया-नमकीन कहां है?’
नानीजी ने कहा- ‘अरे भुजिया और नमकीन
सब मिलेगा। मैं तुम्हारे मामा से कह दूंगी वह आता हुआ तुम्हारे लिए गुलाब जामुन भी
ले आएगा। अब तो खुश।’
अंशज बड़े उत्साह से बोला- ‘नानीजी जिंदाबाद, मैं तो यहां आते ही एकदम खुश हो
गया हूं।’
अंशज के भुजिया और नमकीन का भी आनंद लिया।
शाम को घर लौटते हुए उसके मामा गुलाब
जामुन लाना नहीं भूले।
मामाजी से अंशज ने पहला सवाल किया- ‘मामाजी
आप गुलाब जामुन कहां से लाए।’
मामाजी ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘अरे, तुमको नहीं पता मेरे दफ्तर में गुलाब
जामुन का पेड़ है। साहब से पूछो और जितने चाहे तोड़ के घर ले आओ।’
अंशज हैरान हुआ, ऐसा कैसे हो सकता है। उसने अपनी
हैरानी में दूसरा सवाल किया- ‘मामाजी जी आपके साहब अच्छे हैं, वे आपको गुलाब जामुन लाने देते हैं?’
- ‘हां, मेरे साहब बहुत अच्छे हैं। उन्होंने
तो यहां तक बोला है कि तुम अपने भांजे के लिए गुलाब जामुन बीज ले जाना और उसके घर लगवा
देना।’
- ‘सच्ची ! पर उन्हें कैसे पता चला कि
मुझे गुलाब जामुन पसंद है?’
- ‘इसमें सोचने वाले क्या बात है, जब तुम्हारी नानी मुझे गुलाब जामुन
लाने का कह रही थी तब इतने जोर से बोल रही थी कि मेरे पास बैठे साहब ने भी सुन लिया
था।’
अब अंशज अपनी नानीजी की तरफ मुड़ा और जोर
से बोला- ‘नानाजी आप बहुत जोर से बोलती हो, धीरे बोलना चाहिए। देखो मामाजी के साहब ने सुन लिया ना कि मुझे गुलाब
जामुन पसंद है।’
अब बीच में मम्मी बोली- ‘सुन लिया तो
अच्छा है ना, वे तुम्हारे लिए गुलाब जामुन के बीज देंगे फिर तुम भी गुलाब जामुन का
पेड़ लगा लेना।’
‘हां मम्मी, कितना अच्छा होगा। फिर जब मेरी इच्छा
होगी तब फटाक से गुलाब जामुन तोड़ा और मुंह में। कितना मजा आएगा।’
मामाजी बोले- ‘वो मजा तो जब आएगा तब आएगा, अभी तो मजा लो। यह खाओ गुलाब जामुन।’
अंशज बोला- ‘मामाजी ये गुलाब जामुन तो
छोटे-छोटे हैं। क्या आप बड़े-बड़े नहीं तोड़ सकते थे।’
- ‘अरे तुझे नहीं पता, हमारे साहब बोले कि तुम अपने भांजे
के मुंह का नाप बताओ। मैंने कहा वह तो अभी छोटा है। बस फिर क्या था मुझे छोटे-छोटे
गुलाब जामुन तोड़ने की इजाजत मिल गई।’
अंशज गुलाब जामुन खाने लगा और अब वह बड़ा
हो गया है इसलिए उसने समझदारी दिखाई। रात को सोने से पहले उसने अपने मामाजी से कहा
कि वे अपने साहब से कल कहें तो भांजे के साथ बड़ी बहन भी आई है और उसका मुंह बहुत बड़ा
है उसके लिए गुलाब जामुन चाहिए। इस पर अगर साहब मान जाएं तो कम से कम दस बड़े बड़े गुलाब
जामुन लाएं और नहीं माने तो भांजे के लिए छोटे वाले गुलाब जामुन फिर से देंने का कहें।
साथ ही उसने कहा कि वे अपने साहब को थैंक्यू भी जरूर बोलें। गुलाब जामुन नहीं भी दे
तो आज दिए उसका थैंक्यू तो बोल ही देना और बाजार से गुलाब जामुन लेते आना।
अगले दिन नानाजी ने अंशज को बताया कि
कल सब उसके साथ मजाक कर रहे थे। असल में गुलाब जामुन का कोई पेड़ होता ही नहीं। हां
गुलाब का पौधा और जामुन का पेड़ जरूर लगया जाता है।
अंशज ने नानाजी से कहा- ‘नानाजी फिर तो
हो गया काम। हम गुलाब का पौधा और जामुन का पेड़ एक साथ लगा देंगे फिर तो गुलाब-जामुन
हो जाएंगे ना?’
नानाजी हंसने लगे और नानाजी ने अपनी गर्दन
हिला कर कहा- ‘नहीं, नहीं।’
अंशज बोला- ‘कोई बात नहीं नानाजी, और सुन रही हो नानीजी.... मैं जब
पूरा बड़ा हो जाऊंगा तब गुलाब-जामुन के पेड़ का आविष्कार करूंगा।’
अंशज की मम्मी बोली- ‘हां यह हुई ना बात।
तुम अभी से इसके बारे सोचने लग जाओ। सोचना यह है कि क्या हो सकता है और क्या नहीं हो
सकता है।’
नानाजी हंसते हुए बोले- ‘दुनिया में ऐसा
कुछ भी नहीं है जो नहीं हो सकता है। सब कुछ हो सकता है।’
नानीजी कहां चुप रहने वाली थी, वे भी बोली- ‘जरूर हो सकता है बेटा।
असंभव भी संभव हो सकता है।’
अंशज ने बस इतना कहा- ‘देखना, मैं हर असंभव को संभव करूंगा। मुझे
पूरा बड़ा होने दो।’
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें