बुधवार, 27 दिसंबर 2023

सब कुछ नया- नरेश अग्रवाल


 नरेश अग्रवाल

सब कुछ नया


मैं कम से कम

तीस साल और जीना चाहता हूं

दुनिया का विकास देखना चाहता हूं

जबकि इस विकास के बीच

बचपन अभी भी प्यारा लगता है

लगता नहीं

वैसी दुनिया फिर से नसीब होगी

मैं बरसों पुरानी गेंद

आलमारी से निकालता हूं

यह नई गेंद से बहुत पुरानी

ठोस है लेकिन मुलायम

चुभती नहीं मेरे हाथों में

एक फूल की तरह

चूमता हूं इसे

फैंकता हूं बहुत दूर

आने वाले समय की ओर

आग्रह करता हूं

आगे का समय कुछ ऐसा ही हो

इस दिशा में हो बदलाव

किंतु इसकी ओर कोई नहीं देखता

सभी को नया चाहिए

सभी में नयापन

मेरा बुढ़ापा तक

उबा देता है उनको

वे देखते हैं

मेरे नाम लिखे बोर्ड को

एक लोभ भरी दृष्टि से

पके हुए फल पर

जैसे एक पक्षी की नजर

इंतजार करते हैं

कब इसमें जुड़ेगा स्वर्गीय


नरेश अग्रवाल

1 सितम्बर, 1960 को जमशेदपुर में जन्म।

अब तक साहित्यिक कविताओं की 14 पुस्तकों का प्रकाशन, स्वरचित सूक्तियों पर 3 पुस्तकों, शिक्षा सम्बन्धित 4 पुस्तकों का प्रकाशन। ‘इंडिया टुडे’ एवं ‘आउटलुक’ जैसी पत्रिकाओं में भी इनकी समीक्षाएँ एवं कविताएँ छपी हैं।

देश की लगभग सारी स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित जैसे हंस, वागर्थ, आलोचना, परिकथा, जनसत्ता, कथन, कविकुंभ, किस्सा कोताह, आधारशिला, मंतव्य, समय सुरभि अनंत, अक्षरा, वीणा, वर्तमान साहित्य, दोआबा, दस्तावेज, नवनिकष, दैनिक जागरण, प्रभात खबर, बहुमत, ककसाड़, दैनिक भास्कर आदि। पिछले 9 वर्षों से लगातार ‘मरुधर के स्वर’ रंगीन पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं, जो आर्ट पेपर पर छपती है।

हिंदी सेवी सम्मान’, ‘समाज रत्न’, ‘सुरभि सम्मान’, ‘अक्षर कुंभ सम्मान’, ‘संकल्प साहित्य शिरोमणि सम्मान’, जयशंकर प्रसाद स्मृति सम्मान, अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच कविता सम्मान, स्पेनिन साहित्य गौरव सम्मान, झारखंड-बिहार प्रदेश माहेश्वरी सभा सम्मान, सतीश स्मृति विशेष सम्मान, किस्सा कोताह कृति सम्मान, कमला देवी पाराशर हिन्दी सेवा सम्मान, ‘हिंदी सेवी शताब्दी सम्मान’ देश की ख्याति प्राप्त संस्था बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन, पटना द्वारा महामहिम राज्यपाल के कर कमलों द्वारा दिया गया।

यात्रा के बेहद शौकीन तथा अब तक 15 देशों की यात्रा कर चुके हैं।

निजी पुस्तकालय में साहित्य एवं अन्य विषयों पर करीब 5000 पुस्तकें संग्रहीत।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...