बुधवार, 27 दिसंबर 2023

खिचड़ी- दोलन राय ( कवयित्री,लेखिका और पत्रकार )


 दोलन राय
      कवयित्री,लेखिका और पत्रकार 

 खिचड़ी

छोटी सी मुनिया

नाम उसका धुनिया

 बिना तेल के केस 

 मटमैला वेश

 रूखी त्वचा

 सूखी आंखें

 कूड़ेदान में बार-बार क्यों जाकर

क्या क्या खोजे

किसी के उतरन  से मन सवारा है

 तो किसी के कतरन से मन निखरा है

क्या खोया था कुछ याद नहीं है

भोजन के अलावा कोई संवाद नहीं है

कुछ नहीं है पाने के लिए

 धुनिया पूछती है...

मां क्या खिचड़ी बनाई है आज खाने के लिए

 मां हताश है

 जहां खिचड़ी मिले ऐसे स्कूल की तलाश है

 मुनिया स्कूल जाएगी

 रोज खाना खाएगी

 बच्चे ना पढ़े ना लिखें

पर खाना तो मिलता है

आसमान में सूरज नहीं

सुबह सुबह गर्म गर्म लाल-लाल

रोटी नज़र  आता हैं 

चाँद नहीं दिखता स्वप्न में भात खाता है

 कौन पागल है

जिसे चांद में मेहबूब दिखता है

जहां रोटी के लिए चांद हर रात बिकता है

 धुनिया  तू स्कूल जाना भरपेट खाकर आना

 इतना खाना इतना खाना

 दो-चार दिन भूख ना लगे

तू पढ़े ना पढ़े तू लिखे ना लिखे

रोज स्कूल जाना

खिचड़ी खा कर आना खिचड़ी खा कर आना

                        

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