शनिवार, 30 दिसंबर 2023

1 -व्यस्तता, 2- तुम्हारा उदात्त चेहरा - आलोक कुमार मिश्रा

आलोक कुमार मिश्रा
 

 1 -व्यस्तता

उसने मुझे ललकारा-

'मर्द की औलाद है तो आकर भिड़ मुझसे।

मैंने जवाब दिया-

नहीं, मुझे नहीं उलझना तुमसे

मुझे तो दुनिया को उसकी सही खूंटी पर टांगना है

धरती का हर कोना बुहारना है

दिशाओं के पर्दे बदलने हैं

भाषाओं के शब्दकोष में करनी है छांट-बीन

इतिहास की रेत से निकालनी है विलुप्त कर दी गईं

सैकड़ों नदी।

मैं एक स्त्री के गर्भ से जन्मा अपनी मां का जाया हूं

मुझे करने को बहुतेरे काम हैं।

 

2- तुम्हारा उदात्त चेहरा

मेरी हड्डियों के पुल पर

दौड़ते हैं तुम्हारी उंगलियों के पैर

सिरों पर कौंधती है बिजली

माथे पर उग आता है सूरज

चमक उठता है रोशनी में

तुम्हारा उदात्त चेहरा।

 


1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

आलोक की कविताएं जीवन के प्रति उजास से भरी है वो शब्दों से जो अनकहा रचते हैं वो कहीं और दर्ज नहीं हो रहा है -अखिलेश श्रीवास्तव

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...