रविवार, 31 दिसंबर 2023

यह कैसा युद्ध है- रमेश प्रजापति


  डॉ.रमेश प्रजापति

यह कैसा युद्ध है

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यह कैसा युद्ध है

यूक्रेन के अस्पताल,स्कूल और रेलवे स्टेशन ध्वस्त किये जा रहे हैं

सैन्य ठिकाने उड़ाएं जा रहे हैं

विश्व को वर्चस्व की अति महत्त्वकांक्षा की आग में झौंका जा रहा है

परिंदों के वृंदगान में डर घुल गया है

यह कैसा युद्ध है

बादलों ने सरहदें छोड़ दी हैं

सूरज ने मुस्कुराना छोड़ दिया है

चाँद का मुँह उतरा गया है आकाशगंगा से टूटे तारे खून से लथपथ हैं

 बारूद में पेड़ चुपचाप झुलसे खड़े हैं

मानवता के सब मानदंड जिद्दी राजाओं की भेंट चढ़ चुके हैं

युद्ध की रातें बहुत कठिन और डरावनी होती हैं

बच्चों की चींखें सीधे आत्मा में नावक के तीर-सी चुभती हैं

शहरों की इमारतें खंडहरों में तब्दील हो चुकी हैं

स्त्रियों के जीवन रंगों पर कालिख़ पूत चुकी है

बस्तियां आग की लपटों के हवाले हो चुकी हैं

हर तरफ ख़ौफ़ का मंजर है

परन्तु राजाओ के महल की दीवार सही सलामत खड़ी हैं

यह कैसा युद्ध है

जिसकी क़ीमत उनको चुकानी पड़ती है

जिन्होंने कोई गुनाह तक नहीं किया है

ऐसे खूनी समय में

बुद्ध की आत्मा लहूलुहान हो रही है।



रमेश प्रजापति  

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प्रकाशित  कविता संग्रह

1- पूरा हँसता चेहरा (2006) 2-शून्यकाल में बजता झुनझुना  (2015) 3-भीतर का देश (2021) 4- समकाल की आवाज़:चयनित कविताएं 5- वक़्त की गुलेल (2023)

अनुवाद: कुछ कविताओं का अंग्रेजी और चाइनीज़, के साथ- साथ उर्दू, बंगला, मराठी, गुजराती ,मलयालम, भोजपुरी आदि भारतीय भाषाओं में भी अनुदित एवं प्रकाशित

अन्य: विविध पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, लघुकथाएं और आलोचनात्मक आलेख प्रकाशित

सम्मान/पुरस्कार: मलखान सिंह सिसौदिया पुरस्कार अलीगढ़ (2015)

शिक्षक साहित्यकार सम्मान ,लखनऊ( 2015)

ईमेल:cramesh.chand10@gmail.com







        


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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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