रविवार, 31 दिसंबर 2023

कुश्ती-हूबनाथ


 हूबनाथ 
कवि,लेखक,आलोचक 
 प्रोफेसर,मुंबई विश्वविद्यालय

कुश्ती

लड़कियाँ

पूरे ज़माने से लड़कर

जब पहुँची

कुश्ती के मैदान में

तो पलभर को

अचकचा गईं

मैदान तो साँड़ों से पटा था

और उन्हें

प्रशिक्षण मिला था

इन्सानों से लड़ने का

लड़कियाँ

लौट आईं मैदान से

एक नए खेल के

प्रशिक्षण की तैयारी में

देखना वे शीघ्र लौटेंगी

 

 

 

 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बहुत प्रासंगिक और धारदार

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...