शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

समय ले रहा हैं करवट- संतोषी देवी (कवयित्री और लेखिका )

संतोषी देवी
कवयित्री और लेखिका 

समय ले रहा हैं करवट

उनकी नजर में

वे औरतें हैं

जिन पर काबिज है पुरुष

शासक के माफिक।

आजमा रहे हैं आज खुद भी

वही हंटर

जिसने इनकी पीठ पर

छोड़ रखी है

गुलामी की

अमिट निशानियां।

फिर से पिलाने लगे हैं तेल

जो सदियों से

पीता आया है लहू

रक्त रंजित रहा है हाथ

बरसाता रहा

सत्ता के मद में

मजलूमों की पीठ पर।

और बूंद बूंद रक्त से भरता रहा

महत्वाकांक्षाओं के कटोरे।

गुलामों की जमात से

हुए थे पुरुष आजाद

स्त्रियों की बिरादरी होती तो

ये भी हो जाती आजाद।

फिर भी सहलाती हैं

कोमल हथेलियों से पीठ

करती है प्रेम

हवाओं में घोलती है नमी

बर्फ को पिघला कर

बनती रही है झील

और कोख में पालती हैं

एक फौलादी सीना

जिस पर पड़ते ही

छूट जाता है हाथ से हंटर

तानाशाह हो जाता है

 निहत्था

और स्त्रियां खिलखिला पड़ती हैं

समय ले रहा करवट।


 संतोषी देवी

कवयित्री और लेखिका

शिक्षा-एम. ए(हिंदी साहित्य) राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर।

पाती-गीत संग्रह 2023

सांझा संकलन-"काव्य के मोती" (कविता संग्रह)

इक्कीसवीं सदी के चुनिंदा दोहे"(दोहा संग्रह)

"2020 के अनुपम दोहे (दोहा संग्रह)

"मैं और तुम"(गजल संग्रह) (गीत संग्रह)

विविध-मासिक एवं दैनिक पत्रिकाओं,और हिंदी दैनिक एवं साप्ताहिक अखबारों में रचनाएँ प्रकाशित।

पता-ग्राम हनुतपुरा, वाया- अमरसर, तहसील- शाहपुरा,जिला- जयपुर राजस्थान पिन कोड-303601

Santoshidevi06@gmail.com

           

7 टिप्‍पणियां:

कैलाश मनहर ने कहा…

उम्दा कविता

Meva Ram Gurjar ने कहा…

बहुत बढ़िया

बेनामी ने कहा…

बहुत बढ़िया

Triloki Mohan Purohit ने कहा…

बढ़िया कविता।

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर।

बेनामी ने कहा…

बहुत्वसूंदर

Dr. Samrat Sudha ने कहा…

उत्कृष्ट रचना

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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