शुक्रवार, 29 दिसंबर 2023

दर्जी - डॉ.पूनम तुषामड़



                                                             

                        डॉ.पूनम तुषामड़

सामाजिक चिंतक, लेखक, कवयित्री

दर्जी

मैंने प्रशंसा करते हुए कहा

पुरुष हो कर , स्त्रियों पर

कविता कैसे गढ़ लेते हो

इतनी सूक्ष्मता  से उनका मन

आखिर ! कैसे पढ़ लेते हो।

वह  सिलाई मशीन की

सुईं में धागा डालते हुए ही

बेहद सादगी से मुस्कुराया

और बोला दर्जी हूं  मैडम

हर उम्र  की स्त्रियों के कपड़े

सीता हूं।

उनके जीवन और दिल का

हाल उनके कपड़ों से जान

लेता हूं।

बहुत होता है , अनकहा इन

स्त्रियों के जीवन में

जो शायद वे कभी किसी से

नहीं कह पाती हैं।

पर जब  वे सिलाई के लिए

कपड़े लेकर मेरी दुकान पर

आती हैं। तो बिना मुझसे

कुछ भी कहे।

वे बहुत कुछ कह जाती हैं।

जैसे जब कोई स्त्री पुराने कपड़े

लेकर आई

और कहा भईया इसकी

कर दो जरा सिलाई

पैसे ज्यादा मत मांगना

कहते हुए उसके रूखे से चेहरे पर

यदि चिंता घिर आई

तो समझ लेता हूं  कि उसकी सीमित

है कमाई जो

उसने बड़ी मेहनत से  बचाई है।

किसी का कटा फटा ,उधड़न

तुरपाई ,सिलाई, लूज  टाइट या बटन

टांकते हुए ही करता हूं महसूस  कि

वह स्त्री घर के अभाव में कैसे

बसर करती है।

अपने बेरंग से जीवन में रंग भरती है।

कई बार कोई  कामकाजी  या

मध्यवर्ग की स्त्री आती है

तो  वह कपड़े की कीमत और क्वालिटी

सहित सास बहू के  झगड़े - ताने

सब बता  जाती है

कभी कभी कोई आप जैसी पढ़ी लिखी

भी आ जाती है।

जो नपे तुले संतुलित अल्फाज में

अपनी बात समझाती हैं ।

कुछ लोग  कहते है मैडम

की मैं अपनी सिलाई बढ़ा दूं।

आप ही बताएं मैडम मैं कैसे

इनकी दुविधा बढ़ा दूं ।

जबकि मैं खुद एक गरीब दर्जी हूं ।

जो इन्ही से अपना घर चलाता हूं।

मेरी पत्नी खुद बड़ी किफायत से

पैसे की पाई - पाई बचाती है।

जो इन बाकी स्त्रियों की ही

भांति जानें अनजाने

मेरी कविता में चली आती हैं।

 

2 टिप्‍पणियां:

Meva Ram Gurjar ने कहा…

बहुत खूब

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत बधाई हो शुभकामनाएं आपको दयाराम सारोलिया कबीर लोक गायक देवास मध्य प्रदेश द्वारा सादर अभिवादन आपका क्योंकि इससे ज्यादा इंसान ईस्त्रि ओर पुरुष दोनों ही पहलु पर बात कह जाना वो भी एक दर्जी माध्यम से

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...