कहानी
ममता
केदार शर्मा, ‘’निरीह’’
उन दिनो मोटर वाहनों के साधन आज की अपेक्षा कम थे। मैं उन दिनों
टौंक शहर से आठ किलोमीटर दूर एक गाँव में साईकिल से ही स्कूल आता जाता था । लौटते समय सड़क किनारे सब्जी का
टोकरा लिए नीम के पेड़ के नीचे बैठी किशोर वय की एक लड़की से रोज शाम के लिए
सब्जी भी खरीदकर ले जाया करता था । सड़क
के पास ही उनका खेत और कुआ था ,उसके पास ही एक झौंपड़ी थी जिसमें वह लड़की परिवार सहित रहती थी ।
खेतों में आस-पास बहुत सी झौंपडिया थी । कभी
गुजरते वाहनों की आवाज तो कभी सब्जी के खरीदार इस सन्नाटे को भंग कर चहल-पहल में बदल देते थे ।
सब्जी खरीदते समय मोल-भाव
की नौंक-झौंक रोज होती । ऐसे ही एक दिन मैने मेने नाराज होने का नाटक करते हुए
कहा-‘आज के बाद तुमसे सब्जी नहीं खरीदनी
है। तुम हमेशा ज्यादा भाव बताती हौ ‘
‘’ जाओ बाबूजी जाओ ,शहर से
सब्जी खरीदकर तो देखो ,अगर यहाँ से भाव कम निकले तो
मेरा नाम बदल देना ‘’।‘वह हँसते हुए स्वाभाविक रूप से कह गयी ।
क्या नाम है तुम्हारा ? मैने
बात का सिरा पकड़ा । ‘मेरा नाम तो ममता है
, क्यों? ‘
‘भाव कम निकले तो तुम्हारा नाम भी तो बदलना है’ । ‘क्या तुम
पढ़ी-लिखी हो ममता ? ‘
‘ नहीं बाबूजी , मुझे तो नाम लिखना भी नहीं
आता ‘।
‘अच्छा नाम लिखना तो मैं सिखा देता हूँ। तुम ध्यान से समझकर अभ्यास
कर लेना। बहुत आसान है ।‘मैंने रेत पर उँग ली से रेखाएं खींचकर ममता को नाम लिखकर समझा दिया।
; दूसरे
दिन मैं फिर स्कूल से लौटा तो सबसे पहले मैंने वही सवाल किया –‘क्या तुमने नाम लिखने का अभ्यास किया ?
मुस्कराते हुए उसने पास ही रेत पर उकेरे हुए अक्षरों की ओर इशारा
किया । उसने कई जगह अपना नाम लिख रखा था।
मेरे सामने उसने दुबारा लिखकर बता दिया ।
मैंने प्रस्ताव रखा –‘ ममता अगर तुम चाहो तो मैं रोज वापस लौटते समय
तुम्हें पढ़ना-लिखना सिखा सकता हूँ’ ‘ ।
मैंने एक कॉपी और पेन उसे उसी समय दे दिया
। अभ्यास के लिए उसका नाम लिखकर नकल करने
के लिए दे दिया ।
अगले दिन ममता के पास एक प्रोढ़ वय की स्त्री बैठी थी । मेरा
अनुमान सही था , वह उसकी मां थी । परस्पर अभिवादन और परिचय के बाद उसकी मां ने
बताया ‘,बाबूजी बचपन में यह
स्कूल जाने की बहुत जिद करती थी । तब
हम लोग उसी गॉंव में रहते थे जहाँ आप
रोज पढ़ाने जाते हो । छोटे भाई-बहिन को संभालने ,घर का काम कराने और दो जून की रोटी कमाने के स्वार्थ के चलते हमने
इसकी जिद का गला घोट दिया था । ‘ एक बार
फिर इसने जिद की है । अब आप इसका पढ़ाने के कितने पैसे लेंगे ? ‘’
मैंने कहा माँजी एक ही शर्त है ,यह अगर
सीखती रहेगी तो मैं रोज आधा-एक घंटा स्कूल
से वापस लौटते समय यहीं पर बैठ कर पढ़ा दिया करूंगा । लड़की है ,पढ़-लिख जाएगी तो यह धर्म-पुण्य का काम ही होगा । एक लड़की पढ़ेगी तो सात पीढ़ी
तरेगी। परन्तु मुझे लगा कि यह सीख नही पा रही है , तो मैं
पढ़ाना बन्द कर दूँगा । ‘’ मैने कुछ और किताबें ममता को दे दी और अक्षर ज्ञान का
सिनसिला शुरू कर दिया।
साईकिल को एक ओर खड़ी करके मैं खजूर के पत्तों से बनी चटाई पर बैठ
कर ममता को पढ़ाने लगा । कभी काई ग्राहक आ
जाता तो उतनी देर के लिए हमें रुकना पड़ता ।ममता में गजब की ग्रहण शक्ति थी । एक
बार जो बता दिया जाता उसे दुबारा समझाने की जरूरत नहीं पड़ती थी ।अभ्यास के लिए जितना दिया जाता उससे ज्यादा वह करती थी
। मात्रा वाले शब्द सीखना अपेक्षाकृत उसे
कठिन लगा ,पर अभ्यास हो जाने के बाद वह
तेजी से वाक्य दर वाक्य पढ़कर समझने लगी ।
शुरू के कुछ दिन उसकी मां सामने बेठी रही । पर आश्वस्त होने के बाद कि उसकी
बेटी सीखने में रुचि ले रही है, वह अपने रोजमर्रा के काम
में पास ही खेत में जुटी रहती।बीच में एक दो बार आ जाती और मेरे विरोध के बावजूद कभी- कभी एक
थैले में सब्जी भरकर साईकिल पर टाँग देती
।
लगभग तीन महीने में ममता ने हिन्दी पढ़ना सीख लिया था । जब भी मैं उसे कोई नई कहानी की
किताब पढ़ने को देता ,दूसरे दिन ढेर सारे कठिन
शब्द वह कागज पर लिखकर मेरे सामने रख
देती । शब्दों के सन्दर्भ सहित अर्थ
समझाना मेरी रूचि का विषय था ।एक बार मैंने उसे धार्मिक पुस्तक ‘’सुखसागर की कथाएँ’’ जो मेरे पास पड़ी थी , लाकर दे , दी तो वह विस्मित भाव से हँसने लगी –हे भगवान !इतनी मोटी किताब !
बाद में उसे वह पुस्तक बहुत रुचिकर लगी
। सामान्य जोड़,बाकी,गुणा,भाग में में तो उसने आशातीत गति से निपुणता प्राप्त कर ली थी । कुल
मिलाकर मेरे प्रयास और उसकी उपलब्धि
संतोषजनक थी ।
दिसम्बर का महीना चल रहा था। ठंड अपनी पकड़ को मजबूत करने लगी थी ।
सूर्य जल्दी ही अस्ताचल की ओर जाने लगा
था । हमारे सीखने सिखाने का समय भी बहुत
कम हो गया था। अगले महीने से ममता को अंग्रेजी सिखाने की योजना मैने मन ही मन बना ली थी । हमारा विद्यालय भी उच्च प्राथमिक से माध्यमिक में क्रमोन्नत हो चुका था ।
एक दिन अचानक प्राथमिक सेट अप के सभी अध्यापकों का स्थानान्तरण और
उनके स्थान पर माध्यमिक सेट-अप के स्टॉफ
के पदस्थापन का आदेश आ गया था । मेरा स्थानान्तरण भी तीस कि;मी; दूर किसी गाँव में हो चुका था ।
स्कूल जाते समय ममता की मां मिल गयी । मैने स्थानान्तरण की बात
बताई और कहा –अब मै कल से नहीं आ सकूंगा। आप ममता को ये और किताबें दे देना और उसे पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहना ।
।वह बहुत उदास हो गई,बोली-‘’
मास्टर साहब इस जंगल में उसे कौन पढ़ाएगा ? भला हो
आपका जो उसे पढ़ना - लिखना सिखा दिया
।ज्योंही फुरसत मिलती है किताबों में खो जाती है।शाम को खाना खाने के बाद आस-पास
के परिवार आ जाते है और उस मोटी सी किताब में से रोज कथाएँ सुनाती है । उसके जीवन में एक तरह की नई उमंग आ
गई है ।ससुराल में भी परिवार पढ़ा-लिखा नहीं है । पति भी अनपढ़ है । आगे राम करे
सो काम है ।‘’
स्कूल में भी आज उदासी का माहौल
था। कुछ बालिकाएँ रोने लगी थीं । एक साथ
हम चार अध्यापक जा रहे थे ।
विदाई समारोह के बाद कार्यमुक्त होकर मैं वापस घर के लिए रवाना हो गया । सुबह से ही आकाश में बादल छाए हुए थे
।ठंडी हवा तीर की तरह चुभ रही थी ।मंथर
गति से साईकिल आगे बढ़ रही थी पर मन
में विचारों क बवंडर चल रहे थे ।
ममता को आगे पढ़ते रहने की प्रेरणा देने
के लिए शब्दों का जाल बुनता जा रहा था ।
पता ही नहीं चला कि कब मैं ममता के सामने जाकर खड़ा हो गया ।
ममता ‘’मैं जा रहा हूँ’’ मैंने
इतना ही कहा था कि उसकी आँखों से
टप टप आँसू गिरने लगे। मेरा भी गला रूंध गया था। मुँह से कोई शब्द निकलना
मुश्किल था। भावनाओं के ज्वार को रोक पाने
की अक्षमता से आशंकित हो मैंने
साईकिल आगे बढ़़ा दी ।
समय पंख लगाकर उड़ता गया । ममता की स्मृति भी अतीत की धुंध में खो
गयी थी।
कई वर्षों बाद संयोग से एक
दिन पास ही के एक कस्बे में स्थित
हमारे गुरूजी के आश्रम में साधना-शिविर
का आयोजन
था । साधकों के लिए भोजन व्यवस्था
की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी । अत: सुबह ही किसी को लेकर सब्जी
–मंडी में जाना पड़ा ।एक बड़ी सी दुकान से मैंने सब्जी खरीदकर
ऑटो में रखवा दिया ।
भुगतान के लिए मेरा ध्यान
काउंटर पर गया । वहाँ ममता बैठी थी
।दैखते ही पहचान गई ,बोली –सर , ‘’आप यहाँ ! ‘’ ‘’हाँ ममता , यह संयोग ही है जो मनुष्य
को मनुष्य से मिला देता है ।‘’मैंने
विस्तार से सारी बात
बताई।
सर ,’’ इस दुकान के पीछे ही मेरा ससुराल है । यह दुकान हमारी ही है । पति पढ़े-लिखे नहीं है इसलिए
हिसाब-किताब मैं ही संभालती हूँ ।आपने जो सिखाया था , उससे जीवन में बहुत
संम्बलन मिला है । ‘’
‘’ लेकिन ममता,वह तो तुम्हारी सीखने की ललक और
कुशाग्र बुद्धि का परिणाम था , अन्यथा इसके बिना क्या सीखना संभव होता ?’’
‘’हाँ सर ,वह बोली – दीपक भी हो , उसमें तेल भी भरा हो ,तेल से भीगी हुई बाती भी
हो , पर यदि उसे प्रज्ज्वलित करने
वाली चिनगारी न हो तो क्या उजाला हो सकता है ? सर,आश्रम में पधारे हुए
साधकों के लिए आज की सब्जी
मेरी ओर से’’ कहते हुए
दोनो हाथ जोड़कर ममता ने रूपए
वापस दे दिए ।
1 टिप्पणी:
बहुत खूबसूरत रचना.
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