गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

कविता— मेवा राम गुर्जर

मेरे खेतों में आजकल

सरसों के पीले फूल खिले हुए हैं

बचपन में दादी कहती थी

कि फूल धरती का गहना होते हैं

मैं सोच में डूब जाता था

कि भला फूल गहना कैसे हो सकते हैं

दादी एक फूल अपने बोरले की जगह लगा लेती

एक फूल अपने कान में

और कहती

ऐसे!

 

अब बेटी को बताता हूं

कि फूल धरती का गहना है

तो वह भी वही सवाल करती है

मैं एक फूल अपने सिर पर लगाता हूं

और एक कान में

बेटी जोर से हंसती है

और कहती है

आप कार्टून लग रहे हैं पापा

बेटी के साथ मैं भी

हंस देता हूं  अपने आप पर

 

बेटी को पसंद है मेरा कार्टून बन जाना

और मुझे पसंद है उसकी दंतुरित मुस्कान

पढ़ा- लिखा होने पर भी

बेटी के कई सवाल

मुझे अनुत्तरित कर देते हैं

 

सोचता हूं

असहज कर देने वाले सवालों का

मेरी अनपढ़ दादी

कैसे सामना करती थी।


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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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