सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

मोबाइल / स्मार्टफोन का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से ही करें - विवेक कुमार मिश्र


      मोबाइल / स्मार्टफोन का प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके से ही करें

                                              - विवेक कुमार मिश्र

जब तक मोबाइल नहीं था , हम सब हसरत भरी निगाहों से मोबाइल की दुनिया के बारे में सोचते थे । यह लगता था कि मोबाइल आ जायेगा तो दुनिया बहुत आसान हो जायेगी । कहीं से भी बैठे बैठे बात किया जा सकता

और देखते देखते मोबाइल आया और एक एक कर हर आदमी मोबाइल को अपना बनाने के जतन में लग गया । जिसके पास मोबाइल नहीं था वह भी किसी तरह कोशिश कर रहा था कि एक अदद मोबाइल उसके पास भी हो जाए तो वह भी चलते फिरते बात करें । यह भी क्या बात हुई कि घर के एक कोने में सिमट कर लैंडलाइन पर बात करें वह भी आसपास दो चार लोगों की घूरती निगाहों के बीच । मोबाइल आया और उसके साथ फ्री होकर हम सब अपनी अपनी दुनिया में घूमने लगे । दुनिया से कनेक्ट होने के लिए एक सहजता सी बन गई । शुरू शुरू में यह मोबाइल एक कुतूहल की तरह आया । लोग सोचते और देखते रहते कैसे बात करें । घबराते हकलाते बात करते । फिर धीरे धीरे मोबाइल के साथ सहजता भी होनी शुरू हो गई। पहले की-पैड वाले मोबाइल ही सामने आये , टच मोबाइल लेने में घबराहट सी होती थी कि किसी को फोन करो और किसी और को न लग जाए । टच मोबाइल और की-पैड वाले मोबाइल के बीच की-पैड वाले ही पसंद बन रहे थे फिर देखते देखते स्मार्टफोन का जमाना आ गया और मोबाइल की दुनिया में इतनी तेजी से परिवर्तन आना शुरू हुआ कि हर दो साल में पुराना मोबाइल , आउटडेटेड हो जाता और नये से नये मोबाइल की ओर लोग भागे जा रहे थे । अब मोबाइल केवल मोबाइल भर नहीं था वह पूरी एक दुनिया बन गया था । मोबाइल है यानी सब कुछ आपके पास है । पूरी दुनिया आपकी मुठ्ठी में है । एक तरह से हाई पावर कम्प्यूटर ही आपके हाथ में हो और हथेली में पूरी दुनिया ऐसे घूम रही थी कि कहीं जाने की जरूरत नहीं एक जगह से ही सारे कामकाज संभाला जा सकता था । यहां से आप पूरी दुनिया से जुड़ जा रहे थे । एक अद्भुत और अपूर्व क्रांति स्मार्टफोन के रूप में सामने थी । यह मोबाइल हमें दुनिया से तो जोड़ ही रहा था वहीं सबसे दूर करने का भी बड़ा कारक था । सबने अपना एक कोना एक अड्डा बना लिया जो उसकी वास्तविक दुनिया से उसे काटकर दूर किए जा रही थी । आप धीरे धीरे इस स्मार्टफोन की दुनिया में इस तरह धंसे जा रहे थे कि आपको कुछ भी नहीं दिखाई देता । यह इतना ज्यादा हमारे मन मस्तिष्क पर छा गया कि इसके अलावा कुछ और दिखता ही नहीं । यहीं से मोबाइल द्वारा दी सुविधा ही एक ऐसे खतरनाक लेवल पर पहुंचाने के लिए काफी था कि आदमी कुछ और सोच ही नहीं पा रहा था । यहां पर वह अपनी दुनिया, अपनी आजादी सब कुछ मोबाइल को सौंप कर जीवन जीने की कोशिश करता , कुछ दिन तो यह सब ठीक लग सकता है पर एक समय के बाद हालात   इस तरह से हो जाता कि आदमी को ढ़ूढ़ना पड़ता ? कि वह कहां है ? और कब वह इतना खाली मिले की उससे बात कर सकें वह तो खोया है मोबाइल में नीली रोशनी में और स्क्रीन पर बार बार बिना बात स्क्राल कर रहा है । इस कोशिश में दिमाग भ्रमित और गर्म हो जाता है जिसका प्रभाव तमाम तरह के एक्सिडेंट में देखने को मिलता।

एक तरह से बहुत सारी आजादी लेकर मोबाइल आया । यह  तकनीकी क्रांति का भी कमाल था कि कहीं से कहीं भी कनेक्ट हो सकते थे और फिर पीढ़ी दर पीढ़ी मोबाइल क्रांति में सुधार आता गया । यह असीमित सुधार अब जी का जंजाल बन गया है । यह शायद मोबाइल की ग़लती नहीं है यह हम प्रयोगकर्ताओं की ही गलती है कि उसे तकनीक के रूप में न लेकर इतना ज्यादा उसे अपने उपर लाद लिए हैं कि वह हमारे लिए साधन से ज्यादा साध्य और बोझ ही बन गया है । बोझ किसी भी तरह का क्यों न हो वह जंजाल ही होता है । आप किसी भी तकनीकी संसार में क्यों न जाए उसकी परिधि तो आपको तय करनी ही पड़ेगी । यदि अपनी सीमा तय नहीं करते तो फिर वहीं होगा जो आज हर कोई मोबाइल/ स्मार्टफोन के बारे में कह रहा है । हद तो तब हो जाती है जब आप किसी को मोबाइल के लिए टोकते हैं और वह बौखला जाता है। अनियंत्रित व्यवहार करता है और इस क्रम में तमाम तरह के हादसे होते रहते हैं । जबकि होना यह चाहिए कि इसे सही ढ़ंग से उपयोग करते हुए अपने आपको दुनिया के साथ अपडेट करते चलें तो यह साधन हमारे लिए जरूरी और अति आवश्यक की श्रेणी में आ जाता है । यह हम पर है कि इसे अपना साथी और नायक बनाते हैं कि अपना विलेन । पर ज्यादातर आज यही देखने में आ रहा है कि हम सब उपयोग की जगह उसका इतना अधिक प्रयोग कर रहे हैं कि उसके बिना रहना मुश्किल सा होता जा रहा है । कई लोगों की यह स्थिति हो गई है कि उनसे यदि एक घंटे के लिए भी मोबाइल यदि हटा दिया जाए तो ऐसा लगता है कि आप उनके प्राण ही ले लिए हों । ऐसा लगता है कि उनका प्राण ही मोबाइल में बसा हों और वे मोबाइल के बिना नहीं रह सकते । यद्यपि यह सबको पता है कि मोबाइल के माध्यम से हम दुनिया भर की तरंगों से जुड़ते हैं तो यह भी सच है कि तरंगाघात के शिकार भी हम सब हो रहे हैं । ऐसे में जरूरी है कि हम मोबाइल का उपयोग विवेक पूर्ण तरीके से ही करें । एक लिमिट हो , एक अनुशासित समय हो कि इस तरह हमें अपने गजट का उपयोग करना है । यह नहीं संभव है कि आप पूरी तरह से मोबाइल बंद कर दें । आज पूरा आफिस ही मोबाइल पर चल रहा है, सारा लेन देन आनलाइन है फिर यह तो किया नहीं जा सकता कि हम तो मोबाइल को टच ही नहीं करेंगे पर उसकी सीमा रखनी होगी । वह हमारी जरूरत है और हमारी सुविधा है और इसे बस इसी रूप में प्रयोग करने की जरूरत है । कहते हैं कि बस मोबाइल का ऐसा और इतना ही उपयोग करें तो एक अपरिमित संसार में एक उपलब्धि भरी दुनिया में अनावश्यक रूप से बांधा बनने की भी बात आती है । पर यहां यह कहा जाना भी जरूरी लगता है कि मोबाइल ही सब कुछ नहीं है मोबाइल से बाहर भी दुनिया है । थोड़ा बाहर भी निकले और दुनिया को अपनी आंखों से भी देखें । यह भी सच है कि किसी भी तकनीक का इस्तेमाल तकनीक के आगे जाकर करते हैं तो वह खतरनाक हो जाता है । यहीं आज मोबाइल के साथ हो रहा है । हर आदमी मोबाइल में इस तरह उलझता जा रहा है कि उसे दुनिया दिखाई ही नहीं दे रहा है। जब दुनिया दिखेंगी ही नहीं तो भला क्या किया जा सकता ।

मोबाइल असीमित ढ़ंग से लोगों को पहले जोड़ता है फिर एक समय के बाद इस तरह से अपना आदी बना देता है कि वह आदमी और मोबाइल ही रह जाते बाकी दुनिया सिरे से गायब हो जाती है । एक समय के बाद बचा हुआ मोबाइल आदमी का पता देता है कि हां इधर या उधर आदमी है । मोबाइल खतरनाक हो जाता है यदि उसका प्रयोग अनावश्यक रूप से आप करने लग जाते हैं ।

वहीं जरूरत के हिसाब से उपयोग करें तो सबसे उपयोगी साधन है । पर लोगबाग मोबाइल को आत्मवत हो प्रेम करने लग जा रहे हैं जिस क्रम में घर परिवार सब टूट रहा है । जरूरत है तो अपने को सहेजने की पर लोग तकनीकी संसार में उलझकर मोबाइल/ स्मार्टफोन सहेज रहे हैं भला ऐसे में तेज गति से भाग रही दुनिया में क्या बचेगा ? यह देखना इस समय की सबसे बड़ी चुनौती है।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

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