रविवार, 4 फ़रवरी 2024

देवरानी-जेठानी- विजय राही

देवरानी-जेठानी

 बेजा लड़ती थी आपस में काट-कड़ाकड़

जब नयी-नयी आई थी दोनों देवरानी-जेठानी

 अपनी पर उतर जाती तो

बाप-दादा तक को बखेल देती

जब लड़ धापती पतियों के सामने दहाड़ मारकर रोती

 कभी-कभी भाई भी खमखमा जाते

लाठियाँ तन जाती

बीच-बचाव करना मुश्किल हो जाता

 कई दिनों तक मुँह मरोड़ती

टेसरे करती आपस में

भाई भी कई दिनों तक नहीं करते

एक-दूसरे से राम-राम

फिर बाल-बच्चे हुए तो कटुता घटी

सात घड़ी बच्चों के संग से थोड़ा हेत बढ़ा

जैसे-जैसे उम्र पकी

गोड़े टूट गए और हाथ छूट गए

दोनों बुढ़िया एक-दूसरे की लाठी बन गयी

 अब दोनों बुढ़िया

एक दूसरे को नहलाती चोटी गूँथती

जो भी होता बाँटकर खाती

एक बीमार हो जाये तो दूसरी की नींद उड़ जाती

 उनका प्रेम देखकर

दोनों बूढ़े भी खखार थूककर

कउ पर बैठने लगे हैं

साथ हुक्का भरते हैं

ठहाका लगाते हैं कोई पुरानी बात याद कर

 अन्दर चूल्हे पर बैठी

दोनों बुढ़िया भी सुल्फी धरती हुई

एक-दूसरे के कान में कुछ कहती हैं

और हँसती हैं हरहरार

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...