डॉ.पुष्पिता अवस्थी प्रोफेसर,लेखिका और कवयित्री नीदरलैंड
आत्म शक्ति
आंखों की कोरो के
तटबंध धसके है -
शब्द स्पर्श से.
आत्मा के भीतर
अभिषापित अहिल्या
अवतरित हुई है
जिसके आंसुओ को
जिया है।
मेरी आंखों ने
अहिल्या की आंखे बनकर।
आंखे साक्षी है
आत्मा की मुक्तावस्था
के सत्य की
उनके पास
आंसू के हस्ताक्षर हैं।
जो आत्मा की आंखो से
बहे हैं -
अविश्वसीय दुनिया के बीच
विश्वास के अपरिहार्य
क्षणों में
1 टिप्पणी:
उत्तम कविता। 'अहिल्या की आंखें'लुप्तोपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग है। कविता एक उर्वर कल्पनाशील चेतन का सशक्त सृजन है। गागर में सागर भर कर कवयित्री ने पाठक के मानस को झंकृत किया है।
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