
चौथीराम यादव हजारी प्रसाद द्विवेदी के अन्तिम शिष्य थे
हिन्दी साहित्य के प्रसिध्द आलोचक चौथीराम यादव के निधन से
हिन्दी साहित्य का एक मुखर वक्ता चला जाना साहित्य की एक गली सूनी हो गयी। बनारस
हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी के प्रोफेसर रहे चौथीराम यादव का जन्म 29 जनवरी
1941को कायमगंज जौनपुर में हुआ था। बेबाक
आवाज के इंसान थे। बेबाकी से दलित कमजोर, वंचितों की आवाज थे। मुखर वक्ता थे। बनारस की गलियां गलियां परिचित थी।
पढ़ाने का उनका अंदाज बहुत सुंदर था कि छात्र मंत्रमुग्ध हो जाते थे। ऐसे थे
चौथीराम यादव। वेद और
लोक: आमने सामने..इनकी लिखी पुस्तक रही और सम्मानों की लम्बी लिस्ट है। साहित्य
साधना सम्मान, कबीर सम्मान तथा लोहिया
साहित्य सम्मान से नवाजे गये थे। काशीनाथ कथाकार के साथ मिलकर प्रगतिशील लेखक संघ
के सक्रिय एक्टिविष्ट थे। लोकधर्मी
परम्परा में हजारी प्रसाद द्विवेदी के अन्तिम शिष्य चौथीराम यादव थे। दलित विमर्श
पर इनकी विचाराधारा दलितों के हालातों पर अपनी बात रखते थे। चा़य खैनी के बहुत
शौकीन थे। यात्रा करने के भी शौकीन थे। अभी कुछ दिन पहले बाहर भी घूमने गये थे।
अचानक मौत की खबर मिलते ही साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गयी इनकी
मृत्यु 12 मई 2024 को हो गयी। लोगों ने खूब प्यार दिया, लोगों में भी काफी लोकप्रिय लेखक थे। एक
अच्छे निबन्धकार थे। प्रसिध्द आलोचक थे। सफेद लम्बे बाल उनके व्यक्तित्व में चार
चांद लगा दे रहे थे। धोती
कुर्ता भारतीय संस्कृति को धारण किये थे। ऐसे महान पुरूष थे चौथीराम यादव। रोज कोई
न कोई विचार फेसबुक पर अपलोड करते रहते थे। बहुत कुछ सीखने को मिलता था। सच में
उनका जाना एक साहित्य के लिये बहुत बड़ी हानि कही जा सकती है।
महान आलोचक चौथीराम
यादव को प्रणाम।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें