गुरुवार, 30 मई 2024

अहिंसा का सनातन परिप्रेक्ष्य - डॉ0 रवीन्द्र कुमार*


                                                     अहिंसा का सनातन परिप्रेक्ष्य

डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

 

अहिंसा पद का समास विग्रह 'न हिंसा' है; अर्थात्, जिसका अक्षरशः अर्थ है ‘हिंसा की अनुपस्थिति’। दूसरे शब्दों में, ‘हिंसाका अभाव, अथवाहिंसाके एकदम विपरीत स्थिति अहिंसा है। जब 'नञ्' का उच्चारण किया जाता है, तो ध्वनि में वह '' के रूप निकलता है। इसलिए, सम्बन्धित शब्द या पद में 'नञ्' के स्थान पर '' का प्रयोग होता है। उदाहरण के लिए, न स्वस्थ=अस्वस्थ, न सिद्ध=असिद्ध, न धर्म=अधर्म, न योग्य=अयोग्य इत्यादि। उसी प्रकार, न हिंसा=अहिंसा। 

हिंसा क्या है? 'हिंस' से निर्गत शब्द हिंसा का अर्थ है प्रहार करना। इस प्रकार, हिंसा किसी को हानि पहुँचाना है। किसी को पीड़ा देना अथवा इससे भी आगे किसी को हताहत करनाकिसी के प्राण लेना हिंसा है। महान संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनि की हिंसा की व्याख्या, हिंसा-भाव अथवा हिंसा-क्रिया, पीड़ा और जीवन-हनन जैसे शब्दों को प्रकट करती है। हिंसा, इस प्रकार, एक महादोष है। यह जीवन की एक बड़ी बाधा है। इसीलिए, सनातन धर्म के आधारभूत ग्रन्थ ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के प्रथम सूक्त में ही सृष्टि-रचयिता, पालक, स्वामी और उद्धारकर्ता परमात्मा से, जो स्वयं हिंसा-दोष मुक्त हैं, हिंसा से मुक्ति की कामनाप्रार्थना की गई है। ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के प्रथम सूक्त के चतुर्थ मंत्र में 'अध्वरं' शब्द प्रकट होता है। इसका अर्थ है, "हिंसा दोष से मुक्त"। इस शब्द की, वास्तव में, मूल भावना अहिंसा के परम स्रोतमहाकरुण सृष्टापरमेश्वर से हिंसा-मुक्त कर्म-संलग्नता की प्रबलेच्छा का प्रकटीकरण है। परमात्मा इस हेतु मार्ग प्रशस्त करें, उनसे यह प्रार्थना की गई है।

'अध्वरं' शब्द की, पूरे मंत्र के साथ मूल भावना हिंसा के विपरीत अहिंसा के आलिंगन में है। इसमें अहिंसा-आधारित वृहद् कल्याणकारी प्रवृत्तियों अथवा कर्मों में संलग्नता की चाह है। अहिंसाजन्य मैत्री और सद्भावना के वातावरण में स्वयं अहिंसा के दो श्रेष्ठतम व्यवहारों, सहिष्णुता तथा सहनशीलता के माध्यम से, परस्पर सजातीय सहयोग और सामंजस्य स्थापित करते हुए वृहद् कल्याण का मार्ग प्रशस्त करने की प्रबल कामना है।

अहिंसा, इसलिए, स्वयं ऋग्वेद के बाद के मण्डलों/सूक्तों के मंत्रों, साथ ही यजुर्वेद, अथर्ववेद, उपनिषदों, रामायण तथा महाभारत व इसी के एक भाग तथा अद्वितीय वैदिक-हिन्दू धर्मग्रन्थ के रूप में सारे संसार में स्थापित श्रीमद्भगवद्गीता, पुराणों, आदि में भी अप्रत्यक्ष के साथ ही प्रत्यक्ष रूप में भी प्रकट हुई है। कर्त्तव्य-भावना के साथ एक उच्चतम मानवीय धर्म के रूप में स्थापित हुई है।   

ऋग्वेद के मंत्रों (2: 33: 15 18, 5: 64: 3, 6: 54: 7, 10: 15: 5-6, 10: 121: 9), यजुर्वेद के मंत्रों (36: 18-19 एवं 22-23), सामवेद के मंत्र (1: 1: 9) एवं अथर्ववेद के मंत्रों (19: 15: 5-6, 19: 60: 1-2) के माध्यम से हुईं मानवीय प्रार्थनाएँ अति विशेष रूप से हिंसा से मुक्ति, रक्षा अथवा सुरक्षा और, इस प्रकार, अप्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष रूप में वृहद् कल्याणकारी अहिंसा की कामना को प्रकट करतीं हैं।    

वैदिक मंत्रों में उल्लिखित शब्द 'न हृणीषे' (नहीं हरते), 'अहिंसानस्य' (हिंसारहित), 'माकिर्नेशन्माकीं' (नष्ट न हों एवं नष्ट न करें), 'ते॑ऽवन्त्वस्मान्' (...रक्षक हों), 'नः मा हिंसिष्ट' (हमें पीड़ा न दें), 'नः माहिंसीत्' (हमें न मारें), 'मित्रस्य चक्षुषा' (मित्रवत आँखों से), 'ज्योक् जीव्यासम्' (निरन्तर जीवन जीएँ), 'अभयम्'  (भयरहित), 'सुमित्रियाः' (मित्र के समान), 'अथर्वा' (अहिंसा-व्रत योगी अथवा महान अहिंसक), 'मित्रात अभ्यम्' (मित्र की ओर से भय-मुक्ति), 'अनिभृष्ट' (बिना गिरे) आदि, अकल्याणकारी हिंसक वृत्तियों से छुटकारे और सर्वथा कल्याणकारी अहिंसक गतिविधियों की प्रबल मानवीय चाह के प्रकटकर्ता हैं। ईश्वर स्वयं अहिंसा के सर्वोच्च आदर्श हैं। ये शब्द या वैदिक सन्दर्भ अहिंसा की सर्वोच्च मानवीय मूल्य के रूप में प्रतिष्ठा के प्रकटीकरण के साथ ही इसके मानव के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उत्थान तथा वृहद् कल्याण के मार्ग, माध्यम अथवा साधन होने की वास्तविकता को को भी प्रकट करते हैं।     

          सनातन धर्म के अन्य सभी प्रमुख ग्रन्थों में अहिंसा अपनी मूल भावना के साथ प्रत्यक्षतः प्रकट है। इस सम्बन्ध में विशेष रूप से छान्दोग्योपनिषद्, महाभारत और श्रीमद्भगवद्गीता के साथ ही अनेक पुराणों का उल्लेख किया जा सकता है। कठोपनिषद् (1: 10) में अहिंसा, कोप व रोष आदि से बचाव और सर्वथा शान्त भाव की उपस्थिति के रूप में प्रकट हुई है। दूसरी ओर, छान्दोग्योपनिषद् (3: 17: 4) में अहिंसा एक उच्चतम मानवीय गुण के रूप में सामने आती है। महाभारत में यह अपनी अनेक विशिष्टताओं के साथ परम धर्म के रूप में निरूपित होती है श्रीमद्भगवद्गीता (10: 5) में अहिंसा को (ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के प्रथम सूक्त के चतुर्थ मंत्र के ही तारतम्य में) ईश्वरोत्पन्न गुण घोषित किया गया है; साथ ही, अहिंसा को श्रीमद्भगवद्गीता (16: 2) में एक उच्चतम मानवीय विशिष्टता भी कहा गया है। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा है कि अहिंसा का कोई विकल्प नहीं है। धर्म-रक्षा –मानवता की सुरक्षा के लिए अन्त तक अहिंसा-मार्ग का त्याग नहीं करना चाहिए। चूँकि अहिंसा की मूल भावना वृहद् कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना है; वृहद् कल्याणकारी प्रवृत्तियों और कर्मों की निरन्तरता इसका उद्देश्य है, इसलिए अहिंसा का दुरुपयोग करने वालों के साथ समझौता नहीं हो सकता। अहिंसा की मूल भावना के विपरीत व्यवहारकर्ताओं का प्रतिरोध स्वयं में अहिंसा का पालन है।

इस प्रकार, योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अहिंसा की उच्च गुण के रूप में महिमा के साथ ही इसकी मूल भावना भी स्पष्ट की, जो, वास्तव में, सनातन धर्म की अहिंसा की अवधारणा की श्रेष्ठतम अभिव्यक्ति है।        

मन, वचन और कर्म द्वारा न केवल सजातीयों, अपितु प्राणिमात्र के प्रति सक्रिय सद्भावना सनातन-वैदिक-हिन्दू धर्म की अहिंसा अवधारणा है। अहिंसा, जीवन की निरन्तरता, प्रगति और लक्ष्य-प्राप्ति का साधन है। अहिंसा की कसौटी कृत्य (विचार, वाणी और कार्य) के मूल में रहने वाली भावना है। अपने निजी या समूह के किसी भी प्रकार के स्वार्थ से मुक्त और विशुद्ध रूप से किसी के कायिक, मानसिक अथवा आध्यात्मिक उत्थान –कल्याण हेतु निष्पन्न कृत्य, बाह्य रूप में हिंसक प्रतीत होने पर भी, अहिंसा-केन्द्रित है। ऐसा कृत्य क्षणिक होता है। ऐसे कृत्य की भावना, पुनरावृत्ति कर सकते हैं, निजी व समूह का स्वार्थ नहीं, अपितु पर-कल्याण है। यही अन्ततः अहिंसा की भावना भी है। संक्षेप में यही सनातन धर्म की अहिंसा-अवधारणा का सार है।

 

डॉ0 रवीन्द्र कुमार सुविख्यात भारतीय शिक्षाशास्त्री, समाजविज्ञानी, रचनात्मक लेखक एवं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति हैंडॉ0 कुमार गौतम बुद्ध, जगद्गुरु आदि शंकराचार्य, गुरु गोबिन्द सिंह, स्वामी दयानन्द 'सरस्वती', स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी और सरदार वल्लभभाई पटेल सहित महानतम भारतीयों, लगभग सभी राष्ट्रनिर्माताओं एवं अनेक वीरांगनाओं के जीवन, कार्यों-विचारों, तथा भारतीय संस्कृति, सभ्यता, मूल्य-शिक्षा और इंडोलॉजी से सम्बन्धित विषयों पर एक सौ से भीअधिक ग्रन्थों के लेखक/सम्पादक

हैंI विश्व के समस्त महाद्वीपों के लगभग एक सौ विश्वविद्यालयों में सौहार्द और समन्वय को समर्पित भारतीय संस्कृति, जीवन-मार्ग, उच्च मानवीय-मूल्यों तथा युवा-वर्ग से जुड़े विषयों पर पाँच सौ से भी अधिक व्याख्यान दे चुके हैं; लगभग एक हजार की संख्या में देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में एकता, बन्धुत्व, प्रकृति व पर्यावरण,समन्वय-सौहार्द और सार्थक-शिक्षा पर लेख लिखकर कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैंI भारतीय विद्याभवन, मुम्बई से प्रकाशित होने वाले भवन्स जर्नल में ही गत बीस वर्षों की समयावधि में डॉ0 कुमार ने एक सौ पचास से भी अधिक अति उत्कृष्ट लेख उक्त वर्णित क्षेत्रों में लिखकर इतिहास रचा हैI विश्व के अनेक देशों में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के अवसर पर शान्ति-यात्राओं को नेतृत्व प्रदान करके तथा पिछले पैंतीस वर्षों की समयावधि में राष्ट्रीय एकता, विशिष्ट भारतीय राष्ट्रवाद, शिक्षा, शान्ति और विकास, सनातन मूल्यों, सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और सदाचार एवं भारतीय संस्कृति से सम्बद्ध विषयों पर निरन्तर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ-कार्यशालाएँ आयोजित कर स्वस्थ और प्रगतिशील समाज-निर्माण हेतु अभूतपूर्व योगदान दिया हैI डॉ0 रवीन्द्र कुमार शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान की मान्यतास्वरूप ‘बुद्धरत्न’ तथा ‘गाँधीरत्न’ जैसे अन्तर्राष्ट्रीय और ‘भारत गौरव’, ‘सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान’, ‘साहित्यवाचस्पति’, ‘साहित्यश्री’, ‘साहित्य सुधा’, ‘हिन्दी भाषा भूषण’ एवं ‘पद्म श्री‘ जैसे राष्ट्रीय सम्मानों से भी अलंकृत हैंI

 

जब भी हमारे देश को जरूरत पड़ी, भारत के मीडिया ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लोकतंत्र में अपनी आवाज उठाने के लिए आम जनता की वकालत की और आज तक एक अग्रणी और बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है: डॉ. कमलेश मीना।


 जब भी हमारे देश को जरूरत पड़ी, भारत के मीडिया ने हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लोकतंत्र में अपनी आवाज उठाने के लिए आम जनता की वकालत की और आज तक एक अग्रणी और बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है: डॉ. कमलेश मीना।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र की सफलता और विफलता इसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता और मास मीडिया की भूमिका पर निर्भर करती है। आज हमारा लोकतंत्र, लोकतांत्रिक मूल्य और संसदीय नैतिकता बड़े स्तर पर फल-फूल रही है और बढ़ रही है, इसका श्रेय हमारी पत्रकारिता और मीडिया को जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। हमारे मीडिया, पत्रकारिता और पत्रकारों ने हमारे लोकतंत्र को आम जनता के लिए अधिक दृश्यमान, व्यवहार्य, जीवंत और अधिक सुलभ, स्वीकार्य और वास्तव में उपयोगी बनाने में हमेशा महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमें इस संबंध में पत्रकारिता, पत्रकारों, जनसंचार माध्यमों और मीडिया के अन्य सभी रूपों की भूमिका को स्वीकार करना चाहिए, इसमें कोई संदेह नहीं है। किसी शक्तिशाली राष्ट्र की सफलता और विफलता उसकी पत्रकारिता से तय होती है। पंडित युगल किशोर शुक्ल ने 30 मई, 1826 को कोलकाता में पहला हिंदी समाचार पत्र "उदंत मार्तंड" लॉन्च किया था। इसलिए, उसी के उपलक्ष्य में, हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है।

लोकतंत्र के दायरे में, मीडिया चौथे स्तंभ के रूप में खड़ा है, पत्रकारिता उस माध्यम के रूप में कार्य करती है जिसके माध्यम से हम राज्य के वर्तमान मामलों से अवगत रहते हैं। पत्रकार हमारे दरवाजे तक समाचारों की त्वरित डिलीवरी सुनिश्चित करने के लिए अथक परिश्रम करते हैं। चाहे समाचार पत्रों, टीवी चैनलों या सोशल मीडिया के व्यापक प्रभाव के माध्यम से, राय को आकार देने की पत्रकारिता की शक्ति को कम नहीं आंका जा सकता है। यह हमारे दृष्टिकोण को व्यापक बनाने और सूचित चर्चा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हिंदी पत्रकारिता,या स्थानीय पत्रकारिता, व्यक्तियों को उनके अनुरूप भाषा में जानकारी प्राप्त करने में सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस पहुंच ने देश भर में ज्ञान के व्यापक प्रसार को देश के हर कोने तक पहुंचाने में मदद की है। प्रत्येक वर्ष 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। यह दिन हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत को श्रद्धांजलि देता है, एक मील का पत्थर जिसने देश के प्रत्येक व्यक्ति को सटीक जानकारी तक पहुंच के साथ सशक्त बनाया है। हिंदी पत्रकारिता दिवस की शुरुआत 1826 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के युग से हुई जब भारतीय मीडिया परिदृश्य पर अंग्रेजी, फ़ारसी और बंगाली समाचार पत्रों का वर्चस्व था। मीडिया में भारतीय भाषाओं को शामिल करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने 30 मई, 1826 को भारत में पहला हिंदी समाचार पत्र उदंत मार्तंड लॉन्च किया। सीमित वितरण और वित्तीय बाधाओं सहित प्रारंभिक चुनौतियों के बावजूद, उदंत मार्तंड ने 79 संस्करणों के बाद प्रकाशन बंद करने से पहले एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। यह दिन हिंदी पत्रकारिता की उस स्थायी विरासत को श्रद्धांजलि देने के रूप में कार्य करता है, जो लगभग दो शताब्दियों तक देश में फली-फूली है, जो उन पत्रकारों के समर्पण को उजागर करती है जो जनता को सटीक जानकारी प्रदान करने का प्रयास करते हैं। महज एक वार्षिक कार्यक्रम होने से परे, हिंदी पत्रकारिता दिवस गैर-अंग्रेजी भाषी दर्शकों को शिक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध पत्रकारों के उल्लेखनीय योगदान का प्रतीक है। यह लोगों को जानकारी तक पहुंच प्रदान करने और सूचित राय को बढ़ावा देने में सहायक रहा है। इस दिन को सेमिनारों, चर्चाओं और पुरस्कार समारोहों जैसे विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा चिह्नित किया जाता है, जो हिंदी पत्रकारों और हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालते हैं। ये पहल जागरूकता बढ़ाने और पंडित जुगल किशोर की स्थायी दृष्टि का सम्मान करने का काम करती हैं। पंडित जुगल किशोर शर्मा, जिनकी विरासत आज भी हिंदी पत्रकारिता के परिदृश्य को आकार दे रही है।

 

आज के समय में हम घर बैठे भी जान सकते हैं कि देश-विदेश के विभिन्न हिस्सों में क्या चल रहा है। लेकिन ये जानकारी हम तक पहुंचाने के लिए पत्रकारों को काफी जोखिम उठाना पड़ता है। कई बार तो उन पर हमले भी होते हैं और उनकी जान भी चली जाती है। अपनी जान जोखिम में डालने वाले पत्रकारों की आवाज को कोई भी ताकत दबा न सके, इसके लिए उन्हें आजादी मिलना बहुत जरूरी है, ताकि वे अपना काम अच्छे से और पारदर्शिता के साथ कर सकें। इसी उद्देश्य से प्रथम सप्ताह हर साल मई महीने में 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है और मई के आखिरी सप्ताह 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज हिंदी पत्रकारिता दिवस है और भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई, 1826 को हुई थी। पत्रकारिता सबसे पुराना पेशा है, और यह महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने का सबसे शक्तिशाली उपकरण है। हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस देश के पहले हिंदी अखबार की स्थापना की याद में मनाया जाता है। यह दिन भारत के सभी हिंदी अखबार के पत्रकारों के लिए महत्वपूर्ण है। अखबार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय जो संचार माध्यम सबसे लोकप्रिय था वह समाचार पत्र था। भारत में पहला हिंदी भाषा का समाचार पत्र, उदंत मार्तंड, 30 मई, 1826 को कलकत्ता (अब कोलकाता) से प्रकाशित हुआ था। पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने साप्ताहिक समाचार पत्र केवल मंगलवार को प्रकाशित किया और इसकी कीमत 2 रुपये वार्षिक थी। उस समय, उन्हें कोई अंदाज़ा नहीं था कि उनकी पहल का क्या नतीजा निकलेगा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, प्रकाशन ने जन जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। यह अखबार उस समय सबसे अधिक पढ़ा जाने वाला मीडिया था। प्रकाशन तिथि से, 30 मई, 1826 को भारत में हिंदी पत्रकारिता दिवस या हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में जाना जाता है। हालाँकि, मेलिंग लागत में वृद्धि और दूर-दराज के पाठकों की संख्या के कारण, वित्तीय कठिनाइयों के कारण उदंत मार्तंड लंबे समय तक प्रकाशित नहीं हो सका।

 

यह हम सभी के लिए गर्व का क्षण है कि इस अखबार को शुरू करने का दिन पत्रकारिता के इतिहास में हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। 30 मई, 1826 को पहला हिन्दी समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड प्रकाशित हुआ। तब से यह दिन हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में पहचाना जाने लगा। पंडित जुगल किशोर शुक्ल अखबार के पहले संपादक थे। वह मूल रूप से कानपुर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे और फिर कलकत्ता, पश्चिम बंगाल चले गए। पंडित जुगल किशोर शुक्ल अपने समय के बुद्धिजीवी थे और उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और फ़ारसी भाषाओं का व्यापक ज्ञान था। उस समय, अंग्रेजी, फ़ारसी और बांग्ला प्रकाशनों के पास एक बड़ा पाठक वर्ग था, जिससे हिंदी मीडिया के लिए कोई जगह नहीं बची थी। उदंत मार्तंड की शुरुआत 500 प्रतियों के साप्ताहिक प्रिंट रन के साथ हुई। यह देवनागरी लिपि में पूर्णतः हिन्दी में प्रकाशित होने वाला पहला समाचार पत्र था। उदंत मार्तंड के कर्मचारी खड़ी बोली और ब्रजभाषा हिंदी बोलियों का मिश्रण बोलते थे। बाद में, वित्तीय कठिनाइयों के कारण अखबार विफल हो गया, लेकिन इसने भारत में हिंदी पत्रकारिता के एक नए युग की शुरुआत की। उस समय, बंगाली और उर्दू के कई समाचार पत्र सबसे अधिक पढ़े जाते थे, कलकत्ता के पाठकों का बहुत ही कम हिस्सा हिंदी पढ़ता था। इस अखबार ने देश के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसमें कोई संदेह नहीं है। उस समय भारत में संचार का प्राथमिक माध्यम हिंदी थी, और इस अखबार ने देश भर में लोगों तक जानकारी फैलाने में प्रमुख भूमिका निभाई। स्थानीय पत्रकारिता ने लोगों को उनकी मातृभाषा में समसामयिक मामलों को समझने में मदद की है और इससे देश के हर दरवाजे तक सूचना का प्रसार हुआ है।

 

हिंदी पत्रकारिता दिवस भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह उन पत्रकारों के योगदान को पहचानने का अवसर है जो जनता को हिंदी में समाचार और कहानियां प्रदान करने के लिए अथक प्रयास करते हैं, जिससे लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा मिलता है और भारतीय समाज का ढांचा मजबूत होता है। हर साल हिंदी पत्रकारिता दिवस हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप देश भर में लोगों को अपनी मातृभाषा में विश्वसनीय जानकारी प्राप्त हो रही है। पत्रकार यह सुनिश्चित करने के लिए दिन-रात काम करते हैं कि हमें हर घटना की खबर जल्द से जल्द हमारे दरवाजे पर मिले। एक अखबार, एक टीवी चैनल और वर्तमान समय में सोशल मीडिया, किसी राय को बनाने या बदलने की ताकत रखते हैं। पत्रकारिता बेहद शक्तिशाली है और हमें कुछ चीज़ों पर अपना दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करती है। हिंदी पत्रकारिता या स्थानीय पत्रकारिता ने लोगों को उस भाषा में समसामयिक मामलों के बारे में जानने में सक्षम बनाया है जिसमें वे सहज हैं। इससे देश के हर दरवाजे पर सूचना का प्रसार हुआ है।

 

मैं हिंदी पत्रकारिता के इस महान दिन पर आप सभी पत्रकारों, पत्रकारिता पेशेवरों, पत्रकारिता और मीडिया शिक्षकों, शिक्षकों, हिंदी पत्रकारिता और मास मीडिया के पाठकों और छात्रों को शुभकामनाएं देता हूं। मैं कामना करता हूं कि हिंदी पत्रकारिता पाठकों, दर्शकों और लक्षित समूहों तक अपनी सबसे बड़ी पहुंच के माध्यम से एक दिन न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में शीर्ष स्थान हासिल करेगी। हिंदी पत्रकारिता दिवस 2024 पर देश के सभी हिंदी पत्रकारों को हार्दिक शुभकामनाएं। हिंदी पत्रकारिता दिवस 2024 के अवसर पर सभी हिंदी पत्रकारों को शुभकामनाएं। सभी पत्रकार भाइयों और बहनों को हिंदी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ। 30 मई हिंदी पत्रकारिता के लिए एक महत्वपूर्ण दिन माना जाता है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए और इसका सही तरीके से पालन करना चाहिए।

 

अलग-अलग तरीकों और क्षमता से हिंदी पत्रकारिता का हिस्सा होने के नाते, मैंने वर्षों तक अपनी मीडिया जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के माध्यम से राष्ट्र के विकास, जन जागरूकता और हमारे युवाओं को अधिक जानकारीपूर्ण, जानकार और पेशेवर उन्नत व्यक्तित्व बनाने में अपना रचनात्मक योगदान देने का हमेशा प्रयास किया। मैंने हमेशा मानव समाज को कुछ बेहतर बनाने की सकारात्मक दिशा के लिए लिखा और अपनी कलम और कागज का उपयोग किया। सोशल मीडिया, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों, सेमिनारों, चर्चाओं, विचार-विमर्शों, व्याख्यानों, दूरदर्शन केंद्र और अखिल भारतीय रेडियो स्टेशनों के माध्यम से, मैंने हमेशा आपको अधिक सफल, आत्मविश्वासी, सक्षम और अनुभवी पेशेवर और अच्छी तरह से प्रशिक्षित मानव कौशल आधारित जिम्मेदार नागरिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

 

हिंदी पत्रकारिता दिवस 2024 की आप सभी पत्रकारों, पत्रकारिता पेशेवरों, पत्रकारिता और मीडिया शिक्षकों, शिक्षकों, हिंदी पत्रकारिता और मास मीडिया के पाठकों और छात्रों को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...