मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

सदाचार और नैतिकता का सर्वकालिक परिप्रेक्ष्य-डॉ0 रवीन्द्र कुमार




सदाचार और नैतिकता का सर्वकालिक परिप्रेक्ष्य


डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

अति साधारण शब्दों में, सत् (सत्य –शाश्वत, नित्य) और आचार (आचरण) की सन्धि से निर्मित शब्द सदाचार, शुभ कर्मों का प्रकटकर्ता है। दूसरे शब्दों में, सत्याधारित आचरण, सदाचार है। ऐसे में स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उत्पन्न होगा कि शुभ अथवा सत्याधारित आचरण अथवा कर्म कौन-सा है। अति सरल शब्दों में कहा जाए, तो सकारात्मक सोच के साथ (विवेकाधारित) आचरण शुभ आचरण हैं; ऐसे आचरण अथवा कर्म स्वयं के साथ ही वृहद् कल्याणकारी होते हैं। सत्य को समर्पित रहते हैं।

यहाँ तनिक और स्पष्टता की जाए, तो हम यह कह सकते हैं कि विवेक ही सोच को सकारात्मक बनाता है; मानव-जीवन में अपरिहार्य कर्म-प्रक्रिया को सुकर्मों में रूपान्तरित करता है। इस प्रकार, विवेक स्वयं में एक सद्गुण के रूप में प्रतिष्ठित होता है। सुकर्म, सत्य-मार्ग का अनुकरण है। निज के साथ ही समष्टि-कल्याण सुकर्मों की कसौटी है।

नैतिकता का निर्माण नैतिक शब्द से हुआ है। नैतिक, नीति से बना है। नैतिक भाव की अनुभूति, विकास और व्यवहार द्वारा मानव न्यायसंगत कार्य करता है। नैतिकता मानवीय सद्गुणों का प्रदर्शन है। नैतिकता उचित आचरण-नियमों के अनुसरण के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। क्या करना और क्या नहीं करना है; क्या उचित है, जो करना चाहिए एवं क्या अनुचित है, जो त्याज्य है तथा नहीं करना चाहिए, नैतिकता इसका बोध कराती हैI नैतिकता पवित्रता, न्याय एवं सत्य का प्रतिनिधित्व करती है। यह आत्मा का स्वर बनती है। जब नैतिकता अविभाज्य रूप से सद्गुणों के प्रदर्शन –न्यायसंगत कार्य व उचित व्यवहार के साथ सम्बद्ध होती है, तो यह व्यक्ति को कर्त्तव्यपरायणता अथवा उत्तरदायित्व-निर्वहन भावना से भरपूर करती हैI इस प्रकार अति साधारण और ग्राह्य शब्दों में, कर्त्तव्यपरायणता या समुचित उत्तरदायित्व-निर्वहन नैतिकता की कसौटी है।

मानसिक शुद्धता के लिए एकाग्रता-प्रक्रिया से चरित्र-निर्माण भी होता है। व्यवहारों में निरपेक्ष बन्धुत्व का विकास, जो जीवन में करुणा-भावना का आधार है, उच्चतम नैतिक आचरण है। तथागत गौतम बुद्ध के मानव-विश्व के लिए इस सन्देश द्वारा अपरिहार्य कर्त्तव्य-निर्वहन का सुदृढ़ पक्ष सामने आता है।   

प्रसिद्ध चीनी चिन्तक और अपने नैतिक विचारों के लिए विश्व की दार्शनिक परम्परा में उच्च स्थान रखने वाले कन्फ्यूशियस के अनुसार सम्मान, सद्भाव, न्याय और निष्ठा जैसी मानवीय विशिष्टताएँ नैतिकता के आधारभूत तत्व हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ये विशिष्टताएँ मनुष्य को सदाचारी बनाती हैं। 

पश्चिमी जगत से सुप्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने 'निकोमैचियन एथिक्स' जैसी आज तक प्रसिद्ध पुस्तक की रचना  की। इसमें उन्होंने तर्कों के साथ नैतिकता के सम्बन्ध में वर्णन किया। नैतिकता को सच्चा आनन्द प्रदान करने वाली सर्वोच्च अच्छाई के रूप में निरूपित किया, जिसमें मानव-चरित्र के सुलक्षण सम्मिलित होते हैं। सार रूप में, अरस्तू ने इन्हीं के विकास एवं जीवन-व्यवहारों में अनुकरण द्वारा मानव के श्रेष्ठ अथवा सदाचारी जीवन जीने की बात की।

महात्मा गाँधी ने सजातीय समानता की वास्तविकता के अंगीकरण को उच्च नैतिकता घोषित किया। स्वतंत्रता, न्याय और अधिकार जैसे मानव-जीवन के अतिमहत्त्वपूर्ण पक्ष समानता के साथ ही जुड़े हुए हैं। समानता-भावना सार्वभौमिक एकता का दर्पण है। इसलिए, गाँधीजी ने समानता-केन्द्रित मानव-व्यवहार को मनुष्य का सत्याचरण स्वीकारा। 

सदाचार और नैतिकता एक-दूसरे के साथ अभिन्नतः जुड़े विषय हैं। दोनों मानव-जीवन की शुद्धता व समृद्धि के लिए हैं। जीवन के अर्थपूर्ण होने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। सदाचार, सत्य के लिए समर्पित है। नैतिकता, मानव को कर्त्तव्यपरायण बनाती है। कर्त्तव्य-निर्वहन, स्वयं  सत्याचरण है। अन्ततः निज के साथ वृहद् कल्याण केन्द्रित होने के कारण दोनों की, एक-दूसरे के साथ घनिष्ठतः सम्बद्ध होते हुए, कितनी महत्ता है, वह स्वतः ही प्रकट है।

व्यक्तिगत से राष्ट्रीय, राष्ट्रीय से वैश्विक और वैश्विक से सार्वभौमिक स्तर तक परिस्थितियाँ निरन्तर परिवर्तित होती हैं। परिवर्तन शाश्वत नियम है। जीवन का कोई भी क्षेत्र और किसी भी क्षेत्र का कोई भी स्तर परिवर्तन नियम से बाहर नहीं है। ऐसे स्थिति में मस्तिष्क में यह प्रश्न उत्पन्न हो सकता है कि क्या सदाचार और नैतिकता इसका अपवाद हैं। नहीं हैं। सदाचार और नैतिकता से सम्बद्ध विशिष्टताएँ भी देशकाल की परिस्थितियों में परिष्करण अथवा परिशोधन का विषय हैं।

परिवर्तन-क्रम, हम बारम्बार कह सकते हैं, निरन्तर रहता है। वर्तमान में कम-से-कम दो (पूर्ववर्ती एवं उत्तराधिकारी) पीढ़ियों के मध्य सोच-विचार, कार्यपद्धति, व्यक्तिगत एवं परस्पर सम्बन्धों व व्यवहारों सहित जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हरेक स्तर पर परिवर्तनों का हममें से हर कोई साक्षी है। यह स्वाभाविक है। परिवर्तन नियम-प्रक्रिया से सम्बद्ध है।

सदाचार और नैतिकता जीवन शुद्धता, समृद्धि और सार्थकता के लिए हैं। इस हेतु अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण भी आवश्यक होता है। इसके लिए सदाचार और नैतिकता की भूमिका अतिमहत्त्वपूर्ण होती है। इसलिए, सदाचार एवं नैतिकता अपनी-अपनी मूल भावना के साथ जुड़े रहकर भी परिष्करण अथवा परिशोधन का विषय हैं। सत्यता के साथ आचरण –वर्तमान परिस्थितियों में सम्बन्धों में ईमानदारी एक श्रेष्ठ सदाचार है। साथ ही, अच्छी-बुरी सामाजिक परम्पराओं, प्रथाओं और रीतियों को नकार कर भी यदि  कोई सम्बन्धों में (वे निजी जीवन से जुड़े हों या परस्पर व्यवहारों से सम्बद्ध हो अथवा उनका सरोकार किसी भी क्षेत्र से हो) उत्तरदायित्व-निर्वहन हेतु प्रतिबद्ध रहता है, तो वह नैतिकता का पालन करता है। ये दोनों (अर्थात् सम्बन्धों एवं व्यवहारों में ईमानदारी तथा उत्तरदायित्व-निर्वहन के लिए प्रतिबद्धता) सदाचार व नैतिकता के उत्कृष्ट पहलू  हैं, जो यह भी प्रतिपादित करते हैं कि  जीवन में सदाचार और नैतिकता की सर्वकालिक महत्ता है।

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I

 

 



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