रविवार, 14 अप्रैल 2024

स्वतंत्रता , समता , सेवा और सामाजिक चेतना... बाबा साहब अंबेडकर के संदर्भ से - विवेक कुमार मिश्र (आचार्य हिंदी,कवि,लेखक व रेखांकनकार)

 

स्वतंत्रता , समता , सेवा और सामाजिक चेतना... बाबा साहब अंबेडकर के संदर्भ से

- विवेक कुमार मिश्र

सामाजिक सेवा ही मनुष्य को पूर्ण मनुष्य के रूप में परिभाषित करती है। मनुष्य होने का अर्थ ही तब पूरा होता है जब हम अपनी दुनिया का विस्तार करते हैं । यह नहीं हो सकता कि आप केवल अपनी प्रगति और अपनी खुशी के बारे में सोचें । यदि आप केवल अपना ही पेट भरते हैं और पेट भरने को ही सांसारिक होना समझते हैं तो यह समाज और संसार की अधूरी समझ का ही परिणाम होता है । समाज की गति में अपनी गति, अपनी उपलब्धियों को जोड़कर देखने की जरूरत होती है ।

व्यक्ति के रूप में आप कहां से आते हैं, क्या करते हैं ? कहां है ? इसका कोई मतलब नहीं होता ।  आप किस घर में पैदा हुए हैं यह सब खास मायने नहीं रखता । आप क्या है यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी उपस्थिति किस तरह से समाज में है । अपनी उपस्थिति को लेकर आप कहां हैं ? कितना सजग हैं और किस तरह काम करते हैं । आप की सोच किस तरह की है । आप अपने व्यक्तिगत संसार और व्यक्तित्व से बाहर निकल पाते हैं कि नहीं । यदि नहीं निकल पाते या सीमित दायरे में ही निकल पाते हैं तो इसका समाज को कोई बड़ा लाभ नहीं होता । आपका भी जीवन आम आदमी की तरह अपने आसपास के संसार में कुछ घटनाओं के साथ चलता रहता है और इससे कोई और नहीं केवल आप प्रभावित होते हैं । समाज आपके साथ चलें और आप समाज को लेकर चलें, सामाजिक गति के कारक बने यह सब संभव तभी हो पाता है जब आप अपनी गति में, अपनी सोच में पूरे समाज को रखकर चलते हैं । जब बड़े विजन से काम करते हैं । बड़े सपने देखते हैं , यह सोचते हैं कि हम समाज के लिए क्या कर सकते हैं ? हमारे होने का अर्थ क्या है ? क्या कुछ किया जा सकता है ? जिससे सार्थकता की अनुभूति हों और जो सपने हम देख रहे हैं क्या वे केवल मेरे हैं । यदि केवल मेरे सपने हैं तो उनका समाज के लिए क्या उपयोग ? इसलिए हमारे सपने भी ऐसे हों कि हम समाज के लिए सपने देख रहे हैं । समाज को रचने गढ़ने बनाने के लिए आगे चल रहे हैं । तभी सही मायने में हमारा व्यक्तित्व निर्मित होता है । व्यक्तित्व को व्यक्ति स्वयं गढ़ता है पर यह भी सही है कि व्यक्तित्व को सही आकार और संदर्भ तो समाज में जाकर ही मिलता है । जब हमारी सत्ता समाज के लिए होती है । जब हमारे सपने में हमारे साथ-साथ समाज होता है तो वास्तव में व्यक्तित्व एक वृहद आकर ले लेता है ।  यही से हमारे बीच से ही ऐसे महापुरुष आकर ले लेते हैं जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर पाते । बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ( 14 अप्रैल 1891 -06 दिसंबर 1956 ) एक ऐसे ही महापुरुष थे । उनकी हर बात , हर संदर्भ और हर प्रसंग में उनका समाज दिखता है कि मैं जो कुछ कर रहा हूं उसमें मेरा समाज कहां है ? मेरा समाज कहां जाएगा और समाज की प्रगति के लिए हम कुछ कर पा रहे हैं कि नहीं । यहीं से अंबेडकर जी का सामाजिक दर्शन व सामाजिक स्वप्न संभव होता है । जिसमें अपने समाज को उसका अधिकार उसकी स्वतंत्रता उसकी समता का भाव मिलता है । जिस रास्ते समाज आधुनिक संदर्भों में अपने अधिकारों के साथ अपनी मुक्ति का अपनी सामाजिक मुक्ति का स्वप्न देखा है ।  यह सब संभव होता है अंबेडकर जी की जागृत चेतना के कारण । यही से सामाजिक समता , स्वतंत्रता और बंधुत्व का भाव सामने आता है । सम भाव पर चलने से ही  सामाजिक सत्ता निर्मित होती है ।

सामाजिक समता के लिए कार्य आप तभी कर सकते हैं जब अन्य में अपनी सत्ता को महसूस करते होंगे । सभी समान विंदू पर हैं । सबके भीतर एक ही तत्व है । एक ही रक्त एक ही मन एक ही सत्ता सबमें है । सब मनुष्य हैं और सबके भीतर मनुष्य की सत्ता बराबर से जब इस तरह सोचते हैं तो कोई कारण नहीं है कि हम किसी के साथ भेदभाव कर सकें । यह जो भी भेदभाव है जो भ्रांत धारणा है वह हमारी अज्ञानता के कारण ही है । जब सामूहिक अज्ञानता समाज में बढ़ जाती है तो घोर अनर्थ होता है । हम एक दूसरे को छोटा दिखाने की कोशिश करने लगते हैं और ऐसे में मनुष्यता रोती और कराहती है । यहीं पर मानव धर्म व मूल्य की बात आती है । यहां समता और स्वतंत्रता का मूल्य ही जीवन का आधार बन सामने आता है । समता और स्वतंत्रता केवल किताब में लिखे जाने के लिए मूल्य नही है । ये हमारे जीवन में वास्तविक बदलाव लाने वाले मूल्य के रूप में हैं । जिसे सही मायने में जीने की जरूरत है । इस मूल्य को दूर रखकर देख नही सकते यह हमारे जीवन का आंतरिक और बाह्य मूल्य एक साथ है । आप कुछ भी करें उसका कोई अर्थ नहीं यदि आप उसे करने में स्वतंत्र नही हैं । यह स्वतंत्रता सीधे सीधे स्वाभिमान और अस्तित्व बोध को लेकर आती है। आपके समूचे व्यक्तित्व को रचने का काम करती है । स्वतंत्रता और समानता का भाव ही समाज की गति और विकास के मूल में है । सामाजिक गति और सामाजिक संस्कृति समानता के मूल्य से संयोजित होती है । समानता के कारण ही हम सब दूसरे के भीतर अपनी सत्ता प्रकाशित होते हैं । कोई भी पदार्थ किसी एक के लिए नही है ।  वह सभी के लिए है । सब उसका समान रूप से उपभोग कर सकते हैं । यह समता ही न्याय की अवधारणा के मूल में है । न्याय तभी हो सकता हैं जब समाज में समता का मूल्य हो , जब एक दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करना हम जानते हों तभी सामाजिक जागरण , चेतना का जागरण और मानव मन की सत्ता को हम समझ पाते हैं । हर मनुष्य को उसका अधिकार दिलाना, उसकी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखना , उसके जीवन की गरिमा को बनाए रखना यह सब समता और स्वतंत्रता के वृहत्तर रूप में मूल्य को जीने के खारण ही संभव हो पाता है । स्वतंत्रता के मूल्य को सामाजिकता के वृहत्तर संसार का आधार बना बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने समाज में जो क्रांति चलाईं । जो जागृति लाईं वह पूरे समाज को अंधकार से मुक्त करने का अधिकार बना। सामाजिक मुक्ति के लिए जरूरी है कि पूरा समाज स्वतंत्रता को मूल्य के रूप में जहां स्वीकार करता है वही समता के भाव को सामाजिक सेतु का आधार बनाता है और समाज को आगे आने के लिए सभी शिक्षित जनों को पहले आगे आना होगा । आप शिक्षित हो गये , उच्च पद पर पहुंच गये - इसका लाभ तबतक समाज को नही मिलेगा जब तक कि आप समाज को शिक्षित नही करते हैं । सामाजिक शिक्षण प्रशिक्षण और सामाजिक जागरूकता ही समाज की सबसे बड़ी संपत्ति है । सामाजिक समता का संदेश समाज के हर व्यक्ति तक पहुंचे तभी वास्तव में सामाजिक जागृति और चेतना की बात पूरी होती है । यह सामाजिक क्रान्ति ही सभ्यता और संस्कृति का सबसे बड़ा प्रश्न है । समता , बंधुत्व स्वतंत्रता जब तक समाज में नहीं है जब  तक वास्तविक रूप में नहीं है तब तक इनके अस्तित्व गत अर्थ को हम नहीं समझ सकते । बाबासाहेब आंबेडकर ने समाज को न केवल जगाया बल्कि समाज को उसके अधिकारों का स्वामित्व भी भारतीय संविधान के माध्यम से दिलाया । समता, स्वतंत्रता बंधुत्व और संवैधानिक संरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार के रूप में घोषित किया । यह अधिकार मनुष्य की गरिमा, स्वतंत्रता बोध औल निजता को एक साथ संरक्षित करने का काम करता है ।

बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर ने शिक्षा को अपने तक सीमित नहीं रखा । उनका बराबर से यह मानना है कि शिक्षा ही हमारी जड़ता को तोड़ेगी । हमें अंधकार से बाहर निकलेगी । यदि आदमी शिक्षित हो गया तो समझो कि वह अपना सारा अधिकार ले लेगा । इसीलिए जैसे-जैसे शिक्षा के अधिकार का समाज में प्रसार हो रहा है और जिस तेजी से लोग शिक्षित हो रहे हैं और अपने अधिकारों को न केवल पहचान रहे हैं बल्कि समझ भी रहे हैं वैसे-वैसे भारतीय समाज में सामाजिक जागरण और सामाजिक क्रांति की मशाले तेजी से सामने आ रही है । शिक्षा ही सब कुछ है । शिक्षित बनो और समाज को बदलने के लिए काम करों । समाज को शिक्षित करों अकेले शिक्षित हो जाने का कोई अर्थ नहीं है । आप अपने कुटुंब और समाज को शिक्षित करों उसे अंधेरे से दूर ले चलो और उसकी राह में प्रकाश बिखेरों । यदि आप ऐसा करते हैं कर सकते हैं तो आपके शिक्षित होने सामाजिक होने और आपके शिक्षक धर्म का फायदा समाज को मिलेगा , अन्यथा कुछ नहीं होने वाला है ।  अंबेडकर जी सामूहिक चेतना के जागरण और सामूहिक मुक्ति की बात करते थे । यह सब संभव तभी हो सकता है जब समाज शिक्षित होगा । बिना समाज को जगाये , शिक्षित किए बिना सामाजिक क्रान्ति के कुछ भी होने वाला नहीं है। अंबेडकर ने यह क्रांति शिक्षा के माध्यम से ही चलायी । शिक्षा ही संगठित कलती है और जागरण का कारण भी बनती है ।

अन्य के साथ जुड़ना अपनी आत्म सत्ता का विस्तार करना है । अलग थलग या अकेले पड़ कर समाज निर्माण का काम नही होता । समाज निर्माण के लिए सामाजिक शक्तियों को इकठ्ठा करना पड़ता है । उनके साथ चलना पड़ता है और समाज हित में फैसला लेना पड़ता है । सेवा सामाजिक सत्ता और सामाजिक समता के लिए कार्य करते हुए ही एक व्यक्ति सामाजिक व्यक्तित्व बनता है । बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर एक ऐसे ही सामाजिक व्यक्तित्व रहे जिन्होंने अपनी सत्ता को अन्य की स्वतंत्रता और समता के मूल्य पर चलने की शिक्षा के रूप में जीवन जीने की प्रणाली बनाई।

बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर स्वतंत्रता के मूल्य को सामाजिक स्वतंत्रता के मूल्य के रूप में पहचान दिलाई । यदि हम केवल राजनीतिक रूप से स्वतंत्र हो जाते हैं तो उससे समाज का भला कहां होगा ? समाज भला कहां गति करेगा । समाज तो वही पड़ा रह जावेगा जहां हजारों वर्षों पहले था । ऐसे समाज से काम नही चलेगा सभी को अपने अधिकारों की लड़ाई खुद लड़नी होगी । तुम्हारी लड़ाई कोई और क्यों लड़ेगा ? यदि आप आगे नही आयेंगे तो कोई दूसरा भला आपकी स्वतंत्रता की लड़ाई  क्यों लड़ेगा । अम्बेडकर ने पूरे समाज में यह जागृति भर दी कि हमें आजाद होना है और हमारी आजादी राजनीतिक स्वतंत्रता से आगे सामाजिक स्वतंत्रता में ही है । यदि समाज स्वतंत्र नही हुआ यदि लोगों ने आजाद हवा को महसूस नही किया तो स्वतंत्रता को मूल्यवान कैसे समझेगा


कोई टिप्पणी नहीं:

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...