कहानी : बंद शटर
केदार शर्मा,’निरीह’ सेवानिवृत्त व्याख्याता (अंग्रेजी)
हैलो,
अदितिजी
! आज आप यहाँ क्यों खड़े हो ?’ ऑफिस
की सहकर्मी अदिति को चौराहे के पास खड़े देखकर रवि के पाँव रुक गए।
‘नमस्ते
रविजी, कल मकर संक्रांति का
त्योहार पर गाँव जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी। मेरे यहाँ आने के पाँच मिनट
पहले ही मेरे गाँव जाने वाली बस निकल गई और अगली बस आने में अभी पूरा एक घंटा बाकी
है। ‘’
‘’अच्छा तो चलो सामने
रेस्टोरेंट में बैठकर कॉफी पी लेते हैं। मैं भी यहाँ जिस दुकान पर किसी काम से आया
था,उस पर अभी शटर बंद है,
न
जाने कितनी देर में खुलेगा? ‘’
जाना न चाहते हुए भी अदिति मना नहीं कर
सकी। वह उसके पीछे पीछे चलने लगी ।
सुदर्शन चेहरा और सदाबहार मुस्कराहट लिए किसी
चुम्बकीय आर्कषण की प्रतिमूर्ति से कम नहीं थी अदिति । रवि से उसका सामान्य परिचय
कॉलेज के समय से ही था। दोनो के संकाय अलग-अलग थे। साहित्य संबंधी सेमीनारों और
गोष्ठियों में अदिति अक्सर नजर आती थी ।
वह इतना तो जानता था कि धर्म,
अध्यात्म
और साहित्य में अदिति की गहरी रुचि थी । उसे याद आया कि प्रसगंवश एक बार किसी विषय
पर चर्चा चल पड़ती तो वहीं पर अदिति का व्याख्यान शुरू हो जाता था,
सामने
वाला उसके रुकने का इंतजार करता रहता और कभी कभी तो कोई बहाना बनाकर पिंड छुड़ाना
पड़ता।
वर्षों बाद अभी एक माह पहले ही उसी ऑफिस में सहायक
प्रोग्रामर के पद पर अदिति की प्रथम नियुक्ति हुई है,जहाँ
रवि ने कुछ दिन पहले ही सहायक लेखाकार के पद पर जॉइन किया था।
देखते ही मुस्कराना,
खुले
मन से घर परिवार की बातें करना,धैर्य
से सबकी बातें सुनना मानो अदिति के स्वभाव में ही था। ऑफिस में दोनों का एक ही जगह
लंच करना,आपस में खाना शेयर करना और
खाने के बाद दुनिया भर की ढेर सारी बातें करना दिनचर्या में शामिल हो रहा था।
दो कप कॉफी का ऑर्डर देकर रवि अदिति
के सामने बैठ गया । रेस्टोरेंट में उन दोनो के अतिरिक्त और कोई ग्राहक वहाँ नहीं
था । कुछ देर बाद दुकानदार कॉफी की ट्रे रखकर काउटंर पर जा चुका था। थोड़ी देर तक दोनो के बीच ऑफिस से संबधित और
इधर-उधर की बातें होती रही। फिर दोनों कुछ देर के लिए मौन हो गए ।
कई दिनों से रवि इसी मौके की तलाश में था कि
अदिति से अपने मन की बात कह सके । उसको न जाने क्यों विश्वास हो चला था कि अदिति
उससे प्रेम करती है । कभी वह सोचता कि यह उसके मन का भ्रम है,
क्योंकि
अदिति तो नवीन बाबू, बोस,
सहायक
कर्मचारी और अन्य कर्मचारियों सहित सभी से तो वह हँसकर खुले मन से बातें करती है।
हो सकता है उसका स्वभाव ही ऐसा हो ।
यदा-कदा रवि के घनिष्ठ मित्र कभी कभी
रवि को अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड के किस्से सुनाते रहते थे। मोबाइल पर भेजे गए बधाई
संदेश,सोशल साइट्स पर दिए गए
लाइक्स, कमेंट्स ओर फोटो शान
से दिखाते। रवि के मन में भी एक हूक सी उठने लगी कि काश उसके भी कोई गर्लफ्रेंड
होती। वैसे मन ही मन वह अदिति में अपनी गर्लफ्रेंड का अक्स़ देखने लगा था । अदिति
के आत्मीयता से ओतप्रोत हँसमुख व्यवहार से
कई बार उसे विश्वास होने लगता कि अदिति ही उसकी एकमात्र गर्लफ्रेंड है । कई बार
मन की यह बात उसने अदिति से कहने का प्रयास भी किया, पर
कह नहीं पाया ।
‘’आज आप खोए-खोए से लग
रहे हो रविजी, क्या बात है?
घर
पर तो सब ठीक हैं’’—मुस्कराते हुए अदिति ने उसकी ओर देखा ।‘’हाँ..,
कुछ
नहीं...’ वह चौंक कर ख़याली दुनिया से बाहर आ गया ।
कुछ क्षण मौन रहकर हिम्मत कर वह बोला—‘दरअसल आप
से एक बात कहनी थी।‘
‘तो
कहो ना, रुक क्यों गए आप?’
‘दरअसल मैं आपको अपनी फ्रेंड
बनाना चाहता हूँ’ — दबी सी आवाज में रविने कहा ।
‘’यह
कैसी बात कह रहे हैं आप, फ्रेंड
तो हम हैं ही। साथ जॉब कर रहें हैं तो साथी कह लीजिए।सोशल साइट्स पर क्या हम मित्र
नहीं हैं? क्या हम आपस में
मित्र के तौर पर वहाँ अपने विचार शेयर नहीं करते ? मेरे
और भी बहुत से मित्र हैं पर कभी किसी ने
ऐसा सवाल नहीं किया। ‘’
‘फ्रेंड तो मेरे भी
बहुत से हैं पर गर्लफ्रेंड कोई भी नहीं है’— इस बार रवि ने हिम्मत करके कह ही डाला
।
‘’ अच्छा,
तो
अब मैं समझी.... आप मुझे गर्ल के तौर पर फ्रेंड बनाना चाहते हैं। इसका मतलब आप
हमारी सामान्य मित्रता से संतुष्ट नहीं हैं। यानि कि आप मुझे महज एक लड़की के तौर
पर देखते हैं, केवल सामान्य मित्र
के रूप में नहीं।
पर मैं स्पष्ट कर दूँ रविजी,
कि
सामान्य रूप से हम सब मनुष्य पहले हैं,नर-नारी
का भेद बाद की बात है । लड़का-लड़की होना हर किसी का व्यक्तिगत मामला होना चाहिए।
मित्रता के धरातल पर मनुष्य के लिए मनुष्य होना ही पर्याप्त होना चाहिए ।
मित्रता को देहबोध के चश्में से क्यों देखा जाना चाहिए ? सामान्य
मित्रता में देहभेद कहाँ आड़े आता है? कभी-कभी
मैं सोचती हूँ कि आजकल युवाओं में कहीं यह
अहं की तुष्टि और फैशन सिंबल की भेड़-चाल का परिणाम तो नहीं है।समाज में इसके
परिणाम आए दिन हम अखबारों मे देखते हैं।
अदिति सहज होकर रवि को ऐसे समझा रही थी
जैसे छोटे बच्चे को कोई शिक्षक समझा रहा हो।‘ हालाकि उसके चेहरे से वह सदाबहार
मुस्कान गायब हो गयी थी और उसका स्थान परिपक्वता से परिपूर्ण सहजता ने ले लिया था
।
‘मि. रविजी,
मित्रता
के धरातल पर मनुष्य होने के नाते हमारा सामान्य मित्र बने रहना ही बेहतर
होगा।अच्छा, अब मैं चलती हूं,
बस
आने वाली है’ — कहते हुए अदिति धीरे से उठी और हमेशा की तरह मुस्कराकर गुड बाई
कहकर तेजी से चली गई ।
रवि अवाक सा देखता
रहा ।कुछ क्षणों के लिए कमरे में अब मौन छा गया था। वह धीरे से उठा और काउटंर की
ओर बढ़ा पर दुकानदार ने इशारे से बता दिया कि पैसे मेम साहब ने दे दिए हैं।
तभी रवि के मोबाइल की घंटी घनाघना उठी। उधर
से उसकी पत्नि सावित्री देवी की नाराजगी भरी आवाज थी---‘अभी भी आटा नहीं पिसा क्या
?कितनी देर हो गई इंतजार करते
हुए। बच्चों को भूख लग रही है । ‘’हाँ
हाँ... बस आ ही रहा हूँ । पहले फ्लॉर मिल का शटर बंद था । अब खुल गया है ‘— कहते
हुए उसने फोन काटा और तेजी से दुकान से बाहर निकल गया । उसे महसूस हुआ कि जैसे
उसके भीतर भी समझ का कोई शटर बंद था जो अदिति से बातचीत के बाद खुल गया है।
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लेखक
परिचय
केदार शर्मा,”निरीह”
पूर्व
व्याख्याता, अंग्रेजी
कहानियां, व्यंग्य,
कविताएं,गीत
, लघुकथाएं एवं आलेख विधाओं
में रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। नियमित रूप से लेखनरत।
Mobile no.-9587615121
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