मन के भावों का संग्रह: अंतर्मन
के मोती
लेखिका: ममता जाट 'मंजुला'
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ममता जाट 'मंजुला' की पुस्तक 'अंतर्मन के मोती' बुक्स क्लिनिक छतीसगढ़ से
प्रकाशित हुआ है। पुस्तक की सबसे खास बात यह है कि यह अलग-अलग विधाओं की रचनाओं का
संग्रह है। इसमें कविताएं,गीत,गजल,भजन आदि विधाओं की रचनाएँ सम्मिलित की गई है। इस बात
में कोई संशय नहीं है कि लेखिका को अलग-अलग विधाओं की रचनाओ का अच्छा अनुभव है।
अंतर्मन के मोती' एक ऐसी पुस्तक है जिसमें लेखिका
में अपने जीवन के अनुभव को कविता,गजल,गीतों के माध्यम से कागज पर उतारा है। अधिकतर कविताएँ
या रचनाएँ लयबद्ध रूप से गाई जा सकती हैं। प्रस्तुत पुस्तक में स्त्री मन की पीड़ा, बेटी का दर्द,समाज में हो रहे अत्याचार और
स्त्री की दुर्दशा का बखूबी चित्रण किया गया है।पुस्तक में स्त्री मन की भावनाओं
को बहुत सुंदर तरीके से समाहित किया गया है। स्त्री विमर्श की इन रचनाओं से पुस्तक
और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
पुस्तक मे कुछ प्रार्थनाएँ भी है
जो पाठक को अध्यात्म से जोड़ती है। 'चक्र सुदर्शन लाना' कविता में लेखिका ने भगवान श्री
कृष्ण को इतनी शिद्दत के साथ पुकारा है की श्री कृष्ण को पृथ्वीलोक के दु:ख दर्द
मिटाने के लिए पुनः अवतार लेना ही होगा।
पुस्तक मे वीर रस की कुछ रचनाएँ
भी सम्मिलित की गई है। 'ललकार' शीर्षक रचना में पाकिस्तान को खूब
खरी-खोटी सुनाने की हिम्मत लेखिका ने की है। भारत की मिट्टी पवित्र है यह हर
भारतीय के लिए गर्व की बात है। लेखिका ने 'पावन तेरी माटी' मे भारत की मिट्टी,यहाँ की संस्कृति,धर्म आदि का खूब गुणगान किया है।
इस पुस्तक में 'पुरुष के पर्याय' शीर्षक से एक बेजोड़ रचना है।
स्त्री विमर्श की अनेक रचनाएँ काव्य संग्रह,गद्य-पद्य अनेक विधाओं में खूब
सारी सामग्री उपलब्ध है। पर यह सत्य है कि पुरुष पर अभी बहुत कम लिखा गया है।
लेखिका ममता जाट 'मंजुला' ने पुरुष के पर्याय शीर्षक में
पुरुष की अहमियत को अपने शब्दों में उतारा है। वे लिखती है
पुरुष पर भी लिखी जा सकती है
कविताएँ,
और गीत भी।
पुरुष संभाले रहता है बहुत कुछ
अपने भीतर।
खुद टूट जाता है,टूटने नहीं देता अपने अस्तित्व
को।।
एहसास नहीं होने देता भीतर के
शून्य का।
लेखिका ने अपनी एक कविता में
कवियों को स्पष्ट संदेश दिया है कि आप ऐसी रचनाएँ लिखे जिससे समाज में बदलाव हो,देश की उन्नति हो। क्योंकि कवि यह
कर सकता है।
वे लिखती हैं।
कागज,कलम की रणभेरी में
शंखनाद जो भर देता है
वह कविता का साधक जग में
समर आवाह्न कर देता है।
लेखिका ने मानवता को सबसे बड़ा
धर्म माना है। स्त्री मन की भावनाओं को उकेरते हुए 'पहचानो मुझे तुम' शीर्षक से एक लंबी कविता पुस्तक
में सम्मिलित है। इस कविता में आज के समाज से आवाहन किया है कि स्त्री को पहचानना
होगा। जग का अस्तित्व नारी से ही है। इसे समझना पड़ेगा। स्त्री मां,बहन,बेटी,पत्नी,मित्र सब हो सकती है। उसे प्रेम
और सम्मान की जरूरत होती है। जो समाज उसे प्रेम और सम्मान दे पाता है वह समाज निश्चित रूप से उन्नति के शिखर पर होता
है। कवयित्री ने स्त्री को अबला नहीं बल्कि सबला मनाने के लिए भी संदेश दिया है।
यह एक आम धारणा है कि कविता दु:ख
या उदासी के समय लिखी जाती है। किंतु लेखिका ने 'इस बार खुशी में आना' शीर्षक कविता में यह बात स्वीकार
किया है कि कविता को खुशी में भी लिखा जा सकता है l और उन्होंने अपनी कविता से याचना की है कि तुम मेरे दर्द,पीड़ा और बेचैनी में ही नहीं
बल्कि मेरी खुशियों में भी मेरे पास आओ ताकि मैं तुम्हारा दूसरा पक्ष देख सकूँ ।
पुस्तक से यह भी पता चलता है कि
लेखिका प्रकृति प्रेमी है। 'प्रकृति का दर्द' शीर्षक से उन्होंने प्रकृति और
बेजुबान परिंदों की पीड़ा को अपने मार्मिक शब्दों में ढाला है। उन्होंने समाज में
बेटी की इज्जत के साथ हो रहे खिलवाड़ और चारों और घूम रहे आवारा वहशी इंसानों के
ऊपर करारा प्रहार किया है। साथ ही समाज को इस दिशा में सोचने और काम करने के लिए
संदेश दिया है। इस कविता में इन्होंने इंसान के भेष में घूम रहे खूनी भेड़ियों को
जमकर लताड़ा है। समाज को ऐसे भेड़ियों से सावधान रहने के लिए भी आगाह किया है।
बहुत हिम्मत चाहिए ऐसी कविताएँ लिखने के लिए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता
कि आज भी समाज में बेटी को हर जगह सम्मान, प्रेम और सहानुभूति नहीं मिलती
है। और यह पीड़ा ममता जाट की कविताओं में बखूबी नजर आती है। और यही विशेषता उनकी
कविताओं को और अधिक पुष्ट करती है।
प्रातः स्मरणीय महाराणा प्रताप को लेकर भी उन्होंने एक शानदार
रचना लिखी है।
राजस्थानी गौरव का वह अविचल तुंग
हिमाला था।
भीष्म प्रतिज्ञा की थी उसने वह कब
डिगने वाला था।
मुगल राज्य सत्ता को उसने निज दम
पर ललकारा था।
मेवाड़ी महिमा के आगे अकबर देव
पुकारा था
मेवाड़ धरा के इस शानदार इतिहास
और महाराणा प्रताप की महिमा का अपने शब्दों में उन्होंने कितनी सहज और उत्तेजित
शब्दों के साथ वर्णन किया है कि पाठक के रोम-रोम में राष्ट्रभक्ति की ज्वाला उठने
लगती है। कविता का अंत करते समय पाठक का रोम-रोम खड़ा हो जाता हैं।
बेटी हो महफूज,मत अपमान करो ममता का,अस्थिरता के दौर में,अधूरे ख्वाब,बेटियाँ असमंजस में है, बेटियाँ अनमोल है,बेबसी, आदि रचनाओं में लेखिका ने स्त्री
की पीड़ा और बेटियों के दर्द को अपने शब्द दिए हैं। साथ ही बेटियों के साथ हो रहे
अत्याचार पर भी समाज को सावधान किया है।
लेखिका ने दिलीप कुमार,मंगल पांडे, झांसी की रानी,राजगुरु, सुखदेवभगत सिंह आदि स्वतंत्रता
सेनानियों को याद किया है। पुस्तक में बाल कविताएं भी है जो बच्चों को अपनी और
आकर्षित करती है।
'अंतर्मन के मोती' पुस्तक में प्रस्तुति गीत बहुत
सुंदर और सहज शब्दों में लिखे गए हैं। जो भावनात्मकता और सकारात्मकता का संदेश लिए
हुए समाज को कुछ सीखने और कुछ नया करने का संदेश देते हैं।
'संभल जाओ' गीत की कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार
हैं
लगा कर भूल जाने से शजर भी सूख
जाते हैं
जब पिंजरे में बंद होते हैं
परिंदे रूठ जाते हैं।
इस बात में कोई संशय नहीं है कि
ममता जाट 'मंजुला' को कविता और गीत के साथ-साथ गजल लिखने में भी महारत हासिल है। उनकी एक गजल
की कुछ पंक्तियां इस प्रकार हैं
अदावतें ही सही पास सामान तो रख
बेवफा ही सही कोई पहचान तो रख।
नफरत ना हो जाए तुझे खुद से कभी
मोहब्बत से थोड़ी जान पहचान तो
रख।
इतना सूनापन अच्छा नहीं होता
प्रिय
दिल में आता जाता मेहमान तो रख।
इस संग्रह की कविताएं गीत, गजल आदि प्रकृति, प्रेम, त्याग, सेवा, आक्रोश के साथ-साथ व्यवस्था से
दमित लोगों के भीतर उमडते दर्द को मुखरित करती है। और यही संवेदना पाठक के अंतर्मन
पर दस्तक देती है।
ममता जाट की रचनाएं सहज और सरल
शब्दों में कही गई है जो सामान्य पाठक के भी आसानी से समझ आ आती है। रचनाओ में
कहीं पर भी क्लिष्ट शब्दों या कठिनाई का एहसास नहीं होता। यद्यपि कुछ रचनाएं
तुकबंदी के रूप में लिखी गई है जिनमें सुधार और निखार आना शेष है। कुछ कविताओं मे
गंभीर भाव की कमी भी महसूस होती है।
दरअसल यह बेजोड़ संग्रह 'अंतर्मन के मोती' एक स्त्री के मन की भावनाओं को
समेटे हुए हैं।
पुस्तक अच्छी है,पढ़ी जानी चाहिए।
पुस्तक के लिए ममता जाट 'मंजुला' को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ
2 टिप्पणियां:
शुक्रिया
आभार जनसरोकार मंच टोंक
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