रविवार, 17 मार्च 2024

पुस्तक: "मन चरखे पर"- नीलम पारीक- समीक्षक— मेवाराम जी गुर्जर


 पुस्तक: मन चरखे पर

नीलम पारीक

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 नीलम पारीक की कविताएं यु तो स्त्री विमर्श के इर्द-गिर्द बुनी गई है किंतु फिर भी विषय की विविधता है। विषय की विविधता इसलिए कि उनकी कविताओं में स्त्री प्रेम है, स्त्री पीड़ा है, प्रकृति,गांव, खेत खलियान और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई घटनाओं को कविताओं में भी पिरोया है। दरअसल हम जो देखते हैं, सुनते हैं या जो हमारे आसपास घटित होता है वह लेखन में जरूर उतरता है। नीलम पारीक ने भी अपने आसपास जिन घटनाओं को घटते देखा है उनको बड़े खूबसूरत तरीके से कविताओं के साँचे मे डाला है। देखने और पढ़ने में जितनी सहज और सरल है उतनी ही भाव में गंभीरता लिए है। पाठक हो बांधे रखती हैं। लेखन  तब सार्थक होता है जब समाज में उससे परिवर्तन आता है। समाज की तमाम समस्याओं चुनौतियों और पीड़ाओं को लेखन प्रभावित भी करता है और परिवर्तित भी।

नीलम पारीक अपनी कविताओं में उन विषयों को बड़े सहजता से छू लेती है जिन्हें अक्सर हम सामान्य कहते हैं या अनावश्यक समझकर छोड़ देते हैं। इनकी कविताओं में और बेहतर की गहरी संभावनाएं छुपी है।

सबसे अच्छी बात यह है कि नीलम पारीक की कविताओं में भारी भरकम शब्द या बहुत अधिक जटिल शब्दों का लेस मात्रा भी प्रयोग नहीं हुआ। यह जितनी सरल भाषा में है उतनी ही सरलता से पाठक के अंदर ढलती जाती है। पाठक जब कविताएं पढ़ता है तो बड़ी सहजता से ही इन कई कविताओं के हवाले होता जाता है। यह लेखन की बड़ी ताकत है

कुछ कवितांश.......

 

"अब तो तन गए हैं

खिड़की दरवाजों पर भारी पर्दे

घेर लेती है नींद

थके टूटे तन-मन को

यह उन दिनों की बात है।

 

"लेकिन वो खत

जो लिखने थे तुम्हें

और वो खत जो लिखने थे मुझे

आज भी रखे हैं

सहेज कर दिल में

अक्षर अक्षर।

 

"बरसों से बैरंग

मटमैले कागज पर

तुम्हारे प्रेम की रौशनाई ने

बिखेर दिए हजारों रंग

बन गए जाने कितने इंद्रधनुष।

 

"स्त्री नहीं भूलती कुछ भी

रोटी बेलते बेलते भी

संभाल लेती है वॉशिंग मशीन।

 नीलम पारीक की कविताओं में एक अजीब सी टीस है जो केवल पाठक को ही नहीं बल्कि समाज को भी सोचने के लिए मजबूर करती है। बड़ी सहजता से इन्होंने समाज की विद्रूपताओं को मुखर किया है।

एक अच्छी पुस्तक के लिए नीलम पारीक को ढेर सारी शुभकामनाएं।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...