बुधवार, 23 अप्रैल 2025

कविता— माया - सुश्री कमलेश कुमारी*

        
          जीवन-यात्रा मेँ एक पड़ाव पर,

किसी दिन कुछ स्वरों ने कंपाई श्रवणेंद्रियाँ;

कुछ दृश्यों और सूचनाओं ने कर दिया विचलित,

उस मन को भी, जो करता रहा भ्रम कि

“मैं सुखी हूँ ब्रह्माण्ड मेँ, इस कालांश पर!”

जैसे गिर पड़ा औंधे मुँह पृथ्वी की छाती पर वह सुंदर आकाश,

जिसमें टकी थी चाँद-सितारों के आकर्षण की माया...

     आत्ममंथन के चरमोत्कर्ष पर पड़ते ही अंतर्दृष्टि टूट गया

हृदय भीतर काँच का बर्तन, जिसमें भरा था मिठास का जल

किरचें चुभती हैं आत्मा से लेकर आँखों तक;

और मीठा जल हो गया उदास खारा समन्दर,

जिसके तट पर दृश्य है जीवन की साँझ का।

    तटस्थ खड़े रहकर जितना देखा दुनिया को,

बस पाया ... मेला और बाज़ार व्यावहार का, लेन-देन का!

कहीं रुका मन उस मेले मेँ,

जहाँ रंगरेज़ चढ़ाते थे रंग दुपट्टों पर...

तभी समय की बरखा आई और धो गई सब कच्चे रंग

निर्मल पारदर्शी मन का अपना ही रंग रहा शेष!

     जीवात्मा ढूँढती थी भरोसे का व्यापार,

जिससे कमा सके संसार मेँ सच्चा सुख...

किन्तु विश्वास और निर्वाह की अपेक्षा मे उसे दी गईं

पल प्रति पल मूल्य परिवर्तन करने वाली ‘अस्थिर गोटियाँ’ !

    हो गया उचाट  ...

सुगंध और स्पर्श से, फूलों से देह से

रात्रि भी कटती है चेतना के दीये मेँ

‘तेरे-मेरे’ मन की माया, खुली आँखों से करती है प्रतीक्षा

कार्मिक योग हो पूरा और खुल जाएं क्षितिज के द्वार…

_______________________

*सुश्री कमलेश कुमारी वर्तमान में हरियाणा राज्य के शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं।  

  

 

 

   

 

  

    


 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

सनातन धर्म में जीवात्मा-सम्बन्धी अवधारणा - प्रोफेसर डॉ.रवीन्द्र कुमार

 

 

सनातन धर्म में जीवात्मा-सम्बन्धी अवधारणा

चार मूलाधारों –एक अविभाज्य समग्रता, सार्वभौमिक एकता, शाश्वत परिवर्तन नियम एवं सर्वोच्च मानवीय मूल्य के रूप में अहिंसा की प्रकटता के बाद सनातन धर्म में जो अति प्रमुखता से उभरता सिद्धान्त है, वह 'आत्मा' आत्मन्’ (जो विशेष रूप से उपनिषदों की सर्वप्रमुख विषय-वस्तु है; उपनिषदों में अन्तर्निहित वह मूलभूत सत् है, जो शाश्वत तत्त्व है और मृत्यु के उपरान्त भी जिसका विनाश नहीं होता), से जुड़ा हुआ है। वास्तव में, यह जीवात्मा के लिए हैं, जिसकी अविभाज्य समग्रता –परमात्मा अथवा ब्रह्म-परब्रह्म के बाद जगत-व्यवस्था में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थिति है। यही चेतना –जीवन का आधार है। वेदों से लेकर उपनिषदों, श्रीमद्भगवद्गीता तथा सनातन धर्म के लगभग अन्य सभी प्रमुख ग्रन्थों में अविभाज्य समग्रता की परिधि और व्यवस्था में जीवात्मा की सत्ता, स्थिति व लक्ष्य आदि के सम्बन्ध में उल्लेख प्रकट हुए हैं। परमात्मा के साथ ही आत्मा की वास्तविकता, कर्म-संलग्नता, विषेकर देहत्यागोपरान्त मानवात्मा की स्थिति के बारे में वर्णन आए हैं। इन सभी उल्लेखों-वर्णनों पर धर्मवेत्ताओं एवं दार्शनिकों की व्याख्याएँ और विचार भी हैं। हम जानते हैं कि  वेदों से सम्बद्ध उपनिषदों में "अयं आत्मा ब्रह्म –यह आत्मा ब्रह्म है" (अथर्ववेदीय माण्डूक्य उपनिषद्, श्लोक-2), "प्रज्ञानं ब्रह्म –यह प्रज्ञान (परम वास्तविकता –चेतना) ही ब्रह्म है", (ऋग्वेदीय ऐतरेय उपनिषद्, श्लोक 3: 1: 3),"अहं ब्रह्मास्मि –मैं ब्रह्म हूँ" (यजुर्वेदीय बृहदारण्यक उपनिषद्, श्लोक 1: 4: 10) और "तत्त्वमसि –वही ब्रह्म तू है" (सामवेदीय छान्दोग्य उपनिषद्, श्लोक 6: 8: 7) जैसे उल्लेख हैं। श्रीमद्भगवद्गीता (2: 23) में "नैनं छिदन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः/ न चैनं क्लेयन्तयापो न शोषयति मारुतः// –इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकता, अग्नि इसे जला नहीं सकती; जल से इसे भिगोया नहीं जा सकता और वायु से इसे सुखाया नहीं जा सकता", जैसा श्लोक प्रमुखता से हमारे सामने आता है।

इन सभी उपनिषदीय एवं गीता के उल्लेखों –वेदान्तानुसार का सार यह है कि आत्मा अविभाज्य समग्रता –ब्रह्मरूप (सवर्त्र ब्रह्म=सर्व उत्पत्ति स्रोत+सर्व समावेशी, मुण्डक उपनिषद, 1: 1: 7) है; यह नित्य एवं शाश्वत है। मानव-काया के साथ, पूर्ण वास्तविकता की अनुभूति, सत्यता से साक्षात्कार व एकाकार हेतु सक्षम है। वह अविभाज्य समग्रता –ब्रह्म की परिधि में विद्यमान सार्वभौमिक एकता की एकमात्र सत्यता से परिचित होकर, अपनी दिव्य प्रकृति को प्राप्त करने में समर्थ है। "विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह/ अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते// –जो विद्या-अविद्या, दोनों को ही साथ-साथ जानता है, वह अविद्या से मृत्यु को पार कर, विद्या द्वारा अमृतत्त्व को प्राप्त कर लेता है।" (ईशावास्योपनिषद्, श्लोक-11)

ब्रह्म तथा आत्मा उपनिषदों के सर्वप्रमुख विषय हैं। उपनिषद्, वेदों के अन्तिम भाग हैं, इसीलिए उपनिषदीय दर्शन वेदान्त कहलाता है।  

वेदान्त दर्शन की कई शाखाएँ है। उनमें तीन, आदि शंकराचार्या-विचार केन्द्रित अद्वैत, रामानुजाचार्य द्वारा प्रतिपादित विशिष्ट अद्वैत तथा मध्वाचार्य द्वारा प्रस्तुत द्वैत प्रमुख हैं।

अद्वैत, ब्रह्म की एकमात्र सत्यता को स्वीकार करता है। जगत को मिथ्या मानता है। जीव की ब्रह्म से भिन्नता को स्वीकार नहीं करता है; इसे ही वेदान्त की सत्यमयी घोषणा कहता है। "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः/ अनेन वेद्यं सच्छास्त्रमिति वेदान्तडिण्डिमः// –ब्रह्म ही सत्य वास्तविक है; ब्रह्माण्ड मिथ्या है। जीव ही ब्रह्म है और वह उससे भिन्न नहीं है। इसे ही शास्त्र-सम्मत समझना जाना चाहिए। यही वेदान्त द्वारा घोषित किया गया है।

रामानुजाचार्य विशिष्ट अद्वैत विचार ब्रह्म तथा जगत दोनों को सत्य स्वीकारता है; परन्तु जगत को ब्रह्म से पृथक नहीं मानता। ब्रह्म को सर्वव्यापक सर्वोच्च सत्य –वास्तविकता तथा जीव की उस पर निर्भरता को स्वीकार करता है। दूसरे शब्दों में, विशिष्ट अद्वैत दृष्टिकोण के अनुसार, आत्मन अथवा आत्मा भी शाश्वत है और परमात्मा से भिन्न है, लेकिन वह, तब भी, अस्तित्व एवं कल्याण हेतु ब्रह्म पर निर्भर है।

मध्वाचार्य ने शंकराचार्य और रामानुजाचार्य, दोनों से पृथक, अपना द्वैत विचार प्रस्तुत किया। परमात्मा और आत्मा की (अलग स्वतंत्र अस्तित्व के साथ) पृथकता, परमात्मा व पदार्थ की पृथकता, जीवात्मा एवं पदार्थ की पृथकता, एक-से-दूसरी आत्मा की पृथकता –अनेक आत्माओं के अलग-अलग अस्तित्व तथा एक-से-दूसरी भौतिक वस्तु की पृथकता की बात की। साथ ही, ईश्वर की पूर्ण स्वतंत्र स्थिति व जीव-जगतकी उन पर  आश्रितता एवं परमात्मा के नियंत्रण जैसे विचार भी प्रस्तुत किए।

वैदिक-उपनिषदीय ज्ञान को व्यवस्थित व संश्लेषितकर्ता ब्रह्मसूत्र (वेदान्त सूत्र, जो बादरायण रचित है तथा मानव का अपने मूल स्वरूप को जानने का आह्वान करता है; इस हेतु उसका मार्गदर्शन भी करता है) तीनों ही विचारों –अद्वैत, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत का आधार है। ब्रह्मसूत्र, ब्रह्म को, जैसा कि मैं स्वयं अनुभूत कर पाया हूँ –समझ पाया हूँ, जगत में विद्यमान समस्त चल-अचल व दृश्य-अदृश्य का एकमात्र मूल स्वीकारता है। ब्रह्म ही अविभाज्य समग्रता है। सार्वभौमिक एकता-निर्माता है। आदि शंकर, रामानुजाचार्य तथा मध्वाचार्य, तीनों ने ही ब्रह्मसूत्र की व्याख्या की है। अपने-अपने भाष्यों के माध्यम से अद्वैत, विशष्टाद्वैत और द्वैत-सम्बन्धी अपने-अपने निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। तत्त्वमीमांसात्मक मतभेदों के बाद भी, तीनों विचार ब्रह्म सत्ता –अविभाज्य समग्रता की सर्वोच्चता को मानते हैं। ब्रह्म के उपरान्त, जीवात्मा की महत्ता को सर्वाधिक स्वीकारते हैं। जीव-कर्म को, फल का आधार बनाते हैं। मानव-जीवन की कर्मों द्वारा सार्थकता का प्रतिपादन करते हैं।

सनातन धर्म –वैदिक दर्शन आस्तिकता को समर्पित है। इस दर्शन की समस्त शाखाएँ प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में, अविभाज्य समग्रता और सार्वभौमिक एकता की सत्यता में विश्वास करती हैं। आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करती हैं। फिर भी, ब्रह्म और आत्मा के सम्बन्ध में वेदान्त-विचार विश्लेषण अतिश्रेष्ठ और सटीक है। आत्मा स्वयं अनुभूति का विषय है। चेतना, आत्मा का परिचय अथवा साक्षत्कार है। नित्य-अनित्य –सत्य-असत्य, अथवा सद्-असद् का बोध निश्चित रूप से आत्मा या आत्मन के माध्यम से होता है, स्वयं मेरी भी यह स्वीकारोक्ति है। वेदान्त विचार भी इस वास्तविकता को उजागर करता है। आत्मा को सत्ता के रूप में स्वीकार करते हुए, इसे सत्य रूप, शुद्ध प्रकाश –स्वयं प्रकाशमान, सत्यमय 'स्व' मानता है। इसलिए, मेरे विचार से आत्मा-सम्बन्धी वेदान्त दृष्टिकोण से साक्षात्कार करने के उपरान्त किसी अन्य विचार-शाखा के सम्बन्धित परिप्रेक्ष्य के विस्तार में जाने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है, तथा वेदान्त दृष्टिकोण, निस्सन्देह, सनातन धर्म विचार अथवा दर्शन का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधित्व करता है।

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I

 

 

गुरुवार, 17 अप्रैल 2025

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी सरदार वल्लभभाई पटेल- प्रोफेसर डॉ.रवीन्द्र कुमार


 

बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी सरदार वल्लभभाई पटेल

          

वल्लभभाई पटेल बाल्यकाल से ही विलक्षण प्रतिभावान थे। वे पूर्णतः निर्भीक थे। आलस्यहीन थे। मार्ग में आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा से तनिक भी घबराए बिना, उसे दूर करना उनके स्वभाव में था। उनमें नेतृत्व करने का गुण था। वे बचपन से ही आन्दोलकारी-संगठनकर्ता, कठिन परिश्रमी-लगनशील और न्यायप्रिय भी थे। अपनी युवा अवस्था में वे उत्तरदायित्व-निर्वहन, सेवा व समर्पण जैसी विशिष्टताओं के पोषक एवं एक बेजोड़ उदाहरण के रूप में प्रकट हुए। सार्वजनिक जीवन में पदार्पण के बाद उनमें ढ़ाई दर्जन से भी अधिक ऐसी विशिष्टताओं का संगम था, जो किसी एक मनुष्य में विरले ही मिल सकती हैं। स्वाधीनता के लिए अग्रिम पंक्ति में रहकर संघर्षकर्ता, एक अद्वितीय किसान नेता (उस समय देश की पचहत्तर प्रतिशत से भी अधिक ग्रामीण जनसंख्या की बहुत ही सुदृढ़ आवाज), अतिकुशल प्रशासक और समाजसुधारक के रूप में अपनी विशिष्टताओं के साथ वल्लभभाई पटेल बारडोली से भारत के सरदार बने। अतिविशेष रूप से देश की अभूतपूर्व भौगोलिक-राजनीतिक एकता जैसे भगीरथ कार्य को पूर्ण कर सरदार पटेल एक महानतम भारतीय के रूप में स्थापित हुए। विशेषकर, एक बेजोड़ राष्ट्रनिर्माता के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के इतिहास के गौरवशाली पृष्ठों से कभी भी पृथक नहीं हो सकते। इस सम्बन्ध में डॉ0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन के उस वक्तव्य से मैं पूर्णतः सहमत हूँ, जिसमें उन्होंने ने कहा है, "जब तक भारत जीवित है, उनका (सरदार पटेल का) नाम वर्तमान भारत के ऐसे राष्ट्रनिर्माता के रूप में सदा स्मरण किया जाता रहेगा, जिन्होंने सभी...भारतीय देशी राज्यों का एकमात्र संघ बनायाI उनका यह कार्य हमारे देश के एकीकरण की दिशा में अत्यधिक स्थाई कार्य थाI इस विषय में उनके कार्य को हम कभी नहीं भूल सकते...और जैसा कि मैंने कहा है, जब तक भारत जीवित है, वर्तमान भारत के निर्माता के रूप में उनका नाम सदा स्मरण किया जाता रहेगाI” सरदार साहेब भारत के इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों का अभिन्न भाग बनने के साथ ही विश्व इतिहास में भी अपना स्थान बना सके। विशुद्धतः राष्ट्र और मानवता को समर्पित सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन, उनके कार्य और दीर्घकाल तक प्रासंगिक रहने वाले वृहद् कल्याणकारी विचार, वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों के लिए छोड़ी गई उनकी विरासत है। सबसे पहले सरदार साहेब के जीवन की श्रेष्ठ गुणों के समान विशिष्टताओं से वर्तमान पीढ़ी का परिचय कराना उनकी 150वीं जन्मजयन्ती पर उनके स्मरण, उन्हें श्रद्धांजलि देने और उनके बेजोड़ पुरुषार्थ को नमन करने का श्रेष्ठ मार्ग अथवा माध्यम है।  

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैंI

शनिवार, 1 मार्च 2025

सहायक निदेशक डॉ गीताराम शर्मा की भावभीनी विदाई


 सहायक निदेशक डॉ गीताराम शर्मा की भावभीनी विदाई-


कोटा/ कॉलेज शिक्षा के कोटा संभाग के सहायक निदेशक डॉ गीताराम शर्मा की सेवानिवृत्ति पर राजकीय महाविद्यालय कोटा एवं एबीआरएसएम तथा नवनियुक्त सहायक निदेशक डॉ विजय पंचोली ने भावभीनी विदाई दी। इस गरिमामय कार्यक्रम में राजकीय महाविद्यालय कोटा के प्राचार्य प्रोफेसर प्रतिमा श्रीवास्तव, राजकीय कला महाविद्यालय कोटा के प्राचार्य प्रो. रोशन भारती, जे डी बी राजकीय महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ अजेय विक्रम सिंह, पूर्व सहायक निदेशक डॉ एम एल साहू, डॉ हरिशंकर शर्मा, एबीआरएसएम के विभाग सेवा निवृत प्रकोष्ठ के प्रदेश संयोजक डॉ एम एल साहू, सेवा निवृत वरिष्ठ कार्यकर्ता डॉ राजेश शर्मा, डॉ सुदेश आहूजा, पूर्व प्राचार्य डॉ के बी भारतीय, डॉ बी डी शर्मा, विभाग संयोजक डॉ नवीन मित्तल, विभाग महिला प्रतिनिधि डॉ मंजू गुप्ता,जिला उपाध्यक्ष डॉ राम प्रकाश सोमानी, संगठन की विभिन्न इकाइयों के सचिव डॉ आदित्य गुप्ता, डॉ रामावतार मेघवाल, विकास जांगिड़ डॉ महावीर साहू, डॉ चन्द्रजीत सिंह डॉ महेन्द्र मीना विद्यार्थी परिषद के प्रान्त अध्यक्ष डॉ घनश्याम शर्मा,कोटा विश्व विद्यालय इकाई डॉ सुशील शर्मा,सहित विभिन्न महाविद्यालयों के बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के शिक्षकों तथा कर्मचारियों ने भाग लिया। इस अवसर पनेहमी सम्भागियों ने सेवानिवृत्त डॉ गीताराम शर्मा के वैदुष्य, शैक्षिक अवदान, निर्णय क्षमता, सतत सक्रियता एवं शिक्षकीय गुण गरिमा  एवं विद्यार्थियों में शिक्षक के रुप में उदात्त छवि की खूब प्रशंसा की।डॉ मोहन लाल साहू ने कहा कि डॉ शर्मा का व्यक्तित्व अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों की परवाह किये बिना   सतत आगे बढ़ने का रहा है। डॉ हरिशंकर ने कहा कि सभी के साथ समन्वय कर सकारात्मक परिवेश सृजन में डॉ शर्मा की छवि बेजोड़ है। प्रो के बी भारतीय और प्रो विवेक मिश्र ने झालावाड़ कॉलेज के अनुभव साक्षा करते हुए उन्हें दृढ़ निश्चयी ,उत्साही, सतत कर्मशील तथा आत्मविश्वास से आपूरित शिक्षक बताया। सभी प्राचार्यों ने डॉ शर्मा की सादगी, सकारात्मकता,वक्तृत्व क्षमता और प्रशासनिक दक्षता की प्रशंसा की। इस अवसर पर सेवानिवृत्त हो रहे डॉ गीताराम शर्मा ने कहा कि शिक्षक समज का शास्ता  होता है। भारतीय समाज आज भी शिक्षक के चरित्र और कर्तव्य निष्ठा पर भरोसा करता है। हम सभी को अपने हिस्से का कर्तव्य निभाकर समाज के इस विश्वास की सुरक्षा करनी होगी।अतीत में भारत की विश्ववरेण्य छवि शिक्षकों के कारण थी। शिक्षक का चरित्र ऐसा हो कि विद्यार्थी उसमें  अन्त:समाविष्ट गुरु की दिव्य छवि का दर्शन कर सके और उसी गुरुता का उपयोग सभ्य समाज और भव्य राष्ट्र के निर्माण में कर सके। सद शिक्षकों के  स्वत: प्रकाशित व्यक्तित्व से अंधेरों के व्यूह टूटने लगते हैं और व्यक्तित्व अपनी आत्म ज्योति से दमकने लगता है। अंधेरे चाहे अपने  व्यक्तित्व की कमजोरी के हों या बाहरी परिवेश के ,उनका ध्वंश ज्ञान और चरित्र के प्रकाश के बिना संभव नहीं है।शिक्षक  के व्यापक दायित्व की कसोटी यह है कि वह शिष्यों के व्यक्तित्व में ऐसा गुरुत्वाकर्षण पैदा करें कि सम्पूर्ण  समाज उसकी ओर आकर्षित हो सके|हमारी महान शिक्षक  परम्परा में ऐसा गुरुत्वाकर्षण पैदा करने के हजारों  अमर उदाहरण हैं जिन्होंने समाज को अपना परिवार मानकर शिक्षा, संस्कृति की अलख जगायी तथा समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों और दुर्गुणों के अंधेरे को प्रकाश में बदलने के लिए अपना जीवन लगा दिया। अपनी इसी तेजस्विता के कारण समाज में  आज वे जन जन के पूज्य हैं| बदलती परिस्थितियों में शिक्षकमात्र को मूल्यपरक शिक्षा के साथ साथ  विद्यार्थियों को प्रकृति, पर्यावरण, सामाजिक सद्भाव की ओर प्रेरित करना भी ध्येय रहना चाहिए।  नवनियुक्त सहायक निदेशक डॉ विजय पंचोली ने सभी का धन्यवाद व्यक्त करते हुए आश्वस्त किया कि डॉ गीताराम शर्मा के श्रेष्ठ गुणों का उपयोग मैं भी गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक और अकादमिक परिवेश निर्माण में करुंगा। 

     

सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा में आज प्रो. डॉ. गीता राम शर्मा सहायक निदेशक, कॉलेज शिक्षा की 28 फरवरी 2025 को होने वाली सेवानिवृत्ति के उपलक्ष में विदाई समारोह का आयोजन किया गया।

 


राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा में आज प्रो. डॉ. गीता राम शर्मा सहायक निदेशक, कॉलेज शिक्षा की 28 फरवरी 2025 को होने वाली

 सेवानिवृत्ति के उपलक्ष में विदाई समारोह का आयोजन किया गया।

जिसकी अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. सीमा चौहान ने की। प्राचार्य एब समस्त संकाय सदस्यों ने प्रो. डॉ.गीता राम शर्मा जी का माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया। इस अवसर पर समाजशास्त्र विभाग अध्यक्ष डॉ. अनीता तंबोली ने कहां कि आप सरल और सौम्य व्यक्तित्व के धनी हैं । सहर्ष हमारा आतिथ्य स्वीकार कर लेते हैं डॉ. श्रद्धा सोरल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आप भले ही प्रशासनिक पद को संभाल रहे हैं लेकिन आपके व्यक्तित्व का एकेडमिक पक्ष इतना प्रबल है। वह हमेशा आपके कार्यों में परिलक्षित होता है। मोहम्मद रिजवान ने सहज सरल सफल है तू परमात्मा का फल है तू कविता के माध्यम से अपने उद्गार व्यक्त किया । डॉ. मीरा गुप्ता ने कहा कि सहायक निदेशक के रूप में आप हाडोती संभाग के सभी महाविद्यालय में आयोजित होने वाली गतिविधियों की सकारात्मक जानकारी आयुक्तालय तक पहुंचाते हैं। डॉ. पुनीता श्रीवास्तव ने मधुबन खुशबू देता है। इसी श्रृंखला में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (उच्च शिक्षा) राजकीय कला कन्या महाविद्यालय ईकाई सचिव डॉ. संतोष कुमार मीना ने ईकाई की ओर से स्वागत करते हुए कहा कि आप सैदेव इसी तरह स्वस्थ रहें व्यस्त रहे और मस्त रहे यहीं ईश्वर से प्रार्थना है, जों काम दवा ना कर सके, वो काम दुआ कर जाती हैं, और अगर सच्चा गुरुवर, मिल जाए तो फिर बात ख़ुदा से होतीं हैं। कहतें हुए भगवान राम के समाज में आदर्श से परिपूर्णित भजन ‘ऐसे हैं मेरे राम’  सुनाया। डॉ. मनीषा शर्मा ने कहा कि आपका व्यक्तित्व अद्भुत प्रतिभा संपन्न ऊर्जावान व्यक्तित्व है जिसमें भारतीय ज्ञान का अकूत ज्ञान भंडार है। डॉ. टी.एन. दुबे ने कहा कि आपकी सदाशयता और सकारात्मकता अतुलनीय है । डॉ. धरम सिंह मीना ने उत्तम स्वास्थ्य और जीवन के नए अध्याय की शुरुआत की बधाई एवं शुभकामनाएँ दी । श्रीमती प्रेरणा शर्मा ने आज जाने की जिद ना करो गीत प्रस्तुत किया । डॉ. राजेंद्र माहेश्वरी ने जाते हुए यह पल छिन गीत प्रस्तुत किया प्राचार्य डॉ. सीमा चौहान ने डॉ. शर्मा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि एक प्राचार्य के रूप में मुझे आपसे निरंतर संपर्क का अवसर मिला आपकी सकारात्मक सराहनीय है ।महाविद्यालय में संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर प्रारंभ करवाने में आपका योगदान महत्वपूर्ण रहा । डॉ. राजमल मालव ने भी संस्कृत में  स्नातकोत्तर विषय प्रारंभ करवाने में डॉ गीता राम शर्मा जी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर स्वयं गीता राम शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आपकी आत्मीयता के कारण मुझे आपने यह सम्मान दिया है मैं सदैव नैतिकता का पक्षधर रहा हूँ। एक शिक्षक होने के नाते सभी शिक्षकों को संवेदनशीलता रखकर कर्तव्य पूर्ण करने चाहिए शिक्षक की गरिमा बनी रहनी चाहिए हमें सदैव सकारात्मक सार्थक और सक्रिय रहना है।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

विवेक कुमार मिश्र की चाय केंद्रित कविताओं पर परिचर्चा तथा चाय घर से पुस्तक का विमोचन


 विवेक कुमार मिश्र की चाय केंद्रित कविताओं पर परिचर्चा तथा 

चाय घर से पुस्तक का विमोचन 


कोटा। 20-02-2025 । राजकीय कला महाविद्यालय कोटा में प्रोफेसर विवेक कुमार मिश्र की चाय पर केंद्रित पुस्तकें  'चाय, जीवन और बातें' , फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय, और चाय घर से पर  एक बौद्धिक विमर्श के क्रम में चाय की सामाजिकता और हमारे जीवन संसार में किस तरह चाय रची बसी है को उद्घाटित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर गीताराम शर्मा रहे। अध्यक्षता प्राचार्य प्रोफेसर रोशन भारती ने की । सरस्वती वंदना का सस्वर पाठ डॉ महावीर साहू ने की तथा रचना प्रक्रिया एवं स्वागत भाषण कवि विवेक मिश्र ने दिया। मुख्य अतिथि प्रोफेसर गीताराम शर्मा ने कहा कि विवेक मिश्र जीवन का वैविध्य रचने वाले कवि हैं उनके यहां विषयों की भरमार है। वे कब किस विषय को आधार बनाकर लिख देंगे इसे पहले से नहीं कहा जा सकता है। वे हमेशा चौंकाते रहते हैं अपना रचना धर्म से । उनकी कविताएं जीवन का उत्सव रचते हुए ही आगे बढ़ती हैं । अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य प्रोफेसर रोशन भारती ने कहा कि विवेक मिश्र का सृजन संसार बहुत बड़ा है । उनका सृजनशील होना सभी को प्रेरित करता है कि एक साथ कितना कुछ किया जा सकता है। वे जहां हैं उससे भी बड़ा मुकाम वे हासिल करें इसकी कामना हम सब करते हैं । 

इस अवसर पर  मुख्य वक्ता डॉ मनोरंजन सिंह ने कहा कि विवेक मिश्र ने चाय जैसे विषय पर लिख कर अपनी तिक्ष्ण कल्पना शक्ति के साथ एक सृजनधर्मी कवि होने का परिचय दिया । उनकी कविताएं सामाजिक जीवन का पाठ बनती हैं। सामाजिकता एवं मानवीयता के धरातल को एक साथ स्पर्श करने वाली कविताएं बराबर से यह मांग करती हैं कि उन्हें रुक रुक कर समय देकर पढ़ा जाए और गहराई में जाकर उन्हें समझने की जरूरत है । विवेक मिश्र बेफिक्री के साथ फुर्सत के पलों को नये सामाजिक संबंधों के साथ रचते हैं। चाय पर केंद्रित ये कविताएं चाय के साथ मानव समाज की सामाजिकी को और उसके समाज शास्त्रीय चिंतन को परिभाषित करती हैं। सौंदर्य विशेषज्ञ डॉ रमेश चंद मीणा ने कहा कि विवेक मिश्र के यहां चाय की उपस्थिति चित्र , विचार और दर्शन के रूप में एक साथ सहज रूप से उपस्थित हैं। उनको पढ़ना अपने भावों का विस्तार करना है । वे विचार में डूबे कवि हैं उनकी कविता कला सौंदर्य की एक अलग ही दुनिया रचती है।वे मूलतः चित्रों की कला-भाषा के  कवि हैं। भाषा क्लब की समन्वयक प्रोफेसर दीपा चतुर्वेदी ने कहा कि विवेक मिश्र के यहां अंग्रेजी के बड़े कवि वर्ड्सवर्थ एवं टी एस इलियट की विशेषताएं एक साथ हैं। भाषा से खेलते हुए जो संसार विवेक का कवि मन रचता है वह निरंतर हमें सोचने के लिए बाध्य कर देता है । इस अवसर पर डॉ विवेक शंकर ने कहा कि वे जितने बड़े कवि हैं उससे बड़ा इंसान उनके भीतर छिपा बैठा है। डॉ हिमा गुप्ता ने उनके विविध साहित्य रूपों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रोफेसर रामावतार सागर ने कहा कि विवेक मिश्र अनूठे विम्बों के कवि हैं। उनके पास से रचनात्मकता का एक सोता हमेशा ही चलता रहता है जो हम सबको विचार विमर्श के लिए उकसाता रहता है । 

कार्यक्रम में प्रोफेसर आर.के.गर्ग , प्रो गोविंद कृष्ण शर्मा, प्रो संजय लकी , प्रो आदित्य कुमार गुप्त, प्रो एल सी अग्रवाल, प्रो मंजू गुप्ता, प्रो.वंदना शर्मा , प्रो नुसरत फातिमा, प्रो प्रभा शर्मा, प्रो संतोष मीना , प्रो सुनीता गुप्ता, प्रो रमा शर्मा , डॉ सुमन गुप्ता डॉ अनिल पारीक, डॉ अंजली शर्मा डॉ अनीता टांक, प्रो राजेश बैरवा, प्रो  नीलम गोयनका, डॉ चंचल गर्ग , डॉ विधि शर्मा, डॉ रसिला, डॉ बसंत लाल बामनिया, डॉ आर के मीना , डॉ गोविंद मीना डॉ अमिताभ बासु, डॉ सुमन, डॉ तलविंदर कौर, डॉ मनोज सिंघल, एकाउंट आफिसर हारुन खान, आदि की गरिमामय उपस्थिति बनी रही । 

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

प्रतिनिधि कवयित्री कमलेश कुमारी की दो कविताएँ*

 

प्रतिनिधि कवयित्री कमलेश कुमारी की दो कविताएँ*


1

मन-चम्पा

 

हो जाता घटित समय के किसी चक्र मेँ ऐसा भी,

जब अपना ही नगर लगता एक अपरिचित-सी

भीड़ भरी जगह...

 

रास्ते, मोड, गलियाँ, चौराहे, तिराहे

सब केवल लगते हैं बस देखे भर-से; पहचाने हुए नहीं;

लोग हो जाते परिवर्तित भीड़ मे और परिचित जन लगते

किसी मेले मेँ मुखौटों-से!

 

उचाट हो जाती दृष्टि और टिकती केवल,

चौराहे पर बिकते, मिट्टी के बर्तनों व फूलों पर...

पीढ़ियों पुराने किसी पेड़ की जड़ मेँ आश्रय लेती

उस देवमूरत पर; जो प्रतीत होती ये कहती हुई 

“कि मनुष्य तो बदल देते हैं अपने देव भी!”

 

कभी सरल-सुगम रहीं गलियाँ ‘लगती इतनी संकुल

कि कठिनतम लगता कहीं भी पहुँचना

घबराया हुआ हृदय, होता स्पंदित ग्रीवा मेँ...

 

अनायास ही लगने वाले धक्के और ठोकरों से बचकर,

स्वयं को बचाता है मन एकांत की गलियों मेँ..

ऊबकर भाग जाना चाहता है उस लाल चम्पा के झाड़ के समीप

जिसके रक्तपुष्प जोड़ते हैं जिजीविषा को,

‘तुम्हारे’ हृदय की धमनियों से... 

 

 

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दुख का शिल्प

 

दुख ढालता है ऐसे आदि शिल्प मेँ,

जीवंतता-मूरत को, मरी हुई धार की जंग लगी छेनी से

कि दुख को आत्मसात कर ढल जाती वह!

 

“स्मृति कि उस नन्ही बालिका को,

‘मृत्यु’ शब्द लगता था ऐसा-

जैसे आकाश का धरती पर गिर जाना औंधे मुँह;

और कर देना नष्ट प्रकृति के सब जीवित चिह्न ..

किसी अन्य की मृत्यु से हो विचलित,  

छोटे हाथों से माँगती, ईश्वर से वरदान

अपने माँ-बाबा के अमरत्व का।“

 

किन्तु, विधि कर देती है कोमल उंगलियों को कठोर

सहने को समय की पकड़ और थमा देती है उन हाथों मेँ

शाश्वत नियम की अबूझ लिपि।

 

पढ़ता और सीखता चलता है मानव

कि नदियाँ बढ़ जाती हैं आगे छोड़ पिछले घाट

वायु, एक स्थान की नमी से भिगोती है,

कोई दूसरा ही छोर धरती का...

 

पुष्प-पल्लव देते हैं स्वयं ही स्थान नव कोंपल को

इस भाँति सुगंध और उजास लिए रहती उनकी मृत्यु

यदि मनुष्य भी लिए रहते तटस्थता इसी भाव मेँ,

तब स्वतः ही हो जाते प्राप्त बुद्धत्व को!

 

इससे इतर—

जीवित ही मर-मर के जीने को ‘मजबूर’

हो जाता अभ्यासी, इस प्रकार मृत्यु का कि-

यह लगती है उसे घटना, परिवर्तन की, आत्मिक क्रांति की...

करता है वह सपनों मे इसका आलिंगन मुस्कराते हुए;

मोक्ष की पोटली को बाँध कर आत्मा के आँचल मेँ।   

 

*प्रतिनिधि कवयित्री सुश्री कमलेश कुमारी वर्तमान में शिक्षा विभाग, हरियाणा में कार्यरत हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

   

 

रविवार, 12 जनवरी 2025

सरदार वल्लभभाई पटेल के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाली दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ-प्रोफेसर डॉ0 रवीन्द्र कुमार

 

सरदार वल्लभभाई पटेल के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाली दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

वर्ष 1915 ईसवीं में गुजरात सभा में सम्मिलित होने के साथ ही, वास्तव में, वल्लभभाई का सार्वजनिक जीवन में पदार्पण हो गया था। देश की स्वाधीनता का विचार भी उनके मस्तिष्क में उभर चुका था। इसके बाद, वर्ष 1915 व 1916 ईसवीं में उनके जीवन से जुड़ी दो घटनाएँ अतिमहत्त्वपूर्ण रहीं। उन घटनाओं की हम चर्चा करें, उससे पूर्व वर्ष 1913 और 1915 ईसवीं के घटनाक्रम का, जो सार्वजनिक जीवन में उनके पदार्पण का मार्ग प्रशस्तकर्ता रहा, संक्षेप में उल्लेख भी आवश्यक और सूचनाप्रद है।

विट्ठलभाई पटेल, बैरिस्टर बनने के बाद मुम्बई में बस गए थे। वहीं वकालत करने लगे थे। साथ ही, वे सार्वजनिक जीवन में भी आ गए थे। वल्लभभाई के इंग्लैण्ड से वापसी से पहले ही वर्ष 1912 ईसवीं में वे 'बॉम्बे लेजिस्लेटिव कॉउंसिल' के सदस्य निर्वाचित हो चुके थे। अब उन्हें वकालत के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिलता था। वल्लभभाई की विदेश से वापसी पर दोनों भाई एक साथ बैठे और उन्होंने यह तय किया कि बड़े भाई अब सार्वजनिक जीवन में रहेंगे, जबकि छोटे भाई वकालत कार्य से धनोपार्जन करेंगे; घर-खर्च उठाने के साथ ही, आवश्यकता पड़ने पर, विट्ठलभाई की आर्थिक सहायता भी करेंगे। वल्लभभाई, अहमदाबाद आ गए थे और वकालत कार्य से अच्छा धनोपार्जन करते थे। वे प्रायः यह कहा करते थे, "भारत को स्वतंत्र कराना है, तो किसी-न-किसी को तो सेवा कार्य में लगना ही चाहिए। हम दोनों भाइयों ने कार्य का बंटवारा कर लिया है। विट्ठलभाई देशसेवा करें, मैं पैसे कमाऊँ। वे पुण्य कमाएँ, मैं पाप कमाऊँ। परन्तु, वे जो कार्य करेंगे, उसमें मेरा भाग तो रहेगा ही।"  लेकिन, यह व्यवस्था कितने समय तक चल पाई? हम सभी जानते हैं।

वल्लभभाई अहमदाबाद आते ही गुजरात क्लब के सदस्य बन गए थे। गुजरात क्लब की स्थापना वर्ष 1888 ईसवीं में रायबहादुर नागरजी देसाई ने की थी और यह नगर के सम्भ्रांत व ब्रिज खेलने वाले लोगों की एक संस्था थी। वल्लभभाई वहाँ जाते थे, ब्रिज खेलते थे और हुक्का भी पीते थे। वर्ष 1915 ईसवीं के प्रारम्भ में गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटे और उन्होंने अहमदाबाद के कोचख में अपना आश्रम बनाया। वहाँ उनके पास वकील और सार्वजनिक कार्यों से जुड़े लोग आते थे, उनसे वार्ताएँ करते थे, और उनका वर्णन वल्लभभाई की उपस्थिति में ही गुजरात क्लब में किया करते थे। वल्लभभाई, गाँधीजी की 'ब्रह्मचर्य-पालन', 'शौचालय-सफाई', 'चक्की-पीसने' और 'गेहूँ-साफ करने' जैसी बातों को मजाक मानते थे। इन बातों से देश की मुक्ति हो सकती है, छत्रपति शिवाजी और लोकमान्य तिलक की प्रकृति के पोषक, वल्लभभाई ऐसा स्वीकार नहीं करते थे। वे उस समय के देश के अग्रणी नेताओं की कार्यप्रणाली से भी सहमत नहीं थे, यद्यपि किसी नए प्रकाश को प्राप्त करने की उनमें प्रबल चाह थी। गाँधीजी भी गुजरात क्लब आते थे, वहाँ  अपनी बात रखते थे, लेकिन वल्लभभाई उनकी बातों में कोई रुचि नहीं लेते थे। वे जी0 वी0 मावलंकर सहित अन्यों को भी गाँधीजी में रुचि न लेने को कहते थे। लेकिन, बाद में क्या हुआ? हम जानते हैं। यहाँ दो बातों, वर्ष 1915 ईसवीं में गाँधीजी से उनका गुजरात क्लब और गुजरात सभा में, जिसके गाँधीजी 15 नवम्बर, 1915 ईसवीं को उपाध्यक्ष निर्वाचित हो चुके थे, आमना-सामना होना, और वर्ष 1916 ईसवीं में 'गुजरात सभा' के प्रतिनिधि के रूप में लखनऊ काँग्रेस अधिवेशन में उनकी भागीदारी, का उल्लेख अतिमहत्त्वपूर्ण है। ये दो घटनाएँ, वास्तव में, उनके सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाली रहीं।     

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I        

 

गुरुवार, 9 जनवरी 2025

फातिमा बीबी शेख 19वीं सदी की सबसे महान शख्सियतों में से एक थीं, जिन्होंने माता सावित्री बाई फुले और महामना ज्योतिबा फुले के साथ लड़कियों के लिए शिक्षा के आंदोलन का नेतृत्व किया और लड़कियों के सशक्तिकरण और उन्हें समानता, न्याय, सम्मान और वास्तविक जीवन देने के लिए पहला स्कूल स्थापित किया।सही मायनों में फातिमा शेख समावेशी समाज और विचारों की सच्ची प्रतीक थीं: डॉ कमलेश मीना।


 

फातिमा बीबी शेख 19वीं सदी की सबसे महान शख्सियतों में से एक थीं, जिन्होंने माता सावित्री बाई फुले और महामना ज्योतिबा फुले के साथ लड़कियों के लिए शिक्षा के आंदोलन का नेतृत्व किया और लड़कियों के सशक्तिकरण और उन्हें समानता, न्याय, सम्मान और वास्तविक जीवन देने के लिए पहला स्कूल स्थापित किया।सही मायनों में फातिमा शेख समावेशी समाज और विचारों की सच्ची प्रतीक थीं: डॉ कमलेश मीना।

 

"यह कहा गया है कि लोगों की सबसे अच्छी किताब उनके शिक्षक हैं” आप सभी ने यह कथन अवश्य पढ़ा होगा। शिक्षक हमें न केवल किताबी ज्ञान देता है बल्कि जीवन में एकता और हर अस्तित्व से तादात्म्य स्थापित करने में भी मदद करता है। समाज में जब भी शिक्षकों की बात होती है तो सावित्रीबाई फुले का जिक्र होता है। समाज में शिक्षा के मार्ग पर प्रकाश डालते हुए वे स्वयं लोगों को शिक्षा देने लगीं और भारत की पहली महिला शिक्षिका भी बनीं। लेकिन इनके साथ ही एक और नाम भी शामिल है जिनका नाम है फातिमा शेख लेकिन दुर्भाग्य से हम उनके योगदान को नहीं जान सके। ऐसे हुई थी सावित्रीबाई फुले से मुलाकात: फातिमा शेख का जन्म 9 जनवरी 1831 को पुणे के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके भाई का नाम उस्मान शेख था, जो ज्योतिबा फुले के मित्र थे। फातिमा शेख और उनके भाई दोनों को निचली जाति के लोगों को शिक्षित करने के कारण समाज से बाहर निकाल दिया गया था। जिसके बाद दोनों भाई-बहन की मुलाकात सावित्रीबाई फुले से हुई। उनके साथ मिलकर फातिमा शेख ने दलित और मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। फातिमा शेख और उनकी विरासत हमें जनता के लिए सच्चे, ईमानदार समर्पण और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित विरासत का रास्ता दिखाती है: डॉ. कमलेश मीना।

 

भारतीय इतिहास में अक्सर खोई हुई शख्सियत फातिमा शेख 19वीं सदी के महाराष्ट्र में एक अग्रणी शिक्षिका, जाति-विरोधी कार्यकर्ता, लड़कियों की शिक्षा की समर्थक और समाज सुधारक थीं। उन्होंने सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर देश में पहला गर्ल्स स्कूल खोला। उनकी 194वीं जयंती पर, सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले के साथ हम एक अग्रणी मुस्लिम महिला शिक्षक और सहयोगी फातिमा शेख के जीवन और योगदान को याद करते हैं। फातिमा शेख, जो अक्सर भारतीय इतिहास में एक खोई हुई शख्सियत थीं, 19वीं सदी के महाराष्ट्र में एक अग्रणी शिक्षिका, जाति-विरोधी कार्यकर्ता, लड़कियों की शिक्षा की प्रस्तावक और समाज सुधारक थीं। भारी विरोध के बावजूद, उन्होंने सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर देश में पहला लड़कियों का स्कूल शुरू किया। कई लोगों ने किया विरोध: फातिमा शेख ने अहमदनगर के एक मिशनरी स्कूल में शिक्षकों का प्रशिक्षण भी लिया। इसके बाद वह और सावित्री बाई दोनों लोगों के बीच जाती थीं और महिलाओं और बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करती थीं। इस दौरान कई लोग उनका विरोध भी कर रहे थे, लेकिन मुश्किलों का सामना करते हुए भी दोनों ने मुहिम जारी रखी। 1856 में जब सावित्रीबाई बीमार पड़ गईं तो वह कुछ दिनों के लिए अपने पिता के घर चली गईं। उस वक्त फातिमा शेख ही सारा हिसाब-किताब देखती थीं। पुस्तकालय में अध्ययन के लिए आमंत्रित किया गया: ऐसे समय में जब हमारे पास संसाधनों की कमी थी, फातिमा शेख ने मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा के लिए आवाज उठाई। हालांकि, ये सब करना आसान नहीं था लेकिन फातिमा शेख ने ये कर दिखाया। फातिमा शेख घर-घर जाकर दलित और मुस्लिम महिलाओं को स्वदेशी पुस्तकालय में पढ़ने के लिए आमंत्रित करती थीं। इस दौरान उन्हें कई प्रभुत्वशाली वर्गों के भारी विरोध का भी सामना करना पड़ा। लेकिन अपनी बात पर अड़ी फातिमा शेख ने कभी हार नहीं मानी।

 

उनकी 194वीं जयंती पर, हम भारतीय शिक्षा में उनके रचनात्मक योगदान के साथ इस लघु लेख के माध्यम से अक्सर भूली हुई नारीवादी आइकन और उनकी कहानी को याद करते हैं। अकादमिक बिरादरी समाज का हिस्सा होने के नाते, यह हमारी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी है कि हम ऐसे व्यक्तित्व को लिखें, वर्णन करें और साझा करें जिन्होंने अपने ईमानदार अनुभवों, सच्चे प्रयासों और समर्पण के माध्यम से हमारे समाज में बहुत योगदान दिया। मैं लगातार बिना किसी भेदभाव के अपने प्रयास कर रहा हूं जो निश्चित रूप से शैक्षणिक विकास, महत्वपूर्ण शिक्षा सूचना विकास योगदान में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाएगी। फातिमा बीबी शेख भारतीय धर्मनिरपेक्ष, मिलीजुली संस्कृति, भाईचारे और प्रेम, स्नेहपूर्ण विरासत की प्रतीक थीं।

 

फुले दम्पति द्वारा खोले गए बालिका स्कूल में फातिमा शेख, सावित्री बाई फुले के साथ शिक्षक की भूमिका में थीं। उन्नीसवीं सदी परिवर्तन और सुधार की सदी थी। समाज का शिक्षित, जागरूक तबका अपनी-अपनी तरह से समाज को बदलने की कोशिश कर रहा था। उस समय शिक्षा के मिशन को स्त्रियों, दलितों और गरीबों से जोड़ा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई, सगुणाबाई, फातिमा शेख, उस्मान शेख जैसे व्यक्तित्वों ने। समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के साथ अगर किसी का जिक्र किया जाता है तो वह हैं फातिमा शेख। देश की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका फातिमा शेख ने फुले दंपत्ति के साथ काम किया और दलित मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। उन्होंने 1848 में लड़कियों के लिए देश में पहला स्कूल स्थापित किया। यह काम आसान नहीं था। आज उनकी जयंती पर फातिमा शेख के संघर्ष और मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के बारे में बात करना बहुत जरूरी और जरूरी है। यह लेख फातिमा शेख और उनकी विरासत को समर्पित है जिन्होंने हमें संपूर्ण मानव विकास और न्याय के लिए लोकतंत्र में शिक्षा का मार्ग दिखाया। लोकतंत्र में समान भागीदारी और सच्ची भागीदारी पाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं।

 

यह वास्तव में हमारे देश के लिए गर्व का क्षण था कि 9 जनवरी 2022 को, Google ने फातिमा शेख को उनकी 191वीं जयंती पर डूडल बनाकर सम्मानित किया। यह सम्मान फातिमा शेख के अपने त्याग और समर्पण से भारत में शैक्षिक सुधारों में योगदान का प्रतीक है। फातिमा शेख और उनकी विरासत हमें उनके त्याग, समर्पण और प्रतिबद्धता कार्यों के माध्यम से जनता के लिए सच्ची, ईमानदार समर्पण और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित विरासत का मार्ग दिखाती है। हम अपनी पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका मुहत्रमा फातिमा बीबी शेख को उनकी 194वीं जयंती पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। फातिमा बीबी शेख ने हर इंसान के लिए प्यार, विश्वास, स्नेह, दोस्ती, सच्चे रिश्ते और मोहब्बत के बंधन को स्थापित किया जो आज तक हमारी विरासत और अच्छे मानव समाजों, मनुष्यों के लिए पहचान है। वह मिलीजुली प्रकृति प्रेम-प्यार भरा व्यवहार और अपने समय की सर्वश्रेष्ठ इंसान थीं। फातिमा शेख वह महिला थीं, जिन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ भारतीय शिक्षा को नया स्वरूप दिया और पुनर्जीवित किया। 9 जनवरी को उनकी 194वीं जयंती है। फातिमा शेख, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का सहयोग, मिलन और समन्वय भारतीय सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक था: डॉ कमलेश मीणा।

 

वह एक भारतीय शिक्षिका और समाज सुधारक थीं, जो समाज सुधारकों ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं। उन्हें व्यापक रूप से भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षक माना जाता है। हमारे इतिहास ने फातिमा शेख के साथ न्याय नहीं किया। शिक्षक और समाज सुधारक फातिमा शेख के बारे में बहुत कम जानकारी है और उनकी जन्मतिथि पर भी बहस होती है। हालाँकि, फातिमा शेख जो सावित्रीबाई फुले और ज्योतिराव फुले के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थीं। उन्होंने जीवन भर रूढ़िवादी रीति-रिवाजों के खिलाफ संघर्ष किया। उसने फुले के भिडेवाड़ा स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का काम किया, घर-घर जाकर परिवारों को अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने और स्कूलों के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित किया। उनके योगदान के बिना, पूरे लड़कियों के स्कूल प्रोजेक्ट ने आकार नहीं लिया होगा और फिर भी भारतीय इतिहास ने मोटे तौर पर फातिमा शेख को हाशिये पर पहुंचा दिया है। फातिमा शेख की जयंती को गर्व के साथ मनाना चाहिए कि वह महामना ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के पीछे दृढ़ता से खड़ी थीं। वह भारत की पहली मुस्लिम शिक्षिकाओं में से एक थीं, जिन्होंने सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले द्वारा संचालित स्कूल में दलित और मुस्लिम लड़कियों को पढ़ाने का काम किया। जब ज्योतिराव और सावित्रीबाई को ज्योतिराव के पिता द्वारा अपना पुश्तैनी घर खाली करने के लिए कहा गया था क्योंकि वह फुले दंपति के समाज सुधार एजेंडे से नाराज थे,यह फातिमा और उनके भाई उस्मान शेख थे जिन्होंने फुले के लिए अपने घर के दरवाजे खोल दिए थे। यह वही इमारत थी जिसमें लड़कियों का स्कूल शुरू किया गया था। गर्व से हमें 9 जनवरी को उनकी जयंती के लिए क्रांतिकारी नारीवादी फातिमा शेख को अपना सम्मान और सलाम देना चाहिए। फातिमा शेख और उनके भाई उस्मान शेख ने फुले दंपति को उनकी शिक्षा के प्रयासों के लिए अपना पूरा समर्थन और वित्तीय संसाधन दिया। फातिमा शेख एक भारतीय शिक्षिका थीं, जो समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं। फातिमा शेख मियाँ उस्मान शेख की बहन थीं, जिनके घर में ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले निवास करती थीं। आधुनिक भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षकों में से एक, उन्होंने दलित बच्चों को फुले के स्कूल में शिक्षित करना शुरू किया। ज्योतिबा और सावित्रीबाई फुले ने फातिमा शेख के साथ दलित समुदायों के बीच शिक्षा के प्रसार का कार्य संभाला। सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले को अपना घर छोड़ना पड़ा क्योंकि वे महिलाओं और दलितों को शिक्षित करना चाहते थे। उनके ब्राह्मणवादी विचारों के खिलाफ जाने के लिए, सावित्रीबाई के ससुर ने उन्हें घर से निकाल दिया। ऐसे समय में, फातिमा शेख ने इस जोड़े को शरण दी। वह घर जल्द ही देश का पहला गर्ल्स स्कूल बन गया। उसने सभी पांच स्कूलों में पढ़ाया कि फुले की स्थापना हुई और उसने सभी धर्मों और जातियों के बच्चों को पढ़ाया। यह तथ्य यह है कि बहुत कम लोगों को पता है कि फातिमा शेख के जीवन की वास्तविकता फुले के साथ जुड़ने से परे है। हालाँकि, उसे जिस प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, वह और भी अधिक था। वह न केवल एक महिला के रूप में बल्कि एक मुस्लिम महिला के रूप में भी हाशिए पर थी। ऊंची जाति के लोगों ने इन स्कूलों के शुरू होने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने फातिमा और सावित्रीबाई पर पथराव और गोबर फेंका, जबकि वे अपने रास्ते पर थीं। लेकिन दोनों महिलाएं निर्विवाद रहीं। फातिमा शेख के लिए यह यात्रा और भी कठिन थी। दोनों हिंदू और साथ ही मुस्लिम समुदाय ने उससे किनारा कर लिया। हालाँकि, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और घर-घर जाना जारी रखा, विशेषकर मुस्लिम समुदाय के लोगों और माता-पिता को अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित किया। जैसा कि कई लेखन कहते हैं, फातिमा घंटों काउंसलिंग माता-पिता के लिए करती थी जो अपनी लड़कियों को स्कूलों में भेजने की इच्छा नहीं रखते थे।

 

फातिमा ने 1851 में अपने दम पर मुंबई में दो स्कूलों की स्थापना की और दलित, उत्पीड़ित, निराश, वंचित, हाशिए पर और गरीब बच्चों को उस समय पढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जब कोई भी इन समूहों के लिए शिक्षा की कल्पना नहीं कर सकता था। भारतीय इतिहास के इतिहास में, केवल दो नाम ज्ञान और प्रगति के प्रतीक के रूप में खड़े हैं-सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख। दोनों न केवल अपनी विशेष जाति में भारत की पहली महिला शिक्षिका थीं, बल्कि एक समाज सुधारक, कवयित्री और उस समय महिलाओं की शिक्षा और अधिकारों की निरंतर वकालत करने वाली भी थीं, जब ऐसे विचारों को क्रांतिकारी माना जाता था। फातिमा शेख ने उस अंधेरे समय में लड़कियों के स्कूल खोलने के लिए माता सावित्री बाई फुले को वित्तीय सहायता दी। फातिमा शेख भारत की बेहतरीन समाज सुधारकों और शिक्षिकाओं में से एक थीं, जिन्हें देश में आधुनिक शिक्षा देने वाली पहली मुस्लिम महिला होने का गौरवशाली श्रेय प्राप्त था। उसके समकालीन दौर में ज्योति राव फुले और सावित्रीबाई, जिन्होंने लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लड़ाई लड़ी, फातिमा को उनके साथ दृढ़ता, ईमानदारी और पूरी तरह से प्रतिबद्ध तरीके से रहने के लिए जाना जाता था।

 

भारतीय समाज की इस महान महिला को हम लाखों बार नमन करते हैं। हम उनके बलिदान, समर्पण, प्रतिबद्धता, हमारे मानव समाज की सबसे वंचित समूह महिलाओं के उत्थान के प्रति ईमानदार प्रयासों के लिए अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। फातिमा शेख (9 जनवरी 1831-9 अक्टूबर 1900) एक भारतीय शिक्षिका और समाज सुधारक थीं, जो हमारे समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की सहयोगी थीं। उन्हें व्यापक रूप से भारत की पहली मुस्लिम महिला शिक्षिका माना जाता है और 9 जनवरी 2025 को उनकी 194वीं जयंती है। हम शिक्षा के क्षेत्र में उनके महान योगदान, शिक्षा के माध्यम से समानता का समाजीकरण और समाज सुधारक को याद करते हैं। फातिमा शेख हमारी भारतीय संस्कृति की एक आदर्श शख्सियत बनी रहेंगी जो धर्मनिरपेक्षता, भाईचारा और सहयोग पर आधारित है।

सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...