शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

प्रतिनिधि कवयित्री कमलेश कुमारी की दो कविताएँ*

 

प्रतिनिधि कवयित्री कमलेश कुमारी की दो कविताएँ*


1

मन-चम्पा

 

हो जाता घटित समय के किसी चक्र मेँ ऐसा भी,

जब अपना ही नगर लगता एक अपरिचित-सी

भीड़ भरी जगह...

 

रास्ते, मोड, गलियाँ, चौराहे, तिराहे

सब केवल लगते हैं बस देखे भर-से; पहचाने हुए नहीं;

लोग हो जाते परिवर्तित भीड़ मे और परिचित जन लगते

किसी मेले मेँ मुखौटों-से!

 

उचाट हो जाती दृष्टि और टिकती केवल,

चौराहे पर बिकते, मिट्टी के बर्तनों व फूलों पर...

पीढ़ियों पुराने किसी पेड़ की जड़ मेँ आश्रय लेती

उस देवमूरत पर; जो प्रतीत होती ये कहती हुई 

“कि मनुष्य तो बदल देते हैं अपने देव भी!”

 

कभी सरल-सुगम रहीं गलियाँ ‘लगती इतनी संकुल

कि कठिनतम लगता कहीं भी पहुँचना

घबराया हुआ हृदय, होता स्पंदित ग्रीवा मेँ...

 

अनायास ही लगने वाले धक्के और ठोकरों से बचकर,

स्वयं को बचाता है मन एकांत की गलियों मेँ..

ऊबकर भाग जाना चाहता है उस लाल चम्पा के झाड़ के समीप

जिसके रक्तपुष्प जोड़ते हैं जिजीविषा को,

‘तुम्हारे’ हृदय की धमनियों से... 

 

 

2

दुख का शिल्प

 

दुख ढालता है ऐसे आदि शिल्प मेँ,

जीवंतता-मूरत को, मरी हुई धार की जंग लगी छेनी से

कि दुख को आत्मसात कर ढल जाती वह!

 

“स्मृति कि उस नन्ही बालिका को,

‘मृत्यु’ शब्द लगता था ऐसा-

जैसे आकाश का धरती पर गिर जाना औंधे मुँह;

और कर देना नष्ट प्रकृति के सब जीवित चिह्न ..

किसी अन्य की मृत्यु से हो विचलित,  

छोटे हाथों से माँगती, ईश्वर से वरदान

अपने माँ-बाबा के अमरत्व का।“

 

किन्तु, विधि कर देती है कोमल उंगलियों को कठोर

सहने को समय की पकड़ और थमा देती है उन हाथों मेँ

शाश्वत नियम की अबूझ लिपि।

 

पढ़ता और सीखता चलता है मानव

कि नदियाँ बढ़ जाती हैं आगे छोड़ पिछले घाट

वायु, एक स्थान की नमी से भिगोती है,

कोई दूसरा ही छोर धरती का...

 

पुष्प-पल्लव देते हैं स्वयं ही स्थान नव कोंपल को

इस भाँति सुगंध और उजास लिए रहती उनकी मृत्यु

यदि मनुष्य भी लिए रहते तटस्थता इसी भाव मेँ,

तब स्वतः ही हो जाते प्राप्त बुद्धत्व को!

 

इससे इतर—

जीवित ही मर-मर के जीने को ‘मजबूर’

हो जाता अभ्यासी, इस प्रकार मृत्यु का कि-

यह लगती है उसे घटना, परिवर्तन की, आत्मिक क्रांति की...

करता है वह सपनों मे इसका आलिंगन मुस्कराते हुए;

मोक्ष की पोटली को बाँध कर आत्मा के आँचल मेँ।   

 

*प्रतिनिधि कवयित्री सुश्री कमलेश कुमारी वर्तमान में शिक्षा विभाग, हरियाणा में कार्यरत हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

   

 

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