रविवार, 12 जनवरी 2025

सरदार वल्लभभाई पटेल के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाली दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ-प्रोफेसर डॉ0 रवीन्द्र कुमार

 

सरदार वल्लभभाई पटेल के सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाली दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ

वर्ष 1915 ईसवीं में गुजरात सभा में सम्मिलित होने के साथ ही, वास्तव में, वल्लभभाई का सार्वजनिक जीवन में पदार्पण हो गया था। देश की स्वाधीनता का विचार भी उनके मस्तिष्क में उभर चुका था। इसके बाद, वर्ष 1915 व 1916 ईसवीं में उनके जीवन से जुड़ी दो घटनाएँ अतिमहत्त्वपूर्ण रहीं। उन घटनाओं की हम चर्चा करें, उससे पूर्व वर्ष 1913 और 1915 ईसवीं के घटनाक्रम का, जो सार्वजनिक जीवन में उनके पदार्पण का मार्ग प्रशस्तकर्ता रहा, संक्षेप में उल्लेख भी आवश्यक और सूचनाप्रद है।

विट्ठलभाई पटेल, बैरिस्टर बनने के बाद मुम्बई में बस गए थे। वहीं वकालत करने लगे थे। साथ ही, वे सार्वजनिक जीवन में भी आ गए थे। वल्लभभाई के इंग्लैण्ड से वापसी से पहले ही वर्ष 1912 ईसवीं में वे 'बॉम्बे लेजिस्लेटिव कॉउंसिल' के सदस्य निर्वाचित हो चुके थे। अब उन्हें वकालत के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिलता था। वल्लभभाई की विदेश से वापसी पर दोनों भाई एक साथ बैठे और उन्होंने यह तय किया कि बड़े भाई अब सार्वजनिक जीवन में रहेंगे, जबकि छोटे भाई वकालत कार्य से धनोपार्जन करेंगे; घर-खर्च उठाने के साथ ही, आवश्यकता पड़ने पर, विट्ठलभाई की आर्थिक सहायता भी करेंगे। वल्लभभाई, अहमदाबाद आ गए थे और वकालत कार्य से अच्छा धनोपार्जन करते थे। वे प्रायः यह कहा करते थे, "भारत को स्वतंत्र कराना है, तो किसी-न-किसी को तो सेवा कार्य में लगना ही चाहिए। हम दोनों भाइयों ने कार्य का बंटवारा कर लिया है। विट्ठलभाई देशसेवा करें, मैं पैसे कमाऊँ। वे पुण्य कमाएँ, मैं पाप कमाऊँ। परन्तु, वे जो कार्य करेंगे, उसमें मेरा भाग तो रहेगा ही।"  लेकिन, यह व्यवस्था कितने समय तक चल पाई? हम सभी जानते हैं।

वल्लभभाई अहमदाबाद आते ही गुजरात क्लब के सदस्य बन गए थे। गुजरात क्लब की स्थापना वर्ष 1888 ईसवीं में रायबहादुर नागरजी देसाई ने की थी और यह नगर के सम्भ्रांत व ब्रिज खेलने वाले लोगों की एक संस्था थी। वल्लभभाई वहाँ जाते थे, ब्रिज खेलते थे और हुक्का भी पीते थे। वर्ष 1915 ईसवीं के प्रारम्भ में गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटे और उन्होंने अहमदाबाद के कोचख में अपना आश्रम बनाया। वहाँ उनके पास वकील और सार्वजनिक कार्यों से जुड़े लोग आते थे, उनसे वार्ताएँ करते थे, और उनका वर्णन वल्लभभाई की उपस्थिति में ही गुजरात क्लब में किया करते थे। वल्लभभाई, गाँधीजी की 'ब्रह्मचर्य-पालन', 'शौचालय-सफाई', 'चक्की-पीसने' और 'गेहूँ-साफ करने' जैसी बातों को मजाक मानते थे। इन बातों से देश की मुक्ति हो सकती है, छत्रपति शिवाजी और लोकमान्य तिलक की प्रकृति के पोषक, वल्लभभाई ऐसा स्वीकार नहीं करते थे। वे उस समय के देश के अग्रणी नेताओं की कार्यप्रणाली से भी सहमत नहीं थे, यद्यपि किसी नए प्रकाश को प्राप्त करने की उनमें प्रबल चाह थी। गाँधीजी भी गुजरात क्लब आते थे, वहाँ  अपनी बात रखते थे, लेकिन वल्लभभाई उनकी बातों में कोई रुचि नहीं लेते थे। वे जी0 वी0 मावलंकर सहित अन्यों को भी गाँधीजी में रुचि न लेने को कहते थे। लेकिन, बाद में क्या हुआ? हम जानते हैं। यहाँ दो बातों, वर्ष 1915 ईसवीं में गाँधीजी से उनका गुजरात क्लब और गुजरात सभा में, जिसके गाँधीजी 15 नवम्बर, 1915 ईसवीं को उपाध्यक्ष निर्वाचित हो चुके थे, आमना-सामना होना, और वर्ष 1916 ईसवीं में 'गुजरात सभा' के प्रतिनिधि के रूप में लखनऊ काँग्रेस अधिवेशन में उनकी भागीदारी, का उल्लेख अतिमहत्त्वपूर्ण है। ये दो घटनाएँ, वास्तव में, उनके सार्वजनिक जीवन में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाली रहीं।     

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I        

 

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