बुधवार, 15 मई 2024

चौथीराम यादव हजारी प्रसाद द्विवेदी के अन्तिम शिष्य थे - जयचन्द प्रजापति 'जय’ प्रयागराज


चौथीराम यादव हजारी प्रसाद द्विवेदी के अन्तिम शिष्य थे

     हिन्दी साहित्य के प्रसिध्द आलोचक चौथीराम यादव के निधन से हिन्दी साहित्य का एक मुखर वक्ता चला जाना साहित्य की एक गली सूनी हो गयी। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी के प्रोफेसर रहे चौथीराम यादव का जन्म 29 जनवरी 1941को कायमगंज जौनपुर में हुआ था। बेबाक आवाज के इंसान थे। बेबाकी से दलित कमजोर, वंचितों की आवाज थे। मुखर वक्ता थे। बनारस की गलियां गलियां परिचित थी। पढ़ाने का उनका अंदाज बहुत सुंदर था कि छात्र मंत्रमुग्ध हो जाते थे। ऐसे थे चौथीराम यादव। वेद और लोक: आमने सामने..इनकी लिखी पुस्तक रही और सम्मानों की लम्बी लिस्ट है। साहित्य साधना सम्मान, कबीर सम्मान तथा लोहिया साहित्य सम्मान से नवाजे गये थे। काशीनाथ कथाकार के साथ मिलकर प्रगतिशील लेखक संघ के सक्रिय एक्टिविष्ट थे।  लोकधर्मी परम्परा में हजारी प्रसाद द्विवेदी के अन्तिम शिष्य चौथीराम यादव थे। दलित विमर्श पर इनकी विचाराधारा दलितों के हालातों पर अपनी बात रखते थे। चा़य खैनी के बहुत शौकीन थे। यात्रा करने के भी शौकीन थे। अभी कुछ दिन पहले बाहर भी घूमने गये थे। अचानक मौत की खबर मिलते ही साहित्यकारों में शोक की लहर दौड़ गयी इनकी मृत्यु 12 मई 2024 को हो गयी। लोगों ने खूब प्यार दिया, लोगों में भी काफी लोकप्रिय लेखक थे। एक अच्छे निबन्धकार थे। प्रसिध्द आलोचक थे। सफेद लम्बे बाल उनके व्यक्तित्व में चार चांद लगा दे रहे थे। धोती कुर्ता भारतीय संस्कृति को धारण किये थे। ऐसे महान पुरूष थे चौथीराम यादव। रोज कोई न कोई विचार फेसबुक पर अपलोड करते रहते थे। बहुत कुछ सीखने को मिलता था। सच में उनका जाना एक साहित्य के लिये बहुत बड़ी हानि कही जा सकती है। 

महान आलोचक चौथीराम यादव को प्रणाम।


रविवार, 12 मई 2024

सनातन धर्म के मूल सिद्धान्त - डॉ0 रवीन्द्र कुमार


 

सनातन धर्म के मूल सिद्धान्त

     डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

 ब्रह्माण्ड में समस्त चल-अचल एवं दृश्य-अदृश्य की अपरिहार्य सम्बद्धता एवं, इस प्रकार, सार्वभौमिक एकता और एकता का निर्माण करने वाली शक्ति अथवा सत्ता की विद्यमानता की सत्यता की स्वीकार्यता, सनातन धर्म के ये दो सर्वप्रमुख सिद्धान्त हैं।

एक ही अविभाज्य समग्रता अपने अनेकानेक गुणों –सार्वभौमिक कार्यों और स्वभावों के कारण, तदनुसार, नामों से सम्बोधित की जाती है, तथा अपनी परिधि में ब्रह्माण्ड में विद्यमान समस्त दृश्य-अदृश्य और चल-अचल को समेटती है। वही अविभाज्य समग्रता, इस प्रकार, सार्वभौमिक एकता का निर्माण करती है।

इस प्रकार, स्पष्ट शब्दों में एक ही अविभाज्य समग्रता की विद्यमानता और सार्वभौमिक एकता की सत्यता में विश्वास सनातन धर्म के प्रथम और द्वितीय, क्रमशः, मूलाधार हैं।    

सनातन धर्म के इन दोनों मूलाधारों (एक ही अविभाज्य समग्रता और सार्वभौमिक एकता की शाश्वतता की स्वीकृति) की स्थिति को कोई भी अन्य धार्मिक विश्वास, सामाजिक चिन्तन अथवा वैज्ञानिक सिद्धान्त नकार नहीं सकता। यहाँ तक कि कोई नास्तिक विचार भी इस सत्यता से मना नहीं कर सकता। प्रत्येक सामाजिक चिन्तक, वैज्ञानिक और नास्तिक भी, किसी-न-किसी रूप में, इस वास्तविकता को स्वीकार करता है कि ब्रह्माण्डीय व्यवस्था एक निरन्तर प्रवहमान सार्वभौमिक नियम द्वारा संचालित होती है। सार्वभौमिक नियम की परिधि के बाहर कुछ भी नहीं है; कोई भी नहीं है। वही सार्वभौमिक नियम एक अविभाज्य समग्रता है। उसके अपरिहार्य रूप से सर्वत्र व्याप्त होने के कारण सार्वभौमिक एकता का निर्माण होता है।

यह भी लगभग सर्वमान्य है कि ब्रह्माण्ड में समस्त चल-अचल व दृश्य-अदृश्य की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष परस्पर निर्भरता है। इससे भी स्वतः ही सिद्ध होता है कि सार्वभौमिक एकता की सत्यता विद्यमान है और, इस प्रकार, सनातन धर्म के प्रथम एवं द्वितीय, दोनों, मूलाधारों पर मुहर लगती है।

सार्वभौमिक एकता का निर्माण करने वाली और, साथ ही, सार्वभौमिक व्यवस्था का आधार रहने वाली अविभाज्य समग्रता सनातन धर्म में परब्रह्म के नाम से सम्बोधित है। परब्रह्म=पर (सर्वोच्च)+ब्रह्म (जगत-सत्य और सार)। सर्वोच्च ब्रह्म संकल्पनाओं से परे और अवर्णनीय उत्पत्तिकर्ता, पालक एवं उद्धारकर्ता हैं। वे अनादि और अक्षर हैं; वे बुद्धि का विषय नहीं हैं तथा, वेदान्त उन्हें ही निर्गुण ब्रह्म भी स्वीकारता है। सार्वभौमिक एकता का निर्माण करने वाली अविभाज्य समग्रता ब्रह्म नाम से भी सम्बोधित है। 'बृह्' धातु से निष्पादित शब्द ब्रह्म का सरल अर्थ है आगे की ओर बढ़ना अथवा प्रस्फुटित होना। स्वयं वृद्धि को प्राप्त होना। इस प्रकार, सब कुछ, चर-अचर व दृश्य-अदृश्य ब्रह्म ही हैं। "सर्वं खल्विदं ब्रह्म/" (छान्दोग्योपनिषद, 3: 14: 1)

वही परमसत्ता, अविभाज्य समग्रता, परमेश्वर हैं। परमेश्वर=परम+ईश्वर; अर्थात्, सर्वोच्च ईश्वर; ऐश्वर्यशाली तथा जगत नियन्ता। वे ईश्वर हैं; ऐश्वर्य युक्त तथा समर्थ हैं। वनस्पति, प्रकृति, जलवायु आदि सहित समस्त पदार्थों के स्वामी हैं। इशे यो विश्वस्या" (ऋग्वेद, 10: 6: 3), अर्थात्,  समस्त दिव्यता के स्वामी, सर्व समर्थ एवं दिव्यता प्रदानकर्ता ईश्वर।

वे परमात्मा हैं। परमात्मा=परम (सर्वोच्च)+आत्मा (चेतना), इस प्रकार प्राण शक्ति हैं। वे भगवान हैं। भूमि, गगन, वायु, अनल और नीर जैसे मूल तत्त्वों के स्वामी हैं। वे नारायण हैं; जलस्रोत हैं। अग्निमीळे हैं; प्रकाश-स्रोत हैं। वे इन्द्र परम ऐश्वर्यवान व दिव्य प्रकाश में प्रकाशमान हैं; वे मातरिश्वान (ऋग्वेद, 1: 164: 46) अर्थात्, वायु-स्रोत सर्वव्याप्त हैं। वे विष्णु (व्यापनशील) हैं; सर्वत्र व्याप्त सम्पूर्ण जगत (ब्रह्माण्ड) में प्रवेश किए हुए हैं। (ऋग्वेद, 1: 154: 1)

वे व्यापक, विशेषणों से युक्त, विभिन्न रूपों में प्राणी-प्रशंसित एवं महिमामण्डित स्वामी हैं। (ऋग्वेद, 1: 154: 2) वे ब्रह्मा, सबसे बड़े और सर्व-जनक –सृजक स्वामी हैं। वे सहस्रशीर्षा: पुरुषः –हजारों शीर्ष वाले जगत-व्याप्त महाराजा हैं; उत्पत्तिकर्ता तथा कारण हैं। (ऋग्वेद, 10: 90: 1-2 ) वे त्र्यम्बकं (त्रिनेत्रीय), सर्वथा सर्वकल्याणकारी और उद्धारकर्ता हैं। वे तीन कालों में –जीव, कारण तथा कार्यों की रक्षा करने वाले हैं। (ऋग्वेद, 7: 59: 12) वे रूद्र –दुष्ट शत्रुओं का दमन करने वाले (ऋग्वेद, 1: 114: 2) पराक्रमी व परम शक्तिशाली हैं। वे समस्याओं के समूल नाशकर्ता हैं। वे गरुत्मान् –महानतम आत्मा वाले और यमं –न्यायकर्ता जगत-नियन्ता हैं। (ऋग्वेद, 1: 164: 46)

वे सवितुः हैं; सम्पूर्ण जगत -ब्रह्माण्ड के उत्पन्न करने वाले और ऐश्वर्य-युक्त स्वामी हैं। (ऋग्वेद, 3: 62: 10) वे हरि हैं; दुखों को हरने वाले स्वामी हैं। वे सच्चिदानन्द हैं; सदा सत्य, शाश्वत, स्थाई और अपरिवर्तनीय हैं। वे चेतनायुक्त और पूर्णतः आनन्दमय हैं। वे प्रत्येक स्थिति में पूर्ण हैं। (ईशावास्योपनिषद्, प्रारम्भ और बृहदारण्यकोपनिषद्, 5: 1: 1) परब्रह्म, पुरुषोत्तम परमात्मा सभी रूपों में सदैव ही परिपूर्ण हैं। वे सदैव ही आनन्द की पराकाष्ठा से भी परिपूर्ण हैं।

आनन्द उनका गुण है; वे इसीलिए सदा शान्त चित्त हैं। वे ॐ (ओम) हैं। ओम=अ+उ+म, इस प्रकार, ब्रह्माण्ड की अनाहत ध्वनि है। वे सर्वरक्षक और सर्वव्याप्त हैं। ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का कारण तथा सार हैं। सृष्टि के द्योतक हैं।

उनके सम्बन्ध में इतना ही नहीं है। उनकी महिमा अपरम्पार है। उनके गुण असंख्य हैं और शक्तियाँ असीमित हैं। उनके असंख्य गुणों और शक्तियों के अनुसार ही, जैसा कि उल्लेख कर चुके हैं, उनके असंख्य ही नाम हैं। उन्हीं में से कुछेक ही का उल्लेख हमने किया है। अन्ततः वे एक अविभाज्य समग्रता हैं; वे सार्वभौमिक एकता के निर्माता हैं। सदा विद्यमान सनातन धर्म इसी सत्यता को स्वीकार करता है। अविभाज्य समग्रता की शाश्वतता एवं सार्वभौमिक एकता की वास्तविकता, इस प्रकार, सनातन धर्म के प्रथम एवं द्वितीय, क्रमशः, मूलाधारों के रूप में स्थापित हैं।

II

सार्वभौमिक एकता का निर्माण करने वाली, परब्रह्म-ब्रह्म, परमेश्वर-ईश्वर, परमात्मा आदि सहित अनेकानेक नामों से सम्बोधित अविभाज्य समग्रता, ब्रह्माण्डीय व्यवस्था के सुचारु एवं कल्याणकारी रूप से संचालनार्थ सृष्टि के श्रेष्ठ प्राणी मानव का एक परम अपेक्षित कर्त्तव्य निर्धारित करती है।

ब्रह्माण्डीय एकता और इसमें समस्त ज्ञात-अज्ञात की परस्पर निर्भरता की सत्यता का आलिंगन करने एवं ब्रह्माण्ड में विद्यमान समस्त चराचर व दृश्य-अदृश्य के प्रति मित्रवत रहने की अपेक्षा करती है। मूल तत्त्वों के साथ ही प्राणिमात्र एवं प्रकृति के प्रति, जो सभी अविभाज्य समग्रता मूलक हैं तथा उसी की परिधि में भी हैं, सहिष्णु रहते हुए आदर-सम्मान तथा प्रेम का सन्देश देती है।

सहनशील भावना के साथ सभी के प्रति, अपने स्वयं के चयनित मार्ग से भी, श्रद्धा रखने अथवा उसकी उपासना करने का आह्वान करती है। ऐसा करना स्वयं अविभाज्य समग्रता के प्रति आदर-सम्मान, प्रेम या श्रद्धा प्रकट करना है। व्यक्तिगत के साथ ही सर्व कल्याण का यही मार्ग है। सर्व कल्याण में ही व्यक्ति का कल्याण भी निहित है।

सहिष्णुता एवं सहनशीलता अहिंसा की दो श्रेष्ठतम व्यावहारिकताएँ हैं। अहिंसा सर्व एकता की अनुभूति और उसके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का सर्वोत्तम माध्यम अथवा मार्ग है। अहिंसा अपनी मूल भावना में ठहरते हुए –प्राणिमात्र के साथ ही जगत में विद्यमान समस्त चराचर व दृश्य-अदृश्य के प्रति सक्रिय सद्भावना रखते हुए, साथ ही दृष्टिकोण-समायोजन द्वारा वृहद् सहयोग एवं सामंजस्य का मार्ग प्रशस्त करती है।

अहिंसा, इसीलिए, सनातन धर्म के तृतीय मूलाधार के रूप में प्रतिष्ठित है। वृहद् सहयोग और सामंजस्य के वातावरण में सर्व कल्याण को, जो सार्वभौमिक एकता की जीवन्त द्योतक व उस एकता की स्थापना करने वाली अविभाज्य समग्रता का आह्वान है, केन्द्र में रखते हुए, समय एवं परिस्थितियों की माँग के अनुसार निरन्तर आगे बढ़ना –आवश्यक नया करने हेतु पुरुषार्थ करना सनातन धर्म का आह्वान है।

'नित-नूतन' शाश्वत सार्वभौमिक नियम का सन्देश है। नया करने का संकल्प विकास का मार्ग प्रशस्त करता है; नया होने से ही वास्तविक प्रगति प्रकट होती है। सर्व-कल्याण भावना को अक्षुण्ण रखते हुए, नया करने का आह्वान, इसलिए, सनातन धर्म का चतुर्थ मूलाधार है।  

सनातन धर्म चार मूलाधारों से सुसज्जित है और, इस प्रकार, सार्वभौमिक एकता ही को समर्पित सर्वकालिक व्यवस्था है। सार्वभौमिक एकता का निर्माण करने वाली अविभाज्य समग्रता ही एकमात्र सत्यता है।

सर्व सहयोग, परस्पर सामंजस्य और सौहार्द के वातावरण में, सहिष्णु तथा सहनशील रहते हुए (इस प्रकार अहिंसा मार्ग द्वारा) सर्व-कल्याण हेतु पुरुषार्थ –जीवन-मार्ग पर निरन्तर नया करते हुए आगे बढ़ना, इस सत्यता की मानव से अपेक्षा है। अपने परम कर्त्तव्य के रूप में इसी अपेक्षा की प्राप्ति का सनातन धर्म का मानवाह्वान है। मानव अविभाज्य समग्रता की सत्यता में स्वयं को पहचाने; वह अविभाज्य समग्रता परमेश्वर स्वरूप को प्राप्त हो, यही मानव-जीवन का सार, लक्ष्य और उद्देश्य है:

"जीवो ब्रह्मैव नापरः –जीव ही ब्रह्म है; (जीव ब्रह्म से) भिन्न –बाहर नहीं है।"

आदिकाल से ही सनातन धर्म के अग्रणी समय-समय पर आए अवतार, ऋषि-महर्षि और महापुरुष इसी सत्यता को सर्व-कल्याण भावना के साथ मानवता के समक्ष  रखते रहे। 

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I

 

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गुरुवार, 9 मई 2024

ब्रह्मपुत्र- चन्द्र पश्चिम कार्बी आंगलांग असम

ब्रह्मपुत्र

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बंधु क्या तुम्हें पता है ब्रह्मपुत्र सराय घाट के पुल तक आते-आते कितना नाम बदलते आता है

बंधु क्या तुम्हें पता है 

अरुणाचल में जो अभी बह रहा है ब्रह्मपुत्र 

उसका नाम क्या है

बंधु क्या तुम्हें पता है

चीन में बांग्लादेश में 

और तिब्बत में ब्रह्मपुत्र का नाम क्या है

बंधु क्या तुम्हें पता है ब्रह्मपुत्र हर साल 

कितनों को निर्वासन में भेज देता है

हजीरा मजूरी के लिए।

बंधु क्या तुम्हें पता है

ब्रह्मपुत्र की मछलियां हर साल 

किस-किस देश के मछलियों से मिलने जाती हैं 

और मारी जाती हैं।

 

वसुधैव कुटुम्बकम्: एकता और समानता को समर्पित सनातन धर्म का उद्घोष - डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

 


वसुधैव कुटुम्बकम्: एकता और समानता को समर्पित सनातन धर्म का उद्घोष

डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्/ उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्// –यह मेरा है, यह उसका है; इस प्रकार की धारणा संकुचित चित्त वाले व्यक्तियों की होती है। इसके विपरीत, उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरा एक ही परिवार के समान होती है।"

सनातन धर्म (वर्तमान में विश्वभर में हिन्दू के नाम से भी प्रसिद्ध धर्म) की मूल भावना सर्व-एकता और मानव-समानता है। उक्त वर्णित लोकप्रिय श्लोक (जिसका मूल रूप सामवेदीय शाखा के महोपनिषद् के छठे अध्याय में प्राप्त होता है), वास्तव में, इसी भावना को प्रकट करता है।

सर्वेकता एक शाश्वत सत्यता है। दूसरे शब्दों में, अविभाज्यता अक्षुण्ण है। एक ही अविभाज्य समग्रता, वेदों-उपनिषदों सहित सनातन धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में परमात्मा (सर्वोच्च चेतना प्राण शक्ति), ईश्वर (सम्पूर्ण ऐश्वर्य युक्त), ब्रह्म ( ब्रह्मन्, परम स्व, ब्रह्माण्डीय एकता-निर्माता और आधार) आदि नामों से सम्बोधित, सर्वेकता निर्माता है। वही अनुरक्षक तथा सँभाल करने वाला है। सनातन धर्म के व्याख्याता वेदों की यह एक प्रमुख उद्घोषणा है।

ऋग्वेद में (10: 121: 10) में स्पष्ट उल्लेख है:

प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव/

अर्थात्, हे प्रजापति, प्रजाओं के स्वामी! केवल आप ही समस्त सृजन –उत्पत्ति के कारण हैं; आप व्यापक (परमात्मा) के अतिरिक्त और कोई नहीं है।   

ईशोपनिषद्  (ईशावास्योपनिषद्) का प्रारम्भिक मंत्र है:

"ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्ण मुदच्यते/ पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवावशिष्यते//"

अर्थात्, "वह (परमात्मा) अनन्त एवं पूर्ण हैं; और यह जगत भी पूर्ण हैI पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। उस पूर्ण (ब्रह्म) में से पूर्ण निकल लें, तो भी पूर्ण ही शेष रहता है।"

बुद्धि और रचनात्मकता जैसे श्रेष्ठ गुणों के पोषक व सृष्टि के उन्नत प्राणी मानव का इस सत्यता से साक्षात्कार करना और इसे अपने समस्त व्यवहारों के केन्द्र में रखना उसका धर्म है। वेद-ज्ञान से परिचय कराते, स्वयं सनातन धर्म के स्थापित आधारभूत ग्रन्थों, उपनिषदों, में से एक प्रमुख छान्दोग्योपनिषद्  (3: 14: 1) में यह स्पष्ट है:

"सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासीत/

अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुरस्मिँल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत्य भवति स क्रतुं कुर्वीत//"

अर्थात्, "यह सब (वास्तव में ही) ब्रह्म है। सब कुछ ब्रह्म से आता है; सब कुछ ब्रह्म में वापस चला जाता है। सब कुछ ब्रह्म द्वारा ही बनाए रखा जाता है। इसलिए व्यक्ति को शान्तता के साथ ब्रह्म का ध्यान-स्मरण करना चाहिए। (पूर्णतः ब्रह्म को ही समर्पित रहना चाहिए) मृत्यु के पूर्व जो जैसी उपासना करता है, वह जन्मान्तर वैसा ही हो जाता है।अर्थात्, ब्रह्म-समर्पण की स्थिति में जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।

स्वयं महोपनिषद् (4: 119) में भी उल्लेख है कि यह सब ब्रह्म है, जो शाश्वत, चेतन एवं अविनाशी है; इसके अतिरिक्त कोई अन्य वस्तु, अर्थात् मानसिक प्रक्षेपण, वास्तव में, विद्यमान नहीं है।

अर्थात्,

सर्वं च खल्विदं ब्रह्म नित्यचिद्घनमक्षतम्/

कल्पनान्या मनोनाम्नी विद्यते न हि काचन//

ब्रह्म (अविभाज्य समग्रता-निर्माता, निर्वाहक और सृष्टि-आधार) का सृष्टि के श्रेष्ठतम प्राणी, मानव, का प्राथमिकता से, एवं उसके परम कर्त्तव्य के रूप में, सर्वेकता की सत्यता की स्वीकृति का आह्वान है। मानव, जैसा कि कहा है, बुद्धि और रचनात्मकता जैसे अद्वितीय गुणों का पोषक होता है; अपनी बुद्धि द्वारा सत्य-असत्य का बोध करने में पूर्णतः समर्थ होता है। बुद्धि-बल से वह सर्वेकता, वृहद् परिप्रेक्ष्य में सार्वभौमिक एकता की वास्तविकता से परिचय करने में सक्षम होता है।     वह सार्वभौमिक एकता से परिचय करे, उसी एकता के अविभाज्य अंग होने की सत्यता को स्वीकार करे, तदनुसार व्यवहार करे, यही मानव से ब्रह्म की अपेक्षा है।     

अन्य सरल शब्दों में इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि मनुष्य एक सार्वभौमिक अविभाज्य समग्रता के अंश के रूप में अपने को स्वीकार करते हुए, समष्टि-कल्याण में ही अपने कल्याण को देखे। वह, अपने किसी पृथक या निजी हित के अवास्तविक विचार को छोड़कर, सर्वहित हेतु समर्पित हो। इस संक्षिप्त वार्ता के प्रारम्भ में उद्धृत श्लोक की यही मूल भावना, वास्तविक अभिप्राय और उद्देश्य है। बुद्धि और रचनात्मकता जैसे गुणों से भरपूर सृष्टि का श्रेष्ठतर प्राणी मानव और जलवायु, तापमान, प्राकृतिक संसाधनों सहित अन्य अनुकूलताओं से भरपूर वसुधा (पृथ्वी) इसके केन्द्र में हैं।

पृथ्वी पर निवासकर्ता मानव प्राथमिकता से सजातीय एकता परस्पर मानवीय सहयोग, सहकार और सौहार्द द्वारा, प्रत्येक को अपना मित्र, सखा व सहयोगी स्वीकार करते हुए सर्वकल्याण हेतु समर्पित हो। इस प्रकार, वह अविभाज्य समग्रता की सत्यता का आलिंगन करे और समष्टि-हित के लिए, जिसमें आवश्यक रूप से स्वयं उसका हित भी सम्मिलित है, आगे बढ़े। यही, वास्तव में, सनातन धर्म की मूल भावना से साक्षात्कार कराते इस श्लोक का प्रयोजन है; अविभाज्य समग्रता के निर्माता और सार्वभौमिक एकता की स्थापना करते सृष्टि के आधार ब्रह्म की मानव से, जैसा कि कहा है, आशा भी है।  

अविभाज्य समग्रता ही एकमात्र शाश्वत –सनातन सत्य है। अविभाज्य समग्रता ही सार्वभौमिक एकता का आधार है। वही अविभाज्य समग्रता, जैसा कि उल्लेख किया है, ईश्वर, परमात्मा और ब्रह्म सहित अनेकानेक नामों से, अपने गुणों और सार्वभौमिक कार्यों के लिए सम्बोधित है।

इस वास्तविक स्थिति में प्रत्येक कार्य अथवा छोटी या बड़ी गतिविधि का (वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी भी स्तर पर हो) वृहद् अथवा सार्वभौमिक प्रभाव पड़ता है। अविभाज्य समग्रता और उसके सदैव प्रवहमान सार्वभौमिक नियम के अन्तर्गत  एक व्यक्ति का कार्य या गतिविधि, न्यूनाधिक, समस्त सजातीयों और सार्वभौमिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती है। एक की सु-प्राप्ति वृहद् कल्याणकारी और एक का ह्रास या उसकी विफलता, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में, सम्पूर्ण जगत के लिए, न्यूनाधिक, अकल्याणकारी होती है। मानव इस परम सत्य को समझे तथा प्राथमिकता से सजातीयों को अपना बन्धु और परम मित्र स्वीकार कर भेदभावरहित व्यवहार करे, मानव-समानता केन्द्रित सर्वेकता का यह सनातन धर्म का उद्घोष और आह्वान है।

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I

 

मंगलवार, 7 मई 2024

कवि डॉक्टर प्रवीण राही भूटान के फुंटशोलिग शहर में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन काव्य पाठ किया

 





तीसरी साहित्यिक विदेश यात्रा भूटान की रही मुरादाबाद कवि डॉक्टर प्रवीण राही जी की...

गौरवांजलि ट्रस्ट एवम साहित्य अर्पण ने भूटान के फुंटशोलिग शहर में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन 27 अप्रैल 2024 को आयोजित किया ।

 सयोजन  डॉ अंजना कुमार व गौरव विवेक जी एवम नेहा जी का रहा । 

इस अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में मुरादाबाद के युवा कवि डॉक्टर प्रवीण राही को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया।अध्यक्षता कवि जगमग जी की रही।साथी कवि सूची में कवयित्री डॉक्टर शुभम त्यागी जी,डॉक्टर अंजना जी,राजेश जी एवम अन्य रहें।

उनकी इस माह की दूसरी विदेश काव्य यात्रा के बाद कई शायर व कवियों ने उनके घर आकर उनको शुभकामनाएं दी।




“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...