विश्वगुरु के रूप में भारत के बढ़ते कदम
प्राचीनकाल से ही भारत विविधताओं का देश रहा
है। विभिन्नताएँ –विभिन्नताओं में एकता और
एकता में विभिन्नताएँ ही भारतीय समाज और संस्कृति की पहचान हैं। भारतीय समाज
स्वभाव से उदार एवं सहिष्णु है। सहनशीलता भारतीय समाज की आधारशिला है। यही बात
भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में है, जिसका इतिहास भी अतिप्राचीन है। भारतीय इतिहास देश की संस्कृति की मूल
विशिष्टता के रूप में अहिंसा और, साथ ही, स्वीकार्यता, अनुकूलनशीलता, सद्भाव और
सहिष्णुता जैसी विशिष्टताओं को भी दर्शाता है।
मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में
रहे यूनानी राजदूत मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक 'दि इण्डिका' में उस काल के भारतीय समाज, राजनीतिक व्यवस्था और संस्कृति के सम्बन्ध में लिखा है। इसमें उन्होंने लोगों की जीवनशैली में
सहिष्णुता, परस्पर सौहार्द, सामंजस्य रचनात्मकता तथा उनके सांस्कृतिक गुणों का वर्णन
किया है। दो प्रसिद्ध चीनी यात्रियों, फाह्यान और ह्वेनसांग ने क्रमशः गुप्त साम्राज्य और वर्धन राजवंश के समय भारत
भ्रमण किया। उन्होंने भी उस समय के भारतीय समाज, संस्कृति और लोगों की जीवनशैली के सम्बन्ध में लिखा। साथ ही,
उन्होंने भारतीय समाज और संस्कृति की मूल
विशेषताओं के सम्पूर्ण एशिया के लोगों पर प्रभाव पर चर्चा की है। उनके वर्णन से
प्राचीनकाल में आध्यात्मिक विश्वगुरु के रूप में भारत की स्थिति की वास्तविकता
स्पष्ट हो जाती है।
अबू रेहान मुहम्मद अल-बेरुनी (जीवनकाल: 973-1048 ईसवीं), एक फारसी विद्वान, विचारक और
इंडोलॉजिस्ट, अपने प्रसिद्ध कार्य ‘तारीख-उल-हिन्द’ (‘किताब उल हिन्द’ –भारत का इतिहास) में भारतीय समाज, संस्कृति और जीवन शैली, विशेषकर भारत की भव्यता के बारे में विस्तार से लिखते हैं।
साथ ही, धार्मिक-आध्यात्मिक क्षेत्र में देश की
स्थिति, कला, संस्कृति, शिक्षा और विज्ञान में प्रगति का उल्लेख करते हुए विश्व-ज्ञानगुरु के रूप में भारत
के पक्ष की सुदृढ़ता को सामने लाते हैं।
इन सभी और अनेक अन्य विद्वानों-बुद्धिजीवियों
के योग्य विवरणों से, जिनमें सिकन्दर
के इतिहासकार एरियन (जीवनकाल 86-160 ईसवीं) भी सम्मिलित हैं (जिन्होंने
‘इण्डिका’ शीर्षक से ही पुस्तक भी लिखी), सम्पूर्ण पूरबी जगत में भारत की उत्कृष्ट स्थिति के सम्बन्ध में समान भावनाएँ
प्रतिध्वनित होती हैं। विशेष रूप से, भारत के सम्पूर्ण एशिया पर पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव तथा,
साथ ही, सारे संसार के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान में इसकी
भूमिका का उक्त विद्वानों द्वारा उल्लेख
किया है।
शैक्षिक, बौद्धिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों के साथ ही विज्ञान के
क्षेत्र में भी भारत को प्रतिष्ठित स्थान प्रदान करने में वैदिक ऋषियों का योगदान
सर्वोपरि रहा है। इस सम्बन्ध में व्यास के नाम के साथ ही, जिन्होंने वेदों का संकलन किया और जो महाभारत के लेखक तथा
कई पुराणों से सम्बद्ध भी हैं, मार्कण्डेय पुराण के रचनाकार महामुनि मार्कण्डेय, चिकित्साशास्त्र के जनक और चरकसंहिता के रचनाकार, आयुर्वेद-विश्वकोश
(मानव काया-रचना
विज्ञान, भ्रूणविज्ञान, औषध विज्ञान, रक्त-संचार और मधुमेह, यक्ष्मा, हृदय रोग आदि जैसी रुग्णताओं के सम्बन्ध में
उल्लेखनीय ग्रन्थ) प्रदान करने वाले चरक, भारतीय दर्शन की छह प्रमुख विचारधाराओं में से एक वैशेषिक दर्शन के संस्थापक
तथा परमाणु सिद्धान्त के जनक महर्षि कणाद भी उल्लेख के योग्य हैं। यह एक लम्बी
शृंखला है, जिसमें अनेक अन्य लोगों के साथ-साथ योग
विज्ञान के जनक महर्षि पतञ्जलि का नाम भी सम्मिलित है। योगविज्ञान विश्व को भारत
का एक अमूल्यवान तथा अतिविशिष्ट उपहार है। एक उत्कृष्ट खगोलशास्त्री और गणितज्ञ
आर्यभट्ट, जिन्होंने कॉपरनिकस द्वारा हेलियोसेंट्रिक
सिद्धान्त विकसित किए जाने से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व सर्वप्रथम यह घोषणा की कि पृथ्वी गोल है और सूर्य की
परिक्रमा करते हुए अपनी धुरी पर घूमती है, और आइजैक न्यूटन से सैकड़ों वर्ष पूर्व गुरुत्वाकर्षण नियम
की खोज करने वाले भास्कराचार्य का नाम भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
गत दो हजार पाँच सौ वर्षों का भारत का इतिहास
अद्वितीय अनेकान्तवाद (बहुलवाद सिद्धान्त और दृष्टिकोण बहुलता) के प्रतिपादक
तीर्थंकर वर्धमान महावीर, शाश्वत परिवर्तन नियम के उद्घोषक शाक्यमुनि गौतम बुद्ध,
महान ऋषियों-महर्षियों और युगद्रष्टाओं,
भारत की दार्शनिक परम्परा को एक अद्वितीय
आयाम प्रदान करने वाले आदि शंकराचार्य, जो अद्वैत वेदान्त के उपदेशक और ब्रह्मसूत्र, उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता के टीकाकार भी हैं,
महान वैदिक-हिन्दू विचारक,
परम विद्वान, सुधारवादी और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द 'सरस्वती' से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक, जो एक महान विद्वान और सुधारवादी, हिन्दू धर्म और भारतीय राष्ट्रवाद के पुनरुद्धारकर्ता थे तथा जिन्होंने
शैक्षणिक, बौद्धिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में भारत को पूरब के
नेतृत्वकारी के रूप में स्थापित किया, की प्रेरणाओं और मार्गदर्शनों से भरा हुआ है। इन भारतीयों के कार्यों और
विचारों ने पूरब (एशिया) के लोगों के सामाजिक-सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन पर
विशेष रूप से गहरा तथा शेष विश्व पर सामान्य प्रभाव छोड़ा। यह महान ऋषियों की
सत्य-आधारित अभूतपूर्व खोजों और उत्कृष्ट विद्वानों व युगपुरुषों के प्रयासों का
परिणाम था कि भारतीय दृष्टिकोण ने जीवन के सभी क्षेत्रों में सार्वभौमिकता की
सत्यता को विश्वभर के लिए प्रमुख मार्गदर्शक शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया।
गत दो हजार पाँच सौ वर्षों में कितने ही
आक्रमणकारी और अत्याचारी भारत आए। उन्होंने भारतीय संस्कृति की मूल विशेषताओं से
खिलवाड़ करने के निरन्तर बर्बर प्रयास किए। आक्रान्ताओं ने जीवन-मूल्यों को नष्ट
करने और भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और दार्शनिक सिद्धान्तों को बिगाड़ने के प्रयास किए। भारत को
सैकड़ों वर्षों तक पराधीन रखने का कार्य भी किया, लेकिन वे अपने कार्यों में सफल नहीं हो सके। भविष्य में भी
इस प्रकार के कुप्रयास सफल नहीं होंगे।
उपलब्ध इतिहास स्वयं इस सत्यता का स्पष्ट
प्रमाण प्रस्तुत करता है कि महान भारतीयों ने एक ओर हिन्दुस्तान के
सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखते हुए स्वदेश और संसार के प्रति अपने
कर्त्तव्यों का निर्वहन किया और दूसरी ओर “वसुधैव कुटुम्बकम्”, तथा “जियो व जीने दो” का सन्देश प्रसारित किया।
आज भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला
देश है। लोकतंत्र की जन्मस्थली होने के साथ-साथ, हिन्दुस्तान विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है। भारतीय
अर्थव्यवस्था विश्व की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है; हिन्दुस्तान विश्व की तीसरी सबसे बड़ी क्रय शक्ति वाला देश
है। संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त अरब
अमीरात, दि नीदरलैंड्स, सिंगापुर, सऊदी अरब, चीन, जर्मनी, ब्राजील और हॉन्ग कॉन्ग, ये दस भारतीय वस्तुओं के शीर्ष आयातक देश
हैं। भारत के पास विश्व की तीसरी सबसे बड़ी स्थायी सेना है।
भारत संयुक्त राष्ट्र,
जी-20 (बीस प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की सरकारों का एक
अन्तर्राष्ट्रीय मंच), विश्व व्यापार
संगठन व राष्ट्रमण्डल सहित लगभग सभी प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों
का सदस्य होने के अतिरिक्त दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संघ और दक्षिण एशियाई
क्षेत्रीय सहयोग संघ जैसे मंचों के कार्य सञ्चालन में अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका का
निर्वहन करता है। इसलिए, जीवन के सभी क्षेत्रों, विशेषकर सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में, भारत एक सुदृढ़ स्थिति रखता है। इसके बाद भी भारत विशेष रूप से पूरब (एशिया) का नेतृत्व करने के साथ ही अभी भी विश्वगुरु का
अपना स्तर पुनः प्राप्त नहीं कर पाया है।
इस हेतु, भारतीयों को पूरब का नेतृत्व करने की दिशा में प्रथम कदम के
रूप में अपने स्वदेशी मूल्यों और व्यवस्थाओं की रक्षा करनी चाहिए। साथ ही,
भारतीयों को अपने प्राथमिक उत्तरदायित्व के
रूप में राष्ट्र के मूल संस्कारों को स्थापित रखना होगा; अपनी सांस्कृतिक परम्परा और विरासत की रक्षा करनी होगी,
जो सहिष्णुता, सद्भाव और अहिंसा आधारित हैं। ये वे तत्त्व हैं,
जिन्होंने भारत को सामाजिक-सांस्कृतिक,
शैक्षणिक-शास्त्रीय आदि जैसे अतिमहत्त्वपूर्ण
क्षेत्रों में सम्पूर्ण एशिया और पूरब के गुरु के रूप में स्थापित किया। सदैव इन्हीं
क्षेत्रों में अग्रणीय होने के कारण भारत वैश्विक एकता और सार्वभौमिक कल्याण के
प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है। विश्व इतिहास में अंकित भारतीय
संस्कारों की आज पहले से कहीं अधिक आवश्यकता है। मूल्य रूपी इन संस्कारों और विशिष्टताओं के बल पर भारत एक
बार पुनः जीवन के सभी क्षेत्रों में विश्व का नेतृत्व कर सकता है,
एवं विश्वगुरु का गौरव प्राप्त कर सकता है।
भारत की युवा-शक्ति एक सोने की खान के समान
है। भारत की कुल जनसँख्या में चालीस प्रतिशत से भी अधिक 16-30 वर्ष आयु-वर्ग के युवा हैं। हिन्दुस्तानी युवा ऊर्जावान,
उत्साही, कुशल, प्रतिभाशाली और आगे बढ़ने हेतु लालायित रहते हैं। सारा संसार भारतीय युवाओं की
क्षमता को स्वीकार करता है, उन पर भरोसा करता है। विशेष रूप से प्रौद्योगिकी, संचार और चिकित्सा तथा कम्प्यूटर विज्ञान में उनका लोहा
मानता है। भारतीय युवाओं की ईमानदारी, कार्य के प्रति समर्पण और उत्तरदायित्व भावना की विश्वभर में सराहना की जाती
है। ये उनके अनोखे पित्रैक अथवा वंशानुगत गुण हैं। ये उनके संस्कार हैं। वास्तव
में, ये विशिष्ट गुण उन्हें अपने पूर्वजों,
सनातन मूल्यों और जीवन शैली –सनातन धर्म के
अनुयायियों की संस्कृति से प्राप्त हुए हैं। यह संस्कृति विकासोन्मुख,
गतिशील और समावेशी है,
तथा मानवता के व्यापक कल्याण के लिए,
समय और परिस्थितियों की माँग के अनुसार, निरन्तर नवाचार (“नूतनैरुत”) का आह्वान
करती है। इसलिए, यदि हिन्दुस्तान के युवा अपनी मातृभूमि की
सांस्कृतिक विरासत की मूल विशेषताओं को अंगीकार करते हुए आगे बढ़ें,
तो विश्व पर भारत का प्रभाव कई गुना बढ़
जाएगा। भारत न केवल सम्पूर्ण एशिया (पूरब) पर अपनी पताका फहराएगा,
अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पुनः
विश्वगुरु के रूप में स्थापित हो जाएगा।
डॉ. रवीन्द्र कुमार सुविख्यात
भारतीय शिक्षाशास्त्री, समाजविज्ञानी, रचनात्मक लेखक एवं चौधरी चरण सिंह
विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति हैंI डॉ.कुमार गौतम बुद्ध, जगद्गुरु
आदि शंकराचार्य, गुरु गोबिन्द सिंह, स्वामी दयानन्द 'सरस्वती', स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी और सरदार वल्लभभाई पटेल सहित महानतम भारतीयों, लगभग सभी राष्ट्रनिर्माताओं एवं अनेक
वीरांगनाओं के जीवन, कार्यों-विचारों, तथा भारतीय संस्कृति, सभ्यता, मूल्य-शिक्षा और इंडोलॉजी से सम्बन्धित विषयों पर एक सौ से भीअधिक
ग्रन्थों के लेखक/सम्पादक हैंI विश्व
के समस्त महाद्वीपों के लगभग एक सौ विश्वविद्यालयों में सौहार्द और समन्वय को
समर्पित भारतीय संस्कृति, जीवन-मार्ग, उच्च मानवीय-मूल्यों तथा युवा-वर्ग से जुड़े
विषयों पर पाँच सौ से भी अधिक व्याख्यान दे चुके हैं; लगभग एक हजार की संख्या में देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित
पत्रिकाओं में एकता, बन्धुत्व, प्रकृति व पर्यावरण,समन्वय-सौहार्द और सार्थक-शिक्षा पर लेख लिखकर कीर्तिमान स्थापित
कर चुके हैंI भारतीय विद्याभवन, मुम्बई से प्रकाशित होने वाले भवन्स जर्नल
में ही गत बीस वर्षों की समयावधि में डॉ0 कुमार
ने एक सौ पचास से भी अधिक अति उत्कृष्ट लेख उक्त वर्णित क्षेत्रों में लिखकर
इतिहास रचा हैI विश्व के अनेक देशों में
अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के अवसर पर शान्ति-यात्राओं को नेतृत्व प्रदान करके
तथा पिछले पैंतीस वर्षों की समयावधि में राष्ट्रीय एकता, विशिष्ट भारतीय राष्ट्रवाद, शिक्षा, शान्ति
और विकास, सनातन मूल्यों, सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और सदाचार एवं
भारतीय संस्कृति से सम्बद्ध विषयों पर निरन्तर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय
संगोष्ठियाँ-कार्यशालाएँ आयोजित कर स्वस्थ और प्रगतिशील समाज-निर्माण हेतु
अभूतपूर्व योगदान दिया हैI डॉ. रवीन्द्र कुमार शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अपने
अभूतपूर्व योगदान की मान्यतास्वरूप ‘बुद्धरत्न’ तथा ‘गाँधीरत्न’ जैसे
अन्तर्राष्ट्रीय और ‘भारत गौरव’, ‘सरदार
पटेल राष्ट्रीय सम्मान’, ‘साहित्यवाचस्पति’, ‘साहित्यश्री’, ‘साहित्य सुधा’, ‘हिन्दी
भाषा भूषण’ एवं ‘पद्म श्री‘ जैसे राष्ट्रीय सम्मानों से भी अलंकृत हैं।
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