शनिवार, 29 जून 2024

स्वतंत्रता सेनानी और राजस्थान के प्रमुख हिंदी समाचार पत्र दैनिक नवज्योति के संस्थापक कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी जी की 32वीं पुण्य तिथि के अवसर पर हम भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। दैनिक नवज्योति समाचार पत्र वर्तमान में निष्पक्ष, ईमानदार, तटस्थ और समावेशी पत्रकारिता का प्रतीक है: डॉ कमलेश मीणा।


 स्वतंत्रता सेनानी और राजस्थान के प्रमुख हिंदी समाचार पत्र दैनिक नवज्योति के संस्थापक कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी जी की 32वीं पुण्य तिथि के अवसर पर हम भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। दैनिक नवज्योति समाचार पत्र वर्तमान में निष्पक्ष, ईमानदार, तटस्थ और समावेशी पत्रकारिता का प्रतीक है: डॉ कमलेश मीणा।

दैनिक नवज्योति समाचार पत्र के वर्तमान मुख्य संपादक दीनबंधु चौधरी साहब ने कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी साहब की न्यायसंगत पत्रकारिता के माध्यम से दैनिक नवज्योति समाचार पत्र की नैतिकता, मूल्यों, दृष्टि, मिशन और लोकतांत्रिक मान्यताओं के मुख्य विषय को बनाए रखा है। दैनिक नवज्योति समावेशी विचारधारा और सार्वजनिक सरोकार का समाचार पत्र। कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी साहब की 32वीं पुण्यतिथि पर हम उन्हें पूरे सम्मान के साथ पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। "पत्रकारिता का मुख्य काम है, लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को संदर्भ के साथ इस तरह रखना कि सरकार और हम उसका इस्तेमाल मनुष्य की स्थिति सुधारने में कर सकें।” दैनिक नवज्योति ने अब तक ईमानदारी और लगन से यह काम किया है।

कप्तान साहब की 32वीं पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि: स्वतंत्रता सेनानी व दैनिक नवज्योति के संस्थापक संपादक कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी की 32वीं पुण्यतिथि पर महान मिशनरी पत्रकार को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी जंगे आजादी के सिपाही थे। उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से आजादी के संदेश को आमजन तक पहुंचाने के साथ राष्ट्र के निर्माण में भी विशेष योगदान दिया। कप्तान साहब ने प्रदेश की हिन्दी पत्रकारिता के गौरव को बढ़ाने के लिये जीवनपर्यन्त सेवायें दी, जो सदैव अविस्मरणीय रहेगी। वे इतिहास पुरुष थे जिनकी सेवाओं को सदैव याद किया जाएगा। उनके द्वारा स्थापित परंपराओं का निर्वहन नवज्योति परिवार आज भी कर रहा है। महात्मा गांधी के सानिध्य में भी रहे कप्तान चौधरी: नवज्योति केवल अखबार नहीं है अपितु राजस्थान के इतिहास का ऐसा रोजनामचा है जिसके माध्यम से राजपूताना में हुए आजादी के संघर्ष और राजस्थान के गठन से लेकर अब तक के सारे घटनाक्रमों को पढ़ा देखा व समझा जा सकता है। गांधीवादी विचारों से ओत-प्रोत कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी को महात्मा गांधी के सानिध्य में भी रहने का अवसर मिला। उन्होंने आजादी के लिये अजमेर व आसपास के क्षेत्र में लगातार सत्याग्रह किया। डूंगरपुर, बांसवाड़ा, अजमेर, भीलवाड़ा जैसे क्षेत्रों में माणिक्य लाल वर्मा के साथ रहकर किसानों, समाज के कमजोर वर्ग और आदिवासियों को संगठित किया, उनके कल्याण के साथ उनमें जनचेतना का संचार किया। कप्तान साहब ने कई बार जेल यातनायें भी सही। उन्होंने वर्ष 1936 में अजमेर से नवज्योति को साप्ताहिक रूप में प्रकाशित किया, जो वर्ष 1948 में दैनिक के रूप में प्रकाशित होने लगा। आर्थिक संकटों और सरकारी दबावों के बावजूद वे निर्भीकता से इस समाचार पत्र को प्रकाशित करते रहे। कप्तान साहब आजादी के दौरान कांग्रेस सेवादल की टोली के कप्तान थे इसी वजह से उनके साथी उन्हें कप्तान साहब का संबोधन देते थे। बाद में वे कप्तान साहब के नाम से लोकप्रिय हो गए। वे पत्रकारों की स्वतंत्रता के पक्षधर थे और उन्होंने अपने समाचार पत्र से जुड़े सभी पत्रकारों को पूरी स्वतंत्रता दी हुई थी। उनके समय में नवज्योति पत्रकारों के एक प्रशिक्षण केन्द्र में जाना जाता था। कप्तान साहब सहज, सरल व्यक्तित्व के धनी थे। वे अपने साथ काम करने वाले सभी लोगों को अपना परिवार ही मानते थे। कप्तान साहब पत्रकारिता में सत्य व विश्वसनीयता को सर्वाधिक महत्त्व देते थे चाहे उससे कोई भी प्रभावित हो।

हमारा मीडिया दूरदर्शी विचारों और मिशनरी कार्यों के रास्ते से भटक गया है। अधिकतर हमारा मीडिया दूरदर्शी विचारों और मिशनरी कार्यों के पथ से भटक गया है लेकिन आज तक दैनिक नवज्योति अपने मिशनरी और दूरदर्शी विचारों के साथ मजबूती से खड़ा है। दैनिक नवज्योति समाचार पत्र, राजस्थान के प्रतिष्ठित अखबारों में एक है। 2 अक्टूबर,1936 को स्वतंत्रता सेनानी स्व.कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी ने दैनिक नवज्योति समाचार पत्र की राजस्थान से शुरुआत की थी। कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी ने दैनिक नवज्योति के जरिए देश के आजादी आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई। वर्तमान में से यह समाचार पत्र राजस्थान के जयपुर, अजमेर, जोधपुर, उदयपुर और कोटा संभागों से प्रकाशित हो रहा है जो प्रदेश के हर जिले में जाता है। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में पत्रकारिता और मीडिया बिरादरी के पास बहुत बड़ी शक्ति है लेकिन इस शक्ति का दुरुपयोग लोकतंत्र की शक्ति को नष्ट कर सकता है और समाज के साथ-साथ राष्ट्र के लिए भी घातक साबित हो सकता है इसलिए संवेदनशील मामले की तरह मीडिया पर भी कुछ पाबंदियां होनी चाहिए। एक समय मीडिया ने राजनीति और समाज के भ्रष्टाचार को उजागर किया लेकिन आज हमारा मीडिया आज के भ्रष्टाचार और कॉर्पोरेट संगठनों का हिस्सा बनता जा रहा है। पूंजीवादी और बड़े कारपोरेट घराने सिर्फ पैसा और मुनाफा कमाने के लिए मीडिया चला रहे हैं, उन्हें लोकतंत्र, लोकतांत्रिक मूल्यों, समाज, राजनीतिक और राजनीति, प्रशासनिक सुधार और पर्यावरण के मुद्दों की कोई चिंता नहीं है और न ही वे भ्रष्टाचार, अपराध, पंथ के बारे में चर्चा कर रहे हैं। आज सौभाग्य से दैनिक नवज्योति अखबार को हमारे लोकतंत्र, लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास और उदारवादी विचारों की वृद्धि के लिए संवैधानिक विचारधारा में विश्वास के लिए जाना जाता है। नवज्योति अखबार के लिए पहले दिन से यह थी कप्तान साहब की महान विरासत और दृष्टि है। यह भारतीय मीडिया के लिए विशेष रूप से पत्रकारिता और कप्तान साहब जैसे देशभक्त पत्रकारों के माध्यम से लोकतंत्र को पुनर्जीवित करने का नया युग था। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पत्रकारिता की शुरुआत का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों की आजादी के लिए लड़ना था और सामाजिक बुराइयों और रूढ़िवादी रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और कपट को खत्म करना था और इसे राष्ट्र के लिए मिशनरी काम के रूप में लिया गया था लेकिन आज हमारा मीडिया देश लोगों की सेवा और राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया के पथ और मिशन से भटक गया है। संस्थापक मूल्यों और मिशनरी विचारों से कोई समझौता नहीं: दैनिक नवज्योति 2 अक्टूबर 1936 (87) वर्ष से राजस्थान में एक दैनिक समाचार पत्र अपने मूलमूल्य और मिशन पर खड़ा है और निष्पक्ष रूप से हमारे लोकतंत्र और संवैधानिक अधिकारों को सशक्त और मजबूत करने के लिए हमारे वर्गों के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व कर रहा है। दैनिक नवज्योति समाचार पत्र के संस्थापक दिवंगत कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी साहब को ब्रिटिशशासन में कई गंभीर और कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने मिशनरी भावना और समाचार पत्र के विचार के साथ कोई समझौता नहीं किया, जो लोगों की जरूरतों को पूरा करनेऔर बेजुबानों को आवाज देने के लिए था। नवज्योति अखबार की समाचार सामग्री के माध्यम से नवज्योति ने हमेशा अंग्रेजों के हर प्रकार के भेदभाव, शोषण, अन्याय और असमानताओं के खिलाफ लड़ाई लड़ी। दैनिक नवज्योति अखबार ने सरकारी नीतियों और योजनाओं के प्रति कोई नरमी नहीं दिखाई और हमेशा दैनिक नवज्योति अखबार ने पाठकों और वास्तविक हितधारकों के सामने दैनिक नवज्योति ने हमेशा विश्वास, सच्चाई और तथ्य का सच्चा पक्ष रखा।

कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी के नेतृत्व में दैनिक नवज्योति अखबार का मार्गदर्शक दर्शन महात्मा गांधी के आदर्शों का प्रचार करना, जनता में देशभक्ति की भावना जगाना और हिंसा और सांप्रदायिक घृणा का विरोध करना था। कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी अपने लेखन में हमेशा निष्पक्ष, सच्चे और एक ईमानदार लोकतांत्रिक परंपरा के लेखक थे। कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी साहब ने 1982 में स्थापित किसान संघ, अजमेर के संरक्षक के रूप में किसानों के उत्थान के लिए भी सराहनीय कार्य किया, सामाजिक कुरीतियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए अजमेर जिले के 700 गांवों में किसान सभा का आयोजन किया। उनका दृढ़ विश्वास था कि अगर इस देश में भूख, गरीबी, अस्पृश्यता और अन्य सामाजिक बुराइयाँ बनी रहीं तो एक स्वतंत्र भारत अर्थहीन होगा। उन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में एक प्रगतिशील और आधुनिक भारत के अपने दृष्टिकोण और आदर्श के लिए अथक प्रयास किया। 29 जून 1992 को कप्तान साहब ने अंतिम सांस ली। आज हम राष्ट्र की इस महान आत्मा को उनकी 32वीं पुण्यतिथि पर पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं।

कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी साहब देशभक्ति के दीवाने थे: कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी साहब का जन्म 18 दिसंबर 1906 को नीम का थाना जिला सीकर के जाने-माने अग्रवाल परिवार में हुआ था। चौधरी साहब स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और समाजसेवी थे। उनके बड़े भाई प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। कप्तान साहब 1925 से 1947 तक स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहे और 1930 से 1945 तक वे सेवादल के कप्तान रहे, इसलिए बाद में दुर्गा प्रसाद चौधरी साहब को कप्तान के रूप में जाना गया। दैनिक नवज्योति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए शुरू की गई थी और बाद में इस अखबार ने "स्वतंत्रता आंदोलन की मशाल" के रूप में काम किया। दैनिक नवज्योति देशी रियासतों के खिलाफ विद्रोह करने वाला प्रमुख समाचार पत्र था। दैनिक नवज्योति ने देशी रियासतों के खिलाफ सबसे पहले विद्रोह किया और अख़बार के माध्यम से खुला मोर्चा खोल दिया। कप्तान साहब तीन वर्ष तक जेल में भी रहे। कप्तान साहब देशभक्ति दीवाने थे और भारत-चीन युद्ध के दौरान वे समाचार रिपोर्टिंग को कवर करने के लिए असम में मैकमोहन रेखा पर गए थे। कप्तान साहब देशहित के लिए जुनूनी व्यक्ति थे। लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में लड़ने के लिए जन जागरूकता बढ़ाने और जगाने में मीडिया ने अहम भूमिका निभाई। पत्रकारों, समाज सुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों ने मीडिया और लिखित शब्द की ताकत को पहचाना और उन्होंने इसे स्वतंत्रता, राष्ट्रवाद और देशभक्ति के सार के बारे में प्रचार करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया। उन अखबारों में नवज्योति प्रमुख समाचार पत्रों में से एक था जिन्होंने मिशनरी पत्रकारिता के माध्यम से कप्तान साहब के नेतृत्व में राजस्थान में स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कप्तान साहब अपने जीवन के अंतिम दिनों में आज के मीडिया की दुर्दशा के बारे में चिंतित थे: “पत्रकारों के रूप में, हमें एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मिशन के लिए, लोगों को सूचित करने और राष्ट्रीय विकास और रचनात्मक संवाद के लिए आपसी समझ का मार्गदर्शन करने की शक्ति सौंपी गई है। हमारे पाठक, दर्शक और श्रोता, पत्रकारों के रूप में मीडिया बिरादरी के प्रतिनिधियों से बिना किसी डर या पक्षपात के पूर्ण, प्रासंगिक सत्य बताने की उम्मीद करते हैं। आज की अधिकांश मीडिया बिरादरी, इस संदर्भ में क्या कर रही है? भारतीय मीडिया को राष्ट्र और समाज के लिए खुद के प्रदर्शन के बारे में सोचने की जरूरत है। वे आज हमारे लोकतंत्र में संवैधानिक विचारधारा और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम क्यों नहीं हैं? कप्तान दुर्गा प्रसाद चौधरी साहब को अपने जीवन के अंतिम समय में हमारे भारतीय मीडिया के बारे में ये प्रमुख चिंताएँ थीं। कप्तान साहब ने हमें लोकतंत्र के संवर्धन और लोकतांत्रिक मूल्यों की बेहतरी के लिए मूल्य आधारित पत्रकारिता की शिक्षा दी और मीडिया सभी के लिए समानता, न्याय, विश्वास, भाईचारे, स्वतंत्रता और शांति के लिए लोगों की वकालत करें लेकिन आज की दुर्दशा और विफलताओं के लिए हमारा मीडिया ही जिम्मेदार है।

दुर्गाप्रसाद चौधरी साहब जीवंत लोकतंत्र के सच्चे, समर्पित और ईमानदार पत्रकार थे: यह सच में कहा गया है कि पत्रकारिता कभी खामोश नहीं हो सकती: यही इसका सबसे बड़ा गुण और सबसे बड़ा दोष है। कप्तान साहब पत्रकारिता की इस कहावत के सही मायने में सच्चे प्रतिनिधि थे। इस मुखरता के कारण वह कभी चुप नहीं बैठे। इस कारण कप्तान साहब न तो सरकारों से कभी कोई लाभ कोई लिया और न ही कोई अपेक्षा की। कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी साहब भारत के पहले प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के निर्माता स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जैसे सिद्धांतों में विश्वास रखते थे कि पत्रकारिता ही लोकतंत्र को कायम रखती है और सच्चे मीडिया के माध्यम से जनतंत्र को मजबूती से जीवंत रूप में बनाए रखा जा सकता है।

कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी का जन्म 1906 में सीकर के नीम का थाना में अग्रवाल परिवार में हुआ था और वह महात्मा गांधी के असहयोग के आह्वान से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी और कई बार कारावास का सामना किया। 1930 से 1947 तक कांग्रेस सेवा दल द्वारा आयोजित आंदोलनों का नेतृत्व करने के कारण उन्हें "कप्तान" के रूप में प्रसिद्धि मिली। दिसंबर 1932 में, उन्होंने हिंदुस्तानी सेवा दल के तहत हटुंडी में एक स्वयंसेवक शिविर की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहां उन्होंने युवाओं को विदेशी कपड़ों को जलाने का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया और गांधीवादी विचारधारा को बढ़ावा दिया। अक्टूबर 1936 में राजस्थान सेवा मण्डल ने अजमेर में नवज्योति साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया, जिसके संपादक रामनारायण चौधरी थे। 1941 में जब रामनारायण चौधरी वर्धा गये तो उनके छोटे भाई दुर्गाप्रसाद ने नवज्योति के संपादक का पद संभाला। ब्रिटिश राज के प्रति अपने कट्टर विरोध के कारण अखबार को कई बार ब्रिटिश सरकार का गुस्सा झेलना पड़ा। स्वतंत्रता के प्रति उनके अटूट समर्पण के कारण, संपादक के रूप में उन्हें तीन महीने से लेकर एक वर्ष तक की अलग-अलग अवधि के लिए कारावास का सामना करना पड़ा। राजस्थान की रियासतों में, जहां अंग्रेजों का सीधा शासन था, सरकार के खिलाफ समाचार पत्र प्रकाशित करना और राष्ट्रवादी विचारधाराओं का प्रसार करना देशद्रोह माना जाता था। इन चुनौतियों के बावजूद उन्होंने निडरता और लगन से जटिल कार्य किए, जैसे जनता को उनके अधिकारों के लिए जागृत करना, विदेशी शासन की शोषणकारी प्रकृति को उजागर करना और राजस्थान की रियासतों में स्वतंत्रता के बारे में संदेह पैदा करना। अगस्त 1942 में आजादी के लिए "करो या मरो" अभियान के दौरान, उन्हें अजमेर जेल में नजरबंद कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप नवज्योति का प्रकाशन अस्थायी रूप से निलंबित हो गया। हालाँकि, जून 1945 में अपनी रिहाई के बाद, उन्होंने अखबार का प्रकाशन फिर से शुरू कर दिया। विजय सिंह पथिक से प्रेरित होकर कप्तान दुर्गाप्रसाद ने नवज्योति के माध्यम से बिजोलिया आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। अपने समाचार पत्र के माध्यम से, उन्होंने किसानों को सफलतापूर्वक संगठित किया, उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया और आंदोलन में उनके मुख्य सलाहकार के रूप में कार्य किया। नवज्योति साप्ताहिक के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम में उनका अद्वितीय योगदान उल्लेखनीय एवं सराहनीय है।

हम दैनिक नवज्योति की मिशनरी पत्रकारिता के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और दिवंगत कप्तान साहब को उनकी 32वीं पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि एवं पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। ऐसे वीर को मेरा शत् शत् नमन।।

डॉ कमलेश मीना, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र श्रीनगर कश्मीर में क्षेत्रीय निदेशक (प्रभारी) के रूप में कार्य कर चुके हैं। वर्तमान में डॉ कमलेश मीना, सहायक क्षेत्रीय निदेशक,इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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सोमवार, 24 जून 2024

भारतीय साहित्य में लोकतंत्र : एक संवाद


 

भारतीय साहित्य में लोकतंत्र : एक संवाद .

 कोलकाता, 23 जून 2024 को भारतीय भाषा परिषद, सभागार में 'भारतीय साहित्य में लोकतंत्र : एक संवाद' विषय पर 'भारतीय भाषा परिषद' और 'सदीनामा प्रकाशन' के सहयोग से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत 'परिषद' की अध्यक्षा डॉ. कुसुम खेमानी के वक्तव्य से हुई। मौके पर उन्होंने कहा कि आज के समय में लोकतंत्र को बचाने के लिए ऐसे लोकतांत्रिक कार्यक्रमों की बहुत जरूरत है। इस संवाद कार्यक्रम में शहर के बहुभाषी बुद्धिजीवियों ने शिरकत की। इस कार्यक्रम में हिंदी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती, राजस्थानी, मैथिली, उड़िया, नेपाली और मगही ; दस भाषाओं के वक्ताओं ने अपनी बात रखी। तदुपरान्त श्रोताओं ने भी उनसे प्रश्न किये।

पंजाबी साहित्य पर बोलते हुए महेंद्र सिंह पुनिया ने कहा कि गुरुनानक और बुल्लेशाह से लेकर पाश तक, 'पंजाबी भाषा' में लोकतंत्र की लंबी परम्परा रही है। इस परंपरा को उन्होंने कवियों की कुछ कविताओं से उदाहरण देकर प्रमाणित भी किया। गुरदीप सिंह संघा ने पंजाबी में एक लोकतांत्रिक कविता सुनायी।

'हिंदी' पर अल्पना सिंह एवं जीतेंद्र जितांशु ने अपनी बात रखी।

अजय तिरहुतिया ने 'मैथिली भाषा' पर बोलते हुए ज्योतिश्वर ठाकुर और विद्यापति के साहित्य से लोकतंत्र के कई उदाहरण दिए। मैथिली के एक और विद्वान अशोक झा ने कहा कि मैथिल प्रदेश में मनाया जाने वाला छठ पर्व लोकतंत्र का एक अद्भुत उदाहरण है, क्योंकि बाँस काटने और उससे डोरी बनाने वाले लोग भले ही निम्न जाति के होते हैं, पर उनके हाथ का बना समान छठ करने वाले सभी जाति के लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है। उन्होंने विद्यापति और नागार्जुन की कविताओं के जिक्र के माध्यम से भी दिखलाया कि किस तरह आज भी मिथिलांचल में लोकतंत्र मौजूद है।

'राजस्थानी' पर राजस्थानी जुबान में ही अपने वक्तव्य रखते हुए हिंगलाज दान रतनू ने कहा कि राजस्थानी भाषा के अनेक रूप हैं, लेकिन उनके बीच अद्भुत लोकतंत्र आज भी स्थापित है।

सौरभ गुप्ता ने 'ओड़िया भाषा' पर अपनी बात रखते हुए कहा कि यहाँ तो लोकतंत्र की इतनी सुंदर व्यवस्था है कि भगवान को भी बुखार लगता है और उनका इलाज भी कई दिनों तक चलता है।

कुमार सुशांत ने 'मगही भाषा' पर बोलते हुए कहा कि मगही में लोकतंत्र सदैव विद्यमान रहा है। उन्होंने मगही भाषा के कबीर मथुरा प्रसाद नवीन की कविताओं को सुनाते हुए कहा कि कवि को सूखा चना खाना पसंद है, लेकिन संघर्ष छोड़ना नहीं। यानी कवि क्रांति के लिए संघर्ष लोकतंत्र को बचाने के लिए ही करता है।

'गुजराती भाषा' पर बोलते हुए केयूर मजमुदार ने इसके कई आयाम खोले।

'उर्दू' पर अपनी बात रखते हुए डाॅ. शाहिद फिरोगी ने कहा कि उर्दू भाषा तो हमेशा से ही लोकतांत्रिक भाषा रही है। उन्होंने कुछ शेरों-शायरी का उदाहरण देकर अपनी बात को और पुष्ट किया।

'नेपाली भाषा' में नीमा निकष ने नेपाली लेखन पर लोकतांत्रिक चर्चा की ।

अंत में भारतीय भाषा परिषद की तरफ से अमृता चतुर्वेदी ने धन्यवाद ज्ञापन और सदीनामा के मुख्य सम्पादक जीतेंद्र जितांशु ने बुद्धिजीवियों को कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए शुक्रिया कहा। इस अवसर पर शिवकुमार लोहिया अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष, प्रकाश किल्ला, प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन से जुड़े व्यक्तित्व, एजाज हसन, हलीम साबिर, शीन एजाज, परवेज, विनीत शर्मा, संपादक राजस्थान पत्रिका, विमला पोद्दार, जगमोहन सिंह खोखर, विनोद यादव, रंजीत भारती, सीताराम अग्रवाल, अजेंद्रनाथ त्रिवेदी, शकुन त्रिवेदी, सेराज खान बातिश, सुरेश शाॅ, संजीव गुरुंग, गोपाल भीत्रकोटि, रामायण धमला, देवेंदर कौर, दिव्या प्रसाद, अहमद रशीद, शंकर जालान, प्रदीप कुमार धानुक, सीमा भावसिहंका, उषा जैन, सरोज झुनझुनवाला, डॉ विभा द्विवेदी, राम नारायण झा, परमजीत पंडित, राज जायसवाल, मीनाक्षी सांगानेरिया, सुशीलकांति, मीनाक्षी दत्तगुप्त प्रभृति शहर के प्रतिष्ठित लोग उपस्थित रहे।

 मुख्य सम्पादक सदीनामा - जीतेंद्र जितांशु

शनिवार, 22 जून 2024

संत कबीर दास जी भारत के 15वीं सदी के विचारशील बुद्धिजीवी थे जिन्होंने हमें ईमानदारी, न्याय, सामाजिक समानता और तर्कसंगत चर्चा और विचार-विमर्श का मार्ग दिखाया: डॉ. कमलेश मीना।


 संत कबीर दास जी भारत के 15वीं सदी के विचारशील बुद्धिजीवी थे जिन्होंने हमें ईमानदारी, न्याय, सामाजिक समानता और तर्कसंगत चर्चा और विचार-विमर्श का मार्ग दिखाया: डॉ. कमलेश मीना।

आज भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि और समाज सुधारक कबीरदास की जयंती है। कबीरदास जयंती, जिसे कबीर प्रकट दिवस के रूप में भी जाना जाता है, सम्मानित रहस्यवादी कवि और समाज सुधारक कबीर दास की जयंती का प्रतीक है। प्रतिवर्ष ज्येष्ठ (मई या जून) की पूर्णिमा को मनाया जाता है, भारत में यह महत्वपूर्ण दिन कबीर की प्रेम, सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव की स्थायी विरासत का सम्मान करता है। उनकी शिक्षाएँ, जो ईश्वर की एकता और धार्मिक विभाजन की निरर्थकता को उजागर करती हैं, पीढ़ियों से लोगों को प्रेरित करती रहती हैं। कबीर की कविता, उपदेश और सूक्तियों को दुनिया भर में सराहा जाता है। कबीरदास जयंती उनके जीवन, आदर्शों और आध्यात्मिक योगदान को मनाने के लिए समर्पित है। संत कबीर दास जयंती या संत कबीर दास की जयंती को ज्येष्ठ पूर्णिमा पर हिंदू वैदिक कैलेंडर के अनुसार पंचांग कहा जाता है। इस वर्ष यह दिन 22 जून शनिवार को पड़ रहा है। कबीर दास जी दुनिया के सबसे बड़े तर्कसंगत, तार्किक और वैज्ञानिक स्वभाव के व्यक्ति थे। हम अपनी समृद्ध विरासत के इस महान व्यक्ति को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि कबीर का जन्म 1398 (संवत 1455) में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा (ऐतिहासिक हिंदू कैलेंडर विक्रम संवत के अनुसार) ब्रह्ममुहर्त के समय हुआ था। कबीर के जन्म के आसपास की परिस्थितियों पर काफी विद्वानों में बहस हुई है और उनके जन्मदिन की तारीख, समय और स्थान पर कोई सहमति नहीं थी, लेकिन वर्तमान पुरातात्विक साक्ष्य यह सत्य जानकारी देते हैं कि कबीरदास जी उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल भाग का हिस्सा थे। कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने अपनी वाणी से स्वयं ही कहा है “मसि कागद छूयो नहीं, कलम गयो नहिं हाथ।” जिससे ज्ञात होता है कि उन्होंने अपनी रचनाओं को नहीं लिखा। इसके पश्चात भी उनकी वाणी से कहे गए अनमोल वचनों के संग्रह रूप का कई प्रमुख ग्रंथो में उल्लेख मिलता है। ऐसा माना जाता है कि बाद में उनके शिष्यों ने उनके वचनो का संग्रह ‘बीजक’ में किया।

"जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ, मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।”

हम आप सभी को कबीर दास जी की जयंती वर्ष समारोह की सालगिरह की बधाई देते हैं और समाज और राष्ट्र के विकास के लिए हमें उनकी शिक्षाओं और शैक्षिक अनुभव का पालन करना चाहिए। उनकी अनुभव आधारित विचारधारा में हमेशा मानव समाज के बुनियादी सिद्धांतों और बुनियादी जरूरतों की मजबूत समझ थी।

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,

अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कबीर जयंती मनाई जाती है। इस बार उनकी जयंती 22 जून शनिवार को है। कबीर दास जयंती के अवसर पर आप सभी को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं। कबीर दास जी देश के एक तर्कसंगत, तार्किक और वैज्ञानिक विचारक थे। कबीर की यात्रा धार्मिक विभाजनों से परे थी। उन्होंने रामानंद और शेख तकी जैसे हिंदू और मुस्लिम शिक्षकों से आध्यात्मिक मार्गदर्शन मांगा। प्रभावों के इस अनूठे मिश्रण ने उनके दर्शन को आकार दिया, जिसने एकल ईश्वर के विचार का समर्थन किया और धार्मिक अतिवाद को खारिज कर दिया। कबीर का स्थायी प्रभाव मुख्य रूप से उनकी मनोरम कविता में निहित है। सरल लेकिन सशक्त हिंदी में लिखी गई उनकी कविताएँ भक्ति आंदोलन से प्रेरणा लेती हैं, एक भक्ति आंदोलन जो परमात्मा के साथ सीधे संबंध पर जोर देता है। "भजन" और "दोहा" के रूप में जानी जाने वाली उनकी कविताओं ने सार्वभौमिक प्रेम, सामाजिक न्याय, समानता, समान साझेदारी और आत्म-खोज के महत्व के विषयों की खोज की।

कबीर दास ने अपने साहित्यिक संग्रह और छंदों के माध्यम से अपने समय के अवैध, तर्कहीन, अप्रासंगिक, अवैज्ञानिक, अंधविश्वास और रूढ़िवादी रीति-रिवाजों के खिलाफ आवाज उठाई। वे एक प्रसिद्ध समाज सुधारक, कवि और संत थे। उनके काम का प्रमुख हिस्सा पांचवें सिख गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा एकत्र किया गया था। उनके लेखन का भक्ति आंदोलन पर बहुत प्रभाव पड़ा और इसमें कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, बीजक और सखी ग्रंथ जैसे शीर्षक शामिल हैं।

कबीरा जब हम पैदा हुये जग हँसे हम रोये।

ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।

उनके जन्मदिन पर उनके अरबों अनुयायी उन्हें याद करते हैं और भारतीय साहित्य के इस महान व्यक्तित्व को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं और उनकी कविताओं और शिक्षाओं का पाठ करते हैं। महामना गौतम बुद्ध के बाद कबीर दास ने समानता, न्याय, न्यायसंगत कार्य, तर्कसंगत चर्चा, साक्ष्य आधारित सत्य और ज्ञान की वकालत की। उन्होंने सामाजिक बुराइयों, अंधविश्वासों, रूढ़िवादी, कपटपूर्ण रीति-रिवाजों, धोखेबाज कर्मकांडों और नकली संतों, डोंगी आध्यात्मिक गुरुओं और कपटी व्यक्तियों, धोखाधड़ी, छल कपटपूर्ण शासन, प्रशासन, शासक और व्यवस्था की कपटपूर्ण गतिविधियों पर कई श्लोक लिखे और उठाए। आज, कबीर को हिंदू धर्म, सिख धर्म और इस्लाम, विशेषकर सूफीवाद में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। 1398 ई. में वर्तमान उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में जन्मे, उन्हें संगठित धर्मों के आलोचक के रूप में भी जाना जाता है। संत कबीरदास भारतीय मनीषा के पहले विद्रोही जाने जाते हैं, उन्होंनें अंधविश्वास के खिलाफ विद्रोह किया था। संत कबीरदास ने अपने जीवन में कई सुंदर महाकाव्यों की रचना की है जो आज भी प्रासंगिक हैं। भक्तिकाल के महान कवि और संत कबीरदास का जीवन समाज को सुधारने के लिए समर्पित था। कबीरदास को कर्म प्रधान कवि कहा गया है, उनका नाम हिंदी साहित्य में उत्तम योगदान के लिए जाना जाता है। उनकी रचनाएं बहुत खूबसूरत और सजीव हैं जिनमें समाज की झलकियों को दर्शाया गया है। वह कवि होने के साथ समाज कल्याण और समाज हित के काम में भी व्यस्त रहते थे। उनकी उदारता के लिए उन्हें संत की उपाधि भी दी गई थी। वह भारतीय मनीषा के पहले विद्रोही संत थे, उन्होंने अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

उन्होंने अपने जीवन में कई सुंदर, अद्भुत और मधुर महाकाव्यों की रचना की है। संत कबीरदास का जन्म मुस्लिम परिवार में संवत 1455 में हुआ था, वह जात-पात में विश्वास नहीं रखते थे। वैसे तो संत कबीरदास के जन्म का प्रमाण नहीं मिलता है लेकिन कहा जाता है कि जिस दिन संत कबीरदास का जन्म हुआ था उस दिन ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा थी। संत कबीरदास की जन्मतिथि को कबीरदास जयंती के नाम से जाना जाता है। कबीर का जन्म सामाजिक और आर्थिक असमानता के काल में हुआ था, उस समय का धार्मिक जीवन पूरी तरह से उस समय की एक उच्च जाति के नियंत्रण में था। आसक्ति या निर्वाण में व्यस्त रहने के कारण व्यक्ति ने अपना सामाजिक संदर्भ खो दिया था। कबीर का उद्देश्य जन्म और मृत्यु से मुक्ति था। उनके काल में राजनीति एवं अर्थशास्त्र की प्रधानता तब तक स्थापित नहीं हो पायी थी। अगर राजनीति थी भी तो धार्मिक राजनीति थी। उस समय के समाज में दिखाई देने वाली सभी असमानताएँ उस समय के धर्म से प्रेरित थीं।

 

कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई,

बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई।

कबीर दास ने अपने तर्कसंगत श्लोकों के माध्यम से मानव समाज के संकट, सफल जीवन शैली, स्नेह और भाईचारे का मार्ग सिखाया जो आज भी प्रासंगिक है।कबीर दासजी ने वर्षों पहले लाइफ मैनेजमेंट के जो रूल अपने दोहों के जरिए बताए, वो आज के जमाने में भी उतने ही कारगर हैं, जितने उस वक्त थे।

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।

कबीर दास का यह श्लोक कहता है कि यदि हम लक्ष्य और उद्देश्य के अनुसार कार्य कर रहे हैं तो धैर्य सफलतापूर्वक और फलदायी परिणाम प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका है। हड़बड़ी और जल्‍दबाजी करने का कोई मतलब नहीं है। हर चीज को पूरा करने में अपना समय लगता है।

तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पांवन तर होय,

कबहुं उड़ी आंखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

कबीर दास अपने समय में 15वीं सदी भारत के सबसे रहस्यवादी कवि, लेखक, वक्त, तर्कसंगत विचारक और बुद्धिमान व्यक्ति थे। वह अपने समय में एक तेजतर्रार व्यक्तित्व थे और उन्होंने अपने तेज बौद्धिक शक्ति के माध्यम से ईश्वर के अस्तित्व को चुनौती दी थी।

निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,

बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

कबीर दास कभी भी किसी देवी या देवता के अस्तित्व में कभी विश्वास नहीं करते थे। "पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पुजौपहार, था ते तो चाकी भली, जासे पीसी खाय संसार।

कबीर दास ने इस तरह की गतिविधियों पर तार्किक सवाल खड़े किए और उनके विरोधियों के पास उनके आकर्षक सवालों का कोई तार्किक जवाब नहीं था। न ही उनके विरोधियों ने उनके श्लोकों और वाक्पटु जप पर तार्किक रूप से प्रश्न नहीं किए। उनका प्रत्येक श्लोक कई सार्थक बातें, समझदार विचार और न्यायसंगत जीवन का तरीका कहते थे। उन्होंने हमेशा मानव समाज के लिए समानता, न्याय और भेदभाव रहित व्यवहार की वकालत की और कबीर दास ने जो व्यंग्यात्मक प्रहार किए, वे अपने आप में अतार्किक, अवैज्ञानिक और अंधविश्वासों के उस दौर पर आँखें खोलने वाली टिप्पणियाँ थीं।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,

सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

 

संत कबीर दास जी ने शासकों के सामने अपने समय में आम लोगों, कमजोर वर्ग और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज उठाई और नकली संतों और अंधविश्वास आधारित धार्मिक मान्यताओं के तर्कहीनता, अवैज्ञानिक और हानिकारक इरादे से उनके जीवन को बचाया। उनका प्रत्येक श्लोक समाज के चित्रण का प्रतिनिधित्व करता था। उन्होंने उनकी दुर्दशा पर उचित समाधान के साथ उचित स्पष्टीकरण दिया।

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,

अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

कबीर दास जी महामना गौतम बुद्ध के बाद भारत के दूसरे तर्कसंगत, तार्किक, वैज्ञानिक ज्ञान वाले व्यक्ति थे, जिन्होंने तर्कहीन, अप्रासंगिक, अंधविश्वास, भेदभाव, अन्याय और नकली रीति-रिवाजों, कर्मकांडों आदि के बारे में महत्वपूर्ण वैचारिक प्रश्न उठाए। कबीर दास ने अपने जीवन में अनेक प्रकार की कृतियां लिखी।

जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई,

जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई।

कबीर दास के जन्म स्थान के संबंध में यह कहा जाता है कि मगहर, काशी में उनका जन्म हुआ था। कबीर दास ने अपनी रचना में भी वहां का उल्लेख किया है: “पहिले दरसन मगहर पायो पुनि काशी बसे आई” अर्थात काशी में रहने से पहले उन्होंने मगहर देखा था और मगहर आजकल वाराणसी के निकट ही है और वहां कबीर का मकबरा भी है। कबीर पंथ कोई अलग धर्म नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक दर्शन है। कबीर अपनी कविताओं में स्वयं को जुलाहा और कोरी कहते हैं। दोनों का मतलब बुनकर, निचली जाति से है। उन्होंने खुद को पूरी तरह से न तो हिंदुओं से जोड़ा और न ही मुसलमानों से। सही मायनों में वह नेक विचार, तर्कसंगत दर्शक और उदार हृदय और व्यापक दिमाग वाले सच्चे इंसान थे।

मसि कागद छुवो नहीं, कमल गही नहिं हाथ

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।

संत कबीर दास आकर्षक और प्रभावशाली चीजों के साथ अपने समय के मानवता, भाईचारे, समानता और आराध्य व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने समय में गौतम बुद्ध के रूप में किसी भी श्रेष्ठ शक्ति के अस्तित्व का दृढ़ता से खंडन किया और उन्होंने जागरूकता, शैक्षिक और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और लोकतांत्रिक रूप से लोगों के लिए समान पहुंच की वकालत की, जैसा कि महावीर स्वामी और सभी सिख गुरुओं ने किया था। गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह से लेकर कबीर दास तक सभी भारतीय संस्कृति और विरासत के महान व्यक्ति थे जिन्होंने जातिवाद, भेदभाव, असमानता, अंधविश्वास, रूढ़िवादी रीति-रिवाजों और कर्मकांडों को खत्म करने और समानता देने के लिए हमेशा सभी के लिए और मानवता के लिए सबसे अच्छा काम किया। हमारे ये सभी संत आज भी हमारे और इस ब्रह्मांड के लिए प्रासंगिक हैं। हम कामना करते हैं कि कबीर जयंती सभी के लिए शांति और आध्यात्मिक ज्ञान लाए और उनकी शिक्षाएँ हमारी मानसिकता और जीवनशैली को आकार देती रहें। संत कबीर ने सदियों तक हमें अपनी कविताओं और छंदों से प्रेरित किया। उनके प्रभावशाली विचार और राय वर्तमान समय में भी प्रासंगिक बने हुए हैं। कामना है कि कबीर के प्रेम और करुणा के संदेश हर दिल में गूंजें। कबीर जयंती की भावना सभी समुदायों के बीच समझ और सहिष्णुता को बढ़ावा दे। एक बार फिर हम आप सभी को भारतीय साहित्य के, वस्तुतः विश्व के ऐसे महान व्यक्तित्व के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं, जिन्होंने अंधकार युग के उस दौर में अपने प्रकाश, ज्ञानोदय की शिक्षा, नैतिक नैतिक ज्ञान और तर्कसंगत विचारशील शाब्दिक योगदान से हमारा नेतृत्व किया।

कबीर दास जी को विनम्र श्रद्धांजलि एवं पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। ऐसे वीरों को मेरा शत् शत् नमन।।

सादर।

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...