बुधवार, 10 अप्रैल 2024

‘बेरंग मानवीय जीवन को रंगीन बनाती ... फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय’- ताराचंद कुमावत ,शोधार्थी- हिंदी विभाग राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा


                                     बेरंग मानवीय जीवन को रंगीन बनाती ... 

                  'फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय'

       

वर्तमान दशक के उभरते हुए काव्यकारों में ‘विवेक कुमार मिश्र’ का नाम अदब के साथ लिया जाता है | ‘कुछ हो जाते ...पेड़ सा’ के माध्यम से अपने काव्य-कर्म की शुरुआत करने वाले ‘मिश्रजी’ अपने समसामयिक आलेखों एवं कविताओं के लिए बहुचर्चित हैं | ये प्रसिद्धि प्राप्ति के लिए नहीं लिखते वरन् जीवन की स्वाभाविक सरणियों से प्रेरणा ग्रहण कर जीवन जीने की सहज एवं माकूल स्थिति का परिचय करवाते हैं | इनका नवीन काव्य-संग्रह ‘फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय’ एक ऐसे कविमन की भावभूमि में फलीभूत होने वाली रचना है । जो न केवल पतित होते मानवीय मूल्यों को सँवारने के लिए प्रेरित करती है ।अपितु व्यक्ति की स्वाभाविक जीवन शैली को भी सहजता के साथ अभिव्यक्त करती है । नयी पीढ़ी के काव्यकारों में अपनी महनीय उपस्थिति से प्रतिष्ठा प्राप्त करने वाले ‘विवेक कुमार मिश्र’ एक ऐसे कविमन के साथ पाठक वर्ग के सम्मुख उपस्थित होते हैं जो आधुनिक संवेदनाओं को व्यापकता के साथ रेखांकित करते हैं । कवि की यह रचना इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि कवि ने भाग-दौड़ भरी जीवन शैली के बीच एक ठहराव के साथ जीवन जीने की राह दिखाई है | रचनाकार का कविमन केवल काव्य की सीमाओं में ही प्रतिबंधित नहीं होता । अपितुआलोचना एवं समसामयिक मुद्दों के मूल में विद्यमान वैचारिकी को भी प्रखरता के साथ अभिव्यक्त करता है । ‘विवेकजी’ ने अपनी पारखी नजरों एवं द्रवीभूत हृदय के चलते उद्बुद्ध होने वाली मानवीय संवेदनाओं को बड़ी संजीदगी के साथ अभिव्यक किया है ।

यह माना जाता है कि बदलते समाजार्थिक परिदृश्य के बीच आधुनिक संवेदनाओं को समझ पाना दुष्कर है | यक्ष प्रश्न यह है कि अनुत्साहित एवं  रंगहीन होते जीवन को रंगीन एवं उत्साहित किसप्रकार बनाया जाय? क्योंकि जिस तरह की सामाजिक स्थितियाँ वर्तमान समय में निर्मित हो रही हैं उससे यही प्रतीत होता है कि पर्व-त्योहारों के प्रति लोगों के मन में जो उमंग एवं उत्साह पहले दिखाई पड़ता था; वह आज के मनुष्य में परिलक्षित नहीं होता है | आखिर ऐसे कौन से कारण हैं जिनके चलते ऐसी स्थितियाँ बन रही हैं | उन्हीं कारणों की मीमांसा कर उसका उचित समाधान दिखाना कवि का मूल उत्स है | इसीलिए चाय जैसे सहज, सामान्य एवं महनीय विषय के माध्यम से जीवन को रंगीन एवं उत्साहित बनाने की बात कवि कुछ इसतरह करता है –

“ चाय के साथ जीवन का रंग और / चाय का पकता हुआ रंग साथ-साथ होता

आप चाय के साथ हैं / इसका सीधा सा अर्थ यह है कि

आप जीवन के उत्सव को जी रहे हैं |”

अक्सर यह सोचा जाता है कि चाय की थड़ी पर बैठने वाले लोग निठल्ले एवं आलसी होते हैं | उन्हें न घर-परिवार की परवाह है और न देश की बनती-बिगड़ती स्थितियों की | ऐसा सोचना शायद उचित नहीं है | कारण स्पष्ट है कि चाय की दुकान पर बैठने वालों ने समय के पृष्ठों पर सुनहरे अक्षरों में अपनी सफलता का इतिहास लिखा है | दैनंदिन जीवन में यह देखा जाता है कि आलस्य को दूर कर के लिए चाय की चुस्कियाँ कितनी सार्थक सिद्ध होती हैं | चाय केवल कुछ पल के लिए आलस्य को ही नहीं हटाती अपितु वह जीवन को उर्जस्वित एवं उत्साहित भी बनाती है | यह वैयक्तिक जीवन में व्याप्त अनुत्साह को तिरोहित कर उत्साह के तारों को झंकृत करती है | न केवल जीवन को उत्साहित बनाती है अपितु जीवन में नवीन भाव-सौन्दर्य को सृजित कर व्यक्ति को जीवन में कुछ कर गुजरने का मादा भी प्रदान करती है | ‘विवेकजी’ का कविमन भी नैरन्तर्य के साथ लोगों को जीवन में कुछ नूतन करने की प्रेरणा एवं साहस प्रदान करता है - 

“चाय एक रंग लिए /जीवन का उत्सव रचती है

चाय के साथ ताजगी नयापन / और कुछ करने का जज्बा होता है |”

चाय एक ऐसा जरिया है जो व्यक्ति व समाज को दुनिया के भले-बुरे अनुभवों से परिचय करवाती है | चाय की बैठक व्यक्ति व समाज को संसार का रहस्य समझाकर जीवन को सुकूनता के साथ जीने की राह दिखाती है | वैश्वीकरण के चलते बनते-बिगड़ते सामाजिक सम्बन्धों के बीच संवादहीनता का प्रचलन आज एक प्रबल समस्या बन गई है | और इस संवादहीनता ने वैयक्तिक मन में तनाव, अजनबीपन,अकेलपन, नैराश्य जैसे जीवन विरोधी भावों का विकास किया है जो मानवीय जीवन को बेरंग एवं नारकीय बनाने के लिए पर्याप्त हैं | कवि को यही सब सालता है | परिणामत: वे अपनी कलम के माध्यम से व्यक्ति व समाज को इन जीवन विरोधी स्थितियों से निजात दिलाने की राह दिखाकर जीवन को सुकूनता के साथ जीने की प्रेरणा प्रदान करते हैं | उनकी मान्यता है कि चाय का एक कप व्यक्ति को संवादोन्मुख ही नहीं बनाता अपितु वह उसे दुनिया की समस्याओं पर भी विचार करने की प्रेरणा देता है -    

एक चाय पर / दुनिया अनेकश: अर्थ लिए आ जाती है

चाय सीधे-सीधे संसार से संवाद करना सिखाती / खाली बैठे आदमी को

दुनिया के मसले पर विचार के लिए उकसा देती |

संवादशीलता की प्रवृत्ति के चलते वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन में जीवन्तता का संचरण होना स्वाभाविक है | किसी भी रचनाकार का उदिष्ट यही रहता है कि व्यक्ति संवादशील होकर अपनी जीवन्तता का परिचय दे | जीवन में संवादों की जीवन्तता की महनीयता इस बात में है कि वह व्यक्ति को प्रतिबंधित नहीं करती अपितु उसे मुक्त संसार में विचरण करने की प्रेरणा प्रदान करती है | ‘विवेकजी’ का कविमन भी मनुष्य मात्र में संवादों की प्रतिष्ठापना कर उनके जीवन को जीवंत एवं सार्थक बनाना चाहता है | उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि चाय की बैठक ही वह ठौर है जहाँ से मानवीय व्यवहार को परिवर्तित कर उसे जीवन के सौन्दर्य से सम्पृक्त किया जा सकता है-

एक चाय ही तो है / जो सांसारिक यात्रा में

संवाद का पुल रचते-रचते मुक्त मन संसार में चली जाती है / चाय पर बैठे हुए हम सब का व्यवहार जीवंत संवाद के साथ / शुरू होता है |

मानवीय जीवन में संवादों के संचरण से जीवन्तता की प्रतिष्ठापना होती है | और इस जीवन्तता के साथ फलीभूत होती है मानवीय सम्बन्धों के मध्य रागानुराग भावना | आज मानवीय सम्बन्ध गाहे-बगाहे नीरस, अजनबी, अकेले एवं जीवनानंद से असम्पृक्त हो रहे हैं |  मानवीय जीवन का यह स्वभाव है कि वह उर्जस्वित, उमंगित, तरंगित एवं उत्साह्वान हो | लेकिन वर्तमान समय में जैसी स्थितियाँ बन रही हैं उससे यही प्रतीत होता है कि आज के मानवीय सम्बन्ध अपनी ही चौखट पर संघर्ष कर रहे हैं | कवि सम्बन्धों की बेरंग एवं सूनी चौखट को रंगीन बनाने की चाहना व्यक्त करता है -

चाय मानवीय संबंधों को जीने की गाथा है / यहाँ ऊष्मा, ऊर्जा, तरंग और उल्लास का

ऐसा जादू समाया होता है कि / चाय के साथ दुनिया भर के राग को

 उसके जीवित रंग के साथ जी लेते हैं |

समग्रत: यह कहा जा सकता है कि ‘विवेकजी’ का कविमन सामाजिक विद्रूपताओं का शमन करने के लिए लालायित एवं उत्साहित दिखाई पड़ता है | उन्हें जीवन की सुकूनता पसंद है | वे अपने कविता-कर्म के माध्यम से मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठापना कर जीवन को सहजता एवं सुकूनता के साथ जीने की प्रेरणा प्रदान करते हैं |

 


शनिवार, 30 मार्च 2024

कहानी : बंद शटर - केदार शर्मा,’निरीह’ सेवानिवृत्त व्याख्याता (अंग्रेजी)

 


कहानी   :   बंद शटर 

केदार शर्मा,’निरीह’ सेवानिवृत्त व्याख्याता (अंग्रेजी)

हैलो, अदितिजी ! आज आप यहाँ क्यों खड़े हो ?’ ऑफिस की सहकर्मी अदिति को चौराहे के पास खड़े देखकर रवि के पाँव रुक गए।

नमस्ते रविजी, कल मकर संक्रांति का त्योहार पर गाँव जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी। मेरे यहाँ आने के पाँच मिनट पहले ही मेरे गाँव जाने वाली बस निकल गई और अगली बस आने में अभी पूरा एक घंटा बाकी है। ‘’

    ‘’अच्छा तो चलो सामने रेस्टोरेंट में बैठकर कॉफी पी लेते हैं। मैं भी यहाँ जिस दुकान पर किसी काम से आया था,उस पर अभी शटर बंद है, न जाने कितनी देर में खुलेगा? ‘’

         जाना न चाहते हुए भी अदिति मना नहीं कर सकी। वह उसके पीछे पीछे चलने लगी ।

 सुदर्शन चेहरा और सदाबहार मुस्कराहट लिए किसी चुम्बकीय आर्कषण की प्रतिमूर्ति से कम नहीं थी अदिति । रवि से उसका सामान्य परिचय कॉलेज के समय से ही था। दोनो के संकाय अलग-अलग थे। साहित्य संबंधी सेमीनारों और गोष्ठियों में अदिति अक्सर नजर आती थी ।

             वह इतना तो जानता था कि धर्म, अध्‍यात्म और साहित्य में अदिति की गहरी रुचि थी । उसे याद आया कि प्रसगंवश एक बार किसी विषय पर चर्चा चल पड़ती तो वहीं पर अदिति का व्याख्‍यान शुरू हो जाता था, सामने वाला उसके रुकने का इंतजार करता रहता और कभी कभी तो कोई बहाना बनाकर पिंड छुड़ाना पड़ता।

       वर्षों बाद  अभी एक माह पहले ही उसी ऑफिस में सहायक प्रोग्रामर के पद पर अदिति की प्रथम नियुक्ति हुई है,जहाँ रवि ने कुछ दिन पहले ही सहायक लेखाकार के पद पर जॉइन किया था। 

      देखते ही मुस्कराना, खुले मन से घर परिवार की बातें करना,धैर्य से सबकी बातें सुनना मानो अदिति के स्वभाव में ही था। ऑफिस में दोनों का एक ही जगह लंच करना,आपस में खाना शेयर करना और खाने के बाद दुनिया भर की ढेर सारी बातें करना दिनचर्या में शामिल हो रहा था।

           दो कप कॉफी का ऑर्डर देकर रवि अदिति के सामने बैठ गया । रेस्टोरेंट में उन दोनो के अतिरिक्त और कोई ग्राहक वहाँ नहीं था । कुछ देर बाद दुकानदार कॉफी की ट्रे रखकर काउटंर पर जा चुका था।  थोड़ी देर तक दोनो के बीच ऑफिस से संबधित और इधर-उधर की बातें होती रही। फिर दोनों कुछ देर के लिए मौन हो गए ।

   कई दिनों से रवि इसी मौके की तलाश में था कि अदिति से अपने मन की बात कह सके । उसको न जाने क्यों विश्‍वास हो चला था कि अदिति उससे प्रेम करती है । कभी वह सोचता कि यह उसके मन का भ्रम है, क्योंकि अदिति तो नवीन बाबू, बोस, सहायक कर्मचारी और अन्य कर्मचारियों सहित सभी से तो वह हँसकर खुले मन से बातें करती है। हो सकता है उसका स्वभाव ही ऐसा हो ।

          यदा-कदा रवि के घनिष्‍ठ मित्र कभी कभी रवि को अपनी-अपनी गर्लफ्रेंड के किस्से सुनाते रहते थे। मोबाइल पर भेजे गए बधाई संदेश,सोशल साइट्स पर दिए गए लाइक्स, कमेंट्स ओर फोटो शान से दिखाते। रवि के मन में भी एक हूक सी उठने लगी कि काश उसके भी कोई गर्लफ्रेंड होती। वैसे मन ही मन वह अदिति में अपनी गर्लफ्रेंड का अक्स़ देखने लगा था । अदिति के आत्मीयता से ओतप्रोत  हँसमुख व्यवहार से कई बार उसे विश्‍वास होने लगता कि अदिति ही उसकी एकमात्र गर्लफ्रेंड है । कई बार मन की यह बात उसने अदिति से कहने का प्रयास भी किया, पर कह नहीं पाया ।

   ‘’आज आप खोए-खोए से लग रहे हो रविजी, क्या बात है? घर पर तो सब ठीक हैं’’—मुस्कराते हुए अदिति ने उसकी ओर देखा ।‘’हाँ.., कुछ नहीं...’ वह चौंक कर ख़याली दुनिया से बाहर आ गया ।

 कुछ क्षण मौन रहकर हिम्मत कर वह बोला—‘दरअसल आप से एक बात कहनी थी।‘

तो कहो ना, रुक क्यों गए आप?’

 दरअसल मैं आपको अपनी फ्रेंड बनाना चाहता हूँ’ — दबी सी आवाज में रविने कहा ।

        ‘’यह कैसी बात कह रहे हैं आप, फ्रेंड तो हम हैं ही। साथ जॉब कर रहें हैं तो साथी कह लीजिए।सोशल साइट्स पर क्या हम मित्र नहीं हैं? क्या हम आपस में मित्र के तौर पर वहाँ अपने विचार शेयर नहीं करते ? मेरे और भी बहुत से मित्र हैं पर  कभी किसी ने ऐसा सवाल नहीं किया। ‘’

     फ्रेंड तो मेरे भी बहुत से हैं पर गर्लफ्रेंड कोई भी नहीं है’— इस बार रवि ने हिम्मत करके कह ही डाला ।

‘’ अच्छा, तो अब मैं समझी.... आप मुझे गर्ल के तौर पर फ्रेंड बनाना चाहते हैं। इसका मतलब आप हमारी सामान्य मित्रता से संतुष्‍ट नहीं हैं। यानि कि आप मुझे महज एक लड़की के तौर पर देखते हैं, केवल सामान्य मित्र के रूप में नहीं।

        पर मैं स्पष्‍ट कर दूँ रविजी, कि सामान्य रूप से हम सब मनुष्‍य पहले हैं,नर-नारी का भेद बाद की बात है । लड़का-लड़की होना हर किसी का व्यक्तिगत मामला होना चाहिए। मित्रता के धरातल पर मनुष्‍य के लिए मनुष्‍य होना ही पर्याप्त होना चाहिए । मित्रता को देहबोध के चश्‍में से क्यों देखा जाना चाहिए ? सामान्य मित्रता में देहभेद कहाँ आड़े आता है? कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि आजकल युवाओं में  कहीं यह अहं की तुष्टि और फैशन सिंबल की भेड़-चाल का परिणाम तो नहीं है।समाज में इसके परिणाम आए दिन हम अखबारों मे देखते हैं।

      अदिति सहज होकर रवि को ऐसे समझा रही थी जैसे छोटे बच्चे को कोई शिक्षक समझा रहा हो।‘ हालाकि उसके चेहरे से वह सदाबहार मुस्कान गायब हो गयी थी और उसका स्थान परिपक्वता से परिपूर्ण सहजता ने ले लिया था ।

      मि. रविजी, मित्रता के धरातल पर मनुष्‍य होने के नाते हमारा सामान्य मित्र बने रहना ही बेहतर होगा।अच्छा, अब मैं चलती हूं, बस आने वाली है’ — कहते हुए अदिति धीरे से उठी और हमेशा की तरह मुस्कराकर गुड बाई कहकर तेजी से चली गई ।

रवि अवाक सा देखता रहा ।कुछ क्षणों के लिए कमरे में अब मौन छा गया था। वह धीरे से उठा और काउटंर की ओर बढ़ा पर दुकानदार ने इशारे से बता दिया कि पैसे मेम साहब ने दे दिए हैं।

    तभी रवि के मोबाइल की घंटी घनाघना उठी। उधर से उसकी पत्नि सावित्री देवी की नाराजगी भरी आवाज थी---‘अभी भी आटा नहीं पिसा क्या ?कितनी देर हो गई इंतजार करते हुए। बच्चों को भूख लग रही है ।  ‘’हाँ हाँ... बस आ ही रहा हूँ । पहले फ्लॉर मिल का शटर बंद था । अब खुल गया है ‘— कहते हुए उसने फोन काटा और तेजी से दुकान से बाहर निकल गया । उसे महसूस हुआ कि जैसे उसके भीतर भी समझ का कोई शटर बंद था जो अदिति से बातचीत के बाद खुल गया है।

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लेखक  परिचय  

केदार शर्मा,”निरीहपूर्व व्याख्याता, अंग्रेजी

कहानियां, व्यंग्य, कविताएं,गीत , लघुकथाएं एवं आलेख विधाओं में रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। नियमित रूप से लेखनरत।

Mobile no.-9587615121

राजस्थान अपनी वीरता, सुंदर आतिथ्य, बलिदानियों की भूमि, श्रम की भूमि, व्यापारिक समुदाय की भूमि, मेहनतकश कमाऊ और ईमानदार सोच, अपने विश्वसनीय, भरोसेमंद और ईमानदारी भरे व्यवहार, विश्वसनीयता, विश्वास और समर्पण की भूमि के लिए और के कारण राजस्थान दुनिया भर में जाना जाता है: डॉ कमलेश मीना।


 

राजस्थान अपनी वीरता, सुंदर आतिथ्य, बलिदानियों की भूमि, श्रम की भूमि, व्यापारिक समुदाय की भूमि, मेहनतकश कमाऊ और ईमानदार सोच, अपने विश्वसनीय, भरोसेमंद और ईमानदारी भरे व्यवहार, विश्वसनीयता, विश्वास और समर्पण की भूमि के लिए और के कारण राजस्थान दुनिया भर में जाना जाता है: डॉ कमलेश मीना।

 

शौर्य, वीरता, बलिदानों की अमर गाथाएं अपने हृदय में समेटे हुए, वीरों की भूमि राजस्थान के स्थापना दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

आज गौरव, आन, बान, शान और सम्मान का प्रतीक राजस्थान का स्थापना दिवस है। अपनी वीरता और शौर्य गाथाओं की कहानियों के लिए मशहूर राजस्थान आज अपना 75वां स्थापना दिवस मना रहा है। आजादी के बाद देश में अलग-अलग राज्यों के गठन का काम शुरू हुआ। फिर राजपूताना की विभिन्न रियासतों को मिलाकर राजस्थान का निर्माण किया गया। ऐतिहासिक रूप से यह ज्ञात है कि राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ। 30 मार्च, 1949 को चौथे चरण में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर की रियासतों का विलय होकर 'वृहद राजस्थान संघ' बना। इस दिन को राजस्थान स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

"कण-कण से गूंजे जय-जय राजस्थान,

बढ़ा देता है भारत का गौरव और सम्मान।"

राजस्थान दिवस पर प्रदेश के सभी भाई-बहनों को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। इस अवसर पर मैं गौरवशाली विरासत से समृद्ध इस राज्य के सर्वांगीण विकास की कामना करता हूं। राजस्थान दिवस पर सभी देशवासियों, विशेषकर प्रदेशवासियों को मेरी शुभकामनाएँ। संस्कृति, आतिथ्य, शौर्य, उद्यम और पर्यटन स्थल राजस्थान की पहचान हैं। राजस्थान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

राजस्थान दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय कर 'वृहद राजस्थान संघ' बनाया गया। इस दिन राजस्थान के लोगों की वीरता, दृढ़ इच्छाशक्ति और बलिदान को सलाम किया जाता है। तब से हर वर्ष इसी दिन राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 30 मार्च, 2024 को राजस्थान अपनी स्थापना की हीरक जयंती (75वां वर्ष) मना रहा है। 15 अगस्त, 1947 को, जब भारत को ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता मिली, तो सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पाँच सौ से अधिक बिखरी हुई रियासतों को एकीकृत करने के लिए 'भागीरथ प्रयास' शुरू किया गया। भारत के अन्य भागों की भाँति मध्य पश्चिमी भारत के अनेक राजाओं की रियासतों को एक करके राजस्थान संघ की स्थापना की गई। ब्रिटिश शासन के दौरान राजस्थान को 'राजपूताना' के नाम से जाना जाता था। राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान का अपना एक बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है। राजस्थान भारत के लिए शुरू से ही ऐतिहासिक और भौगोलिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य रहा है। राजस्थान राजा-महाराजाओं की भूमि रही है। आजादी से पूर्व राजस्थान में कुल 19 रियासतें थीं। 30 मार्च 1949 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर की रियासतों को 7 चरणों में एकीकृत करके इस संघीय ढांचे को अंतिम रूप दिया गया और जयपुर को इसकी राजधानी बनाया गया। तब से हर वर्ष इसी दिन राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। लगभग 700 ईसा पूर्व से राजस्थान के अधिकांश हिस्सों पर राजपूत वंश का शासन था, इसलिए इसे 'राजपूताना' कहा जाता था। इससे पहले यह मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख हिस्सा था। 13वीं शताब्दी की शुरुआत में, मेवाड़ राजपुताना में 19 रियासतें और अजमेर और मेवाड़ के दो ब्रिटिश जिले शामिल थे। प्राचीन इतिहास में राजस्थान के कुछ हिस्से भी सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रहे हैं, जैसे कालीबंगा, बालाथल और दिलवाड़ा मंदिर आदि। इसमें कालीबंगा को सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य प्रांतीय राजधानी कहा जाता है। मुगल सम्राट अकबर द्वारा राजस्थान को पहली बार राजनीतिक रूप से एकजुट किया गया था। 15 अगस्त 1947 को राजस्थान की सभी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया। राजस्थान की 19 रियासतें : अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, नीमराणा, कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, किशनगढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, शाहपुर, बांसबाड़ा, शाहपुरा, कुशलगढ़, जोधपुर , जैसलमेर, बीकानेर राजस्थान की इन 19 रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य का निर्माण किया गया।

 

राजस्थान अपने शाही और ऐतिहासिक किलों, महलों, लोक संगीत और रेत के टीलों के लिए जाना जाता है। यह राज्य पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र भी है इसलिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक राजस्थान को करीब से देखने आते हैं। पर्यटन भी राज्य सरकार के लिए प्रमुख आय स्रोतों में से एक है। यह अपने वस्त्र और हस्तशिल्प के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसके साथ ही यह राज्य देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। राज्य की अनमोल धरोहरों में से एक उम्मेद पैलेस दुनिया का सबसे बड़ा निजी आवास है, इसके अलावा यहां के प्राचीन महल, करणी मंदिर, आमेर महल, जैसलमेर किला, मेहरानगढ़ किला हैं। जयगढ़ किला, चित्तौड़गढ़ किला, हवा महल, जंतर मंतर, बिड़ला मंदिर विशेष रूप से विदेशी पर्यटकों को पसंद आते हैं। राजस्थान की सीमाएँ 5 प्रमुख राज्यों, उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में उत्तर प्रदेश और हरियाणा, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात और दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश से लगती हैं। राजस्थान को कभी-कभी 'राजाओं की भूमि' के रूप में जाना जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इसका नाम 'राजपूताना' रखा गया। 30 मार्च, 1949 को भारत सरकार के निर्देश पर उत्तरी भारत में स्थित चार बड़ी रियासतों जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और जैसलमेर को संयुक्त राजस्थान राज्य में मिला दिया गया, इस प्रकार एक स्वतंत्र राज्य राजस्थान अस्तित्व में आया। जयपुर को राज्य की राजधानी घोषित किया गया। चार बड़ी रियासतों के एकीकरण के बाद राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया। इसके बाद से राजस्थान दिवस मनाया जाता है। मेहनतकश कमाऊ सोच और ईमानदार राजस्थान अपने विश्वसनीय, भरोसेमंद और ईमानदारी भरे व्यवहार के कारण दुनिया भर में जाना जाता है। राजस्थान और उसकी धरती, मानव समाज और प्राकृतिक व्यवहार की दुनिया भर में अभी तक कोई तुलना नहीं की जा सकी है और न ही इसकी जगह ली जा सकती है। इस वर्ष राजस्थान अपना 75वां स्थापना दिवस पूरे उत्साह, उमंग और जुनून के साथ मना रहा है। देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित यह भूमि समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और आकर्षक स्थलों का घर मानी जाती है।

 

मैं आप सभी राजस्थानवासियों को, जिनकी जड़ें राजस्थान से हैं, इस स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं देता हूं और हमारे सभी सामूहिक प्रयासों से एक बहुत समृद्ध, विकसित, प्रगतिशील और रचनात्मक राजस्थान की कामना करता हूं।

 

वीरों ने अपने खून से राजस्थानी माटी का किया बंदन है,

इसको माथे पर लगा लो यह माटी नहीं चंदन है।

 

त्याग और बलिदान की भूमि राजस्थान,

वीरों और वीरांगनाओ की भूमि राजस्थान,

गौरवशाली इतिहास और धरोहर जिसकी शान,

सबसे निराला, सबसे प्यारा मेरा राजस्थान।

 

उल्लेखनीय है कि राजस्थान राज्य 30 मार्च 1949 को अस्तित्व में आया था। राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के कारण जयपुर को इसकी राजधानी घोषित किया गया था। सार्वजनिक जानकारी के लिए बता दें कि आज ही के दिन साल 1949 में चार राज्य- जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और जैसलमेर राजस्थान में शामिल हुए थे और इस तरह राजस्थान राज्य की स्थापना हुई थी।

 

ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार राजस्थान की उत्पत्ति 5000 वर्ष पूर्व बताई जाती है, जहाँ समृद्ध स्थापत्य एवं सांस्कृतिक विरासत की अनूठी झलक देखने को मिलती है। शौर्य, पराक्रम, कला एवं संस्कृति की पावन भूमि 'राजस्थान दिवस' की सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। पुनः इस शुभ अवसर पर मैं प्रदेशवासियों के संरक्षण, संवर्धन एवं समृद्धि की कामना करता हूँ। जय जय राजस्थान !

 

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सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...