गुरुवार, 9 मई 2024

वसुधैव कुटुम्बकम्: एकता और समानता को समर्पित सनातन धर्म का उद्घोष - डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

 


वसुधैव कुटुम्बकम्: एकता और समानता को समर्पित सनातन धर्म का उद्घोष

डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्/ उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्// –यह मेरा है, यह उसका है; इस प्रकार की धारणा संकुचित चित्त वाले व्यक्तियों की होती है। इसके विपरीत, उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरा एक ही परिवार के समान होती है।"

सनातन धर्म (वर्तमान में विश्वभर में हिन्दू के नाम से भी प्रसिद्ध धर्म) की मूल भावना सर्व-एकता और मानव-समानता है। उक्त वर्णित लोकप्रिय श्लोक (जिसका मूल रूप सामवेदीय शाखा के महोपनिषद् के छठे अध्याय में प्राप्त होता है), वास्तव में, इसी भावना को प्रकट करता है।

सर्वेकता एक शाश्वत सत्यता है। दूसरे शब्दों में, अविभाज्यता अक्षुण्ण है। एक ही अविभाज्य समग्रता, वेदों-उपनिषदों सहित सनातन धर्म के आधारभूत ग्रन्थों में परमात्मा (सर्वोच्च चेतना प्राण शक्ति), ईश्वर (सम्पूर्ण ऐश्वर्य युक्त), ब्रह्म ( ब्रह्मन्, परम स्व, ब्रह्माण्डीय एकता-निर्माता और आधार) आदि नामों से सम्बोधित, सर्वेकता निर्माता है। वही अनुरक्षक तथा सँभाल करने वाला है। सनातन धर्म के व्याख्याता वेदों की यह एक प्रमुख उद्घोषणा है।

ऋग्वेद में (10: 121: 10) में स्पष्ट उल्लेख है:

प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परि ता बभूव/

अर्थात्, हे प्रजापति, प्रजाओं के स्वामी! केवल आप ही समस्त सृजन –उत्पत्ति के कारण हैं; आप व्यापक (परमात्मा) के अतिरिक्त और कोई नहीं है।   

ईशोपनिषद्  (ईशावास्योपनिषद्) का प्रारम्भिक मंत्र है:

"ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्ण मुदच्यते/ पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवावशिष्यते//"

अर्थात्, "वह (परमात्मा) अनन्त एवं पूर्ण हैं; और यह जगत भी पूर्ण हैI पूर्ण से पूर्ण की ही उत्पत्ति होती है। उस पूर्ण (ब्रह्म) में से पूर्ण निकल लें, तो भी पूर्ण ही शेष रहता है।"

बुद्धि और रचनात्मकता जैसे श्रेष्ठ गुणों के पोषक व सृष्टि के उन्नत प्राणी मानव का इस सत्यता से साक्षात्कार करना और इसे अपने समस्त व्यवहारों के केन्द्र में रखना उसका धर्म है। वेद-ज्ञान से परिचय कराते, स्वयं सनातन धर्म के स्थापित आधारभूत ग्रन्थों, उपनिषदों, में से एक प्रमुख छान्दोग्योपनिषद्  (3: 14: 1) में यह स्पष्ट है:

"सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासीत/

अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुरस्मिँल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत्य भवति स क्रतुं कुर्वीत//"

अर्थात्, "यह सब (वास्तव में ही) ब्रह्म है। सब कुछ ब्रह्म से आता है; सब कुछ ब्रह्म में वापस चला जाता है। सब कुछ ब्रह्म द्वारा ही बनाए रखा जाता है। इसलिए व्यक्ति को शान्तता के साथ ब्रह्म का ध्यान-स्मरण करना चाहिए। (पूर्णतः ब्रह्म को ही समर्पित रहना चाहिए) मृत्यु के पूर्व जो जैसी उपासना करता है, वह जन्मान्तर वैसा ही हो जाता है।अर्थात्, ब्रह्म-समर्पण की स्थिति में जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर लेता है।

स्वयं महोपनिषद् (4: 119) में भी उल्लेख है कि यह सब ब्रह्म है, जो शाश्वत, चेतन एवं अविनाशी है; इसके अतिरिक्त कोई अन्य वस्तु, अर्थात् मानसिक प्रक्षेपण, वास्तव में, विद्यमान नहीं है।

अर्थात्,

सर्वं च खल्विदं ब्रह्म नित्यचिद्घनमक्षतम्/

कल्पनान्या मनोनाम्नी विद्यते न हि काचन//

ब्रह्म (अविभाज्य समग्रता-निर्माता, निर्वाहक और सृष्टि-आधार) का सृष्टि के श्रेष्ठतम प्राणी, मानव, का प्राथमिकता से, एवं उसके परम कर्त्तव्य के रूप में, सर्वेकता की सत्यता की स्वीकृति का आह्वान है। मानव, जैसा कि कहा है, बुद्धि और रचनात्मकता जैसे अद्वितीय गुणों का पोषक होता है; अपनी बुद्धि द्वारा सत्य-असत्य का बोध करने में पूर्णतः समर्थ होता है। बुद्धि-बल से वह सर्वेकता, वृहद् परिप्रेक्ष्य में सार्वभौमिक एकता की वास्तविकता से परिचय करने में सक्षम होता है।     वह सार्वभौमिक एकता से परिचय करे, उसी एकता के अविभाज्य अंग होने की सत्यता को स्वीकार करे, तदनुसार व्यवहार करे, यही मानव से ब्रह्म की अपेक्षा है।     

अन्य सरल शब्दों में इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि मनुष्य एक सार्वभौमिक अविभाज्य समग्रता के अंश के रूप में अपने को स्वीकार करते हुए, समष्टि-कल्याण में ही अपने कल्याण को देखे। वह, अपने किसी पृथक या निजी हित के अवास्तविक विचार को छोड़कर, सर्वहित हेतु समर्पित हो। इस संक्षिप्त वार्ता के प्रारम्भ में उद्धृत श्लोक की यही मूल भावना, वास्तविक अभिप्राय और उद्देश्य है। बुद्धि और रचनात्मकता जैसे गुणों से भरपूर सृष्टि का श्रेष्ठतर प्राणी मानव और जलवायु, तापमान, प्राकृतिक संसाधनों सहित अन्य अनुकूलताओं से भरपूर वसुधा (पृथ्वी) इसके केन्द्र में हैं।

पृथ्वी पर निवासकर्ता मानव प्राथमिकता से सजातीय एकता परस्पर मानवीय सहयोग, सहकार और सौहार्द द्वारा, प्रत्येक को अपना मित्र, सखा व सहयोगी स्वीकार करते हुए सर्वकल्याण हेतु समर्पित हो। इस प्रकार, वह अविभाज्य समग्रता की सत्यता का आलिंगन करे और समष्टि-हित के लिए, जिसमें आवश्यक रूप से स्वयं उसका हित भी सम्मिलित है, आगे बढ़े। यही, वास्तव में, सनातन धर्म की मूल भावना से साक्षात्कार कराते इस श्लोक का प्रयोजन है; अविभाज्य समग्रता के निर्माता और सार्वभौमिक एकता की स्थापना करते सृष्टि के आधार ब्रह्म की मानव से, जैसा कि कहा है, आशा भी है।  

अविभाज्य समग्रता ही एकमात्र शाश्वत –सनातन सत्य है। अविभाज्य समग्रता ही सार्वभौमिक एकता का आधार है। वही अविभाज्य समग्रता, जैसा कि उल्लेख किया है, ईश्वर, परमात्मा और ब्रह्म सहित अनेकानेक नामों से, अपने गुणों और सार्वभौमिक कार्यों के लिए सम्बोधित है।

इस वास्तविक स्थिति में प्रत्येक कार्य अथवा छोटी या बड़ी गतिविधि का (वह जीवन के किसी भी क्षेत्र में किसी भी स्तर पर हो) वृहद् अथवा सार्वभौमिक प्रभाव पड़ता है। अविभाज्य समग्रता और उसके सदैव प्रवहमान सार्वभौमिक नियम के अन्तर्गत  एक व्यक्ति का कार्य या गतिविधि, न्यूनाधिक, समस्त सजातीयों और सार्वभौमिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती है। एक की सु-प्राप्ति वृहद् कल्याणकारी और एक का ह्रास या उसकी विफलता, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में, सम्पूर्ण जगत के लिए, न्यूनाधिक, अकल्याणकारी होती है। मानव इस परम सत्य को समझे तथा प्राथमिकता से सजातीयों को अपना बन्धु और परम मित्र स्वीकार कर भेदभावरहित व्यवहार करे, मानव-समानता केन्द्रित सर्वेकता का यह सनातन धर्म का उद्घोष और आह्वान है।

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डॉ0 रवीन्द्र कुमार भारतीय शिक्षाशास्त्री एवं मेरठ विश्वविद्यलय, मेरठ (उत्तर प्रदेश) के पूर्व कुलपति हैं I

 

मंगलवार, 7 मई 2024

कवि डॉक्टर प्रवीण राही भूटान के फुंटशोलिग शहर में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन काव्य पाठ किया

 





तीसरी साहित्यिक विदेश यात्रा भूटान की रही मुरादाबाद कवि डॉक्टर प्रवीण राही जी की...

गौरवांजलि ट्रस्ट एवम साहित्य अर्पण ने भूटान के फुंटशोलिग शहर में अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन 27 अप्रैल 2024 को आयोजित किया ।

 सयोजन  डॉ अंजना कुमार व गौरव विवेक जी एवम नेहा जी का रहा । 

इस अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में मुरादाबाद के युवा कवि डॉक्टर प्रवीण राही को काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया।अध्यक्षता कवि जगमग जी की रही।साथी कवि सूची में कवयित्री डॉक्टर शुभम त्यागी जी,डॉक्टर अंजना जी,राजेश जी एवम अन्य रहें।

उनकी इस माह की दूसरी विदेश काव्य यात्रा के बाद कई शायर व कवियों ने उनके घर आकर उनको शुभकामनाएं दी।




बुधवार, 1 मई 2024

संवेदनशीलता सबसे पिछड़े, हाशिए पर रहने वाले समूहों, लैंगिक समानता, समता और भेदभाव रहित व्यवहार की वास्तविक चिंताओं को समझने के लिए मनुष्य को बेहतर समझ प्रदान करती है: डॉ. कमलेश मीना।


 

30 अप्रैल 2024 को, मुझे इंदिरा गांधी पंचायत राज और ग्रामीण विकास संस्थान जेएलएन मार्ग जयपुर  में "शारीरिक विकलांग व्यक्तियों (दिव्यांगजन) से संबंधित मुद्दों के बारे में संवेदनशीलता" जैसे महत्वपूर्ण विषय पर राजस्थान राज्य सरकार के विभिन्न विभागों और संस्थानों के अधिकारियों के साथ बातचीत करने का अवसर मिला। यह दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम इंदिरा गांधी पंचायत राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान, जयपुर द्वारा विकलांगता मुद्दे एवं विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 पर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए आयोजित किया गया। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आकाशदीप अरोड़ा साहब, उप निदेशक, इंदिरा गांधी पंचायत राज और ग्रामीण विकास संस्थान, जेएलएन मार्ग जयपुर ने मुझे एक विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित किया और इस महत्वपूर्ण विषय पर अपने ज्ञान, अनुभव और विशेषज्ञता को राजस्थान से आए राजस्थान राज्य सरकार के विभिन्न विभागों और संस्थानों के अधिकारियों और सभी प्रतिभागियों के साथ साझा किया।

 

इंदिरा गांधी पंचायत राज और ग्रामीण विकास संस्थान (आईजीपीआर & जीवीएस) के उप निदेशक डॉ. आकाशदीप अरोड़ा जी ने दृष्टिबाधित प्रभावित (दिव्यांगजन) व्यक्तियों पर अपना अनुभव साझा किया और डॉ. अरोड़ा ने कहा कि कैसे नई नई तकनीकों और सूचना संसाधनों ने विकलांग व्यक्तियों (दिव्यांगजन) के जीवन को आसान और आरामदायक बना दिया है और अब सभी प्रकार के विकलांग प्रभावित व्यक्ति मुख्यधारा की तर्ज पर आ रहे हैं और समान रूप से सामान्य व्यक्ति के रूप में समाज और राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं। डॉ. अरोड़ा ने इस बात का प्रदर्शन किया कि कैसे इन प्रौद्योगिकियों और तकनीकों ने इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट और मोबाइल ऐप के उपयोग के माध्यम से जीवन को आसान बना दिया है।

 

मैंने अपना ज्ञान और दृष्टिकोण साझा किया कि कैसे संवैधानिक प्रावधानों ने विकलांग व्यक्तियों के लिए जीवन को आसान बना दिया है और शिक्षा और कौशल विकास ज्ञान के माध्यम से, आज विकलांग व्यक्ति विभिन्न विभागों और संस्थानों के साथ-साथ निजी क्षेत्रों सेक्टर में भी सम्मानजनक और वांछित नौकरी के अवसर प्राप्त करने में सक्षम हैं। मैंने साझा किया कि हम कैसे आसान और सही तरीकों से विकलांग व्यक्तियों के प्रति अपनी संवेदनशीलता और चिंताओं को सुनिश्चित करते हैं ताकि वे सभी हमारे सिस्टम का हिस्सा बन सकें। हमें इस तरह के प्रशिक्षण और ज्ञानवर्धक कार्यक्रम के माध्यम से वास्तविक जरूरतमंद लोगों की वास्तविक चिंताओं को समझने की जरूरत है, जो हमारे समाज के साथ-साथ हमारे लोकतंत्र का भी हिस्सा हैं।

 

विकलांग व्यक्तियों के प्रति हमारा रवैया बहुत आशावादी और सकारात्मक होना चाहिए न कि सहानुभूतिपूर्ण, बल्कि समानुभूतिपूर्ण और समानतावादी होना चाहिए। शिक्षा के माध्यम से हम उन्हें कैसे सशक्त बना सकते हैं, इस उपकरण के प्रति जागरूकता पैदा करना हमारा मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। हम सभी को उनके प्रति सम्मानजनक व्यवहार रखना चाहिए और यह विकलांगता अधिकार अधिनियम 2016 की मुख्य आवश्यकताएं भी हैं।

 

विकलांगता अधिनियम 2016 पर सभी सरकारी संगठनों और विभागों से प्रशिक्षक तैयार करने और उन्हें पूरी तरह से संवेदनशील बनाने के लिए यह प्रशिक्षण कार्यक्रम राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (एसआईआरडी) के तहत किया जा रहा है। मार्च, 1984 में राजस्थान सरकार द्वारा एक कैबिनेट प्रस्ताव के तहत आईजीपीआर और जीवीएस स्वायत्त संगठन बनाया गया। राजस्थान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1958 के तहत मार्च, 1989 में एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया। इंदिरा गांधी पंचायती राज और ग्रामीण विकास संस्थान (आई.जी.पी.आर. और जी.वी.एस.) एक स्वायत्त संगठन है जिसे राजस्थान सरकार द्वारा राज्य के शीर्ष संस्थान के रूप में बढ़ावा दिया गया है, जिसका उद्देश्य पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) और ग्रामीण विकास क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करना है। संस्थान को 1989 में राजस्थान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1958 के तहत एक सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया गया था। जुलाई 1999 से, इसे भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (S.I.R.D.) के रूप में भी स्थापित किया गया है।

 

राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (एसआईआरडी) देश के सभी राज्यों में स्थापित हैं और भारत सरकार द्वारा पूरी तरह से समर्थित हैं। मुख्य संस्थान हैदराबाद में स्थित है जिसे "राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान" के नाम से जाना जाता है। ये संस्थान जो सभी राज्यों में मौजूद हैं, उनका मूल उद्देश्य पंचायती राज, ग्रामीण विकास और इसी तरह के क्षेत्र में प्रशिक्षण क्षमता विकास है। राज्य ग्रामीण विकास संस्थान (S.I.R.D.) राजस्थान इंदिरा गांधी पंचायती राज और ग्रामीण विकास संस्थान (आईजीपीआर और जीवीएस) का एक हिस्सा है और जीवीएस जयपुर एसआईआरडी को राजस्थान में आरडी और पीआर विभाग के प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों की क्षमता निर्माण का कार्य सौंपा गया है। इसमें राज्य द्वारा कार्यान्वित की जा रही विभिन्न पीआर और आरडी योजनाओं के संबंध में प्रशिक्षण के साथ-साथ पी.आर.आई. और आरडी से संबंधित अधिनियमों, नियमों, कार्यों और प्रक्रिया के संबंध में क्षमता निर्माण शामिल है। एसआईआरडी प्रतिनिधियों और पदाधिकारियों को बुनियादी और पुनश्चर्या प्रशिक्षण प्रदान करने में मदद करता है, ताकि उन्हें विभिन्न योजनाओं के कार्यान्वयन में नवीनतम विकास से अवगत रखा जा सके। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान (NIRD) हैदराबाद SIRD के CB&T प्रयासों के समन्वय में मदद करता है। भारत सरकार की नई योजनाओं के संबंध में दिशानिर्देश प्रदान करके, मास्टर ट्रेनर कार्यक्रम आदि आयोजित करना है। ग्रामीण विकास मंत्रालय एसआईआरडी के प्रयासों को बढ़ाने में मदद करता है।

 

वास्तव में राज्य सरकार की इस संस्था के माध्यम से एक महत्वपूर्ण विषय पर अपने विचार साझा करना एक अच्छा अनुभव था, जो राज्य सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ-साथ जन प्रतिनिधियों को भी विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने के लिए लगातार समर्पित है। इस प्रकार के प्रशिक्षण कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का उद्देश्य अधिकारियों को पूरी तरह से सूचित, जागरूक और संबंधित व्यवहार वाले बनाना है और इस मास्टर ट्रेनर कार्यशाला के माध्यम से, प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद, ये सभी अधिकारी जमीनी स्तर पर काम करने वाले संबंधित अधिकारियों और कर्मचारियों को दिव्यांगों से संबंधित मुद्दों और इस कानून के विभिन्न प्रावधानों के संबंध में अपने-अपने जिलों में और अधिक संवेदनशील और प्रशिक्षित करेंगे।

 

इस कार्यक्रम में राजस्थान के विभिन्न जिलों से शिक्षा, महिला एवं बाल विकास तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अधिकारी उपस्थित थे। कार्यक्रम के माध्यम से हमारा प्रयास राजस्थान के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को 'विकलांगता अधिकार अधिनियम 2016' के बारे में जानकारी प्रदान करना था ताकि  सबसे पिछड़े विकलांग व्यक्तियों और समुदायों का सर्वांगीण विकास, कल्याण आसान और संवैधानिक तरीकों से संभव हो सके। ताकि हम सबसे पिछड़े व्यक्तियों को सशक्त बना सकें और इन छोटे छोटे लेकिन बेहद रचनात्मक प्रयासों से हम उन्हें आत्मनिर्भर बना सकते हैं। उन्हें सशक्त बना सकते है, और उनके कौशल, संचार कौशल में सुधार कर सकते है और उनके छिपे हुए कौशल, इच्छाओं और सपनों को इन छोटे छोटे लेकिन बेहद रचनात्मक प्रयासों से विकसित कर सकते है।

 

इस कार्यक्रम के लिए मुझे आदरणीय प्रतिभा भटनागर मैडम, सचिव, सपोर्ट फाउंडेशन फॉर ऑस्टिज्म एंड डेवलपमेंट डिसएबिलिटीज, जयपुर द्वारा अनुशंसित किया गया था और इस अवसर के लिए मैं वास्तव में उनका आभारी हूं। आदरणीय प्रतिभा भटनागर जी ने इस व्याख्यान के लिए राजस्थान इंदिरा गांधी पंचायती राज और ग्रामीण विकास संस्थान (आईजीपीआर, जीवीएस) को मेरे नाम सिफारिश की और मैंने प्रेजेंटेशन और व्याख्यान के माध्यम से इस दिशा में अपना सर्वश्रेष्ठ ईमानदार प्रयास करने का प्रयास किया। यहां मैं इंदिरा गांधी पंचायत राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान जयपुर के उपनिदेशक डॉ. आकाशदीप अरोड़ा जी को आधिकारिक तौर पर इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूं और वह राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) के बहुत गतिशील, सक्रिय, ईमानदार, तकनीकी रूप से उच्च योग्य और प्रतिभाशाली और पूरी तरह से संवेदनशील अधिकारी हैं।

 

सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

 

Mobile: 9929245565,

Email-kamleshmeena@ignou.ac.in drkamleshmeena12august@gmail.com

फेसबुकपेज लिंक:https://www.facebook.com/ARDMeena?mibextid=ZbWKwL

ट्विटर हैंडल अकाउंट: @Kamleshtonk_swm

यूट्यूब लिंक: https://youtube.com/@KRAJARWAL?si=V98yeCrQ-3yih9P2

कहानी: समय के साक्षी-  केदार शर्मा,”निरीह’’ सेवानिवृत व्याख्याता (अंग्रेजी)


 बचपन से ही वह बेहद भोली-भाली लड़की थी।दुबली-पतली काया,चपटा चेहरा असमय ही सिर में केशौर्य की चुगली करती श्‍वेत केशराशि, नाक नक्श से सुदर्शन तो नहीं पर उसे बदसूरत भी नहीं कहा जा सकता था ।

       वह किसी भी काम के लिए किसी को भी मना नहीं करती थी,इसीलिए कई बार पास-पड़ौस में जाने-अनजाने उससे बेगार भी करवा ली जाती थी।उसे पलटकर जवाब देना नहीं आता था,इसीलिए हँसी-मजाक का पात्र बनाकर उसका मजाक भी खूब बनाया जाता था। कोई पन्नी नाम की एक लावारिश और पागल महिला वर्षों पहले गाँव में रही थी, इसी कारण से गाँव की हर मानसिक रूप से कमजोर महिलाओं को यह उपाधि दी  जाने लगी। धीरे-धीरे सीता को भी कई बार इस नाम से पुकारा जाने लगा।हालाकि सीता मंदबुद्धि नहीं थी,भोली-भाली थी। जैसे–तैसे करके वह पाँचवीं पास कर पाई और उसने अटक-अटक कर पढ़ना और कुछ लिखना भी सीख लिया था   

      युवावस्था में प्रवेश के साथ ही पिता ने धूमधाम से पास ही के गाँव के ही एक धनी परिवार में रामस्वरूप नामक युवक के साथ सीता का विवाह कर दिया। खूब नेग-दहेज भी दिया पर दुर्भाग्य से वैवाहिक जीवन दो साल ही चला। रामस्वरूप ने उसे छोड़ दिया।समाज के पंच-पटेलों के हस्तक्षेप से दहेज का कुछ सामान तो वापस आ गया, पर सीता भी फिर से  अपने पिता के घर वापस आ गयी।

            नियति का चक्र मानकर परिवार ने जैसे-तैसे अपने मन को समझा लिया, पर सीता अनमनी और उदास रहने लगी। ‘माँ, मेरा कसूर क्या था?’—एक दिन उसकी रूलाई फूट पड़ी।

         ‘बेटा, सीधापन और सुंदर नही होना ही इस समाज में तेरे जैसी स्त्री का कसूर माना माना जाता है।भेडि़यों को मांसल शरीर चाहिए।चालाकी और फरेब से भरे लोगों की उनकी प्रकृति के लोगों से ही बनती है। अच्छा है, तू उन जानवरों के बीच से निकल आई।‘ ‘पर माँ अब हम क्या करेंगे’ ? माँ ने सिर पर हाथ रखकर आश्‍वासन दिया—‘बेटा, तू चिंता मत कर,यहाँ तेरे लिए क्या कमी है? तेरे तीन-तीन समर्थ भाई हैं।सब तुझे पलकों में रखेंगे।तू चिंता मत कर।

       इसी तरह से चार-पांच साल और गुजर गए।

……………. ........

एक दिन सीता के दूर के रिश्‍ते के मौसी और मौसाजी की कार आठ,दस महिला पुरूषों के साथ घर के बाहर आकर रुकी।

      उन्होनें सीता की उस मौसी के देवर के पुत्र रामराज से सीता के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रखा। ‘एक ही लड़का है और उसने जयपुर में ही सैलून की नई दुकान खोली है। अपना समझकर आये हैं,सीता हमारी भी बेटी जैसी है‘जैसे अनेक तर्कों से उन्होनें समझाने का प्रयास किया ।

          आखिरकार बेटी के हित में ठीक समझकर पिता ने एक बार फिर सीता का धूमधाम से पुनर्विवाह कर दिया। बैंड-बाजे बजे,नाच-गान हुआ,वर-वधू ने एक दूसरे को माला पहनाई।सांयकाल भव्य भोज हुआ और सीता की एक बार फिर से विदाई हो गई ।

                  आठ-दस महीने तो ठीक से गुजर गए। उधर रामराज की दुकान भी परवान चढ़ने लगी। सुबह आठ बजे से रात दस बजे तक ग्राहकों की लाइन लगी रहती।धीरे-धीरे एक अदना सा रामराज सेठ रामराज में तब्दील हो गया और सीता घर के काम करने की मशीन में ।सब उसे सुबह से शाम तक काम में लगाए रखते।

     रामराज के पास अब शानदार गाड़ी, नौकर-चाकर और सभी सुख -सुविधाएं थी, पर सीता को देखकर उसका मन उद्वेलित हो उठता था।रात साढ़े ग्यारह बजे तक आना फिर शराब पीना और खाना खाकर सो जाना।सुबह देर तक दिन चढ़ने पर उठना और दुकान पर चले जाना। यह उसकी रोज की दिनचर्या थी। सीता को भी इन सब बातों से कोई शिकायत नहीं थी।उसे तो काम करना था ,रोटी खानी थी,और जीये चले जाना था।

   एक दिन सीता स्नान करके भीतर जा रही थी कि माँ बेटे की जोर- जोर से बोलने की आवाज सुन वह ठिठक कर खड़ी हो गयी। बेटा माँ से कह रहा था —‘‘माँ अब मैं इसे अपने साथ नहीं रख सकता। मेरी शान-शौकत पर धब्बा लगता है ।

         न तो इसे मॉडर्न तरीके से सजने- संवरने में रूचि है, न ही इसे बोलने, बैठने और चलने के तौर तरीके आते हैं। किसी पार्टी में ले जाता हूँ तो लोग मेरी मजाक बनाते है। हां मंदिर में बैठकर यह कीर्तन कर सकती है। मशीन की तरह बिना रुके खूब काम कर सकती है । मुझे मशीन नहीं एक मॉडर्न बीबी चाहिए। और अब मुझे कोई नहीं रोक सकता है।‘’

       जब सीता ने यह सब  सुना तो सन्न रह गयी । उसके भीतर मानो ज्वालाएं उठने लगी।

       धीरे-धीरे प्याज के छिलकों की तरह रहस्य की परतें उघड़ने लगीं। दरअसल रामराज जब बेरोजगार था और गाँव की ही एक लडकी के साथ भागकर जाने की तैयारी में था तब पिता ने उसे रोकने के लिए सीता नाम की बेड़ी उसके पैरों में बाँध दी थी और व्यस्त रखने के लिए जयपुर मे सैलून की दुकान खुलवा दी थी।

  उसे उम्मीद थी कि समय के साथ सब कुछ ठीक हो जाएगा।पर रामराज के पैरों में ये बेड़ी अब चुभने लगीं थी। उसके पंख अब खुले उन्मुक्त आकाश में अपनी परी-प्रेयसी के साथ उड़ने को व्याकुल थे।

     राखी के त्योहार पर जब सीता अपने पीहर गई तो न तो वह वापस आई और न ही रामराज ही उसे वापस लेने गया।

     एक बार फिर सारा परिवार दु:ख के सागर में डूब गया जब समाचार मिले कि रामराज उसी लड़की को अपने घर ले आया है जिसके साथ वह सीता से विवाह के पहले भागकर जाने वाला था। ऐसे ही दु:ख का ऐसा ही दौर तब  भी आया था जब रामस्वरूप ने सीता का परित्याग किया था। अंतर यही था कि सीता की कोख में इस बार दो माह का गर्भ पल रहा था।

     अब किसी काम में उसका मन नहीं लगता था । सारे दिन गुमसुम बनी रहती ।माँ दिलासा देती तो उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग जाती—‘बेटा ,तू चिंता मत कर, हम हैं ना तेरे साथ, तुझे तिल मात्र की भी परेशानी नहीं आने देंगे।

         ‘’लेकिन मेरा कसूर क्या था माँ…’’……? लंबे समय बाद उसका मौन टूटा, भीतर भरा गुबार आँसू बनकर फूट निकला और वह फूट-फूटकर रोने लगी।खूब रो लेने के बाद जब वह चुप हुई तो माँ ने कहा—‘ बेटा,अच्छा बता उस सीता माता का कसूर क्या था जिसको भगवान राम वन में ऋषि वा‍ल्मिकी के आश्रम में छोड़कर आ गए थे ?पर सीता माता ने अपने आप को टूटने नहीं दिया था। तू भी चिंता मत कर, जो होगा सही होगा। हम सब परछाई की तरह तेरे साथ खड़े हैं।

..................

        समय पंख लगाकर उड़ता गया। सीता का जीवन पीहर में ही बसर होने लगा। रात कितनी ही लंबी हो सवेरा भी होता ही है ।

         पतझड़ गुजर चुका था। दिन की धूप में तेजी और रात में गुलाबी ठंड का अहसास होने लगा‍ था। पलाश पर लाल पुष्‍प और पेड़़ो  पर नये पत्ते आ रहे थे। चारों ओर खेत सरसों के फूलों की पीली चूनर ओढे थे।कोयल की कूक रह रहकर सुनाई पड़ने लगी थी।

      सीता के आंगन में भी किलकारी गूँजी । प्यारा सा शिशु लवेश उसकी गोद में आ गया था।संसार सागर की उत्‍ताल लहरों के बीच उसके डूबते मन को तिनके की तरह एक सहारा तो मिल ही गया था।

      सीता ने अब अपना पूरा ध्‍यान अपने बच्चे की परवरिश पर केन्द्रित कर दिया ।अपने घर के पास की स्कूल में व‍ह मिड-डे मील कुक के रूप में कार्य करने लगी थी । लवेश पढ़ाई में बहुत ही कुशाग्र बुद्धि निकला। प्रतियोगी परीक्षाओं की जमकर तैयारी के बाद उसका सब इंस्पेक्टर के पद पर चयन हो गया । जयपुर के पास ही एक थाने में उसको नियुक्ति भी मिल गई ।

          भगवान की दया से आज सीता के पास कुछ भी कमी नहीं थी । जयपुर के बाहर की एक कॉलोनी में ही उसने एक मकान ले लिया था और बेटे के साथ वहीं रहने लगी थी।

       पर लवेश ने गत रात उसे जो घटना सुनाई उससे उसके मन में एक बार फिर भूचाल सा आ गया।

        लवेश कह रहा था— ‘माँ हमारे थाने में एक व्यक्ति गिरफ्तार हुआ है और इस समय कस्टडी में है। रात को बातचीत में पता चला कि यह वही व्‍यक्ति था जिसने तुम्हारा परित्याग किया था— सेठ रामराज ! किसी कॉलोनी में प्लॉट काटने से संबधित किसी धोखाधड़ी के मामले में अभी वह कस्टडी में बंद है । परसों सुबह कोर्ट में उसका चालान पेश किया जाएगा।

      वह रो रोकर बता रहा था कि उसकी पत्नी के काफी समय से कैंसर  है और अब बिस्तर पर पड़ी रहती है । उसके न तो कोई बाल-बच्चा है और न हीं घर पर कोई संभालने वाला बचा है।मां-बाप को मरे अरसा हो गया है ।अगर परसों सुबह भी उसकी जमानत नहीं हुई तो उसकी पत्नि को पानी पिलाने वाला भी कोई घर पर नहीं रहेगा। वह जमानत के लिए कई लोगो के सामने गिड़गिड़़ाया भी पर कोई तैयार नहीं हुआ।

           किसी तरह उसने मेरे बारे भी जानकारी प्राप्त कर ली और वह रात को दोनो हाथ जोडकर मुझसे बोला कि उसने तुम्हारी माँ के साथ जो भी अन्याय किया था उसकी सजा ईश्‍वर उसे दे रहा है।वह इस मामले में कुछ करे ताकि वह अपनी मरती हुई पत्नि की कुछ दिनो तक ही सही, सेवा कर सके।

           सीता कुछ न बोली।परिस्थितियों के थफेड़ों ने उसे बहुत संवदेनशील, भावुक और समझदार बना दिया था। वह शून्य में दूर क्षितिज की ओर पथराई आँखों से देखती रही और सोचती रही।

       दूसरे दिन जब लवेश वर्दी पहन कर ड्यूटी के लिए पुलिस स्टेशन जाने को तैयार हुआ तो सीता ने कहा —‘’बेटा,कल मै भी तुम्हारे साथ कोर्ट में चलूंगी। हालाकि मेरा उससे कोई सम्बधं नहीं रहा और तलाक हो चुका है। पर उसने तुमसे मदद की गुहार लगाई है, वह पश्‍चाताप से भी भरा है इसलिए  इंसानियत के नाते ही सही एक बार तो मैं उसकी जमानत दूंगी ताकि वह कुछ समय तक ही सही वह अपनी पत्नि की सेवा कर सके ।

          लवेश ने खूब समझाया पर वह जिद पर अड़ी रही ।  आखिरकार लवेश ने उस दिन की छुट्टी ले ली और सादा वर्दी मे माँ को साथ ले जाना पड़ा।

      लवेश की देखरेख में कोर्ट में जमानत के कागजों पर साइन और आवश्‍यक कानूनी प्रक्रिया पूरी कर सीता चुपचाप बाहर आ गई। बहुत दूर खड़े रामराज को अब उसने गौर से देखा जो सचमुच दयनीय हालत में लग रहा था। उसे विश्‍वास नहीं हो रहा था कि बढ़ी हुइ दाढ़़ी,झुर्रियों से भरा चेहरा, पुलिस कस्टडी में खड़ा यह वही रामराज है, जिसका गरूर कभी सातवें आसमान पर हुआ करता था ।

         ‘ पर इसमें मेरा तो क्या दोष है ?‘ सीता ने मन ही मन अपने आप से कहा और आगे बढ गई । 

         जब लवेश भी वापस सीता के पीछे जाने के लिए मुड़ा और रामराज के पास से गुजरा तो रामराज ने हा‍थ जोड़कर कहा— बेटा, इतना कुछ करने के लिए तम्हारा और तुम्हारी मां का बहुत बहुत धन्यवाद।

       लवेश एक बार पलटकर वापस मुड़ा ।

         ‘उस समय तो अपने स्वार्थ में अंधे होकर आपने मेरी मां का परित्याग किया था,उसे और मुझे  ऐसी हालत में मझधार में छोड़ दिया था। अभी आज भी आपका ही स्वार्थ सिद्ध हुआ है।मानता हूं कि आप मेरे जैविक पिता हैं, पर रिश्‍ते केवल शरीर से ही तो नहीं बनते बल्कि आत्मा से बनते हैं ।हाँ शरीर तो एक अवसर देता है आत्मिक रिश्‍ता बनाने का। उस अवसर को आप बहुत पहले ही गंवा चुके हो।‘ मैं और मेरी मां ने,जितना आपके लिए कर सकते थे,किया है।पर यदि समय आपसे बदला ले रहा है और यह हमारा भी दुभार्ग्य है कि इस बदले हुए समय के हम साक्षी बन रहें है ।समय पर हमारा भी बस नहीं है — कहकर लवेश तेजी से आगे बढ़ गया।

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...