शनिवार, 30 मार्च 2024

राजस्थान अपनी वीरता, सुंदर आतिथ्य, बलिदानियों की भूमि, श्रम की भूमि, व्यापारिक समुदाय की भूमि, मेहनतकश कमाऊ और ईमानदार सोच, अपने विश्वसनीय, भरोसेमंद और ईमानदारी भरे व्यवहार, विश्वसनीयता, विश्वास और समर्पण की भूमि के लिए और के कारण राजस्थान दुनिया भर में जाना जाता है: डॉ कमलेश मीना।


 

राजस्थान अपनी वीरता, सुंदर आतिथ्य, बलिदानियों की भूमि, श्रम की भूमि, व्यापारिक समुदाय की भूमि, मेहनतकश कमाऊ और ईमानदार सोच, अपने विश्वसनीय, भरोसेमंद और ईमानदारी भरे व्यवहार, विश्वसनीयता, विश्वास और समर्पण की भूमि के लिए और के कारण राजस्थान दुनिया भर में जाना जाता है: डॉ कमलेश मीना।

 

शौर्य, वीरता, बलिदानों की अमर गाथाएं अपने हृदय में समेटे हुए, वीरों की भूमि राजस्थान के स्थापना दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

आज गौरव, आन, बान, शान और सम्मान का प्रतीक राजस्थान का स्थापना दिवस है। अपनी वीरता और शौर्य गाथाओं की कहानियों के लिए मशहूर राजस्थान आज अपना 75वां स्थापना दिवस मना रहा है। आजादी के बाद देश में अलग-अलग राज्यों के गठन का काम शुरू हुआ। फिर राजपूताना की विभिन्न रियासतों को मिलाकर राजस्थान का निर्माण किया गया। ऐतिहासिक रूप से यह ज्ञात है कि राजस्थान का एकीकरण 7 चरणों में पूरा हुआ। 30 मार्च, 1949 को चौथे चरण में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर की रियासतों का विलय होकर 'वृहद राजस्थान संघ' बना। इस दिन को राजस्थान स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

"कण-कण से गूंजे जय-जय राजस्थान,

बढ़ा देता है भारत का गौरव और सम्मान।"

राजस्थान दिवस पर प्रदेश के सभी भाई-बहनों को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। इस अवसर पर मैं गौरवशाली विरासत से समृद्ध इस राज्य के सर्वांगीण विकास की कामना करता हूं। राजस्थान दिवस पर सभी देशवासियों, विशेषकर प्रदेशवासियों को मेरी शुभकामनाएँ। संस्कृति, आतिथ्य, शौर्य, उद्यम और पर्यटन स्थल राजस्थान की पहचान हैं। राजस्थान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

राजस्थान दिवस प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 को जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय कर 'वृहद राजस्थान संघ' बनाया गया। इस दिन राजस्थान के लोगों की वीरता, दृढ़ इच्छाशक्ति और बलिदान को सलाम किया जाता है। तब से हर वर्ष इसी दिन राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष 30 मार्च, 2024 को राजस्थान अपनी स्थापना की हीरक जयंती (75वां वर्ष) मना रहा है। 15 अगस्त, 1947 को, जब भारत को ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता मिली, तो सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा पाँच सौ से अधिक बिखरी हुई रियासतों को एकीकृत करने के लिए 'भागीरथ प्रयास' शुरू किया गया। भारत के अन्य भागों की भाँति मध्य पश्चिमी भारत के अनेक राजाओं की रियासतों को एक करके राजस्थान संघ की स्थापना की गई। ब्रिटिश शासन के दौरान राजस्थान को 'राजपूताना' के नाम से जाना जाता था। राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है। राजस्थान का अपना एक बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है। राजस्थान भारत के लिए शुरू से ही ऐतिहासिक और भौगोलिक रूप से बहुत ही महत्वपूर्ण राज्य रहा है। राजस्थान राजा-महाराजाओं की भूमि रही है। आजादी से पूर्व राजस्थान में कुल 19 रियासतें थीं। 30 मार्च 1949 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, जयपुर, जोधपुर, जैसलमेर और बीकानेर की रियासतों को 7 चरणों में एकीकृत करके इस संघीय ढांचे को अंतिम रूप दिया गया और जयपुर को इसकी राजधानी बनाया गया। तब से हर वर्ष इसी दिन राजस्थान स्थापना दिवस मनाया जाता है। लगभग 700 ईसा पूर्व से राजस्थान के अधिकांश हिस्सों पर राजपूत वंश का शासन था, इसलिए इसे 'राजपूताना' कहा जाता था। इससे पहले यह मौर्य साम्राज्य का एक प्रमुख हिस्सा था। 13वीं शताब्दी की शुरुआत में, मेवाड़ राजपुताना में 19 रियासतें और अजमेर और मेवाड़ के दो ब्रिटिश जिले शामिल थे। प्राचीन इतिहास में राजस्थान के कुछ हिस्से भी सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रहे हैं, जैसे कालीबंगा, बालाथल और दिलवाड़ा मंदिर आदि। इसमें कालीबंगा को सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य प्रांतीय राजधानी कहा जाता है। मुगल सम्राट अकबर द्वारा राजस्थान को पहली बार राजनीतिक रूप से एकजुट किया गया था। 15 अगस्त 1947 को राजस्थान की सभी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर दिया गया। राजस्थान की 19 रियासतें : अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, नीमराणा, कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, किशनगढ़, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, शाहपुर, बांसबाड़ा, शाहपुरा, कुशलगढ़, जोधपुर , जैसलमेर, बीकानेर राजस्थान की इन 19 रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य का निर्माण किया गया।

 

राजस्थान अपने शाही और ऐतिहासिक किलों, महलों, लोक संगीत और रेत के टीलों के लिए जाना जाता है। यह राज्य पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र भी है इसलिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक राजस्थान को करीब से देखने आते हैं। पर्यटन भी राज्य सरकार के लिए प्रमुख आय स्रोतों में से एक है। यह अपने वस्त्र और हस्तशिल्प के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इसके साथ ही यह राज्य देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। राज्य की अनमोल धरोहरों में से एक उम्मेद पैलेस दुनिया का सबसे बड़ा निजी आवास है, इसके अलावा यहां के प्राचीन महल, करणी मंदिर, आमेर महल, जैसलमेर किला, मेहरानगढ़ किला हैं। जयगढ़ किला, चित्तौड़गढ़ किला, हवा महल, जंतर मंतर, बिड़ला मंदिर विशेष रूप से विदेशी पर्यटकों को पसंद आते हैं। राजस्थान की सीमाएँ 5 प्रमुख राज्यों, उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में उत्तर प्रदेश और हरियाणा, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात और दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश से लगती हैं। राजस्थान को कभी-कभी 'राजाओं की भूमि' के रूप में जाना जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इसका नाम 'राजपूताना' रखा गया। 30 मार्च, 1949 को भारत सरकार के निर्देश पर उत्तरी भारत में स्थित चार बड़ी रियासतों जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और जैसलमेर को संयुक्त राजस्थान राज्य में मिला दिया गया, इस प्रकार एक स्वतंत्र राज्य राजस्थान अस्तित्व में आया। जयपुर को राज्य की राजधानी घोषित किया गया। चार बड़ी रियासतों के एकीकरण के बाद राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया। इसके बाद से राजस्थान दिवस मनाया जाता है। मेहनतकश कमाऊ सोच और ईमानदार राजस्थान अपने विश्वसनीय, भरोसेमंद और ईमानदारी भरे व्यवहार के कारण दुनिया भर में जाना जाता है। राजस्थान और उसकी धरती, मानव समाज और प्राकृतिक व्यवहार की दुनिया भर में अभी तक कोई तुलना नहीं की जा सकी है और न ही इसकी जगह ली जा सकती है। इस वर्ष राजस्थान अपना 75वां स्थापना दिवस पूरे उत्साह, उमंग और जुनून के साथ मना रहा है। देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित यह भूमि समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और आकर्षक स्थलों का घर मानी जाती है।

 

मैं आप सभी राजस्थानवासियों को, जिनकी जड़ें राजस्थान से हैं, इस स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं देता हूं और हमारे सभी सामूहिक प्रयासों से एक बहुत समृद्ध, विकसित, प्रगतिशील और रचनात्मक राजस्थान की कामना करता हूं।

 

वीरों ने अपने खून से राजस्थानी माटी का किया बंदन है,

इसको माथे पर लगा लो यह माटी नहीं चंदन है।

 

त्याग और बलिदान की भूमि राजस्थान,

वीरों और वीरांगनाओ की भूमि राजस्थान,

गौरवशाली इतिहास और धरोहर जिसकी शान,

सबसे निराला, सबसे प्यारा मेरा राजस्थान।

 

उल्लेखनीय है कि राजस्थान राज्य 30 मार्च 1949 को अस्तित्व में आया था। राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के कारण जयपुर को इसकी राजधानी घोषित किया गया था। सार्वजनिक जानकारी के लिए बता दें कि आज ही के दिन साल 1949 में चार राज्य- जोधपुर, जयपुर, बीकानेर और जैसलमेर राजस्थान में शामिल हुए थे और इस तरह राजस्थान राज्य की स्थापना हुई थी।

 

ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार राजस्थान की उत्पत्ति 5000 वर्ष पूर्व बताई जाती है, जहाँ समृद्ध स्थापत्य एवं सांस्कृतिक विरासत की अनूठी झलक देखने को मिलती है। शौर्य, पराक्रम, कला एवं संस्कृति की पावन भूमि 'राजस्थान दिवस' की सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। पुनः इस शुभ अवसर पर मैं प्रदेशवासियों के संरक्षण, संवर्धन एवं समृद्धि की कामना करता हूँ। जय जय राजस्थान !

 

#drkamleshmeenarajarwal

 

सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

फेसबुक पेज लिंक:https://www.facebook.com/ARDMeena?mibextid=ZbWKwL

 

ट्विटर हैंडल अकाउंट: @Kamleshtonk_swm

यूट्यूब लिंक: https://youtube.com/@KRAJARWAL?si=V98yeCrQ-3yih9P2 #drkamleshmeenarajarwal

गुरुवार, 28 मार्च 2024

शहतूत पक गये हैं-विवेक कुमार मिश्र


 

शहतूत पक गये हैं

 

रंग और रस से भरे

शहतूत पक गये हैं

जिंदगी से भर गये हैं

कहते हैं कि शहतूत

घोल देता है मन पर

और जिंदगी में

रस का जादुई असर

और दुनियादारी की किताब

कहीं हो या न हो

पर शहतूत के नीचे

जरूर मिलती है

आदमी जब उब जाता

आलस में आ जाता

तो शहतूत जगा देता है

स्वाद और रंग व रस

एक साथ घोल देता है

शहतूत पूरी दुनियादारी को

रच देता है

आप शहतूत के नीचे हैं

यानी दुनिया

आपके आसपास है

शहतूत कविता और कहानी

अपने रंग रस में

साथ साथ लिए होती

मीठी-मीठी शहतूत

शहतूत सी

मीठी-मीठी जिंदगी

कुछ खट्टी-मीठी सी

शहतूत रंग देती है

अपने ही रंग में

जब शहतूत पक जाती

तो रंग और रस से ही नहीं

स्वाद से भी भर देती है

शहतूत , शहतूत ही होती

हर कोई

शहतूत सा नहीं होता

हो भी नहीं सकता

कहां कोई भी

शहतूत होता

या तो मीठा होता

या तीखा होता

या तो रस से भरा या रसहीन

पर शहतूत रस से

भरे होने पर भी

मीठा भी हो सकता

और खट्टा भी

यह होना

शहतूत के बस का ही है

जो शहतूत नहीं हो पाता

वह रंग भी नहीं पाता

न ही शहतूत की तरह

पकता है

शहतूत पक कर

गाढ़ा कथ्थई रंग ले लेता

और मीठा इतना कि ...

इस मिठास को

शहतूत का मीठापन कह सकते हैं

जो थोड़ा कच्चा होता तो मीठेपन में

खट्टापन लिए होता

खट्टी-मीठी दुनिया में

शहतूत रंग भर देता है

और बराबर से

कहता चलता है कि

शहतूत की तरह

रंग भरो और रस के साथ

जीवन को जीना सीखों

हां , इस तरह

कुछ भी करों पर

शहतूत होना मत छोड़ो ।


रविवार, 17 मार्च 2024

पुस्तक: "मन चरखे पर"- नीलम पारीक- समीक्षक— मेवाराम जी गुर्जर


 पुस्तक: मन चरखे पर

नीलम पारीक

*****

 नीलम पारीक की कविताएं यु तो स्त्री विमर्श के इर्द-गिर्द बुनी गई है किंतु फिर भी विषय की विविधता है। विषय की विविधता इसलिए कि उनकी कविताओं में स्त्री प्रेम है, स्त्री पीड़ा है, प्रकृति,गांव, खेत खलियान और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी हुई घटनाओं को कविताओं में भी पिरोया है। दरअसल हम जो देखते हैं, सुनते हैं या जो हमारे आसपास घटित होता है वह लेखन में जरूर उतरता है। नीलम पारीक ने भी अपने आसपास जिन घटनाओं को घटते देखा है उनको बड़े खूबसूरत तरीके से कविताओं के साँचे मे डाला है। देखने और पढ़ने में जितनी सहज और सरल है उतनी ही भाव में गंभीरता लिए है। पाठक हो बांधे रखती हैं। लेखन  तब सार्थक होता है जब समाज में उससे परिवर्तन आता है। समाज की तमाम समस्याओं चुनौतियों और पीड़ाओं को लेखन प्रभावित भी करता है और परिवर्तित भी।

नीलम पारीक अपनी कविताओं में उन विषयों को बड़े सहजता से छू लेती है जिन्हें अक्सर हम सामान्य कहते हैं या अनावश्यक समझकर छोड़ देते हैं। इनकी कविताओं में और बेहतर की गहरी संभावनाएं छुपी है।

सबसे अच्छी बात यह है कि नीलम पारीक की कविताओं में भारी भरकम शब्द या बहुत अधिक जटिल शब्दों का लेस मात्रा भी प्रयोग नहीं हुआ। यह जितनी सरल भाषा में है उतनी ही सरलता से पाठक के अंदर ढलती जाती है। पाठक जब कविताएं पढ़ता है तो बड़ी सहजता से ही इन कई कविताओं के हवाले होता जाता है। यह लेखन की बड़ी ताकत है

कुछ कवितांश.......

 

"अब तो तन गए हैं

खिड़की दरवाजों पर भारी पर्दे

घेर लेती है नींद

थके टूटे तन-मन को

यह उन दिनों की बात है।

 

"लेकिन वो खत

जो लिखने थे तुम्हें

और वो खत जो लिखने थे मुझे

आज भी रखे हैं

सहेज कर दिल में

अक्षर अक्षर।

 

"बरसों से बैरंग

मटमैले कागज पर

तुम्हारे प्रेम की रौशनाई ने

बिखेर दिए हजारों रंग

बन गए जाने कितने इंद्रधनुष।

 

"स्त्री नहीं भूलती कुछ भी

रोटी बेलते बेलते भी

संभाल लेती है वॉशिंग मशीन।

 नीलम पारीक की कविताओं में एक अजीब सी टीस है जो केवल पाठक को ही नहीं बल्कि समाज को भी सोचने के लिए मजबूर करती है। बड़ी सहजता से इन्होंने समाज की विद्रूपताओं को मुखर किया है।

एक अच्छी पुस्तक के लिए नीलम पारीक को ढेर सारी शुभकामनाएं।

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...