रविवार, 18 फ़रवरी 2024

सहनशीलता द्वारा जगत-कल्याण: भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता- डॉ0 रवीन्द्र कुमार*


  सहनशीलता द्वारा जगत-कल्याण: भारतीय संस्कृति की मूल विशेषता

 डॉ0 रवीन्द्र कुमार*

 "ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी त्वं विष्णुना धृता/ त्वं च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम्// हे देवी (पृथ्वी)! सम्पूर्ण विश्व लोक आपके द्वारा धारण किया जाता है और श्रीविष्णु (परमात्मा) द्वारा आपको धारण किया जाता हैहे (पृथ्वी) देवी! आप मुझे भी धारण करो तथा इस आसन (लोक-निवास) को पवित्रता प्रदान करो।"

मानव-एकतासमानता तथा सर्व सद्भावना के लिए सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले चैतन्य महाप्रभु (जीवनकाल: 1486-1534 ईसवीं) के प्रमुख शिष्य सनातन गोस्वामी (जीवनकाल: 1488-1558 ईसवीं) द्वारा रचित श्री हरि-भक्ति विलास (5: 22) में प्रकट उक्त श्लोकजिसकी जड़ें वैदिक वाङ्गमय के अभिन्न भाग उपनिषदों (विशेषकर कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय उपनिषद्) की मूल शिक्षाओं में हैंसाथ हीवैदिक मंत्रों से जिनका निकास हैवास्तव मेंभारतीय संस्कृति की जगत-कल्याण सम्बन्धी सर्वप्रमुख विशेषता को समर्पित है।      

तैत्तिरीय उपनिषद् के शिक्षावल्ली (11: 1) मेंजो इस उपनिषद् का बहुत ही महत्त्वपूर्ण भाग है"सत्यं वद धर्मं चर स्वाध्यायान्मा प्रमदः... सत्य बोलोधर्माचरण करोस्वाध्याय में आलस्य न करो" जैसे प्रमुख मंत्र सम्मिलित हैं।

सत्य एक ही हैवही परमसत्य और ब्रह्म है। सत्य का आलिंगन ही धर्म-पालन हैदूसरे शब्दों मेंयही धर्माचरण का माध्यम या मार्ग है। पृथ्वी (वसुधा) धर्म-पालन (धर्माचरण) का क्षेत्र है। यह अपने स्वभाव में क्षमा की पर्याय है। यह निरन्तर धारण करती हैसदैव सहनशील रहती है। अपने क्षमाशीलता और सहनशीलता जैसे महागुणों द्वारा स्वयं धर्म का उदाहरण बनकर मानव का धर्म-पालन का आह्वान करती है। मध्यकाल में रचित श्री हरि-भक्ति विलास में प्रकट हुए श्लोक का (हजारों वर्ष पूर्व तैत्तिरीय उपनिषद् की शिक्षाओं के माध्यम से) आधार बनती है।   

अथर्ववेद के पृथ्वी (भूमि) सूक्त (प्रथम सूक्तबारहवाँ काण्ड) की यही मूल  भावना है। इसका निष्कर्ष मानव में सहनशीलता को (क्षमा-करुणा जैसी विशिष्टताएँ जिसके साथ जुड़ी हैंसहिष्णुता जिसकी पूरक है और जो आत्मसंयमउदारवादी तटस्थता व निष्पक्षता की भी द्योतक है) प्रधान गुण के रूप में विकसित करना है। इसे प्रमुख जीवन-संस्कार बनाकरइसकी मूल भावना के अनुसार मानव को परस्पर व्यवहारों के लिए प्रेरित करना है। यह वास्तविकता और आगे भी जाती है। वैदिक-हिन्दू धर्मग्रन्थों के अतिरिक्त भारतीय मूल के अन्य प्राचीनकालिक विचार-ग्रन्थोंयहाँ तक की तिरुवल्लुवर (जीवनकाल: अनुमानतः छठी-पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व) की नीतिशास्त्र की अद्वितीय रचना तिरुक्कुरल मेंस्वयं अहिंसा धर्म और उच्चतम मानवीय मूल्य के रूप में जिसका एक प्रमुख विषय हैयही प्राथमिकता से प्रकट होता मनुष्य का आह्वान है। विशेष रूप सेगृहस्थी में अहिंसामूलक नैतिक मूल्योंप्रमुखतः सहनशीलता जैसी विशिष्टता के अनुरूप व्यवहारों द्वारा दिव्यपवित्र और शुद्ध जीवन जीया जा सकता हैमानव के लिए यह सन्देश है।  

आधारभूत धर्मग्रन्थों में, विशेष रूप से पृथ्वी को केन्द्र में रखकर सहनशीलता के सम्बन्ध में प्रकट उल्लेखों के अनुरूप ही इनके आदिकालिक व्याख्याताओं-प्रसारकों ने अपना जीवन भी जीया। उत्तर-दक्षिण व पूरब-पश्चिमसम्पूर्ण भारतवर्ष से उन व्याख्याताओं-प्रसारकों ने धैर्यशान्तता, सन्तोषसंयमसहिष्णुतासुशीलता आदि जैसी सहनशीलता की पूरक और इसे दृढ़ करती विशिष्टताओं को अपना एक प्रमुख जीवन-संस्कार बनाया। परस्पर सहयोगसामंजस्यता तथा स्वीकार्यता का मार्ग प्रशस्तकर्त्री सहनशीलता को अपने जीवन के प्रमुख गुण के रूप में विकसित कर, लोगों को इसके अनुरूप व्यवहारों-आचरणों हेतु प्रेरित और प्रवृत्त करने वाले वे वीर पुरुष ही वसुधैव कुटुम्बकम" की सत्यता को स्वीकार कर सर्व न्याय के सिद्धान्त साथ जगत-कल्याण को समर्पित भारतीय संस्कृति की नींव रखने वाले थे।

उन संस्थापकों का अनुसरण करते हुए बाद के प्रत्येक काल-खण्ड में धर्म-सम्प्रदायोंमतों-पन्थों की सीमाओं से बाहर आकर निर्भीकदृढ़संकल्पी और व्यापक जनोद्धार के लिए प्रतिबद्ध आचार्यकर्मयोगी और महापुरुष इस दिशा में आगे बढ़े।   

'संस्कृतिशब्द संस्कार से ही बना है। संस्कार व्यक्ति में गुण (विशिष्टता) के विकास का माध्यम अथवा आधार है तथा उसकी व्यक्तिगत गतिविधियों एवं सजातीयों के साथ व्यवहारों के माध्यम से उसके सभ्यसकारात्मक एवं समन्वयकारी बनने व कर्त्तव्यबद्ध होकर विकासमार्गी होने में निर्णायक भूमिका का निर्वहन करता है। संस्कार ही सहनशीलता कोउसके विभिन्न पक्षों के साथजिनमें से करुणाक्षमा, सन्तोषसहिष्णुतासुशीलतासंयम आदि जैसे कुछेक का हमने उल्लेख भी किया हैव्यक्ति में गुण के रूप में विकसित करता है। यही मनुष्य में धैर्य व संयम कोजिनका वृहद् मानवोत्थान हेतु इसी के परिप्रेक्ष्य में वेदों व अन्य ग्रन्थों में अनेक बार उल्लेख हैसुदृढ़ भी करता है। इसलिएभारत-भूमि पर उत्पन्न महान ऋषियों-महर्षियों सनातन सत्यता (सनता सनातनऋग्वेद, 33औरशाश्वत  सदैव अस्तित्ववानश्रीमद्भगवद्गीता, 14: 27) के प्रकाशकर्ताओं ने सहनशीलता को प्रमुख मानवीय संस्कार के रूप में स्थापित कर भारतीय संस्कृति की अति सुदृढ़ नींव रखी और इसका विकास किया। यह क्रम हजारों वर्ष से बना हुआ है। भारतीय संस्कृति सहनशीलता प्रधान अपनी पहचान के साथ विश्वभर के लिए आशा व विश्वास से भरपूर एक प्रकाशपुञ्ज की भाँति स्थापित है। सहनशीलता की अपनी सर्वप्रमुख विशिष्टता की अक्षुण्णता के बल पर जगत-कल्याण के लिए आगे भी स्थापित रहेगी। 

भारतीय संस्कृति का सहनशीलता वाला पक्ष सनातन सत्यता (जगत में प्रत्येक जन एक ही मूलोत्पन्न है और सर्व-कल्याण में ही निजोन्नति भी सम्मिलित है"को समर्पित है। सहनशीलता पर-मत अथवा विचारविश्वास या श्रद्धा की स्वीकृति का सन्देश देती है। इस सन्देश के मूल में "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" (ऋग्वेद, 1: 164: 46) जैसा अतिश्रेष्ठ वेद-मंत्र है। चूँकि सत्य तक पहुँचने का मार्ग या माध्यम किसी एक विचारग्रन्थअवतार या सन्देशवाहक तक सीमित नहीं हो सकताइसलिए ऐसा करने वाला कोई भी व्यक्तिवास्तव मेंसहनशील नहीं हो सकता।     

सहनशीलता दूसरे की कार्यपद्धति कायदि वह किसी के लिए अन्यायी नहीं है और उसके मार्ग की बाधा नहीं बनती हैसम्मान करने की अपेक्षा भी रखती है। साथ हीवैचारिक मतभेद अथवा पृथक कार्यपद्धति की स्थिति में वृहद् कल्याण के लिए सामंजस्य स्थापना के साथ सहयोग का आह्वान करती है।     

विश्व-इतिहास के पृष्ठ स्वयं ही इस बात के साक्षी हैं कि सहनशीलता केन्द्रित भारतीय संस्कृति ने गत हजारों वर्षों की समयावधि में उन अनेकानेक मतोंपन्थों एवं धर्म सम्प्रदायों को हृदयंगम कियाजिनका उदय-स्थान हिन्दुस्तान नहीं था। विश्व की सबसे प्राचीन जीवित भारतीय संस्कृति ने उन अभारतीय जन के विश्वासोंउनकी परम्पराओं और श्रद्धाओं को हिन्दुस्तानी भूमि पर सम्मान के साथ फैलने-फूलने का समान अवसर दियाजिन्हें स्वयं उनके उद्गम स्थानों पर नकारा और उजाड़ा गया।

विशेष रूप से यहूदियों और पारसियों के अपने-अपने देशों में अमानवीय उत्पीड़नउनकी उपासना पद्धतियोंरीतियोंधार्मिक मान्यताओं व मूल्यों को बलात मिटाने के निरन्तर प्रयासपरिणामस्वरूप उनके प्रथम से सातवीं-आठवीं शताब्दी ईसवीं में मालाबार (वर्तमान केरल प्रान्त) और संजान नगर (वर्तमान गुजरात प्रान्त) में पहली बार और बाद में भी  भारत आगमन से जुड़ा घटनाक्रम हमारे सामने है। पर-वैयक्तिकता की सत्यता को स्वीकार कर उसे सम्मान देने वाली   सनातन मूल्यों की पोषक हिन्दुस्तानी भूमि द्वारा उन लोगों को अपनी गोद में लेना तथा सहनशीलता प्रधान व समावेशी भारतीय संस्कृति द्वारा उनकी मान्यताओंश्रद्धाओं और अति विशेष रूप से उनकी उपासना पद्धतियों का आदर व संरक्षण विश्वभर में किसी से छिपा नहीं है।

इस सम्बन्ध में मैं किसी विस्तार में नहीं जाऊँगा। मैं केवल इतना ही कहूँगा कि सहनशीलता का इससे श्रेष्ठ कोई दूसरा उदाहरण भारतीय संस्कृति के अतिरिक्त सम्पूर्ण उपलब्ध मानव-इतिहास में वर्णित किसी अन्य संस्कृति के सम्बन्ध में नहीं मिलेगा। सनातन–शाश्वत मूल्यों से बँधी और पृथ्वीमाता की जगत-कल्याण हेतु सहनशीलता का अनुसरण करती भारतीय संस्कृति पूरे विश्व के लिए एक अनुकरणीय आदर्श है। एक ओर यही वह शक्ति हैजो सारे भारत को उसकी विभिन्नताओं के साथ एकता के सूत्र में पिरोती हैतो दूसरी ओर "वसुधैव कुटुम्बकम" की सत्यता को स्वीकार कर यह भारत के विश्वगुरु के रूप में स्थापित होने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। अमरीकी इतिहासकार और दार्शनिक विल ड्यूरेंट (जीवनकाल: 1885-1981 ईसवींने ठीक ही कहा है"भारत हमें परिपक्व मस्तिष्क की सहनशीलता और विनम्रतासमझने की भावना और सभी मनुष्यों की एकता व संतुष्टि हेतु प्रेम सिखाएगा।"   

*पद्मश्री और सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत इण्डोलॉजिस्ट डॉरवीन्द्र कुमार चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालयमेरठ के पूर्व कुलपति हैंवर्तमान में स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालयमेरठ (उत्तर प्रदेश) के लोकपाल भी हैं।

 

बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

रेडियो ने मुझे दुनिया को जानने, सीखने और मीडिया क्षेत्र से जुड़ने का पहला मौका दिया: डॉ कमलेश मीना।


 

रेडियो ने मुझे दुनिया को जानने, सीखने और मीडिया क्षेत्र से जुड़ने का पहला मौका दिया: डॉ कमलेश मीना।

 

13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस (डब्ल्यूआरडी) के रूप में मनाया जाता है, जो उस शक्तिशाली माध्यम का उत्सव है जिसने एक सदी से भी अधिक समय से दुनिया भर के लोगों को सूचित, मनोरंजन और शिक्षित किया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सभी के लिए सूचना, मनोरंजन और शिक्षा के स्रोत के रूप में रेडियो के महत्व को मान्यता देते हुए 14 जनवरी 2013 को विश्व रेडियो दिवस के प्रस्ताव को अपनाया। सौभाग्य से मुझे बचपन से ही संचार, समाचार और मनोरंजन के इस माध्यम का शौक था और मेरे पिता ने 1990 के दशक के दौरान पहली बार हमारे लिए फिलिप का रेडियो खरीदा था और दिन-ब-दिन हमें रेडियो की आदत होती गई 📻 और मुझे आज भी वे दिन याद हैं जब रेडियो रुतबे, सम्मानित एवं गरिमामय व्यक्तित्व का प्रतीक था। डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उदय के साथ, रेडियो को कम राजस्व, तकनीकी व्यवधान और सेंसरशिप जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि,यह उन लोगों तक पहुँचने के लिए एक आवश्यक उपकरण बना हुआ है जिनके पास इंटरनेट तक पहुंच नहीं है या डिस्कनेक्ट हो गए हैं।

 

विश्व रेडियो दिवस रेडियो के माध्यम को सूचना, मनोरंजन और शिक्षा के स्रोत के रूप में मनाने का एक अवसर है। यह समावेशी संचार और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा देने के एक उपकरण के रूप में रेडियो के महत्व की भी याद दिलाता है। प्री प्राइमरी से लेकर कॉलेज शिक्षा के दौरान रेडियो हमेशा मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग रहा और पहली बार मैं इस माध्यम से दुनिया, अपने देश और अन्य ज्ञानवर्धक चीजों को जान सका। एक समय था जब मुझे रेडियो के माध्यम से बीबीसी लंदन के समाचार सुनने का बहुत शौक था, विशेष रूप से सुबह और शाम के समाचार और उन आदतों ने मुझे एक सूचित, शिक्षित, जानकार और परिपक्व व्यक्ति बना दिया, इसमें कोई संदेह नहीं है। आज विश्व रेडियो के अवसर पर मैं आप सभी को, विशेष रूप से रेडियो श्रोताओं के प्रेमियों को शुभकामनाएं देता हूं जो अभी भी इसे संचार, मनोरंजन, सूचना के सर्वोत्तम माध्यम के रूप में उपयोग करते हैं और विभिन्न देशों, क्षेत्रों और हमारे दैनिक जीवन से संबंधित ज्ञान प्राप्त करते हैं।

 

मेरे जीवन में 2005 में मुझे 'युववाणी' कार्यक्रम के माध्यम से आकाशवाणी स्टेशन जयपुर आकाशवाणी पर अपना पहला कार्यक्रम देने का अवसर मिला और इसके लिए मुझे आकाशवाणी से 75/- रुपये पारिश्रमिक मिला। उस अवसर ने मुझे विशेषज्ञता के साथ-साथ एक अलग तरह का अनुभव, प्रेरणा और सीखने का अनुभव भी दिया और उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिछले लगभग 19-20 वर्षों में मैंने रेडियो के माध्यम से विभिन्न विषयों और मुद्दों पर कई कार्यक्रम दिए हैं। मुझे लगता है कि देश भर के विभिन्न राज्यों और जिलों में विभिन्न रेडियो स्टेशनों के माध्यम से मेरी रेडियो वार्ताओं, चर्चाओं, विचार-विमर्श कार्यक्रमों की संख्या शायद 100 से अधिक हो गई है।

 

दुनिया के सबसे बड़े मुक्त विश्वविद्यालय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय इग्नू में शामिल होने के बाद, रेडियो के साथ मेरा जुड़ाव और अधिक मजबूत हो गया और इग्नू के प्रसिद्ध लोकप्रिय रेडियो स्टेशन "ज्ञानवाणी" रेडियो स्टेशन के माध्यम से बातचीत करने के कई अवसर मिले, जो पूरी तरह से शैक्षिक उद्देश्यों और शैक्षिक शैक्षणिक कार्यक्रमों के लिए समर्पित है। मुझे ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन जयपुर के माध्यम से एक लाइव इंटरएक्टिव रेडियो काउंसलिंग (आईआरसी) कार्यक्रम के माध्यम से हजारों छात्रों को अपनी विशेषज्ञता, ज्ञान और जानकारी देने का अवसर मिला।

 

रेडियो, एक कम लागत वाला माध्यम जो विशेष रूप से दूरदराज के समुदायों, दूर-दराज के क्षेत्रों और कमजोर लोगों तक पहुंचने के लिए उपयुक्त है, ने एक शताब्दी से अधिक समय से सार्वजनिक बहस में हस्तक्षेप करने के लिए एक मंच प्रदान किया है और लोगों के शैक्षिक स्तर के बावजूद, आपातकालीन संचार और आपदा राहत में यह एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अनुसार, रेडियो ने 100 साल का मील का पत्थर पार कर लिया है, इसलिए यह माध्यम के व्यापक गुणों और निरंतर क्षमता का जश्न मनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है क्योंकि यह डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया, डिजिटल और पीढ़ीगत विभाजन, सेंसरशिप, समेकन और आर्थिक कठिनाइयाँ आदि के अपने दर्शकों और राजस्व में वृद्धि के लिए चुनौतियों का सामना करता है। आम तौर पर यह माना जाता है कि पहला रेडियो प्रसारण 1895 में गुग्लिल्मो मार्कोनी द्वारा किया गया था और संगीत और बातचीत का रेडियो प्रसारण, जिसका उद्देश्य व्यापक दर्शकों के लिए था, प्रयोगात्मक रूप से, कभी-कभी 1905-1906 के आसपास अस्तित्व में आया। 1920 के दशक की शुरुआत में रेडियो व्यावसायिक रूप से अस्तित्व में आया। लगभग तीन दशक बाद रेडियो स्टेशन अस्तित्व में आए और 1950 के दशक तक रेडियो और प्रसारण प्रणाली दुनिया भर में एक आम वस्तु बन गई। लगभग 60 साल बाद, 2011 में, यूनेस्को के सदस्य राज्यों ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में घोषित किया। इसे 2013 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम के रूप में अपनाया गया था। वैश्विक स्तर पर सबसे व्यापक रूप से उपभोग किए जाने वाले माध्यमों में से एक, संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि रेडियो में "समाज की विविधता के अनुभव को आकार देने, सभी आवाज़ों को बोलने, प्रतिनिधित्व करने और सुनने के लिए एक क्षेत्र के रूप में खड़े होने" की क्षमता है। स्पेन के एक प्रस्ताव के बाद, यूनेस्को के कार्यकारी बोर्ड ने 2011 में यूनेस्को द्वारा की गई एक परामर्श प्रक्रिया के आधार पर, सामान्य सम्मेलन में विश्व रेडियो दिवस की घोषणा की सिफारिश की। इसके बाद, यूनेस्को के तत्कालीन महानिदेशक ने संयुक्त राष्ट्र रेडियो के गठन का प्रस्ताव रखा। उसके बाद अपने 36वें सत्र में, यूनेस्को ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में घोषित किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 जनवरी, 2013 को औपचारिक रूप से यूनेस्को की विश्व रेडियो दिवस की घोषणा का समर्थन किया। अपने 67वें सत्र के दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस के रूप में घोषित करने का एक प्रस्ताव अपनाया। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व रेडियो दिवस का उद्देश्य रेडियो के महत्व के बारे में जनता और मीडिया के बीच अधिक जागरूकता बढ़ाना है। इस दिन का उद्देश्य रेडियो स्टेशनों को अपने माध्यम से सूचना, ज्ञान, शिक्षा तक पहुंच प्रदान करने और प्रसारकों और प्रसारित मालिकों के बीच नेटवर्किंग और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना भी है।

 

13 फरवरी, 2024 को मनाए जाने वाले विश्व रेडियो दिवस का विषय "रेडियो: सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी" है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है, “2024 का उत्सव रेडियो के इतिहास और समाचार, नाटक, संगीत और खेल पर इसके शक्तिशाली प्रभाव पर प्रकाश डालता है। यह तूफान, भूकंप, बाढ़, गर्मी, जंगल की आग, दुर्घटनाओं और युद्ध जैसी प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के कारण होने वाली आपात स्थितियों और बिजली कटौती के दौरान पोर्टेबल सार्वजनिक सुरक्षा जाल के रूप में चल रहे व्यावहारिक मूल्य को भी पहचानता है। इसके अलावा, रेडियो का निरंतर लोकतांत्रिक मूल्य अप्रवासी, धार्मिक, अल्पसंख्यक और गरीबी से त्रस्त आबादी सहित वंचित समूहों के बीच जुड़ाव के लिए जमीनी स्तर पर उत्प्रेरक के रूप में काम करना है।

आज के समय में बेशक आप स्मार्टफोन के जरिए हर पल की खबर जान लेते हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी था जब रेडियो देश-दुनिया से जुड़ी जानकारी का बड़ा जरिया था। अगर भारत में रेडियो की बात करें तो ब्रिटिश काल में कांग्रेस रेडियो और आजाद हिंद रेडियो आदि के जरिए लोगों तक जानकारी पहुंचाने का काम किया जाता था। इतना ही नहीं, जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ, तब रेडियो पर घोषणा की गई। उस समय पंडित जवाहरलाल नेहरू ने एक भाषण दिया था जिसे 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी' के नाम से जाना जाता है।

 

इस वर्ष 2024 की थीम है "रेडियो: सूचना देने, मनोरंजन करने और शिक्षित करने वाली एक सदी।" यह विषय रेडियो के उल्लेखनीय इतिहास, इसके प्रासंगिक वर्तमान और दुनिया को सूचना, मनोरंजन और शैक्षिक सामग्री प्रदान करने के आशाजनक भविष्य को पूरी तरह से उजागर करता है और हमें शुरुआती दिनों की याद दिलाता है जब मीडिया के रूप में एकमात्र माध्यम रेडियो था।

 

विश्व रेडियो दिवस हर साल 13 फरवरी को मनाया जाने वाला एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस है। यूनेस्को ने अपने 36वें सम्मेलन के दौरान 3 नवंबर 2011 को इस दिन को मनाने का निर्णय लिया था। यह दिन हमें संचार, मनोरंजन, सूचना, ज्ञान और विश्वव्यापी ज्ञान मंच के इस उपकरण के महत्व की याद दिलाता है।

 

इस 'ज्ञानवाणी' कार्यक्रम के माध्यम से मैं इग्नू शिक्षार्थियों की शिकायतों को सुनने और उनके शैक्षणिक नामांकित कार्यक्रमों से संबंधित ज्ञानवर्धक जानकारी और इग्नू प्रवेश प्रक्रिया, परीक्षा कार्यक्रम, असाइनमेंट, परियोजनाओं और अन्य महत्वपूर्ण तिथियों के बारे में संभावित जानकारी साझा करने के कारण अधिक लोकप्रिय हो गया।

 

मैं इस आशा के साथ आप सभी को विश्व रेडियो दिवस की शुभकामनाएं देता हूं कि यह संचार माध्यम हमारी युवा पीढ़ी के लिए नए ज्ञानवर्धक एवं रचनात्मक विचारों के माध्यम से अपनी महत्ता एवं प्रासंगिकता बनाए रखेगा।

 

#drkamleshmeenarajarwal

 

सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

 

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

फेसबुक पेज लिंक:https://www.facebook.com/ARDMeena?mibextid=ZbWKwL

 

ट्विटर हैंडल अकाउंट: @Kamleshtonk_swm

यूट्यूब लिंक: https://youtube.com/@KRAJARWAL?si=V98yeCrQ-3yih9P2

रविवार, 11 फ़रवरी 2024

243 यूनिट ब्लड़ एकत्रित किया, 395 लोगो को निःशुल्क चश्मा, 820 लोगो ने लिया चिकित्सा परामर्श, 97 वृद्धजनो को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।

 


243 यूनिट ब्लड़ एकत्रित किया, 395 लोगो को निःशुल्क चश्मा, 820 लोगो ने लिया चिकित्सा परामर्श,  97 वृद्धजनो को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। 

 जेके फाउण्डेशन की ओर से संस्था अध्यक्ष श्री विनोद टाटीवाल के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में विशाल रक्तदान शिविर, वृद्धजन सम्मान समारोह, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा, निः शुल्क आँखो की जॉच एवं निः शुल्क चश्मा वितरण शिविर का 11 फरवरी 2024 को प्रातः 8 से महात्मा ज्योतिबा फुले सी.सै. स्कूल, रेलवे स्टेशन के सामने, सांगानेर, जयपुर में आयोजन किया, शिविर में मुख्य अथिति रामचरण बोहरा सांसद जयपुर शहर, विशिष्ट अथिति अनिल गोठवाल पूर्व अति. पुलिस अधीक्षक, श्रीमान् राकेश कुमार बैरवा अति. पुलिस अधीक्षक हिंडौन सिटी, ममता नागर टोंक नगर परिषद आयुक्त, माधोराजपुरा प्रधान अभिषेक गोठवाल, डॉ. सुनील गोठवाल सहायक आचार्य एस.एम.एस. अस्पताल जयपुर, रामानंद गुर्जर पूर्व जिलाध्यक्ष भाजपा, राजेश अहुलवालिया भाजपा प्रभारी सांगानेर, भाजपा मण्ड़ल अध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा, पार्षद गिर्राज शर्मा, संस्था संरक्षक हेमराज टाटीवाल, वी.डी. बैरवा, छोटूराम गुर्जर, भंवर लाल बैरवा, व. उपाध्यक्ष कैलाश चन्द, उपाध्यक्ष विकास कुमार बैरवा, कोशाध्यक्ष रमेश चन्द, सचिव सुमन कुमारी, सुरेन्द्र वर्मा, सुनील नागरवाल, दिलीप सिह, दीपक शर्मा, धन कुमार जैन, अनिल कुमावत, शुभम सैनी, वासुदेव खण्ड़ेलवाल, विजय मीणा, एडवोकेट खेमचन्द शर्मा, एडवोकेट तेजकान्त नागरवाल, पंकज राजवंशी, गोविन्द दसलानियां, पवन परीड़वाल, सचिन गजरावत, कन्हैया लाल, गोपाल चौधरी, कमला देवी, विमला देवी, विमला बैरवा, सन्तोश देवी, सहित हजारो लोग उपस्थित रहे। 243 यूनिट ब्लड़ एकत्रित किया, 395 लोगो को निः शुल्क चश्मा, 820 लोगो ने लिया चिकित्सा परामर्श  97 वृद्धजनो को शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया। रक्तदाताओं को प्रशस्ति पत्र व हेलमेट देकर सम्मानित किया गया। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएं इटर्नल अस्पताल सांगानेर द्वारा दी गई।



सुषमा मुनीन्द्र (उपन्यासकार,कहानीकार)से कथाकार डॉ.नीरज वर्मा का संवाद ,11 फरवरी ,शाम- 7 से 8 बजे तक


 सुषमा मुनीन्द्र (उपन्यासकार,कहानीकार) से कथाकार डॉ.नीरज वर्मा का संवाद

रविवार 11 फरवरी 2024, शाम- 7 बजे से 8 बजे तक https://www.youtube.com/watch?v=mEldn2oH7fU Jansarokarmanch tonk को subscribe कर अपने कमेंट जरूर लिखें और लिंक को शेयर कर दे।

डॉ.कमलेश मीणा(सामाजिक चिंतक,शिक्षाविद्,लेखक) से भारत दोसी (गांधी लेखक और कथाकार) का संवाद

                           https://www.youtube.com/watch?v=m4Pv8kis1Ck                                                                                                   रविवार 11 फरवरी 2024,समय रात्रि - 8 से 9 बजे तक तक                                                   Jansarokarmanch tonk  को  subscribe कर अपने कमेंट जरूर लिखें और लिंक को शेयर कर दे।



 

शनिवार, 10 फ़रवरी 2024

हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध संस्मरण लेखिका सरिता कुमार- जयचन्द प्रजापति ’जय’ प्रयागराज

हिंदी साहित्य की प्रसिद्ध संस्मरण लेखिका सरिता कुमार

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हिंदी साहित्य में ऐसा नाम जो सभी जानते ही है एक सुपरिचित लेखिका कवियत्री सरिता कुमार जो कई विधाओं में अपनी लेखनी चलाई और एक से एक साहित्य लिखा। वास्तव में जीवन की सच कहती इनकी रचनाएं वास्तविक जीवन की सैर कराती हैं। जनक बिहारी शरण के घर पर 26 अगस्त 1966 को जन्म हुआ था। इनकी माता का नाम प्रेमलता शरण है। इनके पति का नाम आनरी लेफ्टिनेंट अंजनी कुमार हैं। पढ़ाई लिखाई स्नातक प्रतिष्ठा ( मनोविज्ञान ) हुई।भारतीय सेना के ब्रिगेड स्कूल में शिक्षिका,प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र में शिक्षिका,खाद्य पदार्थों का संरक्षण एवं संचयन प्रशिक्षिका , आवा की प्रमुख प्रभारी ,सैनिक भाईयों के साथ मच्छरदानी सिलाई एवं न  सेवा में समर्पित रहने वाली वर्तमान में पद नवीन डिजास्टर रेस्क्यू फाउंडेशन में हरियाणा क्षेत्र की "राष्ट्रभाषा प्रकोष्ठ " की अध्यक्ष एवं "एच आई एफ आई" की वाइस प्रेसिडेंट हैं।

 

सरिता कुमार अपने बारे में बताती हुई कहती हैं। मेरा जन्म बिहार राज्य के बेतिया शहर में हुआ था । मेरे पापा आई टी आई में इंस्ट्रक्टर थें । जन्म के कुछ साल बाद उनकी पोस्टिंग मुजफ्फरपुर शहर में हो गई और मुजफ्फरपुर शहर में ही मेरा लालन पालन हुई और शिक्षा दीक्षा मिली । पांच भाई बहनों में मैं चौथे नंबर पर हूं । मुजफ्फरपुर के सरकारी स्कूल हरियर नारायण माध्यमिक विद्यालय हरिसभा चौक पर स्थित है जहां से मेरी शिक्षा शुरू हुई ।

 

बचपन में मैं बहुत होशियार थी इसलिए दूसरी कक्षा में मुझे डबल प्रमोशन देकर चौथी कक्षा में स्थानांतरित कर दिया गया और मेरी बड़ी बहन जो उसी स्कूल में पांचवीं कक्षा पास करके माध्यमिक विद्यालय से उच्च विद्यालय  चैपमैन गर्ल्स हाई स्कूल में नामांकन परीक्षा में बैठने के लिए आवेदन पत्र पर भर रही थीं । तब मेरी भी इच्छा हुई की बड़ी बहन के साथ उनके स्कूल में एडमिशन करवा लूं जो कि शहर का नंबर वन स्कूल माना जाता था । स्कूल का ड्रेस भी बेहद आकर्षक था । चुकी दूसरी क्लास से चौथी क्लास में प्रमोशन मिला था इसलिए मनोबल बहुत बढ़ गया और बेहद उत्साहित होकर मैंने भी आवेदन किया और जांच परीक्षा में पास हो गई । फिर हम दोनों बहनें शहर के नंबर वन स्कूल में पढ़ने के लिए जाने लगें ।

 

1981 में हमने मैट्रिक की परीक्षा पास की और फिर शहर के नंबर वन कॉलेज , मंहत दर्शन दास महिला महाविद्यालय में नामांकित हुए । स्कूल से कॉलेज में जाने के बाद कुछ स्वतंत्रता मिली और छात्र जीवन बेहतरीन हुआ । वहां हिंदी साहित्य की प्रोफेसर विनोदिनी सिंह जी  , शांती सुमन  जी , कमला कानोड़िया जी । राजनीति शास्त्र में राधिका जी , वीणा जी , वैदेही जी , अंग्रेजी साहित्य में नीलम शरण जी , प्रेम सिंह जी , और मनोविज्ञान में शांति सिंह जी , विमला जी का सानिध्य मिला , शिक्षा और ज्ञान मिला जिससे हमारा विद्यार्थी जीवन धन्य हुआ । पढ़ाई लिखाई के अलावा राष्ट्रीय सेवा समिति और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी हमने हिस्सेदारी निभाई है । मनोविज्ञान में प्रतिष्ठा के बाद मेरी पढ़ाई बाधित हो गई ।

 

मेरे पारिवारिक जीवन में घोर संकट आया । मेरे पापा का एक्सिडेंट हुआ वो लगभग एक साल बीमार रहें और उनकी सेवा में सतत लगी रही मेरी मां अपना ख्याल नहीं रख सकी । हम पांच भाई बहनों के अलावा दादा जी और दादी मां एक सहायक भरत और एक सहायिका फुलझडियां बुआ कुल मिलाकर ग्यारह लोगों का परिवार था । हम बच्चों को पढ़ाई लिखाई और खेल कूद के अलावा कुछ खास जिम्मेदारी नहीं थी जिसका खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ा । असमय मेरी मां का देहांत हो गया 1988 में उसके बाद 1991 में मेरे पापा का देहांत हो गया । 1992 में मेरा विवाह वैशाली के निवासी डॉ गुलजार सहाय के छोटे बेटे अंजनी कुमार से हुई जो भारतीय सेना के इंपैक्ट बटालियन राजपुताना राइफल्स में सेवारत थें । शादी के बाद एक वर्ष तक आदर्श बहू रानी की भूमिका निभाई अपने सास ससुर , जेठ जेठानी , ननद और जेठानी के पांच बच्चों के साथ गांव में खुशी खुशी रही । 1932 मई में पंजाब के फीरोजपुर जिले में पति के पास चली गई । वहां मैंने स्कूल ज्वाइन किया बरकी ब्रिगेड स्कूल में शिक्षिका बनी । 1995 फरवरी में मेरे स्त्री जीवन को पूर्णता मिली मैं मां बनी । जैसा कि मैंने सोचा था चाहा था बिल्कुल वैसा ही हुआ मुझे बेटी हुई जिसका नाम मैंने बरसों पहले सोच रखा था "प्योली " एक पहाड़ी फूल को कहते हैं जो अल्मोड़ा , मसूरी और नैनीताल के पहाड़ी इलाकों में खिलने वाला पीले रंग का एक दुर्लभ फूल का नाम है ।  हालांकि मेरे स्कूल का सबसे प्यारा स्टूडेंट जिसका नाम था अंकेश , वो चाहता था कि मुझे बेटा हो और उसका नाम मैं अंकेश ही रखूं । मेरी बेटी होने पर वो थोड़ा मायूस हो गया लेकिन जब मैंने उससे वादा किया कि अगली बार बेटा लाऊंगी और उसका नाम अंकेश ही रखूंगी तब वो खुश हो गया और प्योली को स्वीकार लिया उसके लिए फूल लेकर आने लगा ।

 

1996 दिसंबर में मुझे बेटा हुआ और अंकेश से किए हुए वादा के मुताबिक मैंने अपने बेटा का नाम अंकेश ही रखा मगर अफसोस की अपने स्टूडेंट अंकेश को यह बात आज तक नहीं बता सकी । 1995 के अप्रैल में बटालियन उड़ी सेक्टर के लिए रवाना हो गई और मैं वापस अपने गांव वैशाली आ गई ।  जिस ब्रिगेड स्कूल में मैं टीचर थी वहां तीन अलग अलग बटालियन के सैनिकों के बच्चें पढ़ते थें उन सभी का पता ठिकाना मालूम नहीं था । बस इतना याद है कि वो ई एम ई बटालियन का बच्चा था ।

 

सरिता कुमार कविता,आलेख,कहानी तथा संस्मरण आदि विधाओं में रचनाएं लिखती हैं।इनकी भाषा शैली बहुत ही सरल व सादगी से भरी होती है जो मन को छू जाती है। इनकी प्रकाशित रचनाएं ’मेरे हमसफ़र 14 फरवरी 2023 , एवं  वर्दी 24 अप्रैल को प्रकाशित हुई है।नारी पहचान एक शक्ति की हमारा वतन हमारे वीर में सह लेखिका हैं।

 

साहित्य सुधा , स्वर्णिम साहित्य , शक्तिपुंज , प्रेम सुधा , नवनार , विश्व गाथा आदि पुस्तके हैं। 150 ई पुस्तकों में इनकी रचनाएं हैं। निर्दलीय , संस्कार न्यूज़ , दी ग्राम टूडे , अमृत राजस्थान , वाराणसी , जबलपुर , भोपाल पंजाब केसरी , राष्ट्रीय मुख्यधारा , हरिभूमि , गुंज कलम की , संस्कृति न्यूज  इत्यादि अखबारों में प्रकाशित आलेख एवं कवितायें प्रकाशित हुई हैं।

 

सरिता कुमार को कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं।पुरस्कार - 1189 प्रशस्ति-पत्र , सम्मान पत्र , पुरस्कार , पुरस्कार राशि एवं कुछ विशिष्ट उपाधियां जैसे शिक्षक रत्न सम्मान ( 2022 ), साहित्य भूषण सम्मान , काव्य श्री सम्मान ( 2021 ) , नारी शक्ति सम्मान  ( 2022 ), लिटरेरी ब्रिगेडियर सम्मान एवं सुपर मॉम सम्मान ( 2021 ) , साहित्य बोध सम्मान ( 2022 ) नारी तू नारायणी सम्मान ( 2022 ), "अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस काव्य सम्मान " ( 2022 ) , साहित्य रत्न सम्मान (2022) , साहित्य भास्कर सम्मान ( 2022) काव्य सुमन सम्मान ( 1 मई 2022 ) पितृ भक्ति सम्मान - (जून 2022) गुरु भक्त सम्मान (जून 2022) सर्वश्रेष्ठ योद्धा सम्मान ( 2022 ) साहित्य भूषण सम्मान ( अगस्त 2022) साहित्य रत्न सम्मान ( अगस्त 2022 ) देश प्रेमी सम्मान ( अगस्त 2022) काशी रत्न सम्मान (सितंबर 2022) , समर्पित शिक्षक सम्मान सितंबर ( 2022) आचार्य सूर्यदेव नारायण श्रीवास्तव शिखर सम्मान (सितंबर 2022) सर्वश्रेष्ठ सृजनकार सम्मान ( सितंबर 2022) है

 

हिंदी रत्न सम्मान , हिंदी प्रहरी सम्मान ( सितंबर 2022 ) ( सितंबर 2022) कविराज सम्मान ( सितंबर 2022) साहित्य साधक सम्मान ( अक्टूबर 2022) मानवीय मूल्य सम्मान (अक्टूबर 2022) प्रेमानुभूति सम्मान ( अक्टूबर 2022) मानवतावादी व्यक्तित्व सम्मान ( अक्टूबर 2022) गोपाल दास नीरज सम्मान ( 2023)साहित्य भारत केसरी काव्य रत्न सम्मान (2023) मातृभाषा रक्षक सम्मान हिंदी दिवस सम्मान (2023) , स्वामी विवेकानंद जयंती सम्मान  ( 2023 ) भारतीय सेना स्मृति सम्मान सेना दिवस 15 जनवरी 2023 सहर्ष उत्सव सम्मान है।

 

साहित्य सागर सम्मान ( जनवरी 2023) , ( जनवरी 2023) राष्ट्रीय गौरव सम्मान (26 जनवरी 2023) लिटरेरी जनरल की उपाधि मिली है 27 जनवरी 2023 को । रश्मिरथी साहित्य सम्मान ( 29 जनवरी 2023) काव्य प्रतिभा सम्मान ( 20 फरवरी 2023 ) अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस सम्मान ( 1 मार्च 2023 ) अंतरराष्ट्रीय नारी शौर्य सम्मान ( 3 मार्च 2023 ) राष्ट्रीय गौरव नारी शक्ति सम्मान ( 8 मार्च 2023 ) नारी रत्न सम्मान ( प्रशस्ति पत्र एवं मेडल ) महिला दिवस सम्मान , 16 मार्च 2023 अरूणाभा वेलफेयर सोसायटी फरीदाबाद , आर्थर आफ द ईयर अवार्ड 2022 , स्टोर मिरर , मुंबई से , महादेवी वर्मा सम्मान 2023 , कलश कारवां फाउंडेशन , बैंगलुरू से । माधुर्य सम्मान 2023 , आदर्श गुरु सम्मान 2023 . शिक्षक गौरव सम्मान 2023 साहित्य भारती सम्मान 2024 , स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय स्मृति सम्मान 2024 , सनसनी क्विन अवार्ड 2024 एक लंबी लिस्ट है।

 

         

राजस्थान राजभवन में बनाया गया 'संविधान उद्यान' पार्क लोकतांत्रिक सिद्धांतों, मूल्यों और देश के सभी नागरिकों के लिए संविधान के अधिकारों को समझने, समझाने और विश्लेषण के लिए लोकतंत्र की सच्ची भावना का प्रतीक है:डॉ कमलेश मीना।

 

राजस्थान राजभवन में बनाया गया 'संविधान उद्यान' पार्क लोकतांत्रिक सिद्धांतों, मूल्यों और देश के सभी नागरिकों के लिए संविधान के अधिकारों को समझने, समझाने और विश्लेषण के लिए लोकतंत्र की सच्ची भावना का प्रतीक है:डॉ कमलेश मीना।

 9 फरवरी 2024 को हमें "राजस्थान राजभवन" सिविल लाइन जयपुर के खूबसूरत परिसर में राजस्थान सरकार द्वारा निर्मित "संविधान उद्यान" पार्क में जाने और देखने का अवसर मिला। पिछले वर्ष 3 जनवरी 2023 को यह संविधान पार्क उद्यान आधिकारिक तौर पर राजस्थान राज्य की आम जनता के लिए समर्पित किया गया था। इस संविधान उद्यान पार्क का उद्घाटन भारत की महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी के हाथों, राजस्थान के राज्यपाल माननीय कलराज मिश्र जी की गरिमामय उपस्थिति और राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय श्री अशोक गहलोत जी की सम्मानजनक उपस्थिति में हुआ था।

इस संविधान उद्यान के माध्यम से संविधान निर्माण के दिन से लेकर प्रारूप समिति की प्रक्रिया का सचित्र चित्रण, विभिन्न देशों के विभिन्न संविधानों का अध्ययन, विभिन्न संस्कृतियों, पहलुओं और लिपियों का विश्लेषण, संविधान प्रारूप समिति के घटक सदस्यों और विभिन्न राज्यों, शासकों के माध्यम से धर्मग्रंथ, संविधान उद्यान के माध्यम से वरिष्ठ राजनेताओं, बुद्धिजीवियों और अन्य सहयोगी सदस्यों को इस संविधान पार्क के माध्यम से हमारे संविधान की महान हस्तियों के योगदान को शामिल किया गया। इस संविधान उद्यान का निर्माण जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) जयपुर की देखरेख और निर्माण टीम के तहत इस संविधान उद्यान का निर्माण किया गया।

इस संविधान उद्यान के माध्यम से हमारी नई पीढ़ी बहुत ही आकर्षक तरीके से यह जान सकेगी कि संविधान नामक दस्तावेज़ का मसौदा निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक सभा द्वारा किया गया था जिसे संविधान सभा कहा जाता है। जुलाई 1946 में संविधान सभा के चुनाव हुए। इसकी पहली बैठक दिसंबर 1946 में हुई। इसके तुरंत बाद, देश भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया। संविधान का निर्माण भारत की संविधान सभा द्वारा किया गया था, जिसे भारत के लोगों द्वारा चुने गए प्रांतीय विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा स्थापित किया गया था। डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा संविधान सभा के पहले अध्यक्ष थे। बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद इसके अध्यक्ष चुने गये।

संविधान सभा द्वारा संविधान बनाने की प्रक्रिया 9 नवंबर 1946 से शुरू हुई। इसकी 166 बैठकें हुईं। उनके काम में 2 साल, 11 महीने और 17 दिन लगे। सभा के सदस्यों ने बहुत सावधानी से शामिल किये जाने वाले प्रावधानों का चयन किया। जैसा कि हम सभी परिचित हैं कि डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर साहब को भारतीय संविधान के जनक के रूप में जाना जाता है। वह तत्कालीन कानून मंत्री थे जिन्होंने भारत की संविधान सभा में संविधान का अंतिम मसौदा पेश किया था। इस संविधान उद्यान के माध्यम से हमारे युवा इस तथ्य को जानेंगे कि प्रेम बिहारी नारायण रायज़ादा एक भारतीय सुलेखक थे। वह भारत के संविधान को हाथ से लिखने वाले सुलेखक के रूप में जाने जाते हैं। डॉ. बी आर अंबेडकर ने हमारे भारतीय संविधान को कैसे डिजाइन किया था, इसका विश्लेषण हम इस संविधान उद्यान की कला के माध्यम से कर सकते हैं। हमें डॉ. भीम राव अंबेडकर जी का उनके समर्पण, करुणा, जुनून, ताकत, प्रतिबद्धता के लिए आभारी होना चाहिए और उन्होंने विभिन्न देशों के सभी संविधान पढ़े और उसमें से कुछ अच्छे बिंदु लिए। एक तथ्य यह है कि हमारा संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है क्योंकि यह विभिन्न देशों के संविधानों और विभिन्न महाकाव्यों, संस्कृति, जातीयताओं और सभ्यताओं का मिश्रण है।

भारत की संविधान सभा ने भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया। इस सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को नई दिल्ली में हुई थी। इसमें कुल 299 सदस्य थे और सभी 299 सदस्यों को राजस्थान के राजभवन के सुंदर परिसर में इस संविधान उद्यान में हमारे संदर्भ उद्देश्यों के लिए चित्रों के माध्यम से दिखाया गया। हमें यह याद रखना चाहिए कि गणतंत्र भारत के संविधान के अनुसार शासित होता है जिसे 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा अपनाया गया था। हमें यह जानना चाहिए कि भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा पारित किया गया था और यह लागू हुआ। 26 जनवरी, 1950 को प्रभावी हुआ। इस संविधान उद्यान के माध्यम से हम सही और आसान तरीके से समझ सकते हैं कि संविधान सभा द्वारा संविधान निर्माण की प्रक्रिया 9 नवंबर 1946 से शुरू हुई थी। सभा के सदस्यों ने बहुत सावधानी से शामिल किये जाने वाले प्रावधानों का चयन किया।

हिंदी और अंग्रेजी में लिखी गई भारतीय संविधान की मूल प्रतियां भारतीय संसद के पुस्तकालय में विशेष हीलियम से भरे डिब्बों में रखी गई हैं और हमें अपने छोटे बच्चों, छात्रों और शिक्षाविदों को भारतीय संसद के पुस्तकालय में जाकर इसे देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि हमारी युवा पीढ़ी में भारतीय संविधान के लिए सच्ची भावना और देशभक्ति का विकास हो सके। इस संविधान वाटिका के माध्यम से हमारी युवा पीढ़ी को समावेशी आधारित लोकतंत्र और विकसित समाज के निर्माण के लिए अपनी जिम्मेदारियों, कर्तव्यों और जवाबदेही को जानने का अवसर मिलेगा। निश्चित रूप से जयपुर शहर में राजस्थान राजभवन के परिसर में इस संविधान उद्यान को बनाने के लिए हमारे राजस्थान के माननीय राज्यपाल माननीय कलराज मिश्र जी ने अपने दूरदर्शी और अनुभवी राजनीतिक नेतृत्व के तहत यह सुंदर पहल की है।

हमें यह अवसर आदरणीय प्रतिभा भटनागर महोदया की पहल के कारण मिला है, जो पिछले कई वर्षों से ऑटिज्म प्रभावित बच्चों के लिए ईमानदारी से समर्पित हैं और लगातार विभिन्न सरकारी संगठनों, एजेंसियों और संस्थानों के माध्यम से एक गैर सरकारी संगठन के तहत विकलांगता अधिनियम 2016 के माध्यम से दिव्यांग बच्चों के कल्याण के लिए जन जागरूकता फैलाने के लिए काम कर रही हैं। कॉन्स्टिट्यूशन गार्डन की इस विशेष यात्रा की योजना उन्होंने ऑटिज्म डिसऑर्डर रोग से प्रभावित बच्चों के लिए बनाई थी और उन्होंने मुझे लोकतंत्र में संविधान के महत्व के बारे में बच्चों को प्रेरित करने के लिए इस अवसर पर आमंत्रित किया था। मैं वास्तव में इस खूबसूरत अवसर के लिए आभारी हूं और मुझे राजस्थान राजभवन में संविधान उद्यान देखने का भी अवसर मिला।

राज्यपाल सचिवालय के आदरणीय जोरावर सिंह और आलोक शर्मा जी ने राजभवन में इस संविधान उद्यान की यात्रा के लिए हमारा नेतृत्व किया और आदरणीय जोरावर सिंह और उनके सहयोगी आलोक शर्मा जी द्वारा इस संविधान उद्यान की स्थापना की अवधारणा से संबंधित धारणा के बारे में खूबसूरती से हमें समझाया। हमारी इस संविधान उद्यान यात्रा के दौरान राजभवन से सभी प्रतिभागियों और सभी गणमान्य सदस्यों के लिए जलपान और पेय की व्यवस्था की गई। इस प्रतिनिधिमंडल में वरिष्ठ नागरिकों, माता-पिता, अभिभावकों और शिक्षकों के साथ 50 से अधिक लोग शामिल थे, साथ ही 30 छात्र भी थे जो ऑटिज्म विकार से प्रभावित थे और इस बीमारी के कारण वे आमतौर पर अलगाव महसूस करते हैं और इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य उनके अलगाव को दूर करना और मनोरंजन, आनंद और आमोद-प्रमोद के माध्यम से कुछ आनंद के क्षण देना था। वाह क्या सुंदर संयोजन है! एक तरफ भारत रत्न और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय परम श्रद्धेय श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी और दूसरी तरफ भारतीय संविधान के जनक और भारत रत्न स्वर्गीय डॉ. भीम राव अम्बेडकर जी। यह सबसे खूबसूरत और सबसे अद्भुत चित्रमय जगह है जहां ये मूर्तियां हर किसी का ध्यान आकर्षित करती हैं। वास्तव में राजस्थान के राजभवन में स्थित यह संविधान उद्यान, गवर्नर हाउस संविधान उद्यान के इस भवन के माध्यम से भारतीय लोकतंत्र के महान राजनेताओं, दिग्गजों का स्थान बन गया है।

इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व आदरणीय प्रतिभा भटनागर महोदया और नवीता नाहटा जी ने किया और इस प्रतिनिधिमंडल में आदरणीय प्रतिभा भटनागर महोदया और नवीता नाहटा जी के साथ एमएल पोद्दार साहब, तरन्नुम ओवियास, खुशबू गिल, अक्षय भटनागर, पवन डाका, स्विता रचेचा, विमला जी, संजय नाहटा, चार्वी, डॉ कमलेश मीना, नेहा राजरवाल शामिल आदि थे।

मेरे लिए 'संविधान उद्यान' को देखने का अनुभव वास्तव में अद्भुत था और भारत के संविधान के बारे में जानने और समान भागीदारी और साझेदारी के माध्यम से एक लोकतांत्रिक देश के भविष्य और सर्वत्र समानता के लिए संविधान के निर्माण के पीछे की सच्ची अवधारणा का विश्लेषण करने के लिए एक सुंदर जगह थी। मैं आदरणीय जोरावर सिंह जी और आलोक शर्मा जी को हार्दिक धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने हमें इस संविधान उद्यान को देखने के दौरान अपना कीमती समय दिया और इसके बारे में सच्ची प्रेरणादायक व्याख्या की। इस यात्रा के दौरान मेरी बेटी नेहा राजरवाल भी मेरे साथ थी और उसे गणतंत्र देश के लिए संविधान निर्माण की प्रक्रिया को समझने का अवसर मिला और वह इस 'संविधान उद्यान' की सुंदर वास्तुकला, महाकाव्य, हमारे राजनीतिक दिग्गजों की मूर्तियों, लिपियों और डिजाइन निर्माण को देखकर रोमांचित हुई। हम सभी के लिए इस अनूठे अनुभव और ज्ञान के अवसर के लिए आदरणीय प्रतिभा भटनागर महोदया को एक बार फिर धन्यवाद।

 

 

सादर।

 

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक,

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।फेसबुक पेज लिंक:https://www.facebook.com/ARDMeena?mibextid=ZbWKwL

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“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...