कहानी
कोख और कोठरी : अनसुलझा रहस्य
कभी गफ्फार मियां अपने भरे -पूरे परिवार के
साथ यहाँ रहा करता था । हवेली को लेकर वह अपने पास बैठने वाले को कोई न कोई किस्सा
जरूर सुनाता था और आखिर मे यह साबित करता था कि मुगलों के वास्तविक वारिसों मे वह
भी है । उसी ठसक और अदब से वह रहता भी था । दो बेगमें थी । पहली पत्नी को संतान
नहीं हुई । दूसरी लाने का विचार किया । भला मुगल खानदान मे लड़की देने से कौन मना
करता ? ढलती उम्र मे एक और निकाह किया ,वो भी सोलहवें बसंत मे ख्वाब देखती कन्या
से । गाँव भर मे चर्चा होती रही । कुछ दिन देश की आजादी और बटवारे की चर्चा थम सी
गई । बस गफ्फार के निकाह पर ही लोग चुटकियां लेते हुए बतियाते रहे ।
वह बेपरवाह इत्र -फुलेल को छिड़क कर पुरानी
हवेली को महकाता रहा । दुनिया का क्या ? दूसरे की थाली देख ऐसे ही जलती – भुनती
रहती है । खुद का हाज़मा खराब है तो दूसरों को परहेज बताने लगते हैं । खैर ,नई बेगम
के लिए ऊपरी मंजिल को रंग -रोगन कर चमकाया गया । परदेदारी ऐसी कि सूरज भी झाँकने
से पहले इजाज़त ले । भला शाही रस्मों रिवाज़ को नजर अंदाज कैसे किया जा सकता है ! और
फिर खानदान का वारिस उजाले मे कैसे आएगा ? चिराग तो अँधेरे मे ही चसा करते हैं । मियां
जी ऐसा रमा कि कई दिनों तक नजर ही नहीं आए । खेती- बाड़ी ,ढोंर -डाँगर , काम -धाम
सब नौकरों के हवाले छोड़ नई बेगम की मोहब्बत –सोहब्बत मे ऐसा डूबा की अंग्रेजों का
सूरज कब डूब गया पता ही नहीं चला। पहले वाली बीवी कुढ़ती- बड़बड़ाती रही । मियां के
कान पर जूं तक न रेंगी । लेकिन खुदा के दर देर है ,अंधेर नहीं । जो खुश खबर नई
बेगम नहीं दे सकी वह पुरानी ने दे दी । इसको कहते हैं दीया तेरे दर पर जलाया ,रोशन
घर मेरा हुआ । मियां जी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा । नई बेगम का मन खट्टा - खट्टा
हुआ तो बड़ी बेगम ने बड़पन दिखाते हुए इस खुशी मे यह कहते हुए शामिल कर लिया – “यह
सब तेरे ही पग फेरे का फल है !” लेकिन नई
बेगम ने बक्सी गई इज्जत को खैरात समझ कर खारिज कर दिया । उसको यह समझ नहीं आया कि
यह सब हुआ तो हुआ कैसे ? ना मुमकिन कैसे मुमकिन हो गया ? जब बादाम पाक ले कर मियां
ऊपरी मंजिल मे आया और उसको अपने हाथों से खिलाते हुए ऐसी ही खुश खबर देने की गुज़ारिश
करने लगा तो मुँह मे घुलता बादामपाक नीम हो गया । उसने इशारों - इशारों मे खुश खबर
को ले कर ताज़्जुब प्रकट करने के साथ ही शक का बीज बौने की पुरजोर कोशिश की ।
गफ्फार ठहरा खानदानी जहीन । औरतों की
बेअकली पर तरस खाता हुआ बोला – “बेगम ! आम और खास मे यही तो फ़र्क है । इसमे ताज़्जुब
की कोई बात नहीं है । आप को इस बात का इल्म नहीं है कि राजशी -शाही खानदानों मे इस
तरह के करिश्मे होते आयें हैं !” इसके साथ
ही उसने हिन्दू ,मुस्लिम, ईसाई धर्मशास्त्रों मे वर्णित करिश्माई घटनाओं का जिक्र करते हुए
अपने महान मुगल खानदान के शहंशाह जहांगीर की पैदाइश का किस्सा सुना कर उसके संदेह
को खारिज कर दिया । और फिर उसकी ज़हालत पर
हँसते हुए अपनी बड़ी बेगम के पास लौट आया । उसके जाते ही नई ने सारे पर्दे नौच कर
हेवली के पिछवाड़े फेंक दिए ।
गफ्फार मियां नीचे आए तब उसकी हँसी ठीक उसी
तरह ऊभ -चूभ हो रही थी जैसे तालाब मे कोई खाली मटका होता है । उनकी इस हरकत पर बड़ी
बेगम असहज हो उठी । पूछ बैठी - “किस बात
की हँसी आ रही है ?”
“ अरे कुछ नहीं बेगम , वो नई बेगम .. . ... !”
इसके पहले कि वह हँसी की वजह बयां करता वह बीच मे ही झल्ला कर बोली _
“ये नई क्या होती है ? छोटी को छोटी बेगम नहीं कह सकते ?”
मियां को इस तरह की झिड़की की उम्मीद नहीं थी
। दाँत निपौरते हुए बोला – “ हाँ , हाँ वही , छोटी बेगम की छोटी बातें ..... !’’
“
छोटे लोगों के मुँह लगना जरूरी है ? इस उम्र मे ज़लील होने का बड़ा शोक पाला है । हम को तो कभी मन की
बात भी न बोलने दी गई । शाही खानदान की औरतें यह नहीं करती – वो नहीं करती । हम तो
अदब के नीचे दब कर रह गए । खुल कर न हँस पाए - न रो पाए । ये सब चोंचले तब तक ही
है जब तक जिस्म मन के साथ है । जिस दिन तालमेल बिगड़ा ,गत बिगड़ जाएगी । अभी कहती
हूँ, खुद को हिसाब से खर्च करो । मियां खुद का नहीं तो हमारे बच्चे का ख़याल तो करो । क्या पैदा होते ही उससे थुकदानी –
मूतदानी उठवाओगे ।” बड़ी बेगम एक साँस मे इतना बोल गई कि मन फूल - सा हल्का हो गया
। गफ्फार मियां को उसकी बातें सुन कर कवि बिहारी का प्रसिद्ध दोहा याद हो आया – ‘अली
कली हीं सों बंधयो ,आगे कौन हवाल ?’
उसके ज्ञान चक्षु खुल गए । बड़ी बेगम के एक एक
लफ़्ज पर अशर्फियाँ लुटाने का मन किया । अब
अशर्फी तो थी नहीं । उसके इल्म और तालिम की दाद देते हुए झुक कर सलाम किया और
मुस्कराते हुए उसको गले लगा लिया ।
बड़ी बेगम बड़ी खुश हुई । कई दिनों से उसके
भीतर “नई बेगम’’ लफ़्ज खंजर -सा चूभ रहा था – “वो नई ,मैं पुरानी !” आज –“वो
छोटी ,मैं बड़ी” हो गई । खंजर को शूल मे
तब्दील कर दिया । शूल भी कलेजे मे धँसा हुआ नहीं ,एडी मे टूटा हुआ ।
पत्नियों का आदर्श वाक्य “छोड़ो भी कोई आ
जाएगा !” बोल कर वह शौहर की बाहों मे सिमटती चली गई । वह उसके कान के पास हौले से
बोला – “ यह चिराग पाकिस्तान की सर जमीं को रोशन करेगा या गुलिस्ताँ ए हिंदुस्तान
को महकाएगा ?
उसने फुसफुसाते हुए जवाब दिया – “हुजूर !
हिंदुस्तान को ?” जवाब सुन कर वह गदगद हो उठा । सोचा – कितना सुलझा और उम्दा ख़याल
है । एक ये है और एक वो जिसने पाकिस्तान जाने की जिद्द पकड़ रखी है । वास्तव मे बड़ी
,बड़ी ही होती है ,और छोटी ,छोटी ही । एक मादर ही मादरे जमीं की महक से वाकिफ़ हो
सकती है । भला उज्जड क्या जाने ? उसके दिल मे प्यार उमड़ आया । वह बेगम के चेहरे को
अपने हाथों मे ले कर निहारने लगा । झुकी हुई पलकें ,पल -पल सुर्ख होती रंगत । नूर ही नूर । लगा जैसे
उम्र ने उल्टा रुख अपना लिया हो ।
बड़ी बेगम को वर्षों बाद शौहर की साँसों का
गुनगुनापन महसूस हुआ । उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा । पीछे हटने का मन नहीं था फिर
दीया – बाती की वेला का ख़याल कर के पीछे हट गई । वह आगे बढ़ा ,वह ओर पीछे हट गई । खिसकते हुए वह उसको
दरवाजे के पास ले आई और पलट कर बाहर धकिया कर झट भीतर की तरफ पलटी – ‘धप –खल्क ठन
ठन्न ठन तन्न ... !’ की ध्वनि सुनी तो वापस पलट कर देखा आँगन मे दूध ही दूध, ‘टन –टन’
करती नाचती चरी ,हक्का - बक्का खड़ा गोमा ,उसको घूरते हुए मियां । बेगम के चेहरे की
सुर्खी राख हो गई । उसने जैसे तैसे खुद को संभाला और हँसने की कोशिश करते हुए बोली
– “गुस्ताख़ी माफ ! आप को लगी तो नहीं ? अच्छा हुआ दूध ही बिखरा है ,कहीं लग लगा
जाती तो ! और तू गोमा ! तू क्या दीदे बंद रखता है । दिखाई नहीं दिया ... !” गोमा
हाथ जोड़ खड़ा था ।
“ कम्बख़्त
!” मियां बड़बड़ाता कुर्ता झाड़ता हुआ ,कपड़े बदलने दूसरे कमरे की तरफ बढ़ ही रहा था कि
चूड़ियों की खनक और पाजेब की झँकार के साथ छोटी बेगम की हँसी सुन कर पाँव वहीं जम
गए । बड़ी बेगम और गोमा की नजरें आपस मे उलझती –सुलझती ऊपर छोटी बेगम पर जा टिकी । उसने हँसना बंद कर
दिया । फिर भी होंठों पर कटार - सी मुस्कराहट ठहरी रही । बड़ी बेगम – “चलो ! कपड़े
बदल लो ।” । कह कर मियां को अंदर ले गई । गोमा की नजर अभी भी ऊपर ही अटकी हुई थी ।
छोटी बैगम जाते - जाते
फिर एक बार हँस दी । गोमा चरी उठा कर हवेली से बाहर आ गया ।
कपड़े बदल कर गफ्फार मियां एक चक्कर गाँव भर
मे लगा आना चाहता था । मिलने – जुलने से ही तो मुल्क के ताजा हालात का पता चलेगा ।
हालांकि इसका कोई खास फायदा होने वाला नहीं था । गाँव मे मायूसी छाई हुई थी । जाने
वाले जा चुके थे ।औने- पौने दामों मे खेत- मकान बेच कर जो कुछ ले जा सकते थे ,ले
गए । कुछ परिवार कसाइयों-फकीरों के बचे थे । जिनका होना न होना कोई मायने नहीं
रखता था । उनके पास बेचने जैसा कुछ था नहीं । लोग तो उसके पीछे भी खूब पड़े थे ,खेत
और हवेली खरीदने के लिए । सब को फटकार कर भगा दिया – “भला हम पाकिस्तान क्यों जाएं
? यह मुल्क हमारा है । हम यहीं रहेंगे । जो जा रहे हैं , गद्दार हैं । देश द्रोही
हैं ।“
जाने वाले जाएं । हम नहीं जाएंगे । बस मन मे
एक ही कसक रह गई । जाने वालों को वह अब्बू होने की खुश खबर नहीं दे सका ... उसके
सामने वो तमाम चेहरे उभर आए जिन्होंने उसको ताने मार - मार कर घायल कर दिया था । वो
सब तो चले गए । अब जो हैं उन्हीं से मेल – मुलाकात की जाए ।
वह बैठक से बाहर आया । बाजार की तरफ जाने
वाले रास्ते पर दो -चार कदम बढ़ा ही था कि बगल मे ही कुएं के ढ़ाणे से गोमा प्रकट
होते हुए बोला – “मालिक !कहाँ जा रहे हैं ?“ देखते ही मूंड खराब हो गया ।झुंझलाहट
मे यूं ही मुँह से निकल गया – “पाकिस्तान।’’ और बिना उसकी तरफ देखे जल्दी से आगे
बढ़ गया । सुन कर गोमा चौंक ही तो गया । आश्चर्य से बोला – “पाकिस्तान !”
“पाकिस्तान ….पाकिस्तान…..पाकिस्तान …!”“ यह आवाज उसका पीछा करती हुई शीघ्र ही
उसके साथ कदमताल करने लगी । जल्दी -जल्दी उठते कदमों की चाल दौड़ में बदल गई । सांसे
तेजी से चलने लगी । दिल की धक -धक और उफनती साँसों की साँ S S-साँ S S ने उसको दुनियावी आवाजों से अलगा दिया ।और ‘पाकिस्तान
…पाकिस्तान …। की आवाजों के घेरे उसके जहन में बनते चले गए ।
वह कानों पर हाथ रख कर आँख बंद करके बैठ गया
।
“क्या हुआ मालिक ?”
“हेंs !...कुछ नहीं” ।
आवाजें गायब हो गई । उसने आँखे खोली । गोमा
उसके पास झुका हुआ था ।
“ अब क्या ऊपर गिरने का इरादा है !” वह
झल्लाया कर बोला । गोमा सीधा खड़ा हो गया ।
“अब जा !”
गोमा यंत्रवत बाजार की तरफ चला गया ।
उसके जाते ही जहन मे आवाजों के बुलबुले फिर
उठ खड़े हुए । चरी की “टनन टन ...” के साथ छोटी बेगम के हँसने की आवाज और फिर
“पाकिस्तान....”
उसने देखा ,गोमा बाजार की गली मे घुस कर गायब
हो गया । वह उठा । कुछ क्षण इधर – उधर देखने के बाद उसने रास्ता बदल लिया । कुछ ही देर मे वह खेतों
की पगडंडी पर चल रहा था । चलते - चलते वह खुद को कुदरती खूबसूरती से
जोड़ने की कोशिश करता रहा । अपने घोंसलों
की तरफ लौटते पंछियों के झुण्ड जब चहकते हुए उसके ऊपर से गुजरे तो दिमाक मे उठते आवाज
के बुलबुले शांत हो गए । उसने नजर उठा कर देखा ,सूरज सिंदूरी थाल - सा बाजरे की
कलंगियों पर रखा हुआ था । उसकी सुर्ख़ रोशनाई मे हवेली की खूबसूरती को देखने का मन हुआ । वह पीछे मूढ़ कर ठहर गया ।
हवेली अपनी आन – बान शान के साथ अकड़ कर खड़ी थी ।
अभी वह उसको निहार ही रहा था कि ऊपरी मंजिल पर नजर पड़ी । परदे कहीं नजर नहीं आए ।
बिना परदों के हवेली नग्न लग रही थी । वह छोटी बेगम की मूर्खता पर खीज उठा । कल तक
जो उसकी एक एक भंगिमा दिलकश अदाएं हुआ करती थी वे आज फूहड़ और बेहयाई लग रही थी । वापस आ कर उसकी खबर लेने का इरादा कर के वह आगे
बढ़ गया । खेत मे फसल जोरदार थी । हाली अभी अभी बैलों को चारा – पानी दे कर जा रहा
था । उसकी मेहनत पर पीठ थपथपाने का मन किया । लेकिन जाते हुए को क्या टोकना । दिन
भर का थका – हारा शाम को घर जाता है । गृहस्ती के सो लफड़े । गोमा की तरह रंडवा
थोड़े ही है । दूसरी तरफ छप्पर मे भैंसे बंधी थी । उसके सामने फिर ‘टन-टन टनन ...’
लुड़कती चरी , बिखरा दूध , खनकती हँसी , साकार हो उठी । सब कुछ एक तरफ छिटक कर वह
भैंसों के पास गया । देखा , भैंसे बहुत दुबली हो गई हैं । थन – गादि भी सूखती जा
रही है । यह गोमा पक्का हरामखोर है , खुद तो खा पीकर सांड हुआ जा रहा है । पशु
मरियल हो रहे हैं । अब इस कामचोर की छुट्टी कर देनी चाहिए ... ! आज ही इसका हिसाब
देखना पड़ेगा । ब्याव खातिर तीस रुपये दिए
थे ,दो साल होने को आया तब तो इसके माँ –बाप ने बड़ी मिन्नते की थी –‘अजी मेहनती
छोरा है जल्दी चुका देगा’ साल भर बाद मांगने गया तो बोले –‘कहाँ से चुकाएगा ?
लुगाई ही मर गई’ अब चूल्हे मे मूँड दे कि मेहनत - मजूरी करे । ऐसा करो आप ही नोकर
रख लो आधी कमाई माँगत मे भरते रहना ,आधी देते रहना । हमारा भी गुजारा हो जाएगा
,आपका काम भी ।”
ख़याल बुरा नहीं था । रख लिया । लेकिन कोई
फायदा नहीं हुआ । थोड़े दिनों बाद माँ – बाप दोनों चल बसे । अंतिम संस्कार से ले कर
नुकते तक का खर्चा माथे आ गया । तीस के सो हो गए । अब कैसे चूके । कुएं पर पड़ा
बाटी –बांगा खाता रहता है । कोई काम ढंग से नहीं करता । और बेहयाई तो देखो……!
उसके सामने टकराने ,दूध की भरी चरी के गिरने
,उलझती – सुलझती नजरें और छोटी बेगम की हँसी का कटार - सी मुस्कान मे बदल जाना सब दृश्य
मूर्त हो उठा । वह उसकी झोंपड़ी मे गया और चूल्हे को लात मार कर बिखेर दिया । फिर
हांफता हुआ हवेली की तरफ चल दिया । चलते - चलते उसके कानों मे भद्दी गाली पड़ी । वह
ठिठक कर रुक गया । बाजरे के खेत मे कोई बोल रहा था –“.... मुल्ले किसी के नहीं
होते । अब देख रहे हो न जिस थाली मे खाया उसी मे छेद कर रहे हैं । लाशों से भरी
रेल आई है। औरतों की तो बहुत बुरी गत कर रहे हैं ।’’
“अपने वालों को भी तो कुछ करना चाहिए । ऐसे ही
मूँछों पर ताव देते फिरती हैं। ”
‘गट –गट’
“देख भाई ,हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है, दया ।
हम लोग मार - काट कर ही नही सकते । खून देखते ही तो चक्कर आने लगते है । उन लोगों
मे रहम नाम की कोई चीज नहीं होती । बस यहीं हम मात खा रहे हैं।”
‘गट - गट’ “हूँ ,आज माल बढ़िया है।”
“ डोकरा तो माल सही ही रखता है ,ये तो सुसरा
उसका छोरा पी कर पानी मिला देता है।”
“मैं
क्या कह रहा हूँ ,पंजाब चले क्या ?”
“पंजाब ....!”
सूरज डूब चुका था । अंधेरा उतर आया । सामने हवेली पर काँपता हुआ
उजाला प्रकट हुआ । वह आगे बढ़ गया ।
चलते
चलते मन मे ख़याल आया – ‘पाकिस्तान चलें तो ?’
मुँह से अनायास निकले शब्द खबर हो गये । बात
जंगल की आग की तरह गाँव मे फैल गई । हवेली पहुँचते – पहुँचते मिलने – जुलने वाले
भी आने लगे । उनमे ज्यादातर वो लोग थे जिनकी नजर जमीन और हवेली पर थी । रात होने
तक लोगों का तांता लगा रहा । औरतें भीतर हाँफती सी जाती और सुबगती हुई वापिस आती ।
दोनों बेगमों को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था । यह सब क्यों और कैसे हुआ । न कोई सलाह
न बात-चीत । अभी अच्छे – भले बाहर गए थे ,अचानक इतना बड़ा फैसला कैसे और किसके कहने
पर ले लिया । भला हमसे भी अजीज कौन हो सकता है ? अब मियां भीतर आए तो पूछे । बैठक
मे मजमा लगा है । बीच मे बुलाना तहजीब के खिलाफ है । अतः उसके आने का बेसब्री से
इंतजार किया जाने लगा । दोनों बेगमें चूल्हे -चौके के काम मे लग गई । छोटी वाली
कनखियों से देख कर कभी - कभी जो मुस्कराती तो बड़ी वाली भीतर ही भीतर तड़फ उठती । कल
तक बड़ी वाली ऐसा करती थी तो छोटी वाली की छाती पर सांप लोटने लगता था । आज बड़ी बेगम की ठसक ढीली – ढीली है ।
और छोटी का मन चूल्हे पर चढ़ी हांडी जैसा हो रहा है । आज वह खुश है । एक तो मियां
जी पाकिस्तान जाने के लिए राजी हो गए और दूसरी बात ! दूसरी बात भी है पर पता नहीं
क्या है ? पर है ,बस वह इतना जानती है । और उस बेपता बात से उसकी खुशी दूनी हो गई
है । लेकिन खुशी इस तरह बेपर्दा कर देना भी ठीक नहीं है ,नजर लगने का डर होता है ।
उस पर मासूमियत का मुलम्मा काले टीके का काम करता है । लेकिन यूं छुपाये रखना भी
तौहीन है । बिना बोले न बात का मज़ा न ही काम का । आखिर उसने मुँह खोला – “ बाजी !
आखिर मियां जी ... ?’’
“ मुझे मालूम नहीं ।“
बड़ी बेगम बिना पूरी बात सुने ही जवाब दे कर चूल्हे मे तेज हुई आँच को कम करने लगी
। उसका चिड़चिड़ा जवाब सुन वह हँसने लगी । अब असल बात करने का मन हुआ ,बोली – “बाजी !
दूध पूरा बिखर गया था क्या ? आज खीर बनाने का मन है ,पता नहीं पाकिस्तान मे कब खीर
खाने को मिले । और इनको भी खीर बहुत पसंद है ।” पाकिस्तान के साथ दूध को जोड़ कर वह
अपनी अक्लमंदी पर खुद ही दाद देती हुई बड़ी बेगम के चेहरे की रंगत का मुवायना करने
लगी । बड़ी बेगम ने सुलगती लकड़ियों पर पानी
डाला तो छन से भाप और राख उडी । बचने के लिए
चेहरा एक तरफ घुमा कर बोली – “ तुमने नही देखा ,सब बिखर गया ,कमबख्त ने सब
बर्बाद कर दिया ।’’
“हाँ ,बाजी । गुस्सा तो मुझे भी बहुत आया था , मन किया दो -चार थपड़ जड़ दूँ
। फिर जब मियां जी डांटने – फटकारने लगे तो गोमा की रोनी सूरत देख कर दया आ गई ।
हट्टा - कट्टा मर्द म्याऊँ बन कर खड़ा था ।“
“
तो ? नुकसान करेगा तो ऐसा ही होगा ।“ बड़ी ने दृढ़ता से अपनी बात रखी।
“हाँ ,वो सब ठीक है ,फिर भी उसने जान बूझकर तो किया नहीं ,बेचारा शाम को भी
बाहर चक्कर लगा रहा था । कौने के पास छुप कर खड़ा था । मेरी नजर पड़ी तो मैने पूछ
लिया ,क्यों खड़ा है ? बोला – ‘मालकिन से माफी माँगनी है ।‘ मैने कहा, तू जा मैं बोल दूँगी ,तब जा कर गया । वैसे
गोमा है सीधा और बोला । अपने साथ पाक... ?”
वह चुप हो गई । गफ्फार मियां भीतर आ खड़े हुए
। छोटी का मन किया ,गलबाहें डाल कर उसके फैसले की तारीफ करे । बड़ी के सामने यह
संभव नही था । बस आँखों ही आँखों से प्यार लुटा कर नजरें झुका ली ।
बड़ी बेगम चुपचाप सिलबट्टे पर मसाला पीसने मे
मशगूल रही । छोटी के सामने वह कोई भी बात करना ठीक नहीं समझती थी । वैसे भी बैठक
मे अभी भी बड़े – बुजुर्ग बैठे थे । उनकी
बतियाने की आवजें आ रही थी – “लेकिन जाना ही था तो पहले ही चले जाते ,अब जब दंगे –
फसाद हो रहे हैं, जाने की सूझ रही है ... !’’
दोनों बेगमों के काम करते हाथ रुक गए । सहमी-
सी सवालिया नजर गफ्फार की तरफ उठी । उसके चेहरे पर परेशानी साफ -साफ दिख रही थी ।
वह बिना बोले मटके से पानी पी कर वापस बैठक मे चला गया । छोटी बेगम कुछ बोलने के
लिए मुँह खोलने ही वाली थी । बड़ी को उबकाइयाँ आने लगी । उलटी का मन हुआ ,वह चौके
से हट गई । छोटी ने कहा – “बाजी ! आप आराम करो ,मैं सब कर लूँगी” ।
बड़ी बैगम अपने कमरे मे चली गई । वह आँख बंद
कर लेट गई । मन मे घबराहट हो रही थी । सिर दर्द करने लगा ,दुपट्टा बांध लिया । मन
की उथल -पुथल पर काबू करने की कोशिश करने लगी । मन के किसी कौने से एक आवाज उठी – ‘गफ्फार
मियां का पाकिस्तान जाने का फैसला सही है । एकदम सही ।‘
बैठक खाली हुई तो छोटी बेगम भोजन ले कर पहुँच
गई । वह किन्ही ख़यालों मे खोया बैठा था । भोजन परोसते हुए बोली – “क्या सोच रहे हो
?”
“हैंs ,कुछ नहीं । उसको भी बुला लो सब साथ बैठ कर
खाते हैं’’।
“ तबीयत जरा नासाज है ,आराम कर रही हैं ।“
“ क्या हुआ ?”
“ जी ठीक नहीं ,वो दूध
बिखरा तभी से ..!” मियां जी के हाथ मे कौर मुँह मे जाते -जाते रुक गया । वह बात को तुरंत बदलते हुए
आगे बोली – “फिर अभी दंगे -फसाद की बात सुनी तो घबरा गई ... खाओ न सब ठीक हो जाएगा
।”
मन
नही था । फिर भी वह मुँह मे कौर रख लिया ।
“हमे आप से शिकायत है ।“ वह झूठमूठ की
नाराजगी प्रकट करते हुए बोली ।
“ शिकायत ? बेगम आपकी खातिर तो हम वतन तक छोड़
रहे हैं”।
“हाँ ,यही शिकवा है , जब हम फर्माइस किए तो
साफ - साफ इनकार कर दिए और अब ... ।
गफ्फार मियां फीकी हँसी हँसते हुए बोले – “
आप की खुशी ,हमारी खुशी । बस यही सोच कर मन बदल लिया ।“
“ हाँ जी । बच्ची नहीं हूँ ,जरूर बाजी का मन
बदल गया होगा, खैर और कौन - कौन जा रहा है ?”
“ यहाँ से तो जाने वाले सब चले गए , हाँ
दूसरे गांवों से अभी भी जा रहे हैं । रास्ते मे मिल जाएंगे ।”
“ और नहीं मिले तो ? रास्ते मे ही कोई हमला
हो जाए तो ? फिर इतना साजो -सामान ... मैं कहती हूँ किसी को साथ ले लो । ”
उसकी बातें सुन कर वह गंभीर हो गया , बोला –
“किसको साथ लूँ ? कोई तो नहीं हैं’।“
वह तपाक से बोली – “ और कोई नहीं तो गोमा को ही ले चलो ,अच्छा – खासा पट्ठा
है । लाठी घुमाएगा तो दस – पंद्रह को तो निपटा ही देगा ।”
गोमा का जिक्र होते ही उसके कानों मे “धप छपक
टन-टन टनन...’ की आवाजों के साथ खनकती हँसी , सपकपाते हुए आँखों का उठ कर ठहर
जाना, हँसी का कटार सी मुस्कान मे बदलना ,सब साकार हो उठा । उसने थाल खिसका दिया ।
वह बोली – “खाइए न ! ”
“बस ,आज भूख नहीं है । वैसे ख़याल
बुरा नहीं है । अब तुम भी खा कर आराम करो ।“
वह थाल उठाते हुए एक मुस्कराहट उस पर डाली और
चली गई । उसकी इस हरकत को वह बेहया से ज्यादा क्या समझता । इधर अपनी जमीं से उखड़
जानने का गम सताये जा रहा है ओर इसको दीदादिलेरी सूझ रही है ।खैर ,इसके मन का हो
रहा है ,क्यों न इतराए -छितराए? और फिर ... ...’’
“खाना हो गया ?” बड़ी बेगम पता नहीं कब दरवाजे
पर आ खड़ी हुई थी ।
“वह नींद से जागता सा बोला – “अरे ,बेगम आप
क्यों आए ? आराम फरमाते । मैं बस आ ही रहा था ।“ वह उठा और बेगम को बाजू मे समेट
कर शयन कक्ष मे आ गया ।
पूछा – “क्या हुआ ,तबीयत ...”
“कुछ नहीं , बस थोड़ी सी बेचैनी थी अब ठीक हूँ ।”
“ ठीक नहीं हो बेगम ,आप को तंदुरुस्ती का
पूरा -पूरा खयाल रखना है ।” उसने उसको बिस्तर पर लेटा दिया । सिर के नीचे तकिया
लगा दिया । और उसके चेहरे पर बिखर आई जुल्फों को हटाते हुए उनसे खेलने लगा । वह
शांत चित्त लेटी रही । जुल्फों और चेहरे पर उसकी उँगलियों के स्पर्श से आँखे बोझिल
होने लगी तो अपने हाथों से उसके हाथों को रोकते हुए बोली – “पाकिस्तान जा रहें है
?”
दोनों के हाथों की जुंबिश रुक गई । ठंडे लहजे
मे बोला – “हाँ’’
“इतना बड़ा फैसला लेने से पहले हमसे भी सलाह -
मशविरा कर लेते ,आखिर हम तुम्हारी पहली हमसफ़र हैं । माना कि अब पुराने हो चले हैं
,फिर भी अक़्ल और तज़ुर्बा तो आले दर्ज़े का है । नया चले दो दिन ,पुराना चले सो दिन ।“
बेगम के लफ़्जों– लहज़े मे प्यार भी था ।
शिकायत भी थी ।छोटी बेगम को लेकर सुबा भी
।
बोला – “ आप से बिना पूछे भला मैं कुछ कर
सकता हूँ ? आप की तबीयत नासाज थी ,सोचा
तसल्ली से बात करेंगे । अब सुनों , जब से आप ने खुश खबर सुनाई है मन बाग - बाग हुआ जा रहा है । आज सोचा ,क्यों न हम
इसमे सब को शामिल करें । मन हुआ पूरी दुनिया - पूरी क़ायनात को बोलूँ । और आज जब मे इस खुशी मे सब को शरीक करने के मक़सद से बाहर गया तो चारों तरफ मायूसी
पसरी थी । ऐसा लगा जैसे मे बियाबान मे खड़ा हूँ । इंसान हैं,किन्तु उनकी आँखों मे
अजनबीपन है । मैं मेरे जज़्बात कहूँ तो किसको कहूँ ? तब मेरे मन मे यह ख़याल आया कि
खुशी और गम बिना अपनों के बेरंग हैं । दर - दर मन्नतें मांगी । सजदा किया तब जाकर
बड़े इंतजार के बाद हमारे घर पर रहमत हुई है । खानदान का वारिस और आप के अम्मी जान
,हमारे अब्बू जान बनने की उम्मीद पूरी होने वाली है । हम एक शानदार शाही जलसा करने
का ख्वाब पाले हुए हैं। क्या बिना अपनों के यह पूरा हो सकता है ? नहीं बेगम ,जर –
जमीं इन सबकी रोनक अपनों के होने पर ही है । भला बिना अपनों के क्या ईद – क्या
मोहर्रम ! हाँ ,यह सही है कि छोटी बेगम का मन पहले से था । किन्तु उसको हमने कोई
तवज्जो नहीं दी । ये सब हमारे अपने ख़यालात हैं जो हमने बयां कर दिया है । होगा वही
,जो आप की राय होगी ।“
वह चुप हो गया । कमरे मे शांति छा गई । वह
आँख मूँद कर विचारमग्न लेटी रही । वह उसके जवाब का बेसब्री से इंतजार करता रहा ।
दोनों के हाथों में फिर हरकत होने लगी । और
कुछ लम्हों बाद वह बोली –“ हम तो आप के
हमसफ़र - हमसाया हैं । जहाँ आप वहीं हम।’’ प्यार और भावुकता भरा जवाब सुन कर वह
निहाल हो गया । उसने उसकी पेशानी पर बोसा लिया और बोला – “हमे आपसे यही उम्मीद थी
। हमे फक्र है आप पर और गुरूर है हमारी किस्मत पर कि आप जैसी जहीन और जज़्बातों की
कद्र करने वाली बीवी मिली।”
“लेकिन हमे इस मुल्क से मोहब्बत थी, है और
रहेगी !” वह भावुक हो कर बोली और उसके हाथ को अपने हाथ मे ले कर सीने से लगा करवट
बदल कर तकिये मे मुँह छुपा लिया । गफ्फार मियां भी कुछ लम्हों के लिए भावुक हो उठा
। फिर अपने आप को संभालता हुआ बोला –“ पगली ! अपने मादरे वतन की महक से भला कोई
जुदा हो सकता है । फिर अपनी कोख मे तुम इसको समेट कर अपने साथ भी तो ले जा रही हो
।”
खुद को और बेगम को दिलासा देते - देते उसका हाथ
उसके पेट पर पहुँच गया । उसका हाथ भीतर पल रही जान को महसूस करने को मचलने लगा ।
सपाट और पिचका हुआ पेट ! हाथ की हरकत रुक गई । तभी बेगम ने उसके हाथ पर अपना
मुलायम हाथ रख दिया और अपनी नाजुक उंगलियों से चिपटा कर पल रहे ख़ानदान के वारिस पर रख दिया । अब वह उसकी जुंबिश
को महसूस कर सकता था ।
ऊपर रखे हुए हाथ ने उसके हाथ को होले से
हटाया और गर्म गर्म मुठ्ठी मे भर लिया । उसको सपाट और पिचका हुआ पेट का ख़याल आया तो बोला – “आप ने खाना खाया ?”
वह उनींदी सी बोली – “ऊँहूँ”
उसको बड़ी हेरानी हुई । बोला – “क्यों ?”
“ऐसे ही , भूख नहीं थी” । जवाब सुन वह जज़्बाती हो कर बाला -
“आप जानती हैं ? इस तरह भूखा रहना सही नहीं
है ,इस वक्त आप की खुराक डबल होनी चाहिए । खाना नहीं तो कम से कम दूध ... ... !”
“दूध” बोलते ही जुबान रुक गई । फिर दो – चार
गालियाँ देते हुए बोला –“ दूध.... , कमबख़्त ने सब बर्बाद कर दिया । अच्छा सुनो !
छोटी बेगम उस नालायक को भी साथ ले चलने को बोल रही थी । आप की क्या राय है ?”
उलझी हुई उँगलियाँ सुलझ कर मुक्त हो गई । वह
करवट बदल कर बोली – “ नहीं”
“नहीं ! क्यों ? रास्ते मे हिफाज़त ... !”
“ हमे अल्लाह और आप पर भरोसा है । किसी काफ़िर से मदद की
जरूरत नहीं ।”
“ काफ़िर ...’’ व मन ही मन बुदबुदाया और उसको
चादर ओढ़ा कर थपकियाँ देता रहा ।
सुबह से ही हवेली पर लोगों का तांता लग गया ।
जिन मे मिलने वाले कम और खरीददार ज्यादा थे । गफ्फार लोगों को बार - बार कहता रहा
। हवेली नहीं बेचूँगा । खेत ,गाय – भैंसे ,बकरी – बकरे , मुर्गे -मुर्गियाँ सब ले
लो । हवेली की बात कोई नहीं करेगा । यह हमारे पुरखों की विरासत है । शाही हेवेली ।
जब भी हमारा मन करेगा हम यहाँ आएंगे ।
दोपहर तक सब सौदे हो गए । बैल – गाड़ी और
हवेली रह गई । साथ ही गाँव भर मे यह चर्चा भी होती रही कि गोमा भी गफ्फार मियां के
साथ जा रहा हैं । अब यह अफवाह कैसे और किसने फैलाई पता नहीं ।
तय हुआ । अलसुबह यहाँ से रवानगी लेनी है ।
शाम को गोमा सफेद झक धोती – कुर्ता, छींट
की पगड़ी बांध कर बैलों के साथ आ खड़ा हुआ । उसने ऊपर देखा ,आसमान मे सुर्खाब पंखी
बादलों के झुंड उड़े जा रहे थे ।
सुबह लोगों ने देखा । हवेली के दरवाजे पर
मुठिया ताला लटक रहा है ।
पास ही कुआं है । यह उसी का खुदवाया- चिनवाया
हुआ है । खुद के कुटुंब की खातिर । लेकिन जरूरत मंद कोई भी पानी भर सकता था । कोई
मनाही नहीं थी । उनके जाने के बाद सून सपाट हो गया था । फिर भी पानी भरने इक्का - दुक्का
औरतें जाती ही थी । उन्हीं औरतों को आठ – दस दिन बाद बदबू का अहसास हुआ । बात गाँव भर मे फैल
गई । दुर्गंध और भी ज्यादा फैलने लगी । लोग तरह - तरह के कयास लगाने लगे । कोई
कहता भीतर कुत्ता रह गया होगा । तो कोई मियां जी के बकरे -बकरी के होने ,भूख –
प्यास से मर जाने का अंदाजा लगा रहे थे । आखिर पटावरी ने पुलिस चौकी मे रपट दी ।
दो पुलिसवाले आए । गणमान्य लोगों के सामने ताला तोड़ा गया । दुर्गन्ध के मारे अंदर
जाना मुस्किल हो रहा था । फिर भी नाक मुँह बांध कर घुसे ,पाँच कमरे ,जिन पर ताले लटके थे । जिस कमरे से बास आ रही थी ,उसका
ताला तोड़ा गया । द्वार खोलते ही जो भभका निकला तो जी मिचलने लगा । अंदर जाने की
हिम्मत नहीं हुई । एक पुलिसवाले ने लालटेन जला कर भीतर देखा , कुछ भी नहीं । दो
पलंग हैं ,जिन पर गद्दे- रजाई और कुछ कपड़े बिखरे हैं ।
हाँ , दीवार पर छोटी सी किंवाड़ी है ,उस पर
ताला लटक रहा है । हो न हो जो कुछ भी है इसी मे है । किन्तु इसको तोड़ने – खोलने की
हिम्मत नहीं हुई । वे बाहर आ गए । हवेली के बाहर लोगों का हुजूम खड़ा था । बड़े –
बुजुर्गों से सलाह करने के बाद भंगी को बुलाया गया । वह अकेले ही भीतर गया और ताला
तोड़ कर किंवाड़ी खोल दिया । बदबू का जैसे गुब्बार उठा हो । सबने अपने मुँह- नाक
बांध लिए । घड़ी भर बाद पुलिस वाले भीतर गए । और शीघ्र ही वापस दौड़े आए । पसीने से
लथपथ घबराए हुए । होशफाख्ता । जैसे तैसे खुद को संभाला और बताया – ‘भीतर सड़ी – गली
दो लाशें हैं । जिनके सिर नहीं है, न ही
कोई लिबास है ।किसकी है ,कह नहीं सकते ।’
बात आग की तरह फैल गई । बड़े अफसर आए । लाशों
को निकाला गया । शिनाख्त नहीं हो पाई । चार ही तो लोग थे – गफ्फार मियां , बड़ी
बेगम , छोटी बेगम और गोमा । गाँव मे और कोई गायब नहीं था । पुलिस ने खूब तफ़तीश
करने के बाद यह पाया कि उन चारों मे से ही किन्हीं दो की लाशें हैं ,लेकिन वे दो
कौन ? यह पता नहीं ।कागजी खानापूर्ति के बाद लाशों को सपुर्दे खाक कर दिया गया ।
कुआँ सूना हो गया । हवेली की तरफ जाने की अब
किसी की हिम्मत नहीं होती थी । रात होते- होते हवेली की एक बात खत्म होती ,सुबह होते
ही दूसरी शुरू हो जाती –
‘रात को कुएं की चखली चलने की आवाजें आ रही
थी !’
‘ हवेली की छत पर दो सफेद साये देखे गए !’
“पाजेब की छम छम्म छम सुनी गई .... !’ जीतने
मुँह उतनी बातें ।
इस तरह शाही हवेली भूतों की हवेली मे तब्दील
हो गई । जब कई दिनों के बाद भी पुलिस इस गुत्थी को नहीं सुलझा पाई तब यह घोषणा कर
दी गई कि जो कोई इस रहस्य से पर्दा उठाएगा उसको पूरे पचास रुपये का इनाम दिया
जाएगा ।
इनाम की राशि आज भी अपने हकदार का इंतजार कर
रही है ।
************ समाप्त **************