शुक्रवार, 24 मई 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय ज्ञान प्रणाली को पुनर्जीवित करेगी और हमारी विरासत, संस्कृति, परंपराओं और भारत की स्वदेशी प्रथाओं की जड़ों को मजबूत करेगी: डॉ. कमलेश मीना।


 

23 मई 2024 को मैं मोहिनी देवी गोयनका गर्ल्स बी.एड कॉलेज लक्ष्मणगढ़, सीकर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय ज्ञान प्रणाली' पर चर्चा और विचार-विमर्श पर अपना व्याख्यान दिया। यह राष्ट्रीय सम्मेलन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित है। "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भारतीय ज्ञान प्रणाली" विषय पर एक पर चर्चा करने का अवसर मिला। पैनलिस्ट के रूप में एक विशेषज्ञ होने के नाते मैं ऐसे महत्वपूर्ण विषय और भारत सरकार की एक महत्वपूर्ण नीति "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020" पर चर्चा करने का अवसर मिला। जैसा कि हम जानते हैं कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) को केंद्रीय कैबिनेट ने 29 जुलाई 2020 को मंजूरी दी थी और राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया गया। यह 34 वर्षों के बाद भारत का सबसे बड़ा शैक्षिक सुधार है। मैंने इस संक्षिप्त चर्चा और विचार-विमर्श के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की मुख्य विशेषताओं को कवर करने का प्रयास किया और चर्चा का संक्षिप्त सार इस प्रकार है।

नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश विकास के लिए अनिवार्य शिक्षा आवश्यकता को पूरा करने के लिए बनायी गयी है। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का उद्देश्य भारत के युवाओं को समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है। यह भारत की 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति जो की योजनाबद्ध और चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में लागू की जा रही है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) 21वीं सदी की पहली शिक्षा नीति है। यह नीति भारत की परंपराओं और मूल्यों को ध्यान में रखते हुए बनायी गयी है। भारत सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में कई अहम बदलाव किए गए हैं जिसका लक्ष्य देश को विश्व स्तरीय (world class) और कौशल आधारित (skill based) शिक्षा प्रदान करना है। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य भारत के युवाओं को समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है। वर्ष 2015 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक शिक्षा विकास (United Nations global education development for Sustainable Development (SDG4) goal 4 एजेंडा को अपनाया है। जिसके तहत भारत समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा को 2030 तक पूर्ण रूप से लागू करना चाह रहा है। भारत के SDG4 ग्लोबल एजेंडा में विश्व स्तरीय ओर उच्च गुणवत्ता शिक्षा सभी को देने का लक्ष्य है। एसके साथ-साथ सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना है। सभी के लिए समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, जो स्कूल अलगाव को समाप्त करती है, सतत विकास का एक अनिवार्य तत्व है। इस प्रकार एसडीजी 4 का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि 2030 तक सभी लड़कियों और लड़कों को गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन विकास, देखभाल और पूर्व-प्राथमिक शिक्षा तक पहुंच प्राप्त हो ताकि वे प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार हों।

 

वर्तमान 10+2 शैक्षणिक संरचना में 3-6 आयु वर्ग के बच्चों को कवर नहीं किया जाता है क्योंकि कक्षा एक 6 वर्ष की आयु से शुरू होती है। नई 5+3+3+4 संरचना (Academic Structure) में, प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा का एक मजबूत आधार Early Childhood Care and Education ( ECCE) 3 साल की उम्र से भी शामिल है। इस नए शैक्षणिक ढांचे का उद्देश्य कम उम्र से ही बेहतर समग्र शिक्षा, विकास और कल्याण को बढ़ावा देना है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 2 साल की प्री-प्राइमरी शिक्षा (pre-primary education) 3 से 6 साल के बच्चों के लिए होगी। इस 2 वर्षीय प्री-प्राइमरी स्कूलिंग का उद्देश्य बच्चों को प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार करना है। प्री-प्राइमरी शिक्षा के 2 वर्षों के दौरान बच्चों को आंगनबाडी या समुदाय आधारित नर्सरी स्कूलों में निःशुल्क पढ़ाया जाएगा। इसे शुरू करने का उद्देश्य शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों पर अधिक जोर दिया जाएगा और बच्चों की शिक्षा की शुरूवात से ही एक मजबूत सीखने की नींव रखी जाएगी। तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों को ऐसी गतिविधियों में लगाया जाएगा जो उन्हें खेल, मनोरंजक आदि के माध्यम से सीखने और समझने में मदद करेगा। इससे 3-6 वर्ष की आयु के बच्चे स्कूली पाठ्यक्रम के अंतर्गत आएंगे। प्रारंभिक चरण की शिक्षा को आनंदमय, चंचल और मस्ती भरे माहौल में बनाने के लिए और अधिक प्रयास किए जाएंगे। सरकार की ओर से देश की शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लागू किया। इस नीति का मकसद देश में स्कूली पढ़ाई से लेकर हायर एजुकेशन तक शिक्षा का विकास करना है। इसी के साथ एनईपी 2020 में प्रौढ़ शिक्षा पर भी जोर दिया गया है, इसके तहत आजीवन सीखने की प्रक्रिया को जारी रखना और समय के साथ आने वाले बदलाव और चुनौतियों के लिए लोगों को तैयार करना है।

नई शिक्षा नीति 2020 का विजन - Vision of New Education Policy : नयी शिक्षा नीति भारत के सभी छात्रों को विश्व स्तरीय, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा देने के लक्ष्य से बनायी गयी है। इस नीति से छात्रों की संज्ञानात्मक क्षमताओं (cognitive capacities), समस्या-समाधान दृष्टिकोण (Problem Solving attitude), को उजागर करने का प्रयास है। नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 का उद्देश्य व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात को 27.9% (2022-2023) से बढ़ाकर 2035 तक 50% करना है। उच्च शिक्षा संस्थानों में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य वर्ष 2030 तक प्री-स्कूल से माध्यमिक स्तर तक 100% जीईआर (GER) प्राप्त करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पहुंच, इक्विटी, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही के मूलभूत स्तंभों पर बनी है, यह नीति सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा से जुड़ी है। नई शिक्षा नीति का दृष्टिकोण समाज के सभी वर्गों के छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करना है, इस नीति का लक्ष्य 2040 तक भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना है। प्रत्येक विषय में पाठ्यचर्या सामग्री को उसकी मूल अनिवार्यता तक कम कर दिया जाएगा,और महत्वपूर्ण सोच और अधिक समग्र शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाएगा जो पूछताछ-आधारित, खोज-आधारित, चर्चा-आधारित और विश्लेषण-आधारित शिक्षा होगी।

 

नई शिक्षा नीति सिद्धांतों के एक निश्चित सेट पर आधारित है जो भारत के युवाओं को विश्व स्तरीय (world class), उच्च गुणवत्ता (high quality) वाली शिक्षा प्राप्त करने में मदद करेगी। इस नई शिक्षा नीति (न्यू एजुकेशन पॉलिसी ) का उद्देश्य सिर्फ़ जनता को शिक्षित करने तक सीमित नहीं है बल्कि युवाओं को एक जिम्मेदार इंसान बनाना भी है।

नई शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य युवाओं के बीच अच्छे चरित्र (good character) का विकास करना है और उनको एक अच्छा इंसान (good human being) बनना है जो समाज में योगदान दे सके। शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में से एक तर्कसंगत विचार (rational thought) और क्रिया को विकसित करना है, जिसमें करुणा (compassion), सहानुभूति (empathy), रचनात्मक कल्पना (creative imagination) और नैतिक मूल्य (ethical values) हैं। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मानवीय नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों जैसे सहानुभूति, जिम्मेदारी, स्वच्छता, दूसरों के लिए सम्मान, सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान, वैज्ञानिक स्वभाव, समानता आदि सिखाएगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पहुंच, इक्विटी, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही के मूलभूत स्तंभों पर बनी है, यह नीति सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा से जुड़ी है। नई शिक्षा नीति का दृष्टिकोण समाज के सभी वर्गों के छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करना है, इस नीति का लक्ष्य 2040 तक भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना है। प्रत्येक विषय में पाठ्यचर्या सामग्री को उसकी मूल अनिवार्यता तक कम कर दिया जाएगा, और महत्वपूर्ण सोच और अधिक समग्र शिक्षा पर अधिक जोर दिया जाएगा जो पूछताछ-आधारित, खोज-आधारित, चर्चा-आधारित और विश्लेषण-आधारित शिक्षा होगी। नई शिक्षा नीति सिद्धांतों के एक निश्चित सेट पर आधारित है जो भारत के युवाओं को विश्व स्तरीय (world class), उच्च गुणवत्ता (high quality) वाली शिक्षा प्राप्त करने में मदद करेगी। इस नई शिक्षा नीति (न्यू एजुकेशन पॉलिसी ) का उद्देश्य सिर्फ़ जनता को शिक्षित करने तक सीमित नहीं है बल्कि युवाओं को एक जिम्मेदार इंसान बनाना भी है।नई शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य युवाओं के बीच अच्छे चरित्र (good character) का विकास करना है और उनको एक अच्छा इंसान (good human being) बनना है जो समाज में योगदान दे सके। शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों में से एक तर्कसंगत विचार (rational thought) और क्रिया को विकसित करना है, जिसमें करुणा (compassion), सहानुभूति (empathy), रचनात्मक कल्पना (creative imagination) और नैतिक मूल्य (ethical values) हैं।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति मानवीय नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों जैसे सहानुभूति, जिम्मेदारी, स्वच्छता, दूसरों के लिए सम्मान, सार्वजनिक संपत्ति के लिए सम्मान, वैज्ञानिक स्वभाव, समानता आदि सिखाएगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति पहुंच, इक्विटी, गुणवत्ता, वहनीयता और जवाबदेही के मूलभूत स्तंभों पर बनी है, यह नीति सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा से जुड़ी है। नई शिक्षा नीति का दृष्टिकोण समाज के सभी वर्गों के छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली सार्वभौमिक शिक्षा प्रदान करना है, इस नीति का लक्ष्य 2040 तक भारतीय शिक्षा प्रणाली को बदलना है। नई शिक्षा नीति छात्रों में लचीलेपन और विषयों की पसंद में वृद्धि होगी। छात्र विभिन्न समूहों से विषयों का चयन कर सकते हैं, जिसका अर्थ है कि कला के छात्र विज्ञान स्ट्रीम से भी विषय चुन सकते हैं और इसके विपरीत। कला और विज्ञान के बीच, पाठ्यचर्या और पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, और व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच कोई कठिन अलगाव नहीं होगा। नई शिक्षा नीति में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा (mother tongue) या क्षेत्रीय भाषाओं (regional languages) में ग्रेड 5 तक और अधिमानतः ग्रेड 8 तक दिया जाएगा। यह दुनिया भर में समझा जाता है कि छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में अवधारणाओं को अधिक तेज़ी से सीखते और समझते हैं।

नई शिक्षा नीति में व्यावसायिक शिक्षा स्कूल में छठी कक्षा से शुरू होगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी। नई शिक्षा नीति (एनईपी) में व्यावसायिक शिक्षा स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक शिक्षार्थियों को नौकरियों के लिए तैयार करेगी। व्यावसायिक प्रशिक्षण और शिक्षा में व्यावहारिक सत्र, उद्योग प्रदर्शन और इंटर्नशिप शामिल होंगे, यह शिक्षार्थियों को एक विशिष्ट व्यापार के लिए तैयार करेगा और उनके तकनीकी कौशल को उन्नत करेगा जो रोजगार के लिए अनिवार्य हैं। नई शिक्षा नीति में लचीले पाठ्यक्रम वाले बहु-विषयक (Multidisciplinary) समग्र यूजी शिक्षा शामिल होगी। उच्च शिक्षा में विषयों का रचनात्मक संयोजन होगा, पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा का एकीकरण और पूरा होने पर उपयुक्त प्रमाणीकरण के साथ कई प्रविष्टियां और निकास बिंदु होंगे।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय इग्नू के एक शिक्षाविद् होने के नाते यह हमारी प्रमुख जिम्मेदारी है कि जब भी हमें देश भर में जो भी मंच मिले, अपने कार्यों, व्याख्यानों, चर्चाओं और विचार-विमर्श के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लिए जन जागरूकता फैलाने और व्यापक प्रचार करने में सकारात्मक योगदान दें। ईमानदारी से हम सभी को इस प्रतिष्ठित शिक्षा नीति 2020 को और अधिक समझने योग्य, जन जागरूकता और सही व्याख्या करने के लिए अपना योगदान देना चाहिए। अपने कार्यों, व्याख्यानों, चर्चाओं और विचार-विमर्श के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लिए जन जागरूकता फैलाने और व्यापक प्रचार करने के माध्यम से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर दिए हैं। मैं लगातार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के व्यापक प्रचार-प्रसार एवं जन-जागरूकता के लिए उत्कृष्ट एवं विश्वसनीय प्रयास कर रहा हूं ताकि हमारे नौनिहाल, युवतियां एवं जन-जन नव निर्माण परिवर्तन के लिए भारत सरकार द्वारा लागू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के महत्व को समझ सकें। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि हम इस राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से 21वीं सदी की आवश्यकताओं के साथ एक नया विकसित भारत बनाने में सक्षम होंगे। इस राष्ट्रीय चर्चा और विचार-विमर्श के दौरान, मुझे कई प्रसिद्ध शिक्षाविदों, शिक्षक प्रशिक्षकों, विभिन्न प्रतिष्ठित कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा प्रणाली के प्रोफेसरों को सुनने और उनसे मिलने का अवसर मिला। प्रोफेसर बी एल जैन साहब, लाडनूं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, डॉ. जगदीश कड़वासरा जी ग्रामीण महिला कॉलेज, सीकर, डॉ. दिनेश जी सेठ मोती लाल कॉलेज झुंझुनू आदि। डॉ. मोनू सिंह गुर्जर हाल ही में राष्ट्रीय प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान एनसीईआरटी में शामिल हुए हैं और लगातार इस तरह की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चर्चाओं में उनकी सक्रिय भागीदारी देखकर खुशी हो रही है।

इस खूबसूरत और बेहद महत्वपूर्ण नीतिगत कार्यक्रम के लिए मुझे आमंत्रित करने के लिए मैं मोहिनी देवी गोयनका गर्ल्स बी.एड कॉलेज लक्ष्मणगढ़ घस्सू, सीकर के कॉलेज प्रबंधन का आभारी हूं और कॉलेज प्राचार्य डॉ. राकेश कुमार बुडानिया जी और डॉ. राकेश बडासरा जी का विशेष धन्यवाद व्यक्त करता हूं। कॉलेज प्राचार्य डॉ. राकेश कुमार बुडानिया जी और डॉ. राकेश बडासरा जी का विशेष आभारी एवं शुक्रगुज़ार हूं। वास्तव में मैं इस चर्चा के लिए मुख्य भूमिका बनाने के लिए प्रोफेसर मनोज सक्सेना जी, शिक्षा विभाग के प्रमुख, केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश, प्रोफेसर दिनेश चहल जी, केंद्रीय विश्वविद्यालय हरियाणा और प्रोफेसर विनोद सांवल जी गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, नोएडा, यूपी का आभारी हूं। कार्यक्रम का संचालन अनामिका यादव जी ने किया और हमारे छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर सही और ठोस सवाल उठाने के लिए मैं उन्हें हार्दिक धन्यवाद देता हूं। छात्रों के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के लाभों पर इतने महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की योजना बनाने और योजना बनाने के लिए समग्र और अंतिम बड़ा धन्यवाद भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) नई दिल्ली को जाता है और मैं इसके लिए शुक्रगुज़ार हूं।

राजस्थान से होने के नाते, अपने शैक्षणिक प्रयासों के माध्यम से राजस्थान के युवाओं को अपना योगदान देना मेरी अधिक जिम्मेदारी है, इसलिए वास्तव में मुझे अपने गृह राज्य में इस राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने में बहुत खुशी हुई और कॉलेज प्रबंधन ने मुझे बिहार से आमंत्रित किया जिससे मुझे और अधिक खुशी हुई और अपने लिए यह मान-सम्मान देखकर खुशी हुई।

सादर।

डॉ कमलेश मीना,

सहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।

एक शिक्षाविद्, शिक्षक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।

 

Email-kamleshmeena@ignou.ac.ina  drkamleshmeena12august@gmail.com

Mobile: 9929245565

पर्यावरण-प्रबन्धन और प्रकृति-संरक्षण: एक वैदिक दृष्टिकोण - डॉ0 रवीन्द्र कुमार*


 सौर मण्डल में जीवन से भरपूर सुन्दर गृह पृथ्वी की उत्पत्ति विज्ञान के अनुमानानुसार लगभग 4. 54 अरब वर्ष पूर्व हुई। पृथ्वी का कुल सतही क्षेत्रफल लगभग 510 मिलियन वर्ग किलोमीटर (196, 900, 000 वर्ग मील) है। इसकी सतह का 71 प्रतिशत भाग जल से और 29 प्रतिशत भाग भूमि से ढका हुआ है। इसके दोनों ध्रुव (उत्तरी एवं दक्षिणी) मोटी (घनी) बर्फ की परत से ढके हुए हैं। इन दो ध्रुवों के अतिरिक्त पृथ्वी छह महाद्वीपों –अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी व दक्षिणी अमरीका, एशिया तथा यूरोप में विभाजित है; इन सभी महाद्वीपों में 263 छोटे-बड़े देश हैं। पृथ्वी पर (विशाल जल-क्षेत्र को समेटते) प्रमुखतः पाँच –अटलान्टिक, अन्टार्कटिक, आर्कटिक, प्रशान्त और हिन्द महासागर हैं। भूमि-जल –महाद्वीपों-महासागरों में पृथ्वी का मूल (प्राकृतिक) विभाजन, वास्तव में, इस ग्रह की सम्पन्नता-समृद्धि, सुन्दरता, दीर्घकालिकता और व्यापक अथवा सर्वत्र उपादेयता का आधार है। इसकी मूल-प्राकृतिक स्थिति की निरन्तरता –संधारणीयता में विकास व सभ्यता के उत्थान के साथ ही जीवन-रक्षा व उसकी निरन्तरता की प्रत्याभूति है।

इस प्रत्याभूति के कारण विश्व के आदि ग्रन्थों –मूल सनातनधर्मी शास्त्रों में से अन्तिम, अथर्ववेद के बारहवें काण्ड में पृथ्वीसूक्त प्रकट है और इस सूक्त में 63 मंत्र हैं। इन्हीं मंत्रों में से एक में कहा गया है कि पृथ्वी हमारी माता है और हम इसके पुत्र हैं; यथा, "माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः/"

पृथ्वी की सभी दिशाएँ कल्याणकारी, समृद्धिकारक और सुखदायी हों, इस प्रकार की कामनाओं के साथ ही प्रकृति व पर्यावरण, जीव एवं जगत, चर-अचर के सम्बन्ध में अद्वितीय और सत्याधारित –वैज्ञानिक ज्ञान पृथ्वी सूक्त में विद्यमान है। वह अन्ततः "वसुधैव कुटुम्बकम्" उद्घोष के वास्तविकता के निष्कर्ष पर पहुँचकर साझे मानवीय प्रयासों –कर्मों द्वारा दृढ़निश्चय तथा उद्यम से पर्यावरण-सन्तुलन व (नदियों, पर्वतों, वनों, वनस्पतियों, वृक्षों, फसलों, औषधियों और समतल स्थान सहित) सम्पूर्ण प्रकृति संरक्षण का प्रत्येक जन (स्त्री व पुरुष) का धरती माता की सुरक्षा का, जिसके साथ हरेक के जीवन और अन्योनाश्रित सम्पूर्ण प्राणी-जगत का भविष्य भी जुड़ा है, उसके परम कर्त्तव्य के रूप में, आह्वान करता है।

व्यापक परिधि में, पर्यावरण-सन्तुलन एवं प्रकृति-संरक्षण पृथ्वी की सुरक्षा और स्वाभाविक रूप से इस ग्रह पर दीर्घकालिक व सुरक्षित जीवन से जुड़े दो सबसे  महत्त्वपूर्ण और प्रमुख पहलू हैं। केवल तीन विषयों –प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में विश्वभर में प्रकृति के मूल स्रोतों के साथ छेड़छाड़ (लाखों की संख्या में प्राकृतिक परिवर्तन, जिसमें लगभग दस लाख अति गम्भीर परिवर्तन हैं, और जिसके परिणामस्वरूप नदियाँ व प्राकृतिक जलस्रोत भी विलुप्त होते हैं, तथा जो स्वयं अस्तित्व की अनिवार्य शर्त अहिंसा का उल्लंघन भी है, इस संख्या में सम्मिलित हैं); प्राकृतिक संसाधनों का अन्यायपूर्ण व अनुचित दोहन, हर वर्ष लगभग पन्द्रह सौ करोड़ वृक्षों का कटान, और लगभग अस्सी अरब भू-पशुओं का (उन पशुओं सहित, जो स्वयं सीधे पर्यावरण-सन्तुलन एवं प्रकृति-संरक्षणार्थ अतिमहत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं) निर्ममतापूर्वक मारा जाना, वास्तव में, वातावरण को बुरी तरह बिगाड़ने  –वायु को प्रदूषित करने तथा तापमान को बढ़ाने जैसे दिन-प्रतिदिन बढ़ते खतरे के लिए उत्तरदायी हैं। निरन्तर बढ़ती जल-समस्या, पृथ्वी की उर्वरा शक्ति में कमी, खाद्य-उत्पादों के जन-स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक होने और नित-नूतन बीमारियों के सामने आने के पीछे भी ये ही, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, कारक हैं। ये लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करने तथा प्रतिवर्ष करोड़ों जन की मृत्यु का कारण हैं। ध्रुवों पर निरन्तर पिघलती बर्फ और ग्लेशियरों का टूटना, फलस्वरूप समुद्री जल में वृद्धि, मानसून की अत्यधिक अनिश्चितता, नदियों के सूखने का क्रम, परिणामस्वरूप सूखे की भयंकर समस्या, इस स्थिति को समझने के लिए पर्याप्त है। इस चेतावनी रूपी भयावह होती स्थिति के सम्बन्ध में मेरे द्वारा कुछ और अधिक कहे जाने की आवश्यकता नहीं है।

पृथ्वी सुरक्षित रहे; पृथ्वी माता पर जीवन दीर्घकालिक और संधारणीय हो, इस दिशा में, विशेषकर पर्यावरण-सन्तुलन और प्राकृतिक-संरक्षण को केन्द्र में रखकर वैश्विक व राष्ट्रीय स्तर पर जो प्रयास हो रहें हैं, वे सभी हृदय से स्वागत किए जाने योग्य हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्य-योजनाओं के अन्तर्गत अन्तर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय संगठनों, तथा राष्ट्रीय के साथ ही स्वैच्छिक संस्थाओं के माध्यम से (जिनकी संख्या लाखों में है) होने वाले प्रयास (स्वयं विस्कॉन्सिन के सीनेटर जेराल्ड एंटोन नेल्सन की केन्द्रीय भूमिका के चलते इस हेतु वर्ष 1970 ईसवीं से प्रतिवर्ष 22वीं अप्रैल को विश्वभर में जन-जागृति के उद्देश्य से मनाए जाने वाले पृथ्वी दिवस सहित) श्रेयस्कर हैं।

लेकिन, इसके बाद भी, विशेष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले प्रयास तब तक ईमानदारीपूर्ण नहीं हो सकते, जब तक पर्यावरण-सन्तुलन और प्राकृतिक-संरक्षण के मूल्य पर भी राष्ट्रीय हितों की वरीयता रहेगी। यही वरीयता, वास्तव में, इस पथ की सबसे बड़ी बाधा है, इस सम्बन्ध में सबसे घातक स्थिति है। राष्ट्रों को अपने-अपने स्तर से इस सम्बन्ध में सोचना होगा तदनुसार कार्य करना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर विकास एवं (जीवन की निरन्तरता व दीर्घकालिकता सहित) पृथ्वी की सुरक्षा के मध्य एक प्रभावकारी तथा सुनिश्चित सन्तुलन अवस्था को केन्द्र में रखकर ही व्यवहार करना होगा। केवल ऐसा व्यवहार ही व्यक्तिगत स्तर पर प्रयासों का भी मार्ग प्रशस्त करेगा।

हजारों वर्ष पूर्व, वेदों में से प्रथम, ऋग्वेद, के मंत्रों की कल्याणकारी कामना और इस हेतु पुरुषार्थ के लिए मानवाह्वान के अनुरूप ही बरतना होगा। इस सम्बन्ध में इसके अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं है। ऋग्वेद की कल्याणकारी कामना और मानवाह्वान है:

संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्/ देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते// समानो मन्त्र: समिति: समानी समानं मन: सहचित्तमेषाम्/ समानं मन्त्रमभिमन्त्रये व: समानेन वो हविषा जुहोमि// समानी व आकूति: समाना हृदयानि व:/ समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति//

अर्थात्, हम परस्पर एक होकर रहें; मिलकर प्रेमपूर्वक वार्तालाप करें, समान मन से ज्ञान प्राप्त करें, जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं; उसी प्रकार एकमत होकर व विरोध त्याग कर कार्य करें। हम सबकी प्रार्थना एक समान हो, भेदभाव-रहित होकर परस्पर मिलकर रहें; हमारे अन्तःकरण, मन-चित्त-विचार, समान हों। सबके हित के लिए समान मन्त्रों को अभिमंत्रित कर हवि प्रदान करें; सबके संकल्प एक समान हों, हृदय एक समान हों और मन एक समान हों, जिससे कार्य पूर्णतः संगठित हो।

इसी  भावना और संकल्प के अनुसार पर्यावरण-सन्तुलन एवं प्रकृति-संरक्षण के लिए कार्य ही, वास्तव में, पृथ्वी दिवस मनाने का भी आधार होना चाहिए।  

डॉ0 रवीन्द्र कुमार सुविख्यात भारतीय शिक्षाशास्त्री, समाजविज्ञानी, रचनात्मक लेखक एवं चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के पूर्व कुलपति हैंI डॉ0 कुमार गौतम बुद्ध, जगद्गुरु आदि शंकराचार्य, गुरु गोबिन्द सिंह, स्वामी दयानन्द 'सरस्वती', स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गाँधी और सरदार वल्लभभाई पटेल सहित महानतम भारतीयों, लगभग सभी राष्ट्रनिर्माताओं एवं अनेक वीरांगनाओं के जीवन, कार्यों-विचारों, तथा भारतीय संस्कृति, सभ्यता, मूल्य-शिक्षा और इंडोलॉजी से सम्बन्धित विषयों पर एक सौ से भीअधिक ग्रन्थों के लेखक/सम्पादक हैंI विश्व के समस्त महाद्वीपों के लगभग एक सौ विश्वविद्यालयों में सौहार्द और समन्वय को समर्पित भारतीय संस्कृति, जीवन-मार्ग, उच्च मानवीय-मूल्यों तथा युवा-वर्ग से जुड़े विषयों पर पाँच सौ से भी अधिक व्याख्यान दे चुके हैं; लगभग एक हजार की संख्या में देश-विदेश की अनेक प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में एकता, बन्धुत्व, प्रकृति व पर्यावरण, समन्वय-सौहार्द और सार्थक-शिक्षा पर लेख लिखकर कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैंI भारतीय विद्याभवन, मुम्बई से प्रकाशित होने वाले भवन्स जर्नल में ही गत बीस वर्षों की समयावधि में डॉ0 कुमार ने एक सौ पचास से भी अधिक अति उत्कृष्ट लेख उक्त वर्णित क्षेत्रों में लिखकर इतिहास रचा हैI विश्व के अनेक देशों में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के अवसर पर शान्ति-यात्राओं को नेतृत्व प्रदान करके तथा पिछले पैंतीस वर्षों की समयावधि में राष्ट्रीय एकता, विशिष्ट भारतीय राष्ट्रवाद, शिक्षा, शान्ति और विकास, सनातन मूल्यों, सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और सदाचार एवं भारतीय संस्कृति से सम्बद्ध विषयों पर निरन्तर राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियाँ-कार्यशालाएँ आयोजित कर स्वस्थ और प्रगतिशील समाज-निर्माण हेतु अभूतपूर्व योगदान दिया हैI डॉ0 रवीन्द्र कुमार शिक्षा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व योगदान की मान्यतास्वरूप ‘बुद्धरत्न’ तथा गाँधीरत्न जैसे अन्तर्राष्ट्रीय और भारत गौरव, सरदार पटेल राष्ट्रीय सम्मान, साहित्यवाचस्पति, साहित्यश्री, साहित्य सुधा, हिन्दी भाषा भूषण एवं ‘पद्म श्री‘  जैसे राष्ट्रीय सम्मानों से भी अलंकृत हैंI

 

 

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...