सोमवार, 24 फ़रवरी 2025

राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा में आज प्रो. डॉ. गीता राम शर्मा सहायक निदेशक, कॉलेज शिक्षा की 28 फरवरी 2025 को होने वाली सेवानिवृत्ति के उपलक्ष में विदाई समारोह का आयोजन किया गया।

 


राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा में आज प्रो. डॉ. गीता राम शर्मा सहायक निदेशक, कॉलेज शिक्षा की 28 फरवरी 2025 को होने वाली

 सेवानिवृत्ति के उपलक्ष में विदाई समारोह का आयोजन किया गया।

जिसकी अध्यक्षता प्राचार्य डॉ. सीमा चौहान ने की। प्राचार्य एब समस्त संकाय सदस्यों ने प्रो. डॉ.गीता राम शर्मा जी का माल्यार्पण द्वारा स्वागत किया। इस अवसर पर समाजशास्त्र विभाग अध्यक्ष डॉ. अनीता तंबोली ने कहां कि आप सरल और सौम्य व्यक्तित्व के धनी हैं । सहर्ष हमारा आतिथ्य स्वीकार कर लेते हैं डॉ. श्रद्धा सोरल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आप भले ही प्रशासनिक पद को संभाल रहे हैं लेकिन आपके व्यक्तित्व का एकेडमिक पक्ष इतना प्रबल है। वह हमेशा आपके कार्यों में परिलक्षित होता है। मोहम्मद रिजवान ने सहज सरल सफल है तू परमात्मा का फल है तू कविता के माध्यम से अपने उद्गार व्यक्त किया । डॉ. मीरा गुप्ता ने कहा कि सहायक निदेशक के रूप में आप हाडोती संभाग के सभी महाविद्यालय में आयोजित होने वाली गतिविधियों की सकारात्मक जानकारी आयुक्तालय तक पहुंचाते हैं। डॉ. पुनीता श्रीवास्तव ने मधुबन खुशबू देता है। इसी श्रृंखला में अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ (उच्च शिक्षा) राजकीय कला कन्या महाविद्यालय ईकाई सचिव डॉ. संतोष कुमार मीना ने ईकाई की ओर से स्वागत करते हुए कहा कि आप सैदेव इसी तरह स्वस्थ रहें व्यस्त रहे और मस्त रहे यहीं ईश्वर से प्रार्थना है, जों काम दवा ना कर सके, वो काम दुआ कर जाती हैं, और अगर सच्चा गुरुवर, मिल जाए तो फिर बात ख़ुदा से होतीं हैं। कहतें हुए भगवान राम के समाज में आदर्श से परिपूर्णित भजन ‘ऐसे हैं मेरे राम’  सुनाया। डॉ. मनीषा शर्मा ने कहा कि आपका व्यक्तित्व अद्भुत प्रतिभा संपन्न ऊर्जावान व्यक्तित्व है जिसमें भारतीय ज्ञान का अकूत ज्ञान भंडार है। डॉ. टी.एन. दुबे ने कहा कि आपकी सदाशयता और सकारात्मकता अतुलनीय है । डॉ. धरम सिंह मीना ने उत्तम स्वास्थ्य और जीवन के नए अध्याय की शुरुआत की बधाई एवं शुभकामनाएँ दी । श्रीमती प्रेरणा शर्मा ने आज जाने की जिद ना करो गीत प्रस्तुत किया । डॉ. राजेंद्र माहेश्वरी ने जाते हुए यह पल छिन गीत प्रस्तुत किया प्राचार्य डॉ. सीमा चौहान ने डॉ. शर्मा का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि एक प्राचार्य के रूप में मुझे आपसे निरंतर संपर्क का अवसर मिला आपकी सकारात्मक सराहनीय है ।महाविद्यालय में संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर प्रारंभ करवाने में आपका योगदान महत्वपूर्ण रहा । डॉ. राजमल मालव ने भी संस्कृत में  स्नातकोत्तर विषय प्रारंभ करवाने में डॉ गीता राम शर्मा जी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर स्वयं गीता राम शर्मा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आपकी आत्मीयता के कारण मुझे आपने यह सम्मान दिया है मैं सदैव नैतिकता का पक्षधर रहा हूँ। एक शिक्षक होने के नाते सभी शिक्षकों को संवेदनशीलता रखकर कर्तव्य पूर्ण करने चाहिए शिक्षक की गरिमा बनी रहनी चाहिए हमें सदैव सकारात्मक सार्थक और सक्रिय रहना है।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

विवेक कुमार मिश्र की चाय केंद्रित कविताओं पर परिचर्चा तथा चाय घर से पुस्तक का विमोचन


 विवेक कुमार मिश्र की चाय केंद्रित कविताओं पर परिचर्चा तथा 

चाय घर से पुस्तक का विमोचन 


कोटा। 20-02-2025 । राजकीय कला महाविद्यालय कोटा में प्रोफेसर विवेक कुमार मिश्र की चाय पर केंद्रित पुस्तकें  'चाय, जीवन और बातें' , फुर्सतगंज वाली सुकून भरी चाय, और चाय घर से पर  एक बौद्धिक विमर्श के क्रम में चाय की सामाजिकता और हमारे जीवन संसार में किस तरह चाय रची बसी है को उद्घाटित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर गीताराम शर्मा रहे। अध्यक्षता प्राचार्य प्रोफेसर रोशन भारती ने की । सरस्वती वंदना का सस्वर पाठ डॉ महावीर साहू ने की तथा रचना प्रक्रिया एवं स्वागत भाषण कवि विवेक मिश्र ने दिया। मुख्य अतिथि प्रोफेसर गीताराम शर्मा ने कहा कि विवेक मिश्र जीवन का वैविध्य रचने वाले कवि हैं उनके यहां विषयों की भरमार है। वे कब किस विषय को आधार बनाकर लिख देंगे इसे पहले से नहीं कहा जा सकता है। वे हमेशा चौंकाते रहते हैं अपना रचना धर्म से । उनकी कविताएं जीवन का उत्सव रचते हुए ही आगे बढ़ती हैं । अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्राचार्य प्रोफेसर रोशन भारती ने कहा कि विवेक मिश्र का सृजन संसार बहुत बड़ा है । उनका सृजनशील होना सभी को प्रेरित करता है कि एक साथ कितना कुछ किया जा सकता है। वे जहां हैं उससे भी बड़ा मुकाम वे हासिल करें इसकी कामना हम सब करते हैं । 

इस अवसर पर  मुख्य वक्ता डॉ मनोरंजन सिंह ने कहा कि विवेक मिश्र ने चाय जैसे विषय पर लिख कर अपनी तिक्ष्ण कल्पना शक्ति के साथ एक सृजनधर्मी कवि होने का परिचय दिया । उनकी कविताएं सामाजिक जीवन का पाठ बनती हैं। सामाजिकता एवं मानवीयता के धरातल को एक साथ स्पर्श करने वाली कविताएं बराबर से यह मांग करती हैं कि उन्हें रुक रुक कर समय देकर पढ़ा जाए और गहराई में जाकर उन्हें समझने की जरूरत है । विवेक मिश्र बेफिक्री के साथ फुर्सत के पलों को नये सामाजिक संबंधों के साथ रचते हैं। चाय पर केंद्रित ये कविताएं चाय के साथ मानव समाज की सामाजिकी को और उसके समाज शास्त्रीय चिंतन को परिभाषित करती हैं। सौंदर्य विशेषज्ञ डॉ रमेश चंद मीणा ने कहा कि विवेक मिश्र के यहां चाय की उपस्थिति चित्र , विचार और दर्शन के रूप में एक साथ सहज रूप से उपस्थित हैं। उनको पढ़ना अपने भावों का विस्तार करना है । वे विचार में डूबे कवि हैं उनकी कविता कला सौंदर्य की एक अलग ही दुनिया रचती है।वे मूलतः चित्रों की कला-भाषा के  कवि हैं। भाषा क्लब की समन्वयक प्रोफेसर दीपा चतुर्वेदी ने कहा कि विवेक मिश्र के यहां अंग्रेजी के बड़े कवि वर्ड्सवर्थ एवं टी एस इलियट की विशेषताएं एक साथ हैं। भाषा से खेलते हुए जो संसार विवेक का कवि मन रचता है वह निरंतर हमें सोचने के लिए बाध्य कर देता है । इस अवसर पर डॉ विवेक शंकर ने कहा कि वे जितने बड़े कवि हैं उससे बड़ा इंसान उनके भीतर छिपा बैठा है। डॉ हिमा गुप्ता ने उनके विविध साहित्य रूपों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रोफेसर रामावतार सागर ने कहा कि विवेक मिश्र अनूठे विम्बों के कवि हैं। उनके पास से रचनात्मकता का एक सोता हमेशा ही चलता रहता है जो हम सबको विचार विमर्श के लिए उकसाता रहता है । 

कार्यक्रम में प्रोफेसर आर.के.गर्ग , प्रो गोविंद कृष्ण शर्मा, प्रो संजय लकी , प्रो आदित्य कुमार गुप्त, प्रो एल सी अग्रवाल, प्रो मंजू गुप्ता, प्रो.वंदना शर्मा , प्रो नुसरत फातिमा, प्रो प्रभा शर्मा, प्रो संतोष मीना , प्रो सुनीता गुप्ता, प्रो रमा शर्मा , डॉ सुमन गुप्ता डॉ अनिल पारीक, डॉ अंजली शर्मा डॉ अनीता टांक, प्रो राजेश बैरवा, प्रो  नीलम गोयनका, डॉ चंचल गर्ग , डॉ विधि शर्मा, डॉ रसिला, डॉ बसंत लाल बामनिया, डॉ आर के मीना , डॉ गोविंद मीना डॉ अमिताभ बासु, डॉ सुमन, डॉ तलविंदर कौर, डॉ मनोज सिंघल, एकाउंट आफिसर हारुन खान, आदि की गरिमामय उपस्थिति बनी रही । 

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

प्रतिनिधि कवयित्री कमलेश कुमारी की दो कविताएँ*

 

प्रतिनिधि कवयित्री कमलेश कुमारी की दो कविताएँ*


1

मन-चम्पा

 

हो जाता घटित समय के किसी चक्र मेँ ऐसा भी,

जब अपना ही नगर लगता एक अपरिचित-सी

भीड़ भरी जगह...

 

रास्ते, मोड, गलियाँ, चौराहे, तिराहे

सब केवल लगते हैं बस देखे भर-से; पहचाने हुए नहीं;

लोग हो जाते परिवर्तित भीड़ मे और परिचित जन लगते

किसी मेले मेँ मुखौटों-से!

 

उचाट हो जाती दृष्टि और टिकती केवल,

चौराहे पर बिकते, मिट्टी के बर्तनों व फूलों पर...

पीढ़ियों पुराने किसी पेड़ की जड़ मेँ आश्रय लेती

उस देवमूरत पर; जो प्रतीत होती ये कहती हुई 

“कि मनुष्य तो बदल देते हैं अपने देव भी!”

 

कभी सरल-सुगम रहीं गलियाँ ‘लगती इतनी संकुल

कि कठिनतम लगता कहीं भी पहुँचना

घबराया हुआ हृदय, होता स्पंदित ग्रीवा मेँ...

 

अनायास ही लगने वाले धक्के और ठोकरों से बचकर,

स्वयं को बचाता है मन एकांत की गलियों मेँ..

ऊबकर भाग जाना चाहता है उस लाल चम्पा के झाड़ के समीप

जिसके रक्तपुष्प जोड़ते हैं जिजीविषा को,

‘तुम्हारे’ हृदय की धमनियों से... 

 

 

2

दुख का शिल्प

 

दुख ढालता है ऐसे आदि शिल्प मेँ,

जीवंतता-मूरत को, मरी हुई धार की जंग लगी छेनी से

कि दुख को आत्मसात कर ढल जाती वह!

 

“स्मृति कि उस नन्ही बालिका को,

‘मृत्यु’ शब्द लगता था ऐसा-

जैसे आकाश का धरती पर गिर जाना औंधे मुँह;

और कर देना नष्ट प्रकृति के सब जीवित चिह्न ..

किसी अन्य की मृत्यु से हो विचलित,  

छोटे हाथों से माँगती, ईश्वर से वरदान

अपने माँ-बाबा के अमरत्व का।“

 

किन्तु, विधि कर देती है कोमल उंगलियों को कठोर

सहने को समय की पकड़ और थमा देती है उन हाथों मेँ

शाश्वत नियम की अबूझ लिपि।

 

पढ़ता और सीखता चलता है मानव

कि नदियाँ बढ़ जाती हैं आगे छोड़ पिछले घाट

वायु, एक स्थान की नमी से भिगोती है,

कोई दूसरा ही छोर धरती का...

 

पुष्प-पल्लव देते हैं स्वयं ही स्थान नव कोंपल को

इस भाँति सुगंध और उजास लिए रहती उनकी मृत्यु

यदि मनुष्य भी लिए रहते तटस्थता इसी भाव मेँ,

तब स्वतः ही हो जाते प्राप्त बुद्धत्व को!

 

इससे इतर—

जीवित ही मर-मर के जीने को ‘मजबूर’

हो जाता अभ्यासी, इस प्रकार मृत्यु का कि-

यह लगती है उसे घटना, परिवर्तन की, आत्मिक क्रांति की...

करता है वह सपनों मे इसका आलिंगन मुस्कराते हुए;

मोक्ष की पोटली को बाँध कर आत्मा के आँचल मेँ।   

 

*प्रतिनिधि कवयित्री सुश्री कमलेश कुमारी वर्तमान में शिक्षा विभाग, हरियाणा में कार्यरत हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

   

 

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...