शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

तुम फिर कभी आना - सुश्री कमलेश कुमारी कवयित्री और लेखिका ( वर्तमान में हरियाणा राज्य के शिक्षा विभाग में कार्यरत है)


 

एक दिन उसने कहा, ‘’बहुत बिज़ी हूँ यार’’

इस वाक्य पर प्रतिक्रिया से पहले,

मैंने देखा अपने आस-पास...

व्यस्तता बिखरी पड़ी थी चारों ओर !

बंधक हैं हम इन व्यस्तताओं के ऐसे कि

समय की बेड़ियों में तरस जाते हैं भाव भी करवट को।

तुम व्यस्त, मैं व्यस्त...

और जीवन कहीं दूर से देख रहा हमें ;

सुबह से शाम हो रही है हर दिन की और गुजर रही,

ड्योढ़ी पर जलते दीये के पास ठहरे बिना ही...

फिर हो जाती है एकदम से रात!

सो जाते या मर जाते हैं हम अंशकालिक रूप से?

कई बार तो निकल जाती है आत्मा यायावर-सी,

उन सभी स्थानों और स्थितियों की ओर-

जो अचेतन की सघनता में उलझे हैं ऐसे, जैसे घास में तिनके...

भोर के तंत्र से पहले ही लौट आती है वह,

अपनी निश्चल काया के पास,

हो जाने को व्यस्त फिर से संसार की रीति में...

जैसे लौटती हूँ मैं तुम्हारे पास’’

क्या बड़ी हैं व्यस्तताएं, जीवन-जीवंतता से अधिक?

यदि हाँ तो फिर मृत्यु से बड़ी क्यों नहीं ?

कि कह सकें मृत्यु को भी,

बहुत बिज़ी हूँ यार तुम फिर कभी आना...

“कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।” - संतोष श्रीवास्तव ---

कहानी संवाद “कलम में वह ताक़त होती है जो आज़ादी का बिगुल बजा सकती है।”  - संतोष श्रीवास्तव --- "सुनो, बच्चों को सही समझाइश देना और ज़माने...